कुछ प्रश्न अपनी साथी महिला ब्लॉग लेखिकाओ से
क्या जब कोई आप की चर्चा अपने ब्लॉग पर करना चाहता हैं
तो आप उसको चर्चा करने देने से पहले उसके पूरे ब्लॉग को एक बार पढ़ती हैं सारी पोस्ट
क्या आप देखती हैं की आप से पहले जितने लोगो की चर्चा उस ब्लॉग पर हुई हैं वो किस स्तर और मुद्दे पर लिखते हैं अपने ब्लॉग पर
क्या आप उस ब्लॉगर की जिन लोगो से बहस हुई हैं उन पोस्ट को जा कर पढ़ती हैं
अगर उस ब्लॉगर ने आप से पहले किसी और महिला के प्रति अपशब्द लिखे हैं
तो क्या आप उस महिला से बात कर के तथ्य क्रोस चेक करती हैं या ये मान कर चलती हैं की आप के अलावा और जितनी भी महिला हैं वो गलत हैं
किसी महिला के ऊपर कोई ब्लॉगर एक पोस्ट लगता हैं जिस मे वो महिला को नारीवादी , असंस्कारी इत्यादि कहता हैं
तो क्या आप उस पोस्ट पर उस महिला के विरुद्ध कमेन्ट करती हैं बिना पूरे तथ्य जाने क्युकी वो ब्लॉगर आप के ऊपर एक चर्चा कर चुका हैं
जब आप किसी सामूहिक ब्लॉग से जुडती हैं तो
क्या आप उसके बाकी सदस्यों को जानती हैं
क्या आप कभी ये चेक करती हैं की लोग आप की आड़ मे दूसरी महिला के साथ कैसे अभद्र व्यवहार करते हैं
ब्लॉग पर परिवार वाद
क्या आप तब ही खुश होती हैं जब कोई आप को आंटी , दीदी , माँ इत्यादि बुलाता ब्लॉग पर
क्या आप विनम्र दिखने के लिये ये सब मान लेती हैं
क्या आप को लगता हैं की बिना भाई , पिता , बेटा कहे पुरुष ब्लॉगर को आप सुरक्षित नहीं होगी
अपने अन्दर झाँक कर देखिये की क्यूँ जब एक महिला किसी पुरुष के खिलाफ कुछ लिखती तो आप विवादों से दूर हो जाती हैं और पुरुष जब किसी महिला के खिलाफ लिखते हैं तो बाकी पुरुष उनके साथ होते हैं
मेरी अंतरात्मा पर एक बोझ हैं कल से
कि क्यूँ रहती हैं
एक चुप्पी हमेशा
जब कि एक औरत
चीख कर कुछ कहती हैं
और
क्यूँ
होती हैं टंकार हमेशा
जब कि एक पुरुष
सिर्फ फुसफुसा रहा होता हैं
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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क्योंकि सवाल महिलाओ से है इसलिए मैं जवाब नहीं दे रहा.. वरना लोग गलत समझ लेंगे..
ReplyDeleteबाकी सवाल तो सारे ही सही है.. पुरुषो पर भी बराबर लागू होते है.. :)
पुरुष जब किसी महिला के खिलाफ लिखते हैं तो बाकी पुरुष उनके साथ होते हैं
ये आंशिक ही सही होना चाहिए.. मैं तो कई पुरुषो के साथ नहीं होता कही इसका ये अर्थ तो नहीं कि फिर लोग मुझे पुरुष ही नहीं माने...? :)
महिला पुरुष होना ज्यादा इम्पोर्टेंट है या इंसान होना..? बेहतर इंसान होना ज्यादा ज़रूरी है फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष..
कुछ प्रश्न अपनी साथी महिला ब्लॉग लेखिकाओ से-
ReplyDelete(व्यक्तिगत रूप से उत्तर को प्रस्तुत हूँ मैं )
१) क्या जब कोई आप की चर्चा अपने ब्लॉग पर करना चाहता हैं
तो आप उसको चर्चा करने देने से पहले उसके पूरे ब्लॉग को एक बार पढ़ती हैं सारी पोस्ट
क्या आप देखती हैं की आप से पहले जितने लोगो की चर्चा उस ब्लॉग पर हुई हैं वो किस स्तर और मुद्दे पर लिखते हैं अपने ब्लॉग पर
क्या आप उस ब्लॉगर की जिन लोगो से बहस हुई हैं उन पोस्ट को जा कर पढ़ती हैं
उत्तर ->
व्यक्तिगत रूप से मुझे ऐसा बहुत अधिक अवसर नहीं मिला है आजतक..लेकिन जब कभी मिला,तो चर्चाकार के ब्लॉग पर उनके लेखन के माध्यम से उनके विचारों को काफी कुछ पहचान चुकी मैं और उनमे आपत्तिजनक कुछ भी नहीं मिला है आजतक....
2) अगर उस ब्लॉगर ने आप से पहले किसी और महिला के प्रति अपशब्द लिखे हैं
तो क्या आप उस महिला से बात कर के तथ्य क्रोस चेक करती हैं या ये मान कर चलती हैं की आप के अलावा और जितनी भी महिला हैं वो गलत हैं
उत्तर -> ऐसा कुछ अभीतक नहीं घटित हुआ है मेरे साथ..
३) किसी महिला के ऊपर कोई ब्लॉगर एक पोस्ट लगता हैं जिस मे वो महिला को नारीवादी , असंस्कारी इत्यादि कहता हैं
तो क्या आप उस पोस्ट पर उस महिला के विरुद्ध कमेन्ट करती हैं बिना पूरे तथ्य जाने क्युकी वो ब्लॉगर आप के ऊपर एक चर्चा कर चुका हैं..
उत्तर-> बिलकुल नहीं..
