क्या ये सही हैं अगर बेटी के माता पिता पैसे वाले हैं तो
वो अपनी शारीरिक रूप से अक्षम या
दिमागी रूप से अक्षम या
कम लम्बाई वाली या
किसी बीमारी से ग्रस्त या
कोई ऐसी लड़की जो पैसे के मद मे चूर हो और कोई भी काम यहाँ तक की घर का काम करना भी ना जानती हो या सामान्य स्तर मे वो कुरूप कही जाती हो ,
उसका विवाह पैसे के दम पर किसी गरीब से कर दे ???
हमारे समाज मे सदियों से ऐसा होता आ रहा हैं । दहेज़ के नाम पर गरीब लडको को ख़रीदा जाता हैं । सामाजिक सुरक्षा के नाम पर लड़कियों का विवाह करना जरुरी माना जाता हैं और इसके लिये लड़का अपने से नीचे स्तर का खोजा जाता हैं ।
नीचा स्तर यानी गरीब ,
कम पैसे वाला ,
कम पढ़ा लिखा
क्या ऐसे लोगो का दाम्पत्य जीवन सुखी रहता हैं ? क्या वो वास्तविक रूप से एक दूसरे के जीवन साथी बन पाते हैं ? क्या ये गरीब लडको का शोषण नहीं हैं ?? अगर हैं तो क्यूँ इस तरह के विवाह को हमारा समाज सदियों से मान्यता देता आ रहा हैं ??
आज भी ऐसे विवाह हो रहे हैं कब इन पर अंकुश लगेगा या कभी नहीं लगेगा ??
क्या पैसे वाले हमेशा कम पैसे वालो का शोषण करते रहेगे ??
एक प्रश्न लडके इस प्रकार के विवाह क्यूँ करते हैं ???
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
ये सौदेबाजी बहुत बरसों से होती चली आ रही है. इसको आप और हम रोक नहीं सकते क्योंकि अगर कोई बिकना न चाहे तो दूसरा उसको खरीद नहीं सकता है. जब हम बिकाऊ हैं तो खरीदार को क्या? सब अच्छी चीज के चाहने वाले होते हैं. लड़के बिकना चाहते हैं तो बिकते हैं. लड़की वाले क्यों न खरीदें? unaka daampatya jeevan unaka hota है, क्या samajhti ho ki sadaiv isamen ladaka hi kamajor hota है नहीं kitani bar तो लड़के aisi लड़की से shadi karke और paise lekar khud aish karte हैं और लड़की sirph ghar ki shobha bani rahati है.
ReplyDeleteisaka theek ulta bhi तो hota है ki paise वाले apane ayogya लड़के के liye yogya और sundar garib लड़की le aate हैं क्योंकि unake star ka कोई bhi apani लड़की को unake ghar men नहीं dega. mere samane aise donon hi kitne maamale हैं. ये तो donon pakshon ki marji है. samaj ya हम इसको रोक नहीं सकते हैं.
Sorry for fonts. It is not my mistake.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरचना जी
ReplyDeleteजहा तक मैंने देखा है कि हमारे समाज में विवाह का जो अरेंज मैरिज ( और कुछ मामलों में लव मैरिज भी ) का जो रूप प्रचलित है वहा पर विवाह के लिए आर्थिक स्थिति एक मुख्य कारक होता है दोनों पक्षों के लिए | दो सामान्य लोगो के विवाह भी कई बार सिर्फ पैसे के लिए किये जाते है | हमारे यहाँ परिवार किसी से भी विवाह कर दे किसी भी कारण से उसे निभाने की परंपरा है इस लिए ऐसे विवाह के सफल न होने की कोई बात नहीं है | ऐसा भी देखा गया है की कई बार एक गरीब किन्तु सुन्दर लड़की का विवाह उसकी सुन्दरता के बल पर एक आमिर परिवार में हो गई है | मेरी कजन को २२ साल की आयु में ब्लड सुगर हो गया था उसे रोज इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता था उसके लाख मना करने के बाद भी उसके अमीर घर वालो ने उसकी सगाई उसकी बीमारी छुपा कर कर एक पैसे वाले के साथ कर दी जो सच पता चलने पर टूट गई अंत में घर वालो ने एक निम्न माध्यम वर्गीय लड़को को पैसे दे कर अच्छा काम शुरू करवा के उसका विवाह कर दिया आज विवाह के दस साल हो चुके है उसको एक स्वस्थ बेटी है ऐसे मामलों में बच्चा होना रिस्की होता है उनके मानसिक रूप से अपंग होने का चांस होता है | वो खुश है क्योकि वह आज पुरे सम्मान और आजादी के साथ अपने ससुराल वालो के साथ रह रही है और पैसे में भी उसकी हालत अब किसी से कम नहीं है जबकि उसकी बाकि स्वस्थ बहनों का विवाह पैसे वालो के घर में हुआ था पर उन्हें उसके बाद भी वो सम्मान हासिल नहीं है | मुझे इसमे कोई बुरे नहीं दिखाती है बस विवाह के पहले लडके या लड़की को उसके होने वाले जीवन साथी की कमी बता दिया जाये क्योकि विवाह के लम्बे समय तक टिके रहने के लिए शारीरिक के बजाये मानसिक सुन्दरता ज्यादा जरुरी होती है |
मै भी उस नए धारावाहिक की दस मिनट का सीन देख कर उस पर कुछ लिखना चाह रही थी चलिए आप ने लिख दिया धन्यवाद | पर मेरा सवाल ये है कि आखिर लड़कियों के लिए विवाह करना ही उनके जीवन का लक्ष्य क्यों बना दिया जाता है?
