ये सब साइंस की तरक्की हैं या संस्कृति का पतन हैं या महज डिमांड एंड सप्लाई ??
ऊपर दिये हुए लिंक पर अगर आप जायेगे तो आप को मेरा एक प्रश्न दिखेगा "क्या भविष्य में केवल पत्नी को अधिकार होगा की वो अकेले भी इस प्रकार का विज्ञापन दे सके । { जैसे गर्भपात करवा सकने का अधिकार उसका होता हैं } ?"
एक पत्नी अपने पति के साथ एक विज्ञापन देती हैं की उन दोनों को स्पर्म चाहिये एक iit छात्र का ।
अब अगर कुछ समय बाद क़ोई सिंगिल महिला { तलाक शुदा या अविवाहिता } इस प्रकार का विज्ञापन दे या क़ोई पत्नी ही अकेले ऐसा ही विज्ञापन दे तो मुझे लगता हैं हो हल्ला कुछ ज्यादा होगा । नैतिकता का प्रवचन ज्यादा दिया जायेगा । समाज के बिगडने का डर ज्यादा होगा ।
हमारे समाज में आज कल फैशन सा होगया हैं ये कहना की नारी बराबरी की होड़ में गलत रास्ते पर चल निकली हैं । वो ग्लैमर के पीछे भाग रही हैं ।
क़ोई भी नारी जैसे इस विज्ञापन में एक पत्नी अगर क़ोई भी काम किसी पुरुष के साये / साथ में करे तो उसको पति की / पिता की / भाई की यानी एक संरक्षक की सहमति मान ली जाती हैं और वो नारी समाज के "प्रवचन" से बच जाती हैं लेकिन वही अगर वो क़ोई भी फैसला अपने नज़रिये से लेती हैं और किसी भी पुरुष से अलग हो कर लेती हैं तो उसको समाज "गलत " मानता हैं ।
उसको कहा जाता हैं की वो पुरुष बनने की होड़ में अपना नारीत्व भूल रही हैं । अब ये तो क़ोई बात नहीं हुई की अगर पुरुष संरक्षण में क़ोई काम करो तो वो सही हैं और अगर बिना संरक्षण के कर लो तो करने वाली नारी गलत हैं ।
कुछ दिन पहले एक ब्लॉग पर कमेन्ट दिया , जवाब में महिला ब्लॉगर के भाई ने कहा की आप हर पोस्ट पर कमेन्ट नहीं करती , आप केवल अपनी पसंद की पोस्ट यानी जिस पर नारी आधारित विषय होता हैं वहीँ कमेन्ट देती हैं । क्या हर समय आप नारी नारी करती रहती हैं और भी तो विषय हैं उन पर भी कमेन्ट दे इस ब्लॉग पर वरना मेरी बहिन के ब्लॉग पर कमेन्ट ना दे ।
बड़ी हंसी आयी , अरे अगर ब्लॉग जगत में भी किसी महिला ब्लॉगर के भाई को अपनी बहिन के संरक्षण में खड़े होना पड़ता हैं तो क्या नारी आधारित विषयों से ज्यादा जरुरी क़ोई विषय हो सकता हैं ।
नारी को जब तक संरक्षण से मुक्ति नहीं मिलेगी , नारी को जब तक एक इकाई होने का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक नारी पुरुष समानता आ ही नहीं सकती ।
नारी पुरुष समानता का सीधा अर्थ हैं हम जिस देश में रहते हैं उस देश के संविधान और कानून से मिली समानता । समाज के नियम अगर संविधान और देश के कानून से फर्क हैं तो इस फरक को मिटा कर ही बराबरी लाई जा सकती हैं ।
Indian Copyright Rules
नारी को जब तक संरक्षण से मुक्ति नहीं मिलेगी, नारी को जब तक एक इकाई होने का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक नारी पुरुष समानता आ ही नहीं सकती। नारी पुरुष समानता का सीधा अर्थ हैं हम जिस देश में रहते हैं उस देश के संविधान और कानून से मिली समानता। समाज के नियम अगर संविधान और देश के कानून से फर्क हैं तो इस फरक को मिटा कर ही बराबरी लाई जा सकती हैं। @ ............. आपके इस विचार को एक सूत्र वाक्य की तरह आत्मसात करने की कोशिश रहेगी...
ReplyDelete@ मेरा मानना है कि विचार आधारित संरक्षण होना चाहिए न कि संबंध आधारित ... फिर भी यदि किसी भाई को किसी अन्य भाई के अथवा बहिन के विचार रास आते हैं तो वह उसके विचारों के संरक्षण में खड़ा दिखायी देता है... और यह स्थिति तभी बनती है जब अन्य विचारक ब्लोगर (बकवादी और कुतर्की ब्लोगर समेत) आ-आकर भावुक हृदय ब्लोगर पर व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी करते हैं....
