नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

July 24, 2012

क्या हो इनका भविष्य ?

         

आज एक खबर टी वी पर देखी - मन विचलित हो गया ये सोच कर की इस कच्ची उम्र की बच्ची का भविष्य क्या होगा ? उसके बच्चे का भविष्य क्या होगा? खबर थी -" 13 वर्ष की बच्ची माँ बनी. " वह गैंग रेप का शिकार हुई थी और इस कच्ची उमर में जब कि वह किशोरावास्था की देहलीज पर खड़ी थी उसे बच्ची से औरत बना दिया और फिर माँ . माँ बनने का उसका अपना निर्णय था , उसके घर वालों ने उसको समझाया लेकिन पता नहीं उस बच्ची ने क्या सोचा और माँ बनने का निर्णय ले डाला क्योंकि उसको अभी ये नहीं मालूम है कि --

ऐसे बच्चों को पालने में और उनकी परवरिश में समाज की क्या भूमिका होती है?

ऐसे बच्चों को ये समाज किस दृष्टि से देखता है?

उनको क्या नाम देता है?

कल उसको क्या क्या सुनना और सहना होगा?

कल वह इस समाज को बच्चे के पिता का नाम नहीं बता सकेगी, और पिता का नाम तो हर जगह चाहिए , उसके बच्चे को स्कूल में प्रवेश नहीं मिलेगा अगर उसके साथ पिता का नाम नहीं होगा तो? अभी कुछ ही दिन पहले यह बात संज्ञान में आई थी कि एक युवती के बच्चे को स्कूल में प्रवेश इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि वह गैंग रेप की शिकार युवती अपने बच्चे के पिता का नाम नहीं बता पायी थी। उसको स्कूल से वापस कर दिया गया।

इस समाज में वे लोग भी रहते हैं जो बच्चियों या युवतियों को गैंग रेप का शिकार बनाते हैं और वे बच्चियां भी रहती हैं जो इस हादसे का शिकार होती हैं। फिर पुरुष से इस तरह के प्रश्न को क्यों नहीं पूछा जाता है? अगर उठाया भी गया तो उसके लिए दुनियां के कानूनी दलीलें पेश कर दी जाती हैं। पितृत्व को साबित करने के लिए डी एन ए टेस्ट करवाना इतना आसान भी नहीं होता है कि हादसे का शिकार परिवार इसके लिए प्रयास कर सके। अब गैंग रेप तो रोज ही खबर में सुनने को मिल जाती है। परसों ही सिर्फ रामपुर शहर के अलग अलग जगहों पर दो युवतियां गैंग रेप का शिकार बनायीं गयीं . क्या पता वे उन से परिचित हो भी या न हों। फिर ऐसे हालात आने पर वे क्या करेंगी ? इस समाज और क़ानून की सहानुभूति पीडिता के साथ छद्म होती है क्योंकि न्याय की इतनी लम्बी प्रक्रिया होती है कि अपराधी उनको ऐन केन प्रकारेण डराने धमकाने से लेकर पैसे से खरीदने तक के सारे हथकंडे अपना लेता है और जब नहीं हो पाता तो वकील को खरीद कर अपने मामले को रफा दफा करने को सौप देता है।

मेरा विषय मात्र इतना है कि ऐसे मामले में पिता का निर्धारण कैसे हो? हो ही नहीं है क्योंकि वे रेपिस्ट पकड़ में तो आने से रहे और आये भी तो फिर डी एन ए टेस्ट की प्रक्रिया को दुहराना इतना आसन काम नहीं है। अब बलात्कार जैसे अपराध के लिए जो दंड प्रावधान किया जा रहा है , उसके आने पर तो कोई भी बलात्कारी पकड़ा ही नहीं जाएगा और अगर पकड़ गया तो वकील और पुलिस उसके चश्मदीद गवाह माँगते हैं तभी तो मामला बनता है नहीं तो मामला दर्ज कैसे हो सकता है? उस पीड़िता को पहले कुछ लोगों को बुला कर खड़ा कर लेना चाहिए की मेरा बलात्कार किया जाने वाला है।