४) जब आप किसी सामूहिक ब्लॉग से जुडती हैं तो
क्या आप उसके बाकी सदस्यों को जानती हैं
क्या आप कभी ये चेक करती हैं की लोग आप की आड़ मे दूसरी महिला के साथ कैसे अभद्र व्यवहार करते हैं.
उत्तर ->"नारी"को छोड़ और किसी सामूहिक ब्लॉग से अभीतक जुडी हुई नहीं मैं..
५) ब्लॉग पर परिवारवाद
क्या आप भी खुश होती हैं जब कोई आप को आंटी , दीदी , माँ इत्यादि बुलाता ब्लॉग पर
उत्तर -> जी हाँ, निसंदेह मुझे अच्छा लगता है,लेकिन किसीसे भी हमेशा सक्षिप्त संपर्क रखना ही उचित लगता है.....
क्या आप विनम्र दिखने के लिये ये सब मान लेती हैं
उत्तर-> नहीं...
क्या आप को लगता हैं की बिना भाई , पिता , बेटा कहे पुरुष ब्लॉगर को आप सुरक्षित नहीं होगी.
उत्तर-> बिलकुल नहीं..
६)अपने अन्दर झाँक कर देखिये की क्यूँ जब एक महिला किसी पुरुष के खिलाफ कुछ लिखती तो आप विवादों से दूर हो जाती हैं और पुरुष जब किसी महिला के खिलाफ लिखते हैं तो बाकी पुरुष उनके साथ होते हैं ....
उत्तर -> सोच विचार के धरातल पर मैं कभी भी स्त्री पुरुष नहीं होती...केवल एक मनुष्य होती हूँ और हमेशा ही तथ्यों को निरपेक्ष रूप से देखना पसंद करती हूँ...गुटबाजी और जेंडर भेद ,दोनों से ही मुझे सख्त परहेज है....स्वस्थ बहस में उत्साहित हो भाग लेती हूँ...घटिया बहसबाजी में पड़ना बिलकुल ही नहीं रुचता... अपनी क्षमताओं का सार्थक सकारात्मक उपयोग करने में विश्वास रखती हूँ...
आशा है मैंने प्रश्नावली ठीक ठाक हल कर दी है...
अब एक बात - हम जो कोई भी, कुछ भी, जो इस अंतरजाल पर लिख रहे हैं,अक्सर ही नहीं याद रख पाते कि इसका यह फलक कितना विस्तृत है और इसपर जो हम आज रख रहे हैं वे शब्द कितने समय तक संरक्षित रहेंगे...
हमें स्वविवेक से निर्णीत करना होगा कि इसका उपयोग कूड़ा फैलाने के लिए करें या कि रचनात्मकता...
रचना जी
ReplyDeleteकिसी भी विवाद की स्थिति में मै हमेसा उसका पक्ष लेती हु जो सही है मेरी नजर में , अमीर गरीब छोटा बड़ा नर नारी का पक्ष ले कर नहीं | यदि कोई पुरुष सिर्फ पुरुष होने के कारण किसी का गलत साथ दे रहा है तो गलत है और यदि कोई नारी भी किसी गलत का साथ सिर्फ नारी होने के कारण दे रही है तो वो भी उतना ही गलत है | दूसरी बात नारिया ऐसे मौको पर इस लिए अक्सर चुप रह जाती है कि जो पुरुष किसी और नारी के लिए इतने अपशब्द कह रहा है गाली गलौज कर रहा है वो मेरे बारे में भी करने लगेगा एक तो हम उस स्तर तक गिर नहीं सकते है अच्छा होगा कि ऐसे व्यक्ति का कोई भी जवाब ही ना दे जितना हम जवाब देंगे वो उतना ही बेमतलब कि बात करेगा , करने दे अनर्गल बाते उसे और दूसरा कि हम ब्लॉग पर जो करने आये है अपना समय और उर्जा उसमे लगाये ना कि ऐसे लीगो से उलझने में व्यर्थ करे जो कभी नहींसुधरने वाला | ये मेरे निजी विचार है आप सभी का मत मुझसे भिन्न हो सकता है |
१) क्या जब कोई आप की चर्चा अपने ब्लॉग पर करना चाहता हैं
ReplyDeleteतो आप उसको चर्चा करने देने से पहले उसके पूरे ब्लॉग को एक बार पढ़ती हैं सारी पोस्ट
क्या आप देखती हैं की आप से पहले जितने लोगो की चर्चा उस ब्लॉग पर हुई हैं वो किस स्तर और मुद्दे पर लिखते हैं अपने ब्लॉग पर
क्या आप उस ब्लॉगर की जिन लोगो से बहस हुई हैं उन पोस्ट को जा कर पढ़ती हैं
उत्तर ->
मुझसे पूछकर किसी ने भी चर्चा नहीं की है आजतक..लेकिन जब कभी चर्चा हुई है आपत्तिजनक कुछ भी नहीं मिला मुझे।
2) अगर उस ब्लॉगर ने आप से पहले किसी और महिला के प्रति अपशब्द लिखे हैं तो क्या आप उस महिला से बात कर के तथ्य क्रोस चेक करती हैं या ये मान कर चलती हैं की आप के अलावा और जितनी भी महिला हैं वो गलत हैं
उत्तर -> सभी महिलाएं गलत कैसे हो सकती है ??
