गृहणियां
इस शब्द को आज कि स्थितियों मे कैसे परिभाषित करेगे ।
अपने देश कि राष्ट्रपति एक महिला हैं , विवाहिता हैं क्या वो गृहणी हैं ????
सोनिया गाँधी कांग्रेस कि नेता हैं , विधवा हैं क्या वो गृहणी हैं ??
सुषमा स्वराज विपक्ष कि नेता हैं , विवाहित हैं क्या वो गृहणी हैं ??
अगर वो गृहणी हैं तो क्या गृहणी वो केवल इस लिये हैं कि वो विवाहित हैं ??
एक अविवाहित नारी , जो अपना घर भी चलती हैं और बाहर काम भी करती हैं क्या वो गृहणी हैं ?? अगर नहीं हैं तो उसके लिये क्या शब्द कहा जायेगा ।
बदलते समय के साथ साथ शब्दों कि परिभाषाये भी बदलती हैं । आज के परिवेश मे सिंगल काम काजी महिला कि संख्या मे बढ़ोतरी हो रही हैं । उनमे से बहुत सी अलग रहती हैं और अपने काम के साथ साथ अपना घर भी चलाती हैं । गृहणी का सीधा अर्थ शायद घर चलने मे सक्षम होना ही होता हैं । लेकिन हमारे समाज मे गृहणी को एक विवाहिता से जोड़ कर देखा जाता हैं ऐसा क्यों । क्या यही से तो नहीं "एक गृहणी का दोयम का दर्जा " शुरू होता हैं जैसा पिछली पोस्ट मे मोनिका ने कहा हैं । गृहणी को नॉन प्रोडक्टिव वर्कर माना गया हैं यानी जो बाहर काम करता हैं वो प्रोडक्टिव वर्कर होता हैं । हमारे ब्लॉग जगत कि बहुत सी नारियां विवाहित हैं क्या वो अपने को गृहणी मानती हैं ?? क्या ये गृहणी होना उनका स्वेच्छा से चुना हुआ "काम " हैं या समाज कि बनी हुई लकीरों पर चलने के कारण वो "गृहणी " बन गयी हैं ।
क्या बाहर नौकरी करना और अपना घर भी संभलना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक अविवाहित , नौकरी करती नारी करती हैं
या
केवल घर संभालना , पति और बच्चो कि देखभाल करना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
या
घर और ऑफिस दोनों संभालना जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
गृहणी शब्द को लेकर मन मे कल से काफी उथल पुथल थी सो सोचा बाँट दूँ क्युकी मै अविवाहित हूँ और पिछले २५ वर्षो से घर और बाहर दोनों का काम देखती हूँ पर फिर भी देखती हूँ कि समाज अपनी गृहिणियों के प्रति ज्यादा सहृदय हैं ऐसा क्यूँ ????
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
July 27, 2010
गृहणियां इस शब्द को आज कि स्थितियों मे कैसे परिभाषित करेगे ।
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घास बाढ़ के दूसरी तरफ अधिक हरी दिखती है।
ReplyDeleteवैसे गृह स्वामिनी कैसा रहेगा? या कुछ भी क्यों। क्यों नहीं यह मानकर चला जाए कि मनुष्य है तो घर भी है? घर है तो उसमें काम भी होता होगा। काम होता होगा तो जो उसमें रहते हैं मिलजुलकर करते होंगे। कोई कम कोई अधिक। कोई पूर्णकालिक कोई अंशकालिक।
वैसे बेहतर होता कि सब काम करते। सब बाहर भी काम करते,घर पर भी करते। परन्तु परिपूर्ण कब कुछ हुआ है? परिपूर्णता केवल एक चाह है। परिपूर्ण तो केवल एक राह दिखाता है चलने की, अपनी तरफ बुलाता है।
घुघूती बासूती
gruhini kaa seedhaa matalab jo ourat sirf ghar kaa kaam karati hai ya ghar par rahati hai.....aapne jin mahilaao kaa naam liya ve katai grihini nahi hain.
ReplyDeleteगृहणी शब्द का अर्थ मेरे समझ से उन महिलाओ से है जो घर में रह कर घर के काम करती है पर जो महिलाए घर के बाहर कोई जाब कर रही है उनको आज कल की भाषा में गृहणी नहीं कहा जाता है | अब लोग पुछते है कि जी आप जाब करती है या हॉउसवाईफ (गृहणी ) है | कामकाजी महिलाओ को अब लोग गृहणी कि श्रेणी में नहीं रखते है और हा उन महिलाओ को ज्यादा सम्मान भी देते है ज्यादातर | मुझे लगता है कि अब इनके लिए कोई नया शब्द बनना होगा | अभी तक तो कामचलाऊ शब्दों वर्किंग वोमन या कामकाजी महिला या लड़की कहा जाता है |
ReplyDeleteHERE SIMPLY GENERAL MEANING OR DEFINITION OF GREAT WORD *GRAHINI*-*गृहिणी* IS ,
ReplyDeleteA *NON EARNING* MEMBER OF A FAMILY THOUGH SHE HAS FULL RESPONSIBILITY OF THEM + ALL THE HOUSEHOLD WORK FOR 24 HRS.SHE IS DOING,
SOMETIMES WITHOUT GETTING ANY SUPPORT OR HELP.
THIS HOUSEWIFE IS DEVOTED HER FULL LIFE FOR THE FAMILY BUT NOT HELPING TO BRING THE MONEY BY ANY MEANS .