अपनी-अपनी कमजोरी के चलते हर कोई कहीं ना कहीं समझौते करता है।
ReplyDeleteऐसा भी होता है कि बहुत सुन्दर, गुणी, पढी-लिखी लडकियों की शादी धन के अभाव में अपेक्षाकृत ज्यादा उम्र वाले या विदुर/अपंग/कुरुप लेकिन धनी लडकों से की जाती है। लडके और लडकियां खुद भी धन के सामने छोटे-मोटे नुक्स को बिसार कर बेमेल विवाह के लिये तैयार हो जाते हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
@रेखा
ReplyDeleteयही समस्या की जड़ हैं की हम हर घिसी पिटी बात का अनुमोदन करते जाते हैं यानी लकीर पीटे जाते हैं और जो लोग इस लकीर से अलग जीवन जीते हैं उनको विद्रोही का टैग दे देते हैं । क्यूँ नहीं अपनी अपनी जगह हम गलत परम्पराओं का विद्रोह करते हैं ।
@अंशुमाला
ReplyDeleteलड़कियों के लिये शादी नियति क्यूँ हैं इस पर बहुत बार लिखा हैं इसी ब्लॉग पर और हर बार यही सुना हैं की समाज को गलत राह अपर ले जा रही हैं
लड़कियों के साथ क्या क्या होता हैं बहुत बार लिख चुके हैं सो इस बार पुरुष क्यूँ ये सब स्वीकार करते हैं क्युकी लडकियां तो " अबला " और "conditioned " मानी जाती हैं
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलडके और लडकियां खुद भी धन के सामने छोटे-मोटे नुक्स को बिसार कर बेमेल विवाह के लिये तैयार हो जाते हैं।
ReplyDelete@अन्तर सोहिल
यही मूल प्रश्न हैं पर लडको की मानसिकता से जुडा हैं क्युकी जैसा मैने ऊपर कमेन्ट मे कहा लड़कियों के लिये शादी नियति हैं और उनका इस विषय मे ज्यादा निर्णय नहीं होता { ध्यान दे मे उन लड़कियों की बात कर रही हूँ जिनका जिक्र इस पोस्ट मे हैं ना की सशक्त नारियों की }
रचना जी आप असमर्थ लडकियों की बात करती हैं यहाँ तो लोग समर्थ लडकी को भी दहेज देना सही कहते हैं पिछले दिनो मैने लघु कथा के माध्यम से कुछ सवाल उठाये थे मगर ये देख कर हैरानी और दुख हुया कि इतने पढे लिखे लोग भी मेरी बात से सहमत नही थे। यहाँ तो फिर भी असमर्थ लडकी की बात हो रही है। हमारा समाज कभी नही सुधरेगा। इस विषय पर मेरा विचार स्पष्त ःआई खी वीवाआः ंऎ ळैण डैण ःऔणाआ ःऎऎ णाःऎऎ छाआःईय़ै। छाआःऎ ःआआळाआट खूछः भःऎऎ ःऔम। डःआण्य़ावाआड।
ReplyDeleteोह ऊपर देखा नही गलत लिखा गौअ उन पँक्तिओं को दोबारा लिखती हूँ।
ReplyDeleteइस विषय पर मेरा विचार सपष्ट है कि विवाह मे दहेज होना ही नही चाहिये हालात चाहे जो भी हों। धन्यवाद।
aaj kal ye hi to hota hai
ReplyDeleteor koi kuch na kar pata hai na kah pata hai
बरसों से यही चला आ रहा है..... ना जाने क्यूँ लेकिन पैसे का रोल बहुत महत्वपूर्ण है और हमेशा से था शादी के मामले में...... इन चीज़ों में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा....
ReplyDeleteबाकी तो निर्मला कपिला जी से पूरी तरह सहमत हूँ......
मैं रेखा जी और निर्मला कपिला जी की बातों से सहमत हूँ
ReplyDeleteआपका भी धन्यवाद इस मुद्दे को उठाने के लिए
महक
पैसे वालों ने हमेशा गरीबों का शोषण किया है. मुझे तो लगता है कि शादी-ब्याह में धन की बात आनी ही नहीं चाहिए. मुख्य बात लड़की और लड़के की सहमति होनी चाहिए. पर समाज है कि धन के बिना ब्याह ही असंभव समझता है.
ReplyDeleteजैसा आपने लिखा है वैसी शादी कभी सुखी वैवाहिक जीवन का आधार नहीं हो सकती है, पर सुख के मायने भी सबके लिए अलग-अलग होते हैं.