३) किसी महिला के ऊपर कोई ब्लॉगर एक पोस्ट लगता हैं जिस मे वो महिला को नारीवादी , असंस्कारी इत्यादि कहता हैं तो क्या आप उस पोस्ट पर उस महिला के विरुद्ध कमेन्ट करती हैं बिना पूरे तथ्य जाने क्युकी वो ब्लॉगर आप के ऊपर एक चर्चा कर चुका हैं
उत्तर-> हाथी चले बाजार , कुत्ता भूंके हजार .. जिसका जो मन हो कहता रहे , हम वैसों पर टिप्पणी भी नहीं करते।
४) जब आप किसी सामूहिक ब्लॉग से जुडती हैं तो क्या आप उसके बाकी सदस्यों को जानती हैं
क्या आप कभी ये चेक करती हैं की लोग आप की आड़ मे दूसरी महिला के साथ कैसे अभद्र व्यवहार करते हैं.
उत्तर ->किसी सामूहिक ब्लॉग से अभी तक जुडना नहीं हुआ मेरा।
५) ब्लॉग पर परिवारवाद
क्या आप भी खुश होती हैं जब कोई आप को आंटी , दीदी , माँ इत्यादि बुलाता ब्लॉग पर
उत्तर -> अच्छा तो लगता है .. पर अतर्जाल के लोगों से अभी तक एक सीमा ही बनाकर रखी है मैने।
क्या आप विनम्र दिखने के लिये ये सब मान लेती हैं
उत्तर-> मुझे कोई समझौता करना नहीं आता।
क्या आप को लगता हैं की बिना भाई , पिता , बेटा कहे पुरुष ब्लॉगर को आप सुरक्षित नहीं होगी.
उत्तर-> ऐसा कुछ भी नहीं।
६)अपने अन्दर झाँक कर देखिये की क्यूँ जब एक महिला किसी पुरुष के खिलाफ कुछ लिखती तो आप विवादों से दूर हो जाती हैं और पुरुष जब किसी महिला के खिलाफ लिखते हैं तो बाकी पुरुष उनके साथ होते हैं।
उत्तर -> गलत गलत है और सही सही .. इसमें स्त्री और पुरूष होने का कोई प्रश्न ही नहीं।
हमारे सामने खून के जितने भी रिश्ते हैं .. वो मानने के लिए हम मजबूर हैं। इसके अलावा वैवाहिक संबंधों के कारण बने रिश्तों को भी एक सीमा तक समझौते के तहत् झेलना पड सकता हैं। बचपन से चली आ रही मित्रता को बनाए रखने के लिए भी हम थोडे बहुत समझौते कर सकते हैं। पर अंतर्जाल में मिलनेवाले लोगों से जबतक हमारे विचार मिलेंगे , जबतक हमें बातचीत अच्छी लगेगी , हम बातचीत करेंगे .. वरना बातचीत बंद , इनसे समझौता कैसा ??
रंजनाजी ,संगीता जी और अन्शुमालाजीसे पूर्णत सहमत |
ReplyDeleteआप लोगो ने प्रत्येक बिदु पर मेरे हिसाब से सही विचार दिए है |
अन्शुमालाजी ने भी महिलाओ की टिप्पणी न देने की मजबूरी को स्पष्ट किया है \
@rachna ji'
ReplyDeleteaur jahan cross check karne ki jarurat hi na padti ho wahan?ek mahila apne prati apshabdo ke prayog ka aarop jis par laga rahi hai wo hi blog par aakar 2-4 baar phir se wo hi gaaliyaan bak de kya tab bhi cross check ki jarurat padegi?
aur virodh karne ka tareeka inme se konsa hoga-
1.aap us blog par jaye aur oh,aah auch kar nikal jaye mano sabko jhandu balm ki jarurat aan padi ho.
2.jeewan ki nashwarta ko prakat karne wala koi nagma gunguna dena.
3.blogjagat hamara pariwaar hai aur hum sab bhai bahan hai type ki teep kar aana.
3.us mahila ko ye yaad dilana ki aapki kitni achchi dosti thi tab ke dinon ko yaad karo aur sab bhool jao.
inme se koi bhi aisa tareeka hai jisse galat ko galat thahraya ja sake?
hum yadi ye hi tareeke virodh ke liye apnayenge to mahila ki aawaj kabhi tankaar nahi ban payegi.samajh nahi paa raha yahan ye likhna kitna sahi hai kitna nahi par khud ko rok nahi pa raha.apko galat lage to mat chapiye.
.
ReplyDeleteRachna ji,
When a person calls a woman as 'bitch' [kutiya], then none of the women turned up and condemned him in stern words , except Anshumala ji.
What's the point in asking all these questions.
All the women were enjoying the show free of cost .
Hats off to all women in Nari blog.
.
isa jagah mere uttar bhi ranjanajee, sangeeta jee ke anusar hi honge. ek paripakva maansikata ki soch apani alag hoti hai.
ReplyDeleteहमें स्वविवेक से निर्णीत करना होगा कि इसका उपयोग कूड़ा फैलाने के लिए करें या कि रचनात्मकता...
ReplyDelete-----------------------------------
ranjana ji ki is baat me mahila aur purushon dono ke liye seekh hai ki kya kiya jana chahiye.....
anshumalaji ki baat se bhi sahmat sahmat hun......
रचना जी.... आज कमेन्ट का श्री गणेश आपकी पोस्ट से कर रहा हूँ.... हालांकि मुझे बहुत डर लगता है... आपसे और इस ब्लॉग से.... :) मेरा जवाब भी कुश के ही जैसा है.... या फिर कह सकता हूँ कि कुश के कमेन्ट को मेरा भी कमेन्ट माना जाए....
ReplyDeleteलेकिन एक सवाल आपने ऐसा किया है कि मुझे लगा कि सिर्फ इसके बारे में मैं भी कुछ कहूँ... अच्छा! मुझे ना कुछ कहने में भी बहुत डर लगता है.... पता नहीं कहाँ कौमा-फुल स्टॉप छूट जाए.... और फिर अर्थ का अनर्थ हो जाए... हाँ तो मैं इस सवाल के बारे में कह रहा था...
