आजकल हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में महिलाओं के साथ होने वाली छेङछाङ और यौन हिंसा के खिलाफ़ लगभग एक सी दलीलें दी जाने लगी हैं। किसी महिला के साथ कोई अनहोनी होते ही हमारे आसपास एक अजीब सी फुसफुसाहट शुरू हो जाती है कि उसने क्या पहना था ? कितना पहना था ? उस वक्त वो फलां जगह क्या कर रही थी? वगैरह वगैरह । ऐसे वाहियात सवालों के ज़रिये पूरा समाज और सिस्टम उस महिला कि पोशाक को अमर्यादित बताकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोने लगता है। जबकि हकीकत यह है कि पारंपरिक परिधानों में भी महिलाओं के साथ ईव टीजिंग और बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। ऐसे हालात में सबसे ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है जब इस दर्दनाक स्थिति से गुजरने वाली महिला को ही कटघरे में खड़ा कर देने वाले लोगों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि अगर किसी औरत के कपड़े ही उसके साथ हुए अश्लील व्यव्हार के लिए जिम्मेदार हैं तो साल भर कि भी उम्र पार न करने वाली मासूम बच्चियों के साथ आये दिन ऐसी घटनाएँ क्यों होती हैं? इतना ही नहीं क्यों वे उम्र दराज़ औरतें ऐसी वीभत्स घटना का शिकार होती हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ पारंपरिक लिबास ही पहने हैं। यह शर्मनाक है कि इस तरह के स्त्री विरोधी स्वर नारी कि अस्मिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं।
बचपन से एक कहावत हम सब सुनते आये हैं कि ''खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है" मेरा सवाल पूरे समाज और सिस्टम से कि अगर खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है तो उन्हीं आँखों में अश्लीलता क्यों नहीं हो सकती? बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?
सही प्रश्न ।
ReplyDeleteWelcome to naari blog Dr Monika sharma
ReplyDeleteWe have been writing on these issues for long and are yet to find the society agree to what you have written . But I am sure we need to continue the effort every day and every minute
baat solah aane sachchi...bahut sateek sawaal uthaya...darasal ye bhavnaayein pehle sanskaaron ki part me dabi rehti thi....ab sanskaar kamjor hue to ye bhaavnaayein khul ke saamne aane lagi...
ReplyDeleteबिल्कुल सही तर्क दिया है आपने कि जब सुंदरता देखने वाले की आँखों में हो सकती है तो अश्लीलता क्यों नहीं...
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही लिखा है ! गलती के लिए ज़िम्मेदार भले ही पुरुष हो लेकिन हम लोगों के समाज में सदा से कटघरे में स्त्री को ही खडा करने की रवायत रही है ! नारी के इस तरह के भावनात्मक उत्पीडन को रोकने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि समाज के पुरोधा अपने न्याय करने के मापदण्डों का एक बार पुन: आकलन करें और स्त्री विरोधी आवाजों को उभरने से पहले ही चुप कराने का इंतजाम करें !
ReplyDeleteडॉ. मोनिका शर्मा का हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteआपने बहुत सही बात कही है, लेकिन इस सही बात को समाज के ठेकेदार कितना मानते हैं. अब लोगों को अपने संवेगों पर से नियंत्रण हट गया है. आत्मसंयम और मर्यादा जैसे शब्द बेमानी हो गए हैं. तभी तो ऐसी घटनाएँ हुआ करती हैं. जिनमें उन्हें कुछ भी नजर नहीं आता न उम्र न रिश्ते - बस एक विपरीत लिंग नजर आता है. इसके लिए कौन दोषी है?
यहाँ परिधान नहीं है, यहाँ अश्लीलता नहीं है और न ही यहाँ पर कोई आकर्षित करने वाले घटक सामने होते हैं.
इस बारे में "भटकती युवा पीढ़ी : निदान क्या हो?" मेरी पोस्ट में यही प्रदर्शित कर रहा है की न जान न पहचान और न ही कोई लेना देना और उस बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या क्यों की गयी? इस सवालों का जवाब कोई एक नहीं बल्कि हम सभी नारी और पुरुष वर्ग को सोचने होंगे. सभी पुरुष तो ऐसे नहीं हैं हाँ दिशा जरूर निकल सकते हैं.