ये कानूनी दांव पेच तो आम आदमी के समझ से बाहर रहे हैं और रहेंगे भी। सवाल सिर्फ इतना है कि समाज के बदलते स्वरूप और नारी के बदलते विचारों के चलते ऐसे बच्चों के लिए सिर्फ माँ के नाम का चाहिए।अब ऐसे क़ानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। अगर पता चल भी जाए तो कोई भी महिला ऐसे बलात्कारी को अपने बच्चे के साथ जोड़ने में गर्व नहीं बल्कि शर्म महसूस करेगी। अगर ऐसे हालत में वह अपने बच्चे को जन्म देने का निर्णय ले सकती है तो फिर वह उसको पालने और उसकी परवरिश करने की क्षमता भी विकसित कर लेगी .

समस्या तो यहाँ पर असहाय लड़कियों की आती है - जो गरीब परिवार से हैं या फिर बेसहारा है तो वे बच्चे को जन्म के बाद इधर उधर फ़ेंक देती हैं या फिर उनको मरने के लिए छोड़ देती हैं। क्योंकि परवरिश वह अपनी नहीं कर पाएंगी तो बच्चे को कैसे पालेंगी? ऐसी लड़कियों के लिए ऐसे आश्रम की सरकार द्वारा व्यवस्था की जानी चाहिए जहाँ पर ऐसी माँओं और उनके बच्चों को शरण मिल सके . कोई माँ अपने बच्चे को सिर्फ इसलिए त्यागने के लिए मजबूर न हो कि वह उसकी परवरिश में सक्षम नहीं है। इस दिशा में सोचना आवश्यक हो गया है कि ऐसी माँएं कहाँ जाएँ ? कई बार तो घर वालों का जीना मुहाल हो जाता है।

इस दिशा में और भी सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं की ऐसे मामले में निर्णय क्या हो? बिना पिता के नाम के बच्चे को समाज में जीने और पढ़ने का अधिकार होना चाहिए या नहीं क्योंकि पिता का नाम कुछ भी हो सकता है लेकिन माँ वही रहेगी जो जन्म देती है। उसके होने पर कोई शक या शुबहा नहीं हो सकता है।

हमारा समाज भी अगर वह ऐसे अमर्यादित आचरण करने वालों को दण्डित करने में रूचि नहीं रखता है या फिर हिम्मत नहीं रखता है तो फिर इसकी शिकार युवतियों या फिर उसका परिणाम बच्चों के प्रति अपनी सकारात्मक सोच तो रख ही सकता है। वह जो इस कुकृत्य का शिकार बनायीं गयीं है, उन्हें एक स्वस्थ जीवन जीने अधिकार तो दे ही सकता है।

11 comments:

  1. अभी पिछली पोस्ट पर ही एक लंबी टिप्पणी देकर हटा हूं किंतु आपका प्रश्न इतना गंभीर है कि मुझे उत्तर देना ठीक लगा । हालांकि इस विषय पर एक पूरी पोस्ट की दरकार है जो मैं जल्दी ही लिखने का प्रयास करूंगा किंतु अभी सिर्फ़ इतना कि । भारत जैसे देशों में अभी भी नाबालिग /अविवाहित या प्रतिकूल परिस्थितियों में मां बनने की जिम्मेदारी उठाने वाली युवतियों/महिलाओं के लिए सोचने करने की फ़ुर्सत समाज , सरकार और प्रशासन को नहीं है । यही वजह है कि लोग कुंवारी मां का कत्ल तक कर डालते हैं अपने झूठे मान सम्मान के कारण जबकि ऐसे में बराबर के दोषी उस युवक या पुरूष को मौत की सज़ा देने की बात शायद ही कभी सुनी हो । तलाकशुदा स्त्री तक के लिए समाज में जीवन दूभर करने जैसी स्थितियां बना दी गई हैं । इसके लिए खुद नारी शक्ति को आगे आना होगा और कहना होगा कि फ़िर ऐसे नियम कायदे कानून ...हमारे ठेंगे पे । खुद इस दिशा में महिलाओं को ही पहल करनी चाहिए और तमाम ऐसी युवतियों महिलाओं का साथ देकर उनका हौसला बनाना चाहिए ।