सवाल:---ब्लॉग पर परिवार वाद
क्या आप तब ही खुश होती हैं जब कोई आप को आंटी , दीदी , माँ इत्यादि बुलाता ब्लॉग पर
क्या आप विनम्र दिखने के लिये ये सब मान लेती हैं
क्या आप को लगता हैं की बिना भाई , पिता , बेटा कहे पुरुष ब्लॉगर को आप सुरक्षित नहीं होगी.
जवाब: ब्लॉग पर कुछ रिश्ते तो ऐसे बन ही जाते हैं.... जिन्हें हमें (मुझे) माँ - दीदी कहना अच्छा लगता है. यह बनाये नहीं जाते हैं... यह बन जाते हैं. और बन जाते हैं तो उसी रूप में निभाने भी पड़ते हैं. खासकर मेरे जैसे के लिए तो .... मैंने तो अपनी माँ को दस साल की उम्र में ही खो दिया था... और बताऊँ... तो उनके साथ मैंने अपनी उस दस साल की ज़िन्दगी में सिर्फ साढ़े तीन साल गुज़ारे थे...(क्यूंकि मैं शिमला में बोर्डिंग में पढ़ता था ढाई साल की उम्र से).... और वो साढ़े तीन साल मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है. अपनी माँ के जाने के बाद कभी किसी को माँ नहीं कहा...लेकिन ब्लॉग जगत पर आ कर मुझे मेरी माँ जैसी ही माँ मिली... जिनमें मैंने अपनी माँ का ही अक्स देखा... तो अब जो महिला मेरी माँ या मौसी की उम्र की होंगीं... तो उन्हें हम क्या कह कर संबोधित करे? आंटी, भाभी, दीदी कह नहीं सकते ... कह नहीं सकते क्या... यह सब मुँह से निकलेगा ही नहीं ... या फिर नाम के साथ जी लगायें.... जो कि लगाना ही पड़ता है... लेकिन एक आध रिश्ते अपने आप ऐसे बन जाते हैं ... जिन्हें माँ.दीदी कहना अच्छा लगता है....और जब हम रिश्तों को निभा ले जाते हैं... तो गलत क्या है? और यह भी बात सही है कि ऐसे रिश्ते सबसे बनते भी नहीं हैं.... घूम घूम कर ऐसे रिश्ते बनाना ... सिकनेस को शो करेगा... लेकिन मैंने यहाँ ब्लॉग जगत में ऐसे भी लोग देखे हैं... जिन्होंने कई महिलाओं से बहन का रिश्ता बनाया... उनको दीदी कहा... फिर उन्ही को गाली भी दिया ....डाइरेक्टली ...चाहे इनडाइरेक्टली...... तो ऐसे लोगों को क्या कहा जायेगा.... रिश्ते बनाना या फिर सिर्फ मुँह से रिश्तों को बोल देना आसान होता है... लेकिन निभाना बहुत ही मुश्किल... जब भी ऐसे रिश्ते बनायें... तो दायरे में ही रहना चाहिए... दायरे से बाहर हर चीज़ गलत होती है./.. अच्छा !!!!!!!!!!! बात यहाँ विनम्रता की भी नहीं है... अगर कोई लड़का बेटे की उम्र का या फिर उसी उम्र के आस-पास का ही हो ... और वो माँ का/दीदी का संबोधन दे रहा हो तो क्या गलत है? पर अगर संबोधन दे रहा है तो उसी दायरे में भी तो रहे... कोई भी महिला बिना भाई, पिता बेटा के भी सुरक्षित होगी .... इसमें कोई शक नहीं है... बिलकुल होगी... लेकिन यह भी है कि हमारे समाज में खराब पुरुषों की तादाद ज़्यादा है... तो ऐसे खराब पुरुषों से पुरुष ही निबट सकता है... अच्छा मेरा यह मानना है कि जो पुरुष महिलाओं की इज्ज़त नहीं करता है (यहाँ हम vice-versa कह सकते हैं...)... या फिर महिलाओं की रक्षा नहीं कर सकता है ...उसे पुरुष कहलाने का कोई हक नहीं है...
अच्छा! यह छोडिये .... मैं शायद जो कहना चाहता हूँ वो कह नहीं पा रहा हूँ... क्यूंकि मैं थोडा सा डरा हुआ हूँ.... लेकिन मुझे अच्छा लगा की आपकी पोस्ट पर पहली बार मैंने इतना लम्बा कमेन्ट दिया है... आपने सवाल बहुत अच्छे किये हैं.... अंत में यही कहूँगा....कि बेहतर इंसान होना ज्यादा ज़रूरी है फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष.. (लाइन कौपीड...)
Divya
ReplyDeleteYou did not read the comment i and rekha posted
You were the one always appreciated him on his blog and
You never wrote a single line when He wrote against me and and also comemnted against anshumala
on this post where he has said you are the devoted commentator
you have criticized me and said that
"woman need to earn respect"
there you failed to see that not only he but his friends are trying to tell you that
I am spreading venom
I REQUEST YOU TO PLEASE READ A POST
ON THIS VERY BLOG AGAINST HIS BLOG WRITINGS
as regards members of naari blog make sure that we are in the process to bring a a change
when you feel that you can convince man bloggers much better than all others here why expect them to even write
i have always stood up against fiflty comments on woman but if you had supported me when i was commenting on his blog against his writngs or when he was spreading foul against me then i would be at fault
we have condemend his act always and he is against woman but he uses a woman as a muse on his blog so that he always has a supporter to stand for him
and last but not the least i blog because i have a turbulence in mind and not because i want to make friends here on blog or find a father brother here
i have them at home please
and many of these questions need to be answered by yourself as well
ReplyDeletemehfooz
ReplyDeleteblog par rishto kaa pradarshan karna ek gut bandi ko janam daetaa haen
aap ne ek jagah ek ko maa kehtey hua sambodhit kiyaa haen aur wahiio mujhe gaali dee haen jabki mae umr mae aap ki blog par un maa ki umr sae badii hun
apnae andar jarur jhaank karr daekho aur immandaar ho to ek post baanaa kar likho ki kaese tumko mail daekar maere khilaaf kament karne kae liyae kehaa jataa thaa
hae himaant mehfooz apna gunaah kabul karnae ki
उत्तर -> सोच विचार के धरातल पर मैं कभी भी स्त्री पुरुष नहीं होती...केवल एक मनुष्य होती हूँ और हमेशा ही तथ्यों को निरपेक्ष रूप से देखना पसंद करती हूँ...गुटबाजी और जेंडर भेद ,दोनों से ही मुझे सख्त परहेज है....स्वस्थ बहस में उत्साहित हो भाग लेती हूँ...घटिया बहसबाजी में पड़ना बिलकुल ही नहीं रुचता... अपनी क्षमताओं का सार्थक सकारात्मक उपयोग करने में विश्वास रखती हूँ...
