वन्देमातरम् से एक संदर्भ याद आया। हाल ही में मेरे पति एवं युवा प्रशासक-साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के जीवन पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ के पद्मश्री गिरिराज किशोर द्वारा लोकार्पण अवसर पर छः सगी मुस्लिम बहनों ने वंदेमातरम्, सरफरोशी की तमन्ना जैसे राष्ट्रभक्ति गीतों का शमां बाँध दिया। कानपुर की इन छः सगी मुस्लिम बहनों ने वन्देमातरम् एवं तमाम राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा क्रान्ति की इस ज्वाला को सदैव प्रज्जवलित किये रहने की कसम उठाई है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, बन्धुत्व एवं सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव से ओत-प्रोत ये लड़कियाँ तमाम कार्यक्रमों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। वह 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर नानाराव पार्क में शहीदों की याद में दीप प्रज्जवलित कर वंदेमातरम् का उद्घोष हो, गणेश शंकर विद्यार्थी व अब्दुल हमीद खांन की जयंती हो, वीरांगना लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हो, माधवराव सिन्धिया मेमोरियल अवार्ड समारोह हो या राष्ट्रीय एकता से जुड़ा अन्य कोई अनुष्ठान हो। इनके नाम नाज मदनी, मुमताज अनवरी, फिरोज अनवरी, अफरोज अनवरी, मैहरोज अनवरी व शैहरोज अनवरी हैं। इनमें से तीन बहनें- नाज मदनी, मुमताज अनवरी व फिरोज अनवरी वकालत पेशे से जुड़ी हैं। एडवोकेट पिता गजनफरी अली सैफी की ये बेटियाँ अपने इस कार्य को खुदा की इबादत के रूप में ही देखती हैं। 17 सितम्बर 2006 को कानपुर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह समारोह में प्रथम बार वंदेमातरम का उद्घोष करने वाली इन बहनों ने 24 दिसम्बर 2006 को मानस संगम के समारोह में पं0 बद्री नारायण तिवारी की प्रेरणा से पहली बार भव्य रूप में वंदेमातरम गायन प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मानस संगम के कार्यक्रम में जहाँ तमाम राजनेता, अधिकारीगण, न्यायाधीश, साहित्यकार, कलाकार उपस्थित होते हैं, वहीं तमाम विदेशी विद्वान भी इस गरिमामयी कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
तिरंगे कपड़ों में लिपटी ये बहनें जब ओज के साथ एक स्वर में राष्ट्रभक्ति गीतों की स्वर लहरियाँ बिखेरती हैं, तो लोग सम्मान में स्वतः अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं। श्रीप्रकाश जायसवाल, डा0 गिरिजा व्यास, रेणुका चैधरी, राजबब्बर जैसे नेताओं के अलावा इन बहनों ने राहुल गाँधी के समक्ष भी वंदेमातरम् गायन कर प्रशंसा बटोरी। 13 जनवरी 2007 को जब एक कार्यक्रम में इन बहनों ने राष्ट्रभक्ति गीतों की फिजा बिखेरी तो राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा डाॅ0 गिरिजा व्यास ने भारत की इन बेटियों को गले लगा लिया। 25 नवम्बर 2007 को कानुपर में आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में इन्हें ‘‘संस्कृति गौरव‘‘ सम्मान से विभूषित किया गया। 19 अक्टूबर 2008 को ‘‘सामाजिक समरसता महासंगमन‘‘ में कांग्रेस के महासचिव एवं यूथ आईकान राहुल गाँधी के समक्ष जब इन बहनों ने अपनी अनुपम प्रस्तुति दी तो वे भी इनकी प्रशंसा करने से अपने को रोक न सके। वन्देमातरम् जैसे गीत का उद्घोष कुछ लोग भले ही इस्लाम धर्म के सिद्वान्तों के विपरीत बतायें पर इन बहनों का कहना है कि हमारा उद्देश्य भारत की एकता, अखण्डता एवं सामाजिक सद्भाव की परम्परा को कायम रखने का संदेश देना है। वे बेबाकी के साथ कहती हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम क्रान्तिकारियों ने एक स्वर में वंदेमातरम् का उद्घोष कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया तो हम भला इन गीतों द्वारा उस सूत्र को जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता एवं समरसता की भावना से परिपूर्ण ये बहनें वंदेमातरम् एवं अन्य राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा लोगों को एक सूत्र में जोड़ने की जो कोशिश कर रही हैं, वह प्रशंसनीय व अतुलनीय है। क्या ऐसे मुद्दों को फतवों से जोड़ना उचित है, आप भी सोचें-विचारें !!
(चित्र में- वन्देमातरम गायन करती 6 सगी मुस्लिम अनवरी बहनें)
आकांक्षा यादव
waah
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteआभार/ शुभमगल
जय हिन्द!!!!!
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
मेरी निगाह में लीक तोड़ कर आगे आने वाली इन लड़कियों की प्रशंसा करनी चाहिए. स्त्रियाँ फतवों के बंधन को मानने की बजाय तोड़ रही हैं, इसे स्त्री-मुक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए.
ReplyDeleteअभी-अभी आकांक्षा जी का इसी विषय पर "इंडिया-न्यूज" में प्रस्तुत लेख पढ़कर ब्लॉग खोला तो यहाँ भी आकांक्षा जी की लेखनी का कमाल दिखा. नारी तथा बच्चों से जुड़े मामलों पर देश की पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर आप जिस तरह रचनात्मक रूप से सक्रिय हैं, वह बेहद प्रेरणास्पद है.
ReplyDeleteयह पोस्ट वाकई उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो हर चीज को फतवों की निगाह से देखते है. पोंगापंथी से लेकर कठमुल्लों तक ने प्रगतिशील दृष्टिकोण के विपरीत पिछड़ी मानसिकता को बढ़ावा देने का कार्य किया है. आप एक मुस्लिम के बारे में लिखिए तो हिन्दू तलवार लेकर खड़े हो जायेंगे आखिर हिन्दू क्यों नहीं, हिन्दू के बारे में लिखिए तो मुस्लमान तलवार लेकर खड़े हो जायेंगे आखिर मुस्लमान क्यों नहीं. जरुरत इस दकियानूसी सोच को बदलने की है. भारत हमारा है, हम भारत के हैं. जो भी चीज भारत के हित में होगी, उसकी पूजा भी होगी, इबादत भी होगी.
फतवे जारी करने वाले धीरे धीरे अकेले पड़ते जाएँ!
ReplyDeleteरश्मि जी से पूरी सहमती है...
ReplyDeleteमेरा मन मेरी इन बहनों की वंदना करने का हो रहा है...
करोडों लोगो की भवने इनको स्नेह भरा आर्शीवाद देंगी..
प्रकाश पाखी
लेख पढ़ते हुए रोमंचिंत हो आँखें भर आयी ...सच ही है गुलाम भारत में अगर इसी तरह फतवे जारी किये जाते तो आज ना हिन्दुस्तान आजाद होता न ही पडोसी मुल्क ...!!
ReplyDeleteराष्ट्र गौरव के गीत गाने वाली इन बहनों की राष्ट्रभक्ति को शत शत नमन . साधू!!
ReplyDeleteबड़ी बेहतरीन पोस्ट लगाई आकांक्षा जी. आप समाज की प्रतिनिधि ऐसी बातों को चुनती हैं जो इस भीड़-भाड़ वाली दुनिया में अलग रूप में दिखती है...बधाई !!
ReplyDelete