(मैं जानती हु इस लेख को पढने वाले अधिकतर लोग मानसिक रूप से सुद्रढ़ है पर और सभी मुझसे ज्यादा अनुभवी है सबने मुझसे ज्यादा दुनिया देखी है हो सकता है ये लेख आप सबको बचकाना लगे पर अगर १ भी व्यक्ति पर मेरे लेख का सकारात्मक प्रभाव पड़ा तो मैं मानूगी की की मेरा लिखना सफल हुआ....अगर कोई त्रुटी हो तो क्षमा करें और अपने सुझाव अवश्य दें )
तू कितनी अच्छी है,तू कितनी प्यारी है न्यारी न्यारी है ओ माँ मेरी माँ !
तू कितनी अच्छी है,तू कितनी प्यारी है न्यारी न्यारी है ओ माँ मेरी माँ !
अच्छा लगता है न ये गाना मुझे लगता है सबको अच्छा लगता होगा.
पर उन अजन्मी बच्चियों के बारे मैं सोचिये जो सिर्फ माँ के गर्भ मैं कभी एक आध बाद इस गाने की धुन भी महसूस नहीं कर पाई होंगी और इस दुनिया मैं आने से पहले ही दूसरी दुनियां मैं चली गई .आज न जाने क्यों एक तीस सी उठ रही है मन मैं की काश वो भी मेरी तरह ये दुनिया देख पाती.वो भी अपने माँ के कोमल अहसास को महसूस कर पाती.
पर न जाने क्यों उसकी अच्छी प्यारी और न्यारी माँ उसे इस दुनिया मैं लाने की हिम्मत नहीं कर पाई ,जाने किसके दबाव मैं उसने अपनी बच्ची को अपने से दूर कर दिया.या खुद को आधुनिका कहने वाली उसकी माँ खुद ही अपनी दकियानूसी सोच नहीं बदल पाई.
अजीब है ये देश जहा इतनी उन्नति के बाद भी लोग लिंगभेद करते है भारत की हाल ही मैं हुई गिनती के अनुसार भारत मैं महिलाओं एवं पुरुषों का अनुपात ९३३ प्रति १००० हो गया है और सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात ये है की शहरी क्षेत्रो मैं ये अनुपात ९०० महिलाएं प्रति १००० पुरुष है जबकि गावों मैं ये अनुपात ९४६ प्रति १००० पुरुष है.स्वतंत्रता के बाद ये पहली बार है जब महिला पुरुष अनुपात मैं इतना अंतर आया है.
शर्म आती है मुझे ये सोचते हुए भी की पढ़े लिखे लोग तकनिकी का किस तरह फायदा उठा रहे है .
जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब लोगो ने शायद ये सोचा होगा की जेसे जेसे शिक्षा का प्रसार होगा लोगों मैं जागरूकता आएगी और महिला भ्रूण हत्या कम होगी पर सेंसेक्स की रिपोर्ट देखकर लगता है शेहरी लोगो ने तकनिकी का महिला भ्रूण हत्या मैं भी जमकर फायदा उठाया है .बढती महंगाई ने शहर के लोगो इस बात के लिए तो मानसिक रूप से तैयार कर दिया की उन्हें १ या २ ही बच्चे चाहिए पर गिरती हुई मानसिकता कहिये या जड़ मैं बेठी हुई सोच की अब वो १ ही बच्चा उन्हें लड़का चाहिए .मतलब साफ़ है जनसँख्या चाहे उस तेजी से न बढे पर लड़कियों की संख्या तेजी से कम हो रही है.
हम क्यूँ अपने आप को पढ़ा लिखा कह रहे हैं?क्या लोग पढाई सिर्फ इसलिए करते है की वो पैसा कमा सके ?क्या शिक्षा अपने साथ सोच मैं बदलाव नहीं कर रही ? क्या शिक्षा गुणात्मक फायदा नहीं दे रही ?
एक बार सोचकर देखिये नए ढंग के कपडे पहनना ,बड़े होटलों मैं खाना,वीकेंड पर बाहर जाना ,कंप्यूटर,लैपटॉप,आई -फ़ोन ,इन्टरनेट,वेबकैम और न जाने कितनी तकनिकी सुविधाओं का उपयोग करना ,माल्स मैं शौपिंग करना,गावों के लोगो को दकियानूसी कहना ,नौकरी करना ,पैसे कमाना ,और हमें सिर्फ १ बच्चा चाहिए या हमें सिर्फ दो बच्चे चाहिए जेसी बातें करके फॅमिली प्लानिंग की डींगे हांकना क्या यही सब शहरीपन है? क्या फायदा असी पढाई लिखाई का जो हमें सही रस्ते पे चलना भी नहीं सिखा रही.....