ReplyDeleteरंजना जी की टिप्पणी से शब्दशः सहमत ..
मैं कमेंट के मूड में बिलकुल नहीं था। लेकिन रंजना जी के इस कथन की प्रशंसा करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ..
ReplyDeleteसोच विचार के धरातल पर मैं कभी भी स्त्री पुरुष नहीं होती...केवल एक मनुष्य होती हूँ और हमेशा ही तथ्यों को निरपेक्ष रूप से देखना पसंद करती हूँ...गुटबाजी और जेंडर भेद ,दोनों से ही मुझे सख्त परहेज है....स्वस्थ बहस में उत्साहित हो भाग लेती हूँ...घटिया बहसबाजी में पड़ना बिलकुल ही नहीं रुचता... अपनी क्षमताओं का सार्थक सकारात्मक उपयोग करने में विश्वास रखती हूँ...
...पूर्णतया सहमत।
सोच विचार के धरातल पर मैं कभी भी स्त्री पुरुष नहीं होती...केवल एक मनुष्य होती हूँ और हमेशा ही तथ्यों को निरपेक्ष रूप से देखना पसंद करती हूँ...गुटबाजी और जेंडर भेद ,दोनों से ही मुझे सख्त परहेज है....स्वस्थ बहस में उत्साहित हो भाग लेती हूँ...घटिया बहसबाजी में पड़ना बिलकुल ही नहीं रुचता... अपनी क्षमताओं का सार्थक सकारात्मक उपयोग करने में विश्वास रखती हूँ...
ReplyDeleteरंजना कि इस बात से किसी को इनकार नहीं हो सकता पर फिर क्या कोई ये भी बताएगा कि नारी और पुरुष मे कोई भी बहस नारी के शरीर और उसके चरित्र को अनावृत करके ही क्यूँ ख़तम होती हैं
Mai Anshumala ji aur Ranjana ji se sahmat hoon.
ReplyDeleteरचना जी... हाँ! कुछ गलतियाँ मुझसे हो गयीं.... मैं नया था यहाँ समझ नहीं पाया .... मैं अपनी वो गलती मानता हूँ... और सौ बार कान पकड़ कर उठक बैठक लगा कर माफ़ी भी मांग रहा हूँ.... मैं अपने उस कमेन्ट के लिए आज भी शर्मिंदा हूँ.
ReplyDeletemehfooj
ReplyDeletemaene maafi ki baat hi nahin kii haen
maene aap sae kehaa haen ki kyaa aap mae himmat haen apne blog par yae likh kar kabul karnae ki maere khilaaf aap sae kament likhvaaya gayaa
Rachna ji,apki naarajgai samajh sakta hun.par ye sab aapne pahle kyo nahi pucha? apaki sabhi baaton ka jawab hone ke bawjood kuch nahi j kah sakta kyonki main koi blogger nahi hoon na aapke blog ka member. phir bhi yadi mujhe lelar bhi apke koi sawaal ho to kripya bataye.yahin jawab dunga.aur mera picihla cmnt. kewal mahilaon nahi purushon ke bare me bhi hai.
ReplyDeleteराजन
ReplyDeleteजब जो मन मे आता हैं उस के लिये जब शब्द मिलते हैं तभी पूछा जाता हैं आप से व्यक्तिगत कुछ नहीं पूछना या कहना हैं अभी
Ranjana ji se sahmat hoon,
ReplyDeleteकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
कल दिव्या की पोस्ट पढ़कर बहुत अफ़सोस लगा कि अब किस स्तर पर ब्लोगिंग हो रही है। सिर्फ नारी के खिलाफ अपशब्द कहना ही ब्लोगिंग तो नहीं है।
ReplyDeleteवैसे सवाल महिलाओं से है फिर भी कुछ तो कहना ही चाहूँगा [पोस्ट के विषय से बाहर लगे तो क्षमा ]
ReplyDeleteअभी मानव के अवचेतन मस्तिष्क में बहन, माँ जैसे रिश्तों या शब्दों के लिए सम्मान मौजूद है .....
होने को ये सिर्फ शब्द हैं , शब्द हमेशा हथियार होता है , या एक मार्ग जिससे कोई आपके जीवन में प्रवेश करता है
इस मार्ग से लम्पट ना के बराबर प्रवेश करते हैं [अभी तक तो] महा लम्पटों के लिए तो सभी मार्ग खुले हैं
एक बात और पता नहीं कौनसी मानसिकता पैदा हो गयी है आजकल ...उदाहरण पहले देता हूँ
" ये क्या "बहिन जी" टाइप के कपडे पहन रखे हैं ??" ये वाक्य किसी (स्त्री या पुरुष ) ने किसी स्त्री(दोस्त /बहन/पत्नी कोई भी ) से कहा
इसमें लगता है जैसे "बहन" शब्द कोई बहुत ही "लो स्टेंडर्ड" शब्द हो [ये मानव मति का "लो स्टेंडर्ड" है ]
दो वाक्य और " थैंक्स फॉर द सजेशन ", "मेरी बात को अन्यथा मत लेना लेकिन ....."