SO SHE IS CALLED A घरेलू महिला OR गृहिणी OR NON-PRODUCTIVE WORKER .
HERE EVERYBODY IS TALKING ABOUT THIS *नारी*.
NOW I THINK IT IS CLEAR TO DIFFERENTIATE WHO IS *GRAHINI* IN PUBLIC SENCE.
REST IS IN MY NEXT POST PLEASE.
ALKA MADHUSOODAN PATEL
अलका जी ने बहुत सही बात कही है.
ReplyDeleteमेरा मानना है कि जो भी घर संभाले उसे ही गृहिणी कहना चाहिए, पर इस शब्द का प्रयोग उसी महिला के लिए होता है, जो नौकरी ना करती हो.
और जहाँ तक बात सम्मान ना मिलने की बात है, तो हमारी देश में प्राचीनकाल से ही जो सम्मान पत्नी और माँ को मिला है, वो और किसी को नहीं. इसका साफ मतलब है कि यदि समाज में सम्मानित स्थान पाना है तो किसी पुरुष का सहारा ज़रूर लेना होगा. ध्यान देने योग्य बात यह है कि बहन या बेटी बनने के लिए पुरुष के सहारे की ज़रूरत नहीं है, मतलब बिना पुरुष के भी बना जा सकता है,पर पत्नी और माँ पुरुष के बिना नहीं बना जा सकता. ये बात अभी भी कायम है. हमारे समाज की जड़ों में गहरे पैठी है.
रचना जी, ऐसा बिलकुल भी नहीं है की समाज
ReplyDeleteगृहणियों के लिए सहृदय है। अलका जी की बातों से सहमत हूँ और गृहणी की परिभाषा में कुछ और जोड़ना चाहती हूँ।
गृहणी- जो घर के दस सदस्यों को अकेले सम्भाल ले पर घर के दस लोग मिलकर भी
हारी-बीमारी में भी उसका ख्याल नहीं रख सकते ।
गृहणी- जो अपने शरीर से ज्यादा तो उस मकान की देखभाल करती है जहाँ वो रहती है।
गृहणी- गृहणी जिसका दिन सबसे पहले शुरू होता है और आराम सबसे बाद में .........पर अक्सर घर के सदस्यों से सुनती रहती है .... तुम दिन भर घर में करती क्या हो?
गृहणी- जिसे ३६५ दिन काम करके भी किसी के यह पूछने पर की, आप क्या करती हैं मन मसोस कर कहना पड़ता है कुछ नहीं।
गृहणी - जो कभी थक नहीं सकती । उसके चेहरे की थकान देखकर बच्चों से लेकर बङों तक सब का मूड ख़राब हो जाता है की यह सब काम कौन करेगा ?
मोनिका
ReplyDeleteजो भी महिला घर और बाहर दोनों का काम देखती हैं वो गृहणी के सारे धर्म निभाते हुए , धन भी कमाती हैं , अगर कोई अपनी इच्छा से "त्याग" कि प्रति मूर्ति बने रहना चाहती हैं तो ये उसका व्यक्तिगत मामला हैं । फिर उसे उस "त्याग " के बदले किसी भी चीज़ कि चाहत नहीं रखनी चाहिये ।
गृहणी जैसा मुक्ति ने कहा हर वो स्त्री हैं जो अपना घर { पति और बच्चो के साथ या उनके बिना } सक्षम रूप से चलाती हैं । गृहणी शब्द को पति और बच्चो से जोड़ कर देखा जाता हैं और यही से दोयम का दर्जा आता हैं ।
समय के साथ परिभाषा बदले तो कहीं बदलाव आयेगा ।
rachna ji ke lekh aur tippani dono se purn roop se sahmat..
ReplyDeleteगृहणी - जो कभी थक नहीं सकती । उसके चेहरे की थकान देखकर बच्चों से लेकर बङों तक सब का मूड ख़राब हो जाता है की यह सब काम कौन करेगा ?
ReplyDeletejab tak ladkon ko bachpan se hi ghar ke kaam karne ki aadat nahi daali jati ye samasya yun hi bani rahegi.ek sawaal mera bhi hai ki purush yadi grahni ke kaam ko mahatva dena shuru kar de.tab kya ve sahyog ki apeksha nahi rakhegi?
http://teremeregeet.blogspot.in/2014/05/blog-post.html?showComment=1399882170876#c828560680198264564
ReplyDeleteरचना की बात सही है कि औरत खुद ही त्याग की मुर्ति बन कर रहना चाहती हैं, यहाँ भी सत्त का खेल है..बिना किसी पुरुष सदस्य की मदद के घर के कामकाज खुद करके खुद को ऊँचा साबित करने की कोशिश...या पुरुष के अहम की पुष्टि के लिए अपने आपको दासी मानकर सब काम करना..ऐसे हज़ार कारण है ... सब परिभाषाएँ हम खुद बनाते हैं....कभी कामकाजी गृहणी थी आज अपनी इच्छा से गृहणी हूँ लेकिन घर बाहर के कामकाज जैसे चलते थे वैसे ही चलते आ रहे हैं. बीते हुए कल की बात हो या आज की पति और दो पुत्र रसोईघर हो या घर बाहर से जुड़ा कोई काम हो मिलजुल कर करते हैं. जहाँ तक शादीशुदा और सिंगल औरत की बात है कामकाजी हो या घर में हो दोनों को स्वयं ही अपना सम्मान बचाना है, खुद का आत्मसम्मान ही ऐसी शक्ति है जिस कारण दूसरा हमारा सम्मान करता है..
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