    उपर घटित अपराध में तेरह वर्षीय बालिका को मां बनने से नहीं रोक कर एक और अपराध किया गया है क्योंकि शारिरिक दृष्टिकोण से भी ये उस बच्ची के जीवन के साथ खिलवाड करने जैसा था । रही बात सज़ा और समाधान की तो संयोग से अपनी साइट पर आज मैंने इसी विषय पर एक पोस्ट लिखी है http://ajaykumarjha.com/archives/2321
    इस पर देखा जा सकता है । सार्थक पोस्ट । पाठकों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी

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    1. आपका कहना सही है कि उस बच्ची के प्रति अन्याय हुआ है लेकिन उस बच्ची को अपनी स्थिति के बारे में ज्ञान कहाँ होगा? जब तक घर वालों को पता चला होगा देर हो चुकी होगी. लेकिन ऐसे दरिंदों के लिए क्या दंड होना चाहिए. जो ऐसे अमानवीय कृत्य करके भी दबंगई या पैसे के बल कर सीना चौड़ा करके घूम करते हें और जानने वालों की जुबां खोलने तक की हिम्मत नहीं होती.

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  2. इस बच्ची के माम्ले में तो ये कहा जा सकता है कि बच्ची अभी बहुत छोटी है और उसके माँ-बाप को उसके बच्चे को पैदा ही नहीं होने देना चाहिए था. लेकिन यदि किसी अधिक उम्र की युवती के साथ बलात्कार हो, और वह उस बच्चे को पैदा करना चाहे, तो उस बच्चे के क्या अधिकार क्या होने चाहिए? मेरा इस विषय में स्पष्ट मत है कि ऐसे बच्चों को सिर्फ और सिर्फ माँ के नाम से पहचान मिलनी चाहिए और सरकार को चाहिए कि ऐसी युवती की आर्थिक मदद करे.
    ऐसा नहीं है कि पाश्चात्य देशों में बलात्कार नहीं होते, लेकिन अमूमन तो इतने ज्यादा नहीं होते और अगर होते भी हैं, तो उससे होने वाले बच्चे को सरकारी संरक्षण मिलता है. मैंने एक फिल्म देखी थी 'नॉर्थ कंट्री', जिसमें एक सोलह साल की लड़की के साथ उसका टीचर बलात्कार करता है, तब वह मारे डर के किसी को बताती नहीं है और जब गर्भवती होती है, तो बच्चा पैदा होने देती है. उसको सभी लोग यहाँ तक कि उसके पिता भी दुश्चरित्र समझ लेते हैं,लेकिन वो अपने बच्चे को सारी लांछना सहकर पालती है. बाद में वो अपने बेटे को यही बताती है कि 'मैंने सोचा कि जो तुम्हारे बाप ने किया उसमें तुम्हारी क्या गलती थी और मुझे इस बात पर गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो, सिर्फ मेरे'
    हमारे देश में ऐसा वक्त आने में शायद देर लगे, लेकिन ये सोचना चाहिए कि किसी और की किये की सजा दूसरों को क्यों भुगतनी पड़े? गलती जब उस पुरुष ने की, जिसने बलात्कार किया, तो उसकी सजा वो लड़की या यदि दुर्घटनावश वो गर्भवती हो जाय, तो उसका बच्चा क्यों भुगते? मैं ये नहीं कहती कि सभी बलात्कार की शिकार लड़कियों को ऐसा करना ही चाहिए, लेकिन यदि चिकत्सकीय कारणों से या भूल से ऐसा हो जाय, तो समाज को उसके बच्चे को स्वीकार करना चाहिए.

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    1. अपने सही कहा मुक्ति जी, जो पीडिता होती है उसको ही दुश्चरित्र कहा जाता है या फिर उस पर आरोप होता है कि वह ऐसे कपड़े पहनती हें कि लड़के देख कर मजबूर हो जाते कि उनके साथ बदतमीजी करने के लिए लेकिन कहने वाले ये भूल जाते हें कि ११ साल या १३ साल की बच्चियां ऐसे कौन से कपड़े पहन कर घूमती होंगी जो गैंग रेप का शिकार बना ली जाय.