इन वाक्यों का प्रयोग करते समय मानव के मन में क्या चल रहा है कैसे पता लगेगा ??
इन सब रिश्तों से ऊपर है "देश" और इससे भी ऊपर "मानवता"
माना अगर कोई आपके इन "उपरी स्तरों का विरोध करने वाले विचारों" का सम्मान करता है ["बहुत अच्छी पोस्ट" , "सच उजागर करती पोस्ट" "मेरी आखों में तो आंसू आ गए " आदि आदि वाक्य ही तो हैं ] तो ये तो आपको ही ध्यान रखना होगा , की ऐसा कोई क्यों करता है
फाइनल बात "दोस्त" जैसे शब्दों से बचना बेहतर है , और किसी के "बहन" कह देने पर भी "बुद्धि की लाईट" ऑन रखी जानी चाहिए
नोट: मैंने यहाँ आये हुए कमेन्ट नहीं पढ़े हैं
दिव्या जी
ReplyDeleteनारी ब्लॉग पर आप ने एक खुला पात्र नहीं पढ़ा हैं शायद जरुर पढ़िए गा आप को खुद पता चल जाएगा कुछ लोग इस लायक भी नहीं होते के उनका नाम भी लिया जाए । आप को तकलीफ हुई नारी ब्लॉग के सदस्यों से क्षमा कर दे पर उम्मीद रखने से पहले कम से कम हम को पढ़ा तो होता । कम से कम हमारे विरोध मे हमारा साथ तो दिया होता । कम से कम दोस्त बनाने से पहले हम में से किसी से पूछा तो होता ।
रचना जी आप के प्रश्नों के जवाब नहीं दे रही हूँ क्युकी हर स्त्री का जवाब एक ही होगा हां ये जरुर कहूँगी आप ने ये प्रश्न बहुत सही समय पर पूछे हैं और जब हम किसी को राईट ऑफ कर देते हैं तो फिर उसका विरोध भी करना बेकार ही होता हैं ।
पात्र = पत्र
ReplyDelete.
ReplyDeleteरचना जी,
मैं आपके सारे प्रश्नों कि एहमियत भरपूर समझ रही हूँ, बहुत चुनकर सार्थक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी प्रश्नों के उत्तर उन्हीं प्रश्नों के अन्दर हैं, इसलिए तो प्रश्नों कि सार्थकता है।
मैं एक बात से सर्वथा विरोध रखती हूँ कि महिलाओं को चुप रह जाना चाहिए। चुप हम इसलिए रह जाते हैं क्यूंकि हम तो सुरक्षित होते हैं तथा सुख से जीवन जी रहे , तो सोचते हैं, कौन करे ". आ बैल मुझे मार" । लेकिन ये सर्वथा अनुचित है । हमारी चुप्पी के कारण , यूँ खुले हुए भेडिये, आने वाली ना जाने कितनी मासूम महिलाओं को त्रस्त करते रहेंगे।
हमे निस्वार्थ होकर , अपनी नहीं, दूसरों कि सोचनी चाहिए।
रचना जी ,मेरा कमेन्ट छापने के लिए आभार।
मेरी पोस्ट जिस पर अरविन्द मिश्र जी ने मुझे कुतिया कहा, उस पर निर्भयता से अपने विचार रखने के लिए ...
-रचना जी,
-रेखा जी,
-अंशुमाला जी
का बहुत बहुत आभार।
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ReplyDeleteसुमन जिंदल जी , एवं रचना जी ,
आपसे अनुरोध है कृपया मुझे उस खुले पत्र का लिंक दिया जाए जिसका जिक्र सुमन जी ने किया है।
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पूरे पूरे ब्लॉग को पढ़ पाना संभव नहीं होता , मगर ट्रेलर काफी होता है किसी को भी समझने के लिये । जब भी कभी ब्लॉग पर ऐसी स्थितियाँ देखीं , शर्मनाक लगीं । जब भी कलम गलत हाथों में आती है , अंजाम किसी हद तक भी जाता है ; जबकि एक सद-उद्देश्य से किया गया लेखन खुद को भी शीतल रखता है और सुगंध भी दूर तक जाती है । हम व्यक्तिगत तौर पर किसी को भी नहीं जानते , मैं तो इसे ही ठीक समझती हूँ कि हम अपनी तरफ से ऐसी किसी चीज को बढ़ावा ही न दें , संभल कर चलें , कभी कभी वक्त ऐसे मोड़ पर ला खडा करता है , यहाँ क्योंकि हर कोई बिना चेहरा दिखाए अपनी बात कह भी सकता है , गालीगलौज भी कर देते हैं ...ये तो गरिमा को ठेस पहुँचाना हुआ न ...इसलिए सावधानी बरतनी बहुत जरुरी है ।
ReplyDelete" क्या कोई ये भी बताएगा कि नारी और पुरुष मे कोई भी बहस नारी के शरीर और उसके चरित्र को अनावृत करके ही क्यूँ ख़तम होती हैं ?????"
ReplyDeleteये आपने बड़ा सही सवाल पूछा रचना दी...
