"ऑनर किलिंग" इस नए शब्द का प्रादुर्भाव कुछ ही समय पहले हुआ है लेकिन यह जुड़ा नारी से ही है क्योंकि "नारी" ऑनर का प्रतीक है। अपने घर में देवी की तरह से पूजा जाता है - बहुत वन्दनीय मानी जाती है और फिर मार दी जाती है।
"ऑनर किलिंग' किसी न किसी तरीके से आहत नारी को ही कर रही है। यह आज की नहीं सदियों से चली आ रही परम्परा का सुधरा हुआ रूप है। राजपूतों में बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था क्योंकि अपने सम्मान को ताक में रख कर किसी और के द्वार पर बेटी के विवाह के लिए सिर न झुकाना पड़े।
आज ये खूबसूरत नाम दे दिया गया है। एक ऐसा कृत्य जिसके लिए अपने से जुड़े किसी आत्मीय के खून से ही अपने हाथ रंग लिए जाते हैं। - पर यह भूल जाते हैं की जिस ऑनर के लिए वे ये अपराध कर या करवा रहे हैं - वह उनके ऑनर को हर हाल में कलंकित ही कर रहा है। उनके कार्यों से न सही ,अपने कार्यों से भी गया तो आपका ही ऑनर।
इसके कितने उदहारण दिए जाए - उत्तर प्रदेश में एक भूतपूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी ने बहुत यत्न से परिवार के साथ ऐसे ही एक कृत्य को अंजाम दिया था पर क्या हुआ? एक माँ की बेटी गई पर क्या वे अपने ऑनर को बचा पाये। अभी हाल में ही हुए जम्मू में आँचल शर्मा ( जो शादी से पहले मुस्लिम थी) को अपने पति रजनीश शर्मा को खोना पड़ा क्यों? उसके परिवार के ऑनर का सवाल था की लड़की किसी गैर धर्म वाले से विवाह कैसे कर सकती है। ख़ुद न किया तो ये कृत्य दूसरों से करवा दिया।
ये झूठे ऑनर को क्या इनका कोई भी कृत्य कलंकित नहीं कर रहा है। उँगलियाँ आप पर ही उठ रही हैं। तब भी उठती और अब भी उठ रही हैं। फिर क्यों नहीं थोड़ा सा साहस करके अपनी झूठी शान ताक पर रख कर अपने ही अंशों को उनका अपना जीवन जीने देते हैं। वे तो अपना जीवन देकर तुम्हें आत्मतुष्टि दे जाते हैं लेकिन इस अपराध बोध से आज नहीं कल तुम्हारा ही अतीत तुम्हें जीने नहीं देगा। किलिंग तो कुछ लोगों के जीवन में रक्त-मज्जा के साथ घुलमिल सकती है किंतु 'ऑनर किलिंग ' हमेशा किसी बड़े नमी गिरामी या तथाकथित इज्जतदार परिवारों की ही करतूत होती है।
रोज अख़बारों में पढ़ा जाता है
--'युगल प्रेमियों की लाशें मिलीं'।
--'दोनों को जिन्दा जला दिया'
--'कहीं अनजान युवती की लाश मिली'
--'पंचायत ने उन्हें जान से मारने का आदेश दिया'
--'न्याय के लिए पति अदालत की चौखट पर खड़ा है और उसकी पत्नी नहीं मिल रही है.
--'दुर्घटना बनाकर उनकी इहलीला समाप्त कर दी गई'
और फिर ये ऑनर किलर जश्न मना रहे होते है कि परिवार की इज्जत बच गई, लेकिन ये नहीं जानते की ये चहरे के नीचे लगे हुए चेहरे को पढ़ने की कला इस समाज को आती है। समाज में दबी जबान से तो चर्चा का विषय आप बने ही होते हैं।
कभी - कभी तो विवाह जैसे संस्कार के बाद भी लड़की के सिन्दूर को ऐसे मिटा दिया जाता है कि जैसे होली के रंग हों। 'भूल जाओ की कोई तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा आया था।'
लड़की अपनी है तो बच गई और किसी के बेटे को खत्म करवा दिया, या ठीक इसके विपरीत भी किया जाता है। यह सोच कर की कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस ऑनर किलिंग के बाद तो ये 'पॉवर वाले' लोगों की 'पॉवर ' आदमी की जिन्दगी को एक खिलौने की तरह गर्दन मरोड़ कर फ़ेंक देते हैं। आम आदमी तो न्याय तक नहीं प्राप्त कर पाता है - उनकी पॉवर हत्या करने वालों से लेकर सबूतों और न्याय के ठेकेदारों को खरीदने में सक्षम होती है।
'नीतीश कटारा' का नाम इस दिशा में आज भी याद है। घर वालों के जेहन में अपने जिगर के टुकडों की छवि न्यार के लिए दौड़ते दौड़ते धूमिल होने लगती है या फिर वे ख़ुद ही उसी के पास चले जाते हैं.