पढ़ी लिखी लड़कयाँ और महिलाएं क्या सिर्फ इसलिए पढ़ रही है की वो अपने आप को साबित कर सके,पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला मिला सके ,या आज की शहरी भाषा मैं कहे तो घर की अर्निंग मेम्बर बन सके ,क्या वो अभी भी इतनी समझदार और परिपक्व नहीं हुई की अपनी बच्ची को दुनिया मैं लाने के लिए आवाज उठा सके? और खुद को प्रबुद्ध कहने वाला पुरुष वर्ग क्या अब भी नहीं समझ पा रहा महिलाओं की ये घटती संख्या देश मैं १ दिन कुवरो पुरुषों की भीड़ बढ़ा देगा.
इस देश मैं सब समझदार है सारे लोग क्रिकेट पर टिपण्णी करना जानते है,सब ओसामा की मौत पर बातें करते है,अमेरिका के बारे मैं बोलते है,मुफ्त के रायचंद काफी है यहाँ. पर महिला भ्रूण हत्या के विरोध में मैआवाज उठाने वालो की संख्या कम है क्योंकि सब जानते है ये गलत है पर सब डरते है बोलने से .में मानती हु कुछ लोगो में जाग्रति आई है पर प्रतिशत काफी कम है .
मेरी बस लोगो से यही उम्मीद है की वो पढ़े लिखे है तो अपनी शिक्षा का सही उपयोग करें और अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें की वो कभी महिला भ्रूण हत्या में शामिल न हो साथ ही अपने आस पास के लोगो को भी असा करने से रोकें .युवा हो तो युवा होने के उत्तरदायित्व को समझो ,भीड़ में शामिल हो जाओ पर भीड़ का हिस्सा बनकर गन्दगी को साफ़ करो ........
कनुप्रिया गुप्ता
kanya bhund hataya aesaa mudda haen jis kaa virodh kartey rehna hogaa
ReplyDeleteजी रचना जी आपकी बात से सहमत हू.इसीलिए अपने ब्लॉग पर इस से सम्बंधित लेख लिखती रही हू मैं और उन लेखों का लिंक अपने फेसबुक और ट्विट्टर अकाउंट पर बार बार डालती हू ताकि मेरे सभी युवा मित्र उन्हें पढ़े शायद इस यज्ञ में यही मेरी आहुति हो.
ReplyDeleteभ्रूण हत्या का विरोध किया जाना चाहिए , इस मानसिकता का शिक्षित या धनवान होने से कोई फर्क नहीं पड़ता ...ज्यादा मामलों में खुद महिलाएं जिम्मेदार होती है , मेरा अनुभव है !
ReplyDelete@हमें सिर्फ १ बच्चा चाहिए या हमें सिर्फ दो बच्चे चाहिए जेसी बातें करके फॅमिली प्लानिंग की डींगे हांकना क्या यही सब शहरीपन है?
बढती जनसँख्या के मद्देनजर हर वर्ग की जिम्मेदारी होनी चाहिए , इसका ताल्लुक शहरीपन से नहीं देश के विकास के साथ कम होते कृषि क्षेत्र और बढती महंगाई से है !
भ्रूण हत्या का विरोध किया जाना चाहिए.सवालों से जूझना कोई आपसे सीखे. आपको पढना हमेशा अच्छा लगा है.
ReplyDeleteसमय हो तो युवतर कवयित्री संध्या की कवितायें. हमज़बान पर पढ़ें.अपनी राय देकर रचनाकार का उत्साह बढ़ाना हरगिज़ न भूलें.
http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_06.html
अच्छी बात बतायी है अपने ब्लॉग पर।
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता ऐसा होगा, जब तक ये मानसिकता नहीं बदलेगी।
aapne sach kaha aur apni kalam ke prabhaav se jagrit karne ki koshish bhi ki...lekin ek baat main kahna chahungi ki kya sirf kanya bhroon hatya na karva kar ladki ko janam de dene bhar se hi ham apne desh ke prati, samaj ke prati, nari jati ke prati apna kartavy pura kar lete hain? is se aage aur kuchh nahi.....?
ReplyDeletemere is sawal ki babat main agle buddhwar 13/7/2011 ko ek post daalungi...kripya use jaroor padhiyega.
कनुप्रिया जी आप ने सही खा की जरुरी ये है की लोग अपनी मानसिकता बदले अपनो सोच बदले क्योकि कानून या समाज के दबाव में लोग यदि बेटी को जन्म दे भी दे तो उसके साथ कभी भी अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे और हमेसा उसके सतग भेदभाव करेंगे उसको बेटे से कमतर मानेगे |
ReplyDeleteMAnsikata aur Soch me badlav bahut zaroori hai...