यह संरक्षण और सहयोगी भावना कब-कब नज़र आती है :
— विचारों के रास्ते मन-से-मन मिल जाने पर
— अन्य विचारकों और टिप्पणीकारों के विरोधी तेवर देखने पर
— उगते सूर्य को देर तक केवल अपना ही अर्घ्य दिखाने के चक्कर में
प्रतुल
Deleteअगर किसी भाई को अपनी बहिन के संरक्षण के लिये खड़े रहना पडे वो भी हिंदी ब्लॉग जगत में महज इस लिये क्युकी यहाँ महिला सुरक्षित नहीं हैं तो सोचिये जो महिला एकल हैं यानी जिनको किसी भाई का संरक्षण नहीं हैं उनकी स्थिति क्या होगी और फिर अगर ऐसे भाई ये कहे क्या नारी नारी लगा रखा हैं तो हंसी आ ही जाती हैं :-)
भाई का बहन के संरक्षण के लिये खडे होना, अच्छा है, भाई-बहन के प्रेम और भाई होने के कर्तव्य का भी परिचायक है। लेकिन साथ ही ये भी दर्शाता है कि कहां-कहां महिला को रक्षा की जरुरत है। लेकिन किनसे?
ReplyDeleteदूसरी बात "ये संरक्षण देने की मानसिकता बहनों को बुर्कों, घूंघट और तालों में बंद करने और हर चीज में अंकुश लगाने की मानसिकता में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता भाईयों को।
प्रणाम
@ लेकिन किनसे?
Deletebhai logon ko ye mahin baat samjhna chahiye.....jo samjh rahe hain unko vishes abahar......
pranam.
जब तक महिला को रक्षा की जरूरत हैं तब तक जागरूकता लाने का अभियान चलता ही रहेगा . कभी मै अकेली आपत्ति दर्ज करवाती थी आज मुझ से पहले और ब्लॉग जगत की महिला करवा रही हैं
Deletehttp://bulletinofblog.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html
अपने अधिकारों के लिये सचेत खुद होना पड़ता हैं .
एक बार मातृसत्तात्मक परिवारों की स्थिति भी देखकर बताइए कि उनमें स्त्री की स्थिति में कोई अंतर है अथवा वहाँ भी ऐसा ही परिदृश्य है.
ReplyDeleteमातृसत्तात्मक परिवारों
Deleteमेरी हर पोस्ट में कानून और संविधान की बात हैं , बराबरी की बात हैं
सत्ता की नहीं ,मै ये नहीं कह रही हूँ की नारी को "सत्ता का अधिकार" मिले परिवार में
शासन परिवार में किसी का भी गलत होता हैं
हमें बात करनी चाहिये संविधान और कानून में दिये गए अधिकारों की चाहे वो स्त्री के हो या पुरुष के या किसी भी लिंग के क्युकी अब ट्रांसजेंडर , होमोसेक्सुअल , गे इत्यादि सब कानून की नज़र में समान अधिकार प्राप्त हैं स्त्री की स्थिति दोयम की हैं परिवार में , धर्म में पर कानून में नहीं , संविधान में नहीं
रचना जी इसके लिये स्त्री को ही खुद सोचना होगा और बदलना होगा तभी समाज की मानसिकता भी बदलेगी मगर आज भी स्त्री कहीं ना कहीं उन्ही संस्कारो को ढो रही है तभी उसका ये हाल है ।
ReplyDeletevandana
Deleteyou are absolutely right
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ReplyDeleteविज्ञापन में कोई अनैतिकता वाली बात नहीं है.अकेली महिला को भी ऐसा निर्णय लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए और अंतिम निर्णय उसका ही होना चाहिए.
ReplyDeleteये बात सही हैं कि महिला अधिकारों की बात करने वाली महिलाओं को गलत बताया जाता हैं और उनका नाजायज़ विरोध किया जाता हैं.इसका कारण यकीनन महिला विरोधी मानसिकता ही हैं...
लेकिन नारीवादी हमेशा सही ही हो ,ये कोई जरूरी तो नहीं!
कई बार ये लोग जरूरत से ज्यादा जजमेंटल हो जाते हैं और जहाँ जरूरत न हो वहाँ भी अपनी भेदभाव वाली बात ले आते हैं.ये आदत केवल नारीवादियों की ही नहीं हैं बल्कि सभी 'वाद' के समर्थकों की हैं फिर चाहें वो दलितवादी हों या अल्पसंख्यकवादी या फिर मार्क्सवादी.और इन सभी का भी विरोध किया जाता हैं आप चाहें तो ब्लॉगजगत में ही ऐसे उदाहरण देख सकती हैं.यदि ये विषय सबसे ज्यादा जरूरी हैं तो इसमें सावधानी भी सबसे ज्यादा बरतनी चाहिये.