विवाह " जैसी सामाजिक संस्था का
अस्तित्व जितना महत्वपूर्ण दशकों पूर्व था वैसे अब नहीं रह गया है।
शिक्षा , प्रगतिवादी विचारधारा और पाश्चात्य स्वरूप ने अपने तरह से पूरी
तरह से बदल दिया है। लडके और लड़कियों के प्रतिदिन बदलते विचारों ने इसके
स्वरूप को प्रभावित किया है। अब दोनों को ही अपने इस रिश्ते के बारे में
निर्णय लेने के लिए माता - पिता के साथ बराबर की भागीदारी कर रहे हैं।
इसके बाद भी पहल के रूप में माता - पिता इस निर्णय को अपने हाथ में ही रखना
चाहते हैं - वह अच्छी बात है कि उन्होंने दुनियां देखी होती है लेकिन आज
के बदलते माहौल और विचारों के चलते सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या इसको
बनाने से पहले कुछ खास सावधानियां बरतनी चाहिए ?
सबसे
पहले चाहे माता पिता हों या बच्चे अपने जीवनसाथी के रूप में आर्थिक ,
सामाजिक और व्यावसायिक तौर पर अपने स्तर का साथी चुनना अधिक पसंद करते हैं.
इस दिशा में कभी कभी बहुत देर भी हो जाती है। उस स्थिति में माता - पिता
की रातों की नींद गायब हो जाती है बेटी/बेटे की बढती उम्र और अपने दायित्व
के प्रति अपराध बोध उन्हें घेरने लगता है। फिर वे मनचाहा वर मिलने पर या
उसकी जानकारी मिलने पर आतुर हो उठते हैं कि अगर ये रिश्ता हो जाए तो मन
मांगी मुराद मिल जायेगी। इस दिशा में वे ऊपरी तौर पर जानकारी हासिल कर
लेते हैं लेकिन उसके विषय में गहन छानबीन नहीं करते है क्योंकि उन्हें ये
भय रहता है कि अधिक छानबीन करने से अगर लडके वाले नाराज हो गए तो ये भी
लड़का हाथ से न निकल जाए। गुपचुप कहीं रिश्तेदारों और पड़ोसियों को पता न चल
जाए और कुछ ऐसा हो कि रिश्ता न हो।
वैवाहिक साइट और विज्ञापन में तो और अधिक धोखा होता है लेकिन कभी कभी खुद
से खोजे हुए रिश्ते भी इतने धोखे वाले साबित हो जाते हैं कि जीवन या तो एक
बोझ बन जाता है या फिर उस बच्ची/बच्चे को जिंदगी से ही हाथ धोना पड़ जाता
है। कहते हैं न कि अगर बेटी एक साल पिता के घर में कुमारी बैठी रहे तो
समाज को मंजूर है लेकिन विवाह होने के बाद अगर वह दो महीने भी पिता के घर
रह जाती है तो कितना ही पढ़ा लिखा समाज हो - उंगली उठाने लगता है। तरह तरह
के कटाक्ष माता पिता और बेटी पर किये जाते हैं। चट मांगनी पट ब्याह होना
बुरा नहीं है लेकिन उस समय में तयारी के साथ साथ छानबीन भी उतनी ही जरूरी
है।
करुणा के माता पिता ने उसके ग्रेजुएट होते ही शादी करने की सोची। उन्हें
एक बहुत अच्छा लड़का मिला बहुत पैसे वाले लोग , लड़का इकलौता था और पिता के
साथ बिज़नेस संभाल रहा था। किसी रिश्तेदार ने बताया था। कुछ उम्र का अंतर
था लेकिन देखने में लड़का ठीक ही लग रहा था। विवाह के बाद कुछ दिन तो ठीक
रही लेकिन पति तो रोज कुछ कुछ दवाएं खाता रहता था. उसने कभी पूछा तो कह
दिया की विटामिन्स है। इतना तो उसको पता ही था कि विटामिन्स में और इन
दवाओं में कितना अंतर है ? करुणा की बड़ी बहन डॉक्टर थी , एक दिन करुणा ने
सोचा कि दीदी से ये दवाएं होंगी तो लेती आउंगी और पति की दवाओं के पत्ते
लेकर बहन के यहाँ गयी। उसकी बहन ने देखा तो पैरों तले जमीन खिसक गयी।
उसके
पति की दवाएं शुगर और किडनी से सम्बन्धी रोगों की थी। उसने अपने तरीके से