रचनाजी
ReplyDeleteआपका कहना बिलकुल सही है कि ऐसे बेमेल विवाह क्यों होते है ?इसमें लड़का और लड़की दोनों पर समान रूप से ये शर्ते देखि जाती है और ऐसे विवाह कुछ सफल होते है कुछ असफल जिनकी अपनी अपनी परिभाषाये होती है |एक प्रश्न ये भी है कि शादी ही क्यों जरुरी है ?
एक सशक्त लड़की जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र है वो ऐसे मामलो में अपनी राय रख सकती है किन्तु ये भी उतनाही सच है कि अभी भी जो लडकियाँ अपने माता पिता पर आश्रित है गाँवो में ,छोटे कस्बो में वहां का समाज अविवाहित लड़की का विवाह करवाना अपना कर्तव्य समझता है और बहुत सी जगह इन्ही समझोतों पर शादियाँ तय कि जाती है
क्योकि अभी ये जाग्रति वहां नहीं पहुंची है कि हमपने पैरो पर खड़े हो ?माता पिता भी उतने जागरूक नहीं है कि जो बच्चे सामान्य नहीं है उनके लिए आत्मनिर्भरता का पयत्न करे बस !बस शादी ही एक मात्र विकल्प दीखता है |बड़े शहरों में फिर भी जागरूकता आई है |
और जब हम कोई इस तरह कि बात करते है तो छोटे शहरों ,गावो ,कस्बो में होने वाली घटनाओ और वहां के समाज कि परिपाटी को नजरंदाज नहीं कर सकते |
मुक्तिजी का ये कहना कि सबके सुख के मायने अलग अलग होते है |पूर्णत सहमत हूँ |
ऐसे इतने उदाहरन है अपने आसपास कि उनपर बहुत कुछ लिखा जा सकता है ?
jwalant samsyaon par paini nazar...
ReplyDeletechintaniya....achhi vimarsh...
pranam.
अगर शारीरिक अक्षमता के बारे में पहले ही बता दिया गया था तो ऐसी शादी में कोई बुराई नहीं हैं।और मुझे ये नहीं समझ आता कि आप लोगों को ये क्यों लगता हैं कि शादी के लिये सिर्फ लडकियों पर ही दबाव होता है और उन्हे ही सारे एडजेस्टमेन्ट करने पडते है?हम लोग कहकर नहीं बताते इसीलिये क्या?
ReplyDeleteप्रिय राजन बात सिर्फ शारीरिक अक्षमताओ की नहीं हैं बात हैं की उनके बदले किसी को पैसा देकर उस से विवाह करवा देना । लडके क्यूँ करते हैं इस का जवाब केवल आप ने ही दिया हैं क्युकी उन पर सामाजिक दबाव होता हैं की घर की स्थिति सुधर जायेगी । आप न केवल पोस्ट पढते हैं अपितु उस पर अपना सही मत जो समाज स्वीकार्य हो ना हो रखते हैं आप छवि के लिये चिंतित नहीं लगते । अपना मत रखना बिना ये सोचे की लोग क्या कहेगे आसान काम नहीं हैं । इसी तरह सामाजिक दबाव के चलते कुछ करना आसान हैं और ना करना मुश्किल हैं क्युकी तब आप विद्रोही हैं
ReplyDeleteआप अगर इस ब्लॉग को ध्यान से पढ़े तो पायेगे की मैने हमेशा सामाजिक दबाव को ना मानने की पैरवी की लेकिन ना जाने क्यूँ मुझे नारीवादी , पुरुष विरोधी इत्यादि कहा जाता हैं
अगर कोई पुरुष समाज विरोधी लिखता हैं तो वो जागरूक कहलाता हैं और स्त्री लिखती हैं तो विरोधी क्यूँ कोई जवाब दोगे
सस्नेह रचना
@रचना जी,प्रोत्साहन के लिए आभार।आपके प्रश्न का जो जवाब है वो पुरूष की वही दकियानूसी सोच की वह एक महीला की मदद करते हुऐ तो गर्व का अनुभव करता हैं परन्तु उससे मदद लेने में उसका अहम् आडे आ जाता हैं।पुरूष की यह सोच बन कैसे जाती हैं यह अलग से चर्चा का विषय हैं।ब्लोगजगत में अधिकतर पुरूष (सभी नहीं) जो महिलाऔं के पक्ष में लिख रहे हैं वो खुद ये सोच रखते हैं कि लक्षमीबाई पैदा तो हो लेकिन पडोसी के घर में।आप कमेंट के जरिये कई बार उनकी इसी सोच कि तरफ इशारा कर देती हैं इसलिये आपका विरोध ज्यादा होता है और ये बात मैं खुद कई बार महसूस कर चुका हूँ।
ReplyDeleteमुझे ब्लोग लिखने वाली कई महिलाओं की बातों में भी विरोधाभास व अतिवाद नजर आता है पर आपने चूँकी केवल पुरूषों के विषय में बात की है इसलिये इति।
ReplyDelete