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  3. जहा तक मेरी जानकारी है की लड़की ने बच्चे को जन्म देने की इच्छा व्यक्त नहीं की थी असल में उसके गर्भवती होने की जानकारी ही इतनी देर से मिली को उसका गर्भपात नहीं कार्य जा सकता था | करीब ६-7 साल पहले ऐसा की एक घटना महाराष्ट्र के एक गांव में हुई थी तब लड़की की आयु मात्र ११ साल की थी और बहुत ही गरीब परिवार से थी , गांव का ही एक आदमी काफी समय से उसका शरीरिक शोषण कर रहा था जिसका नतीजा ये था , लड़की तब भी एक कन्या ही थी पूरी तरह से बड़ी भी नहीं हुई थी , बाद में उसने एक बेटे को जन्म दिया था सरकारी डाक्टरों को काफी मेहनत करनी बड़ी उसकी और बच्चे की जान बचाने के लिए | मै तब एक अखबार में काम करती थी हमरे साथ काम कर रहे एक पुरुष ने क्या टिप्पणी की इस घटना पर सुनिये मान घृणा से भर उठेगा " पहले मजा लिया जम के अब जब नतीजा सबके सामने है तो कहती है की शारीरिक शोषण हुआ है , ऐसी बहुत सी लड़कियों को जानता हूं मै " मै सुन कर बिल्कुल स्तब्ध थी और ये बात कोई गुपचुप या छुपा कर उन्होंने नहीं कही थी बिल्कुल खड़े हो कर पूरे आफिस को संबोधित हो कर कह था, मेरे लिए तो समझना मुश्किल था की क्या ये शब्द मात्र ११ साल की लड़की के लिए कहे जा रहे है | दुनिया की सोच देख लिजिये और अंदाजा लगा लीजिये की उस १३ साल की लड़की के साथ जो हुआ उसको कितने लोग सच मान रहे होंगे और उसके प्रति संवेदना रखेंगे या क्या और उस बच्चे को क्या समझेंगे |

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    1. अंशुमाला जी,
      ये समाज ऐसे ही लोगों से अधिक भरा हुआ है, जो हर हाल में दोषी बच्चियों या महिलाओं को ही मनाते हें क्योंकि उनके समाज (पुरुष ) को निर्दोष साबित जो करना है. लेकिन वे बुद्धिहीन ये क्यों भूल जाते हें कि वह बच्चियां उन पुरुषों के बच्चों के समान ही होंगी फिर वे ऐसी गन्दी सोच कैसे रख सकते हें? लेकिन सोच तो ऐसे लोगों की गन्दी होगी ही क्योंकि वे भी इसी श्रेणी में अपने को रखते होंगे तो दोष तो दूसरे को ही देंगे.

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  4. उस बच्ची को तो अपना माँ बनना गुड़ियों के खेल सा लगा होगा ... फिर पता नहीं आस-पास के लोगों ने क्या कहा होगा ! पर क्या वह हुए दुह्स्वप्न को भूल पायेगी ... पर उसने दरिंदगी को पालने का जो फैसला लिया , जिस मन और बुद्धि से - वह साधारण नहीं होगा

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  5. सवाल यहाँ पर ये है कि हमें बदलना होगा? इस समाज में अगर नारी चाहे और खुद को बदल कर इस बदलाव की एक क्रांति लाना चाहे तो ऐसा कुछ भी असंभव नहीं है कि वह कर न सके. ये एक मांग उठानी होगी कि उसकी अस्मिता के साथ जुड़े मुद्दों पर अगर समाज असहिष्णु है तो फिर उसको अपने और अपने से जुड़े बच्चों के प्रति जो निर्णय लेना है वह ले सकती है और क़ानून ऐसे हालातों में उसे और उसके बच्चों को एक समस्या नहीं बल्कि वैसे ही जीने के अधिकार प्रदान करे जैसे कि अन्य बच्चों और महिलाओं को मिलता है. असहाय या परिवार द्वारा परित्यक्ता है तो उसे सरकार द्वारा ऐसे शरण स्थलों में रखे जानी की व्यवस्था करनी होगी जो उसके और उसके बच्चे की शिक्षा और परवरिश के लिए जिम्मेदार होंगे जब तक वह सक्षम नहीं हो जाते.
    --