आज तक जो कुछ देखा जाना समझा है,उस अनुभव से कहती हूँ.. वस्तुतः जब कभी भी कोई बहस/लड़ाई /वाकयुद्ध होती है,चाहे यह स्त्री स्त्री के मध्य हो,स्त्री पुरुष के मध्य हो या पुरुष पुरुष के मध्य,तो इसमें जो दोनों पक्षों की मुख्य भावना होती है,वह विजय पाने की, विरोधी को नीचा दिखाने की होती है और इस क्रम में व्यक्ति वह हर युक्ति अपनाता है,जिससे वह विजयी हो सामने वाले को अधिक से अधिक कष्ट पहुंचा सके...तो ऐसे में जिसके हाथों जो हथियार(दुर्वचन रूपी) आता है वह सामने वाले पर फेंक देता है...यह अति स्वाभाविक वृत्ति है मानव मन की...
आप पुरुषों की बात कह रही हैं,मैंने तो दो स्त्रियों को भी जब लड़ते हुए देखा है तो दोनों को एक दुसरे को ऐसे नंगा करते हुए देखा है,कि वे शब्द बाण कान और दिमाग को सुन्न कर देने वाले होते है..हो सकता है आपने ऐसा कुछ न देखा सुना हो आजतक,पर यह होता है..अब बहस यदि स्त्री पुरुष के बीच हो और इसमें दोनों अपनी अपनी विजय चाहें,अपने दृष्टिकोण और बात को सही साबित करना चाहें, तो एक दुसरे को तो उघाड़ेंगे ही न...स्त्री पुरुष के चरित्र को नंगा करेगी तो पुरुष स्त्री की देह को...
क्रोध में विवेक धारण किये रहने,संयत रहने और सुशब्दों के प्रयोग के लिए बहुत गहरे संस्कार चाहिए,सबके वश का नहीं यह.....
रचनाजी आप महिला लेखिकाओं को जागृत कर रही है...यह प्रशंसनीय है...मै बहुत समय से यहां लिख रही हूं...लेकिन महिलाऑ के बारे में अभद्र शब्द किसी भी पुरुष लेखक द्वारा लिखे हुए, मेरे पढने में आए नही है!....अगर किसी ने गलत भाषा का प्रयोग किया है तो वह वाकई में निंदनीय है!...मै आपके साथ हुं और इस बात का विरोध जताती हूं!....मुझे लगता है कि संबोधन के लिए..व्यक्तिका नाम,सर,या मैडम शब्द का प्रयोग ही उचित है!
ReplyDelete!...वैसे संबोधन पसंद न आने पर आप विरोध जता सकतें है!
अरुणा
ReplyDeleteये इस बात पर आधारित हैं कि आप किस मुद्दे पर ब्लॉग लेखन कर रही हैं । ज़रा समाज कि नंगी सचाई पर लिखिये जहां जेंडर बायस हैं फिर आप को कमी नहीं होगी अपने ब्लॉग पर अपशब्दों की
अपने ब्लॉग पर यदि कोई अप्रिय टीप या बात आती है तो हमें सबसे पहले बजाय किसी की राह ताके स्वयं ही सोच विचार कर प्रतिकार करना चाहिए ...और हाँ यदि कहें किसी के भी ब्लॉग पर नारीवादी गलत टीप कोई करता है तो उसका सामूहिक विरोध कर एकजुटता/शक्ति का परिचय अवश्य देना चाहिए, क्यूंकि यदि हम विरोध नहीं करेंगे तो ऐसे लोगों को यह बुरी आदत बनकर सभी को परेशां करती रहेगी..
ReplyDeleteसार्थक चर्चा/बहस के लिए धन्यवाद
कृष्ण जन्माष्टमी के सुअवसर पर आप सभी को सपरिवार बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/06/blog-post_20.html
ReplyDeletefor divya to read
hum lekh aur tippni ko kaee baar padha aur finally 'the gr8 kush
ReplyDeletebhai se iktphakh rakhta hoon.
aameen
मेरा भी मत यह है कि यहां ब्लाग में मां,दीदी,आंटी,चाचाजी,ताऊ जी आदि संबोधन तो कतई नहीं होने चाहिए। दूसरी बात स्त्री हो या पुरुष किसी को भी असंसदीय शब्दों से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteआपने गुटबाजी की बात की है। वह तो ब्लाग की दुनिया में साफ दिखाई देती है। हम एक दूसरे की रचनाओं या पोस्ट पर केवल वाही वाही करते हैं,उनकी समालोचना कभी नहीं करते। और कोई करता है तो कहा जाता है कि आप से निरत्साहित कर रहे हैं।
मेरा यह भी सुझाव है कि गंदगी फैलाने वाले ब्लागर का बहिष्कार ही एक मात्र उपाय है। आप उसकी जितनी चर्चा करेंगे, वह उतना ही अपने उदेदश्य में सफल होगा।
*नारी ब्लॉग* की सदस्याओं के साथ सभी *सम्मानित बंधुओं-बांधवियों* के लिए ,
ReplyDeleteकोमल है कमजोर नहीं ,शक्ति का नाम नारी है.सबको जीवन देने वाली मौत तो तुमसे हारी है.
जब भी किसी एक महिला को कोई भी अपशब्द या गाली(क्योंकि यहाँ गाली दी गई है) कहता है तो वो केवल किसी एक नारी को ही नहीं सबको तकलीफ(HURT) देती है.*विशेष*-- हमें विवेकशील-संयमित रहकर आपस में एक-दूसरे को दोष आरोपित नहीं करना है ,संगठित ही बने रहना है. भले ही कोई सदस्या अपनी राय दे या न दें. बल्कि हमें तो उस *कुंठित आदमी* का एकस्वर में विरोध करना है जो किसी महिला के लिए इतने निम्न विचार-सोच रखता है. अगर वो सामने आकर स्वयं अपने घर की महिलाओं को भी गलत शब्द कहेगा तो निःसंदेह हम यूँ ही एकमत से उसका विरोध जताएँगे. हाँ ब्लॉग में लिखने से वो सामने आने से बचा रहता है क्योंकि वो तो स्वयं अपना चेहरा दिखाने लायक तक नहीं है .माफ़ी का हक़दार भी नहीं
देश में गर औरतें अपमानित हैं नाशाद हैं ,
दिल पे रखकर हाथ कहिये ,क्या ये देश आजाद है.