"ऑनर किलिंग' किसी न किसी तरीके से आहत नारी को ही कर रही है। यह आज की नहीं सदियों से चली आ रही परम्परा का सुधरा हुआ रूप है। राजपूतों में बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था क्योंकि अपने सम्मान को ताक में रख कर किसी और के द्वार पर बेटी के विवाह के लिए सिर न झुकाना पड़े।
आज ये खूबसूरत नाम दे दिया गया है। एक ऐसा कृत्य जिसके लिए अपने से जुड़े किसी आत्मीय के खून से ही अपने हाथ रंग लिए जाते हैं। - पर यह भूल जाते हैं की जिस ऑनर के लिए वे ये अपराध कर या करवा रहे हैं - वह उनके ऑनर को हर हाल में कलंकित ही कर रहा है। उनके कार्यों से न सही ,अपने कार्यों से भी गया तो आपका ही ऑनर।
इसके कितने उदहारण दिए जाए - उत्तर प्रदेश में एक भूतपूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी ने बहुत यत्न से परिवार के साथ ऐसे ही एक कृत्य को अंजाम दिया था पर क्या हुआ? एक माँ की बेटी गई पर क्या वे अपने ऑनर को बचा पाये। अभी हाल में ही हुए जम्मू में आँचल शर्मा ( जो शादी से पहले मुस्लिम थी) को अपने पति रजनीश शर्मा को खोना पड़ा क्यों? उसके परिवार के ऑनर का सवाल था की लड़की किसी गैर धर्म वाले से विवाह कैसे कर सकती है। ख़ुद न किया तो ये कृत्य दूसरों से करवा दिया।
ये झूठे ऑनर को क्या इनका कोई भी कृत्य कलंकित नहीं कर रहा है। उँगलियाँ आप पर ही उठ रही हैं। तब भी उठती और अब भी उठ रही हैं। फिर क्यों नहीं थोड़ा सा साहस करके अपनी झूठी शान ताक पर रख कर अपने ही अंशों को उनका अपना जीवन जीने देते हैं। वे तो अपना जीवन देकर तुम्हें आत्मतुष्टि दे जाते हैं लेकिन इस अपराध बोध से आज नहीं कल तुम्हारा ही अतीत तुम्हें जीने नहीं देगा। किलिंग तो कुछ लोगों के जीवन में रक्त-मज्जा के साथ घुलमिल सकती है किंतु 'ऑनर किलिंग ' हमेशा किसी बड़े नमी गिरामी या तथाकथित इज्जतदार परिवारों की ही करतूत होती है।
रोज अख़बारों में पढ़ा जाता है
--'युगल प्रेमियों की लाशें मिलीं'।
--'दोनों को जिन्दा जला दिया'
--'कहीं अनजान युवती की लाश मिली'
--'पंचायत ने उन्हें जान से मारने का आदेश दिया'
--'न्याय के लिए पति अदालत की चौखट पर खड़ा है और उसकी पत्नी नहीं मिल रही है.
--'दुर्घटना बनाकर उनकी इहलीला समाप्त कर दी गई'
और फिर ये ऑनर किलर जश्न मना रहे होते है कि परिवार की इज्जत बच गई, लेकिन ये नहीं जानते की ये चहरे के नीचे लगे हुए चेहरे को पढ़ने की कला इस समाज को आती है। समाज में दबी जबान से तो चर्चा का विषय आप बने ही होते हैं।
कभी - कभी तो विवाह जैसे संस्कार के बाद भी लड़की के सिन्दूर को ऐसे मिटा दिया जाता है कि जैसे होली के रंग हों। 'भूल जाओ की कोई तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा आया था।'
लड़की अपनी है तो बच गई और किसी के बेटे को खत्म करवा दिया, या ठीक इसके विपरीत भी किया जाता है। यह सोच कर की कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस ऑनर किलिंग के बाद तो ये 'पॉवर वाले' लोगों की 'पॉवर ' आदमी की जिन्दगी को एक खिलौने की तरह गर्दन मरोड़ कर फ़ेंक देते हैं। आम आदमी तो न्याय तक नहीं प्राप्त कर पाता है - उनकी पॉवर हत्या करने वालों से लेकर सबूतों और न्याय के ठेकेदारों को खरीदने में सक्षम होती है।
'नीतीश कटारा' का नाम इस दिशा में आज भी याद है। घर वालों के जेहन में अपने जिगर के टुकडों की छवि न्यार के लिए दौड़ते दौड़ते धूमिल होने लगती है या फिर वे ख़ुद ही उसी के पास चले जाते हैं.
nice शायद यही टिप्पणी आप स्वीकार करेंगी . सही बात भी आप स्वीकार नही करती
ReplyDeletesahii aur galat kaa faesla karnae ki kshmataa mujeh bhi haen aur kam sae kam apnae blogpar iska upyog karnae kaa adhikaar bhi mera haen
ReplyDeleteजब तक नारी को किसी धर्म, जाति या समुदाय के सम्मान का प्रतीक समझा जाता रहेगा, तब तक "ऑनर किलिंग" जैसे घिनौने सार्वजनिक अपराध होते रहेंगे. जाने कब नारी को इन्सान समझा जायेगा?
ReplyDeleteआनर किलिंग ?
ReplyDeleteपुरुष और उसके निर्धारित समाज का आनर और औरत की मौत . यही है .
धीरू सिंह जी,
ReplyDelete@nice शायद यही टिप्पणी आप स्वीकार करेंगी . सही बात भी आप स्वीकार नही करती.
मैं आपका आशय समझी नहीं कि आप किस आधार पर कह रहे हैं कि सही बात भी मैं स्वीकार नहीं करती. मेरा लेखन सत्य के बहुत करीब होता है या फिर कहिये कि भोगा हुआ यथार्थ होता है. अपनी गलती को स्वीकार करनेकी क्षमता है मुझमें और मैं करती भी हूँ. पर आपने ये क्यों लिखा? ये मैं समझ नहीं पायी.