अभी कुछ दिन पहले मैंने अपने ब्लॉग 'दर्शन' में 'आधुनिक-परिधान और सामजिक-विकार' नाम से दो
ReplyDeleteपोस्ट लिखी थी | आपके लेख को पढ़ कर मुझे एक पोस्ट और लिखनी पड़ेगी | आपने अच्छा लिखा है | ऐसे लेख पढ़ कर अच्छा लगता है | साधु-वाद | daddudarshan
नारी ब्लॉग में डॉ. मोनिका का स्वागत है। आपके इस तार्किक लेख को पढ़कर कम से कम हर बात के लिए स्त्री को ही जिम्मेदार ठहराने वालों को कोई तो दिशा मिलेगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि जब वह किसी समस्या का समाधान नहीं करना चाहता, उसे यूं ही बनाये रखना चाहता है तो उसकी जिम्मेदारी किसी ना किसी पर डाल देता है। ऐसे में समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है। कुछ ऐसा ही हर मामले में स्त्री के साथ भी किया जाता है। उम्मीद है इस तरह के तार्किक लेख से समस्या के मूल में जाने की सुध तो आएगी।
ReplyDeleteडा.मोनिकाजी का स्वागत है नारी ब्लाग पर |
ReplyDeleteछेड़ने की घटनाये महिलाओ द्वारा पहनी पारम्परिक परिधानों में भी उतनी ही बेशर्मी से की जाती है जितनी की आज के परिधानों में की जाती है \जब देखने वालो की नजरो में ही ,दिमागों में ही उन्माद भरा हो ?तो ?रचनाजी ,रेखाजी की बात से सहमत |
मैंने इसी परिप्रेक्ष्य में एक कविता भी लिखी थी
लिंक है http://shobhanaonline.blogspot.com/2010/03/blog-post.html#comments
डा.मोनिकाजी का स्वागत है। इस मुद्दे को ब्लॉगजगत में उठाया जाता रहा है। आशा है कुछ लोगों के विचार बदलेंगे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
डा.मोनिका जी का नारी ब्लॉग पर स्वागत है...
ReplyDeleteआपने वाजिब सवाल उठाया है...
हजारो साल पहले जब रावण ने सीता का हरण किया था और भरे दरबार में द्रौपती का चिरहरण हुआ उस समय इनमे और हर नारी में न तो संस्कारो कि कमी थी न ही उनके कपड़ो में दोष था फिर भी उसका दोष भी उन्हें ही दिया गया कि क्यों सीता ने लक्ष्मण रेखा पार कि और क्यों द्रौपती ने दुरियोधन को अपशब्द कहा | जैसे कि सीता के पहले रावण ने किसी और नारी का हरण ही न किया हो और कौरवों को सिर्फ द्रौपती से निजी दुश्मनी थी | मुझे लगता है की ये समाज की हजारो साल पुरानी मानसिकता है कि हर बात का दोष नारी को दिया जाये यह इतनी जल्दी नहीं जायेगा इसे जाने में भी हजारो साल लगेगा अभी तो बस ऐसी सोच को बदलने कि शुरुआत है हमें इसके लिए अभी काफी लम्बा इंतजार करना होगा हम बस इसको बदलने की कोशिश कर सकते है और उम्मीद कर सकते है की आगे कि हमारी पीढ़ी को ये सब ना झेलना पड़े हमें तो झेलना ही पड़ेगा | दूसरी समस्या ये है कि ऐसे मुद्दों को हम उठा तो सकते है पर और कुछ कर नहीं सकते जिनको सुधरना चाहिए वो हमारी बातो से नहीं सुधरने वाले| ऐसे लोगों कि मानसिकता ऐसे हजारो लेख पढ़ कर भी नहीं सुधरने वाली है |
ReplyDeleteयह विचार और यही भावना कई बाद उठायी गयी हैं। एक बार और सही।
ReplyDeleteतालीबान सोच के कारण.
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