उस डॉक्टर से संपर्क किया जो उसके बहनोई का इलाज कर रहा था। पता चला कि
उसका पैंक्रियाज की स्थिति बदतर हो चुकी थी। शुगर अनियंत्रित थी और हार्ट
और किडनी की स्थिति भी ठीक नहीं थी। तरुणा की आँखों के आगे अँधेरा छा गया।
उसने
सीधे से करुणा के ससुराल अपने माता पिता के साथ जाकर बात की तो सच ये था कि
उनके बेटे की जिंदगी कुछ ही सालों की डॉक्टरों ने बतलाई थी , इसी लिए
जल्दी से शादी की जिससे बहू को कोई बच्चा हो जाएगा तो घर को वारिस मिल
जाएगा और फिर बहू भी बच्चे को लेकर कहाँ जायेगी ? उनके बुढ़ापे का सहारा बना
रहेगा।
धोखाधड़ी का मामला बन रहा था लेकिन वो आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो
गए और करुणा अपने घर आ गयी। उसको विवाह जैसे संस्कार से घृणा हो चुकी है।
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स्मिता के
माता पिता ने २२ लाख रुपये खर्च किये थे अपनी बेटी की शादी में , बड़ी कोठी
, लड़का कनाडा में इंजीनियर और पिता बैंक का मैनेजर। स्मिता के स्थानीय
रिश्तेदारों ने कुछ कहना चाहा तो उन लोगों को लगा कि हमारी बेटी को इतना
अच्छा घर और वार मिल रहा है सो सबको जानकारी कर लेने की बात सूझ रही है।
उन लोगों देखते ही हाँ कर दी और तुरंत सगाई हो गयी। लड़का फिर बाहर चला
गया। लडके और लड़की में बात चीत होती रही। सब कुछ अच्छा था। लड़की को
नौकरी छोड़ने को कहा गया और उसने शादी से पहले ही नौकरी छोड़ दी।
शादी के कुछ
महीने के बाद लड़का वापस कनाडा और स्मिता उसके माँ बाप के पास। तरह तरह से
परेशान करना। गर्भवती हो गयी तो मायके भेज दिया ये कह कर - जब तुम्हारे
बाप के पास खाने को ख़त्म हो जाए तो चली आना। उसके वहीँ पर अपने मां के घर
बेटी हुई लेकिन ससुराल से कोई भी देखने नहीं आया। पति भी नहीं। ससुर ने
साडी संपत्ति बेटी के बेटे के नाम कर दी।
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ये सिर्फ लड़कियों के मामले में लागू नहीं
होता बल्कि लड़कों के मामले में भी ऐसे ही धोखे दर्ज हैं कभी कभी तो ऐसे
धोखे सामने आते हैं कि सामने वाले की जिंदगी ही तबाह हो जाती है।
रमन की शादी
किसी रिश्तेदार ने ही करवाई थी , बहुत करीबी का नाम लेकर रिश्ता आया था।
रिश्तेदार थे सो खोजबीन की जरूरत नहीं समझी। लड़की मानसिक तौर पर बीमार
थी। बताती चलूँ मैं भी उसमें शामिल हुई थी। शादी की रस्मों के बीच कुछ
ऐसी हरकतें की कि मुझे कुछ अजीब लगा लेकिन शादी हो गयी। सिर्फ १ महीने
बाद ही उसकी असामान्य हरकतें शुरू हो गयीं। माँ आकर ले गयी और दामाद से
कहने लगी कि तुम भी साथ चलो इसकी बीमारी में पति का साथ होना जरूरी है।
फिर वह वापस
नहीं आई आया तो दहेज़ उत्पीड़न का नोटिस। लड़का जेल गया , माता पिता की उम्र
और बीमारी के देखते हुए जमानत मिल गयी। दस साल तक कोर्ट के चक्कर लगाये और
तब ३ लाख रुपये लेकर समझौता किया और तलाक दिया।
चट मंगनी पट
ब्याह जरूर करें लेकिन उससे पहले पूरी जानकारी हासिल करके - विज्ञापन या
वैवाहिक साइट का भरोसा तो बिलकुल भी न करें। अपने को अनाथ बताने वालों से
सावधान रहें। पद , स्थिति और परिवार सम्बन्धी जानकारी लेकर ही निर्णय
लें।