हम आपस में अपने *नारी ब्लॉग* में जितने कमेंट्स-DISCUSSION कर रहे हैं इसके साथ ही हमें+हमारे सभी माननीय बंधुओं को उस व्यक्ति के उसी ब्लॉग पर जहाँ उसने ये गलत शब्दों का उपयोग किया है DIRECT विरोध के साथ ULTIMATUM भी देना चाहिए.जिसने इतने फूहड़ तरीके से एक महिला-शक्ति को टिप्पणी लिखी है. HOW COULD HE WRITE THESE TYPE OF WORDS. संस्कृत श्लोक है ,
सर्प विषे दंतस्य,सिरे मक्खिनाम. व्रश्चिकस्य पूंछ विषे ,दुर्जनस्य अंगे-अंगे .
सर्प का विष दन्त में ,मक्खी का सिर में, बिच्छु का पूंछ में पर दुर्जन का उसके अंग-अंग में होता है . बेहतर है *अरविन्द मिश्र* का *पूर्ण त्याग* (TOTAL BYCOT ).
एक विनम्र निवेदन है कि किन्ही १-२ लोगों की मूर्खता-बेवकूफी-FOOLISHNESS के कारण हमें अन्य दूसरे ब्लॉगर बंधुओं से अपनी नम्रता या सोहाद्रता को नहीं मिटने देना चाहिए. अधिकांश पुरुष बंधू हम महिला-शक्ति को RESPECT देने के लिए कुछ तो उच्चारित करेंगे ही. अपने तरीके से जो कहना चाहें , उनको हमें अन्यथा बिलकुल नहीं लेना चाहिए.
हमारे देश के संस्कार-संस्कृति हमें क्या सिखाते हैं. याद आते है किसी कवि की कविता के कुछ शब्द जो हमें गर्व से भर देते हैं.
बहिन पुरुष ने मुझे पुकारा ,कितनी ममता कितना नेह. मेरा भइया पुलकित अंतर सदा रहे हमारा स्नेह .
कमल नयन अंगार उगलते यदि लक्षित हो तनिक अपमान. दीर्घ भुजाओं में भाई की रक्षित हमारा सम्मान.
पुनः
राहे मंजिल पर गिरते संभलते रहना है ,पांव जल जाएँ पर फिर भी चलते रहना है .
मिलकर करें प्रयास हमें परिवर्तन लाना है,यदि हो गए उदास नहीं कुछ होना जाना है.
सादर,
अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका - साहित्यकार
रचना जी - यह पोस्ट तब की है - जब मैं इस ब्लॉग जगत के बारे में जानती तक न थी कि यह दुनिया एक्सिस्ट भी करती है | पर अब पढ़ रही हूँ - तो टिप्पणी किये बिना जा नहीं सकती | यह टिप्पणी शायद ही कोई पढ़े , क्योंकि यह पोस्ट बहुत पुरानी हो चुकी है | पर आप तक मैं अपना मत ज़रूर पहुंचाना चाहूंगी |
ReplyDelete१) नहीं मैं हर ब्लॉग और हर टिप्पणी नहीं पढ़ती टिप्पणी से पहले |
२) मैं दोनों में से कोई भी पक्ष गलत/सही मान कर नहीं चलती | मैं नहीं मानती कि कोई भी सिर्फ इसलिए सही या गलत होगा कि उसने स्त्री शरीर या पुरुष शरीर धरा हुआ है | यह उस व्यक्ति के संस्कार, मेंटल लेवल, माहौल और बहुत सी बातों पर है|
३) नहीं करती - बिना जाने निगेटिव कमेन्ट महिला या पुरुष पर नहीं करती, हाँ उस एक पोस्ट या उस एक चर्चा पर ज़रूर अपने विचार व्यक्त करती हूँ |
४) मैं अब तक सिर्फ एक सामूहिक ब्लॉग से जुडी -"नारी" से - पर उसमे कोई योगदान नहीं दिया | उसके बाद यह जान लिया कि जब मैं योगदान नहीं कर रही तो कही जुड़ना नहीं चाहिए | तो फिर २-३ जगह पूछा भी किसी ने - तो नहीं जुडी | वैसे भी - सामूहिक ब्लॉग से जुड़ने का अर्थ है किसी और की विचारधारा को आत्म सात करना - जो मैं नहीं करूंगी, | नारी से मैं क्यों निकली - यह आप जानती ही हैं , और यह होता रहेगा - क्योंकि मुझे जब जो सही लगता है, मैं कह देती हूँ | जब चुप रहना ठीक लगे - चुप भी रहती हूँ| किसी और के निर्देशानुसार नहीं चल पाती - शायद यह मेरी कमजोरी ही हो, पर यह है|
५) परिवार वाद - मुझे अच्छा लगता है यदि कोई मुझे बहन/ माँ माने - मुझे इन रिश्तो से अपनापन लगता है | ये किसी तरह की ढाल नहीं हैं मेरे लिए | किसी और के लिए हों तो कह नहीं सकती - मेरे लिए नहीं | मुझे स्त्री- पुरुष मित्रता में भी कोई बुराई नज़र नहीं आती, और रिश्ते बंधने में भी नहीं |
६) स्त्री चुप क्यों रहती है ? क्योंकि वह उसका अपना निजी डिसिशन है - उसको अधिकार है कि वह चुप रहे, समर्थन दे, या प्रतिकार करे|