ReplyDeleteशिक्षित होने भर से ही लोख कन्या भ्रूण हत्या बंद कर देते तो ये समस्या बहुत हद तक खत्म हो गई होती.गर्भस्थ लिंग का पता लगाने के लिए सामग्री व सूचनाएँ वेब पर भी मौजूद है जिनका प्रयोग ये पढा लिखा वर्ग ही करता है.केवल भ्रूण हत्या ही नहीं अब तो जेनिटोप्लास्टी जैसी तकनीकें भी मौजूद है जिससे गर्भस्थ शिशु का लिंग ही परिवर्तित कर दिया जाता है.इसके अलावा कई जगह पैदा होने के बाद भी बच्चियों को मार दिया जाता है या कही लावारिस छोड दिया जाता है.यहीं नहीं गाँवों में तो जहाँ लडके को जन्म देने के बाद माँ को कई हफ्तों तक आराम दिया जाता है वहीं लडकी को जन्म देने के तीन चार बाद ही माँ को काम में जुट जाना पडता है.इस कारण उचित देखभाल नही होने या बीमार होने के कारण बच्ची दम तोड देती है .अत: केवल भ्रूण हत्या ही नहीं लिंगानुपात कम होने के और भी कई कारण है.
ReplyDeleteआपका लेख अच्छा लगा.
kanupriya ji,
ReplyDeletebahut sarthak likha hai aapne kintu aaj padhe likhe log hi ais kar rahe hain aur dekhiye bhawagwan k nyay ladki mren par ladka paida hota hai .hamare yahan kai ke sath aisa hua hai aur ahi bad me apne ladke hone ka maza maa-baap ko chakhata hai.
महिला भ्रूण हत्या को रोकने का पहला कदम भी महिला को ही उठाना होगा...
ReplyDeletesach mei maa ban na duniya ka sabse sukhad ahsaas hota hai, or apne brun navjaat bache ko marna sabse dukhad ...waise to hospitals mei hum dekhte hai likha hua ke brud mei ling ki jaach karana kanooni apradh hai, par paiso ke khatir aaj bhi log ye apradh karte hai, sahi kaha aapne agar ye karam aise hi chalta raha to wo samay dur nahi jab desh ki jansakya mei ladkiya sirf naam matr reh jayeng... hum narriyo ko hi iske khilaf aawaz uthani padegi
ReplyDeleteभ्रूण हत्या मानवता पर एक अभिशाप है जिसका पुरजोर विरोध होना चाहिए !
ReplyDeleteमै इस सभ्य समाज को तब तक सभ्य नहीं मानता जब तक बेबस , अजन्मी बच्चियों की हत्या बंद नहीं होती !
नारी और पुरुष में भेद करने वाला आदमी जानवर से भी बदतर है !
आभार !
आप सभी का धन्यवाद् .शहरोज जी मैंने वो कविताएँ पढ़ी बहुत ही अच्छी है.
ReplyDeleteहो सके तो मेरा ब्लॉग देखे वहा नारी से सम्बंधित एक कविता है आपकी प्रतिक्रिया चाहूंगी.
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/07/blog-post_07.html#comments
आप लोगो ने जो सुझाव या कमियां बताई है में अपने अगले लेख में उन सभी बातों का ध्यान रखूंगी.
बहुत ही बढ़िया और जरूरी मुद्दा आपने उठाया है कन्या भ्रूण हत्या का | हम सबको वास्तव में जरूरत है इस पर नए सिरे से सोचने की | हम कब तक अपने आपमें शिक्षित और सभ्य समाज के चिन्तक का स्वांग रचते रहेंगे और इस विषय पर मूक दर्शक बने रहेंगे | लेकिन यह काम दोस्तों खाली ब्लॉग्गिंग और सभाएं करने से चलने वाला नहीं है | इसके लिए हम सभी को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे वोह भी अपने अपने तरीके और समय के हिसाब से लोगों में जागरूकता भरकर |
ReplyDeletekanu ji ,
ReplyDeletebahut sahi aalekh likha hai aapne aaj ye sab ho raha hai to fir likhne ke liye naya vishay kahan se aayega.sarthak prastuti.
महिला भ्रूण हत्या को रोकने के लिए हर महिला को खुद जागरूक होकर लोगों को भी इसको रोकने के लिए हर वक्त प्रयासरत रहने की जरूरत है..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जागरूकता भरी प्रस्तुति के लिए आभार!
विषय को सार्थक ढंग से उठाने के लिए आपका आभार...
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने...पढ़े लिखे आधुनिक / शहरी तबके में भ्रूण परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या सर्वाधिक होती है...
बहुत बहुत बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है यह...
केवल कानून बना देने से यह बंद नहीं होने वाला..जबतक माताएं स्वयं इसके लिए कृतसंकल्प नहीं होंगी,यह नहीं रुकेगा...क्योंकि ९५% महिलायें स्वेच्छा से कन्याभ्रूण परीक्षण और हत्या करवाती हैं,जबकि ऐसा नहीं कि वे बच्चे का खर्च उठा पाने में अक्षम हैं या परिवार के प्रत्यक्ष दवाब में ऐसा कर रही हैं..
धन्यवाद् रंजना जी ,आपने मेरे लेख के मुख्य उद्देश्य को समझा.मेरा यही कहना था की पढ़ लिखकर सब समझकर खुद नारी होकर नारी एसा कर रही है जिसे रोकना सिर्फ उसके खुद के हाथ में है....
ReplyDeleteExcellent post!
ReplyDeletethnx
ReplyDelete