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  6. सबसे पहले ये समझना होगा की क्या ये बच्ची बलात्कार को समझी भी थी
    वो बाल यौन शोषण की शिकार थी , बाल यौन शोषण जो उस उम्र से शुरू होता हैं जब बच्चा ये भी नहीं जानता की जो हो रहा हैं वो क्या हैं
    धीरे धीर स्टेज बाई स्टेज दोषी आगे बढ़ता जाता हैं और बच्चा सोचता हैं "ऐसा ही होता हैं सबके साथ " यानी वो इसे एक वे ऑफ़ लाइफ ही समझने लगता है . फिर लड़की कैसे गर्भवती हुई वो खुद नहीं समझी क्युकी वो कहा जानती थी की जो उसके साथ हुआ वो बलात्कार था . उसके लिये वो सालो से जो हो रहा था वो उसके आगे का हिस्सा मात्र था .Her body had become used to sexual foreplay and as she reached puberty she got pregnant . She might not even blame the abuser or rapist because she her body got used to the sexual foreplay and she might not have gone thru any hurt .

    Such abusers should be identified and should be punished because they are not just rapist but they are ...... dont know what to call them

    I also read the news , it clearly said the child came to know only when the labor pain started so there was no choice .

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  7. सबसे पहले बलात्कार की शिकार हुई लड़कियों के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था करायी जानी चाहिए, ताकि वह भावना में बहके कोई गलत निर्णय ना ले। ऐसा खासकर के कम उम्र की लड़कियों के लिए बेहद जरूरी है। दूसरी व्यवस्था यह होनी चाहिए कि प्राचीन काल की तरह फिर से हमारे समाज को मातृसत्तात्मक परिवार की व्यवस्था लागू करनी चाहिए। मेरे हिसाब से जो मां बच्चे को जन्म देती है, बच्चा उसकी जवाबदेही सबसे ज्यादा होता है। फिर ऐसे में शिक्षा के संबंध में या सामाजिक स्वीकारोक्ति के संबंध में पिता के नाम का होना कोई औचित्य नहीं रहता। इसके लिए सभी तरह कार्यालयी कामों में पिता के नाम को द्वितीयक श्रेणी में रखना चाहिए, जिस तरह से अभी माता के नाम को रखा जाता है। इसके अलावा हर राज्य की सरकार को ऐसी महिलाओं के लिए ना केवल आर्थिक सहायता की व्यवस्था करनी चाहिए बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने चाहिए। अगर ऐसी व्यवस्था होगी तो बलात्कार पीड़िता खुलकर सामने आएगी और अपराधियों को पकड़ा जा सकेगा।

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  8. इस पन्ने का सबसे बेहतरीन भाग अब मोनिका गुप्ता जी की टिप्पणी हो गई है , बहुत ही साफ़ लहज़े में और बहुत खरा खरा कह दिया उन्होंने जिसे सार माना जाए तो कोई हर्ज़ नहीं ।

    रचना जी ,
    मेल पर आपके दिए संदेश से दोबारा इस पोस्ट पर आने का मौका मिला , अच्छी बात ये हुई एक और कि मोनिका गुप्ता जी की टिप्पणी पढने को मिली । आपने इस पोस्ट को एक सामाजिक विकृति या समस्या के रूप और दृष्टिकोण से देखा और मैंने पहली टिप्पणी इसे एक कानूनविद के नज़रिए से "एक अपराध" की नज़र से देखने पर की है । आपने बात की है उस पीडित बच्ची के समझ की, विशेषकर उसकी यौन शिक्षा या यौनिक समझ की , नि:संदेह ये एक बडा पहलू है और बहुत महत्वपूर्ण भी । बात फ़िर वही आ जाएगी कि इस विषय पर टिप्पणी में लिखना बहुत कठिन होगा , अलग से पोस्ट की दरकार रहेगी इसके लिए भी ,क्योंकि इस समस्या के पीछे कई सारी वजहें हैं ।

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