कल कि पोस्ट से आगे
अभी अभी समाचार पत्र मे पढ़ा कि वो महिला एक स्लम निवासी थी जो उस रात लिफ्ट लेकर उस टैक्सी से यात्रा कर रही थी ।
उसको उसके पति ने ५ साल पहले ही छोड़ दिया था ।
उसके तीन बच्चे हैं बड़ा १० साल और सबसे छोटा २ साल ।
३ दिन से भूखे प्यासे बच्चे झुग्गी मे थे जब पुलिस फोटो के सहारे वहाँ पहुची ।
एक माँ नहीं रही , बच्चे भूखे रहे और लोग चरित्र कि बात करते रहे ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
June 09, 2010
एक माँ नहीं रही , बच्चे भूखे रहे और लोग चरित्र कि बात करते रहे ।
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भूख के आगे कोई जोर नहीं चलता... दुखद
ReplyDeleteoh....dukhad
ReplyDeleteकौन जानता है, पुरुष की इन संतानों के लिए मांओं को क्या क्या करना पड़ता है?
ReplyDeleteएक आह ,एक गहरा निःश्वास ! उफ़ !
ReplyDeleteगहरा निःश्वास
ReplyDeleteहमारा समाज ऐसा ही है...
maarmik...
ReplyDeletekunwar ji,
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteये तो मैंने कल ही कहा था कि जहाँ किसी महिला के अकेले टैक्सी में जाने की बात सुनी जायेगी, वहीं उसके चरित्र पर उँगली उठा दी जायेगी. कोई नहीं सोचेगा कि उसके पीछे कितने लोगों का भविष्य दांव पर लग गया है, कोई नहीं सोचेगा कि वो किन परिस्थितियों से जूझते हुए ज़िंदगी जी रही थी, अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रही थी, बस सीधे उसके चरित्र पर उँगली उठा देंगे लोग. दुःख नहीं हो रहा है, गुस्सा आ रहा है इस खबर को सुनकर...लोगों पर, मीडिया पर व्यवस्था पर और सबसे ज्यादा खुद पर.
ReplyDeleteसबसे ज्यादा खुद पर.
ReplyDeleteexactly the anger with my own self is more than ever before
दुखद पहलू इस व्यवस्था का ...
ReplyDeleteजाने अनजाने हम सभी जिम्मेदार होते हैं ...
यह सिर्फ स्लम एरिया की बात नहीं ...पढ़े लिखे प्रबुद्ध वर्ग के लोग भी ऐसा ही सोचते हैं ...यह फर्क व्यवस्था का है ..
हर संवेदनशील व्यक्ति में यह आक्रोश दबा रहता है ..मगर पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते धीरे धीरे मुरझाता जाता है ...क्या करें ...
व्यवस्था के प्रति आक्रोश होने पर भी कुछ न कर पाने की विवशता कभी कभी जड़ कर देती है..
ReplyDeleteव्यवस्था के प्रति आक्रोश होने पर भी कुछ न कर पाने की विवशता कभी कभी जड़ कर देती है..
ReplyDeletecharitra to samaaj ka samne aa raha hai.yehi mahila agar apne bachchon ke sath kisi chaurahe par bheekh maang rahi hoti ya paison ke abhav me bimari se mar jati to ye samaaj ke liye kabhi bhi sharam ka kaaran nahi hota.
ReplyDeleteबेहद मार्मिक...
ReplyDeleteअगर हमारे समाज में सबसे सस्ती है तो वो है एक औरत की इज्जत. जो चाहे जहाँ चाहे उछाल दे. बगैर ये जाने कि हकीकत क्या है? वो भी अगर गरीब हो तो फिर क्या कहने? उस इज्जत के उछालने वाले भी कभी परदे के पीछे तमाशबीन होते हैं और बदनाम होती है औरत. उसकी तो कुछ मजबूरी भी होती है लेकिन वो कैसे जो उस मजबूरी का फायदा उठा लेते हैं. कोई भी एक उंगली उठाने वाला कभी किसी मुसीबत की मारी को सहायता देने वाला भी बना है नहीं, जो उंगलीउठाते हैं वे इतने शरीफ नहीं होते . जो शरीफ होते हैं वे उंगली नहीं उठाया करते .
ReplyDeleteआखिर क्यों इतने निर्मम हैं हम???
ReplyDeleteplz oh aha kaha kara juthi savadna mat dekhaiya ... agara kuch karna kai to kariya .....
ReplyDeleteaaj purush nare ke kiya kuch nahi kara sakta yadi nare pida hai to baha nikal kug ka kigiya .. ek bachcha aap god legiye
यहाँ समाज पुरुष प्रधान समाज है यहाँ यदि कोई नारी किसी से बात करले तो वो कुलटाकहलाती है पर यदि कोई पुरुष किस नारी का जीवन बर्बाद कर दे तो उस की खुद की पत्नी उस ओरत से कहती है तुम गन्दी हो मर्दों को फसती हो॥ तो यह तो बहुत छोटी से बता है ...
ReplyDeleteसच तो यहाँ है जन एक नारी ही नारी का अपमान करती है तो यह पुरुस समाज को उसे कुछ भी कहा सकता है
यही है इस समाज की हकीकत।
ReplyDelete--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
किस अखबार या चैनल में उस स्त्री के चरित्र पर उंगली उठाई गई थी। ये बात भी साफ लिखी जानी चाहिए। ताकि बाकी लोग सबक ले सकें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और प्रभावशाली
ReplyDeleteboletobindas
ReplyDeleteplease see archives of hindustan times and times of india where there is a big coverage of this news
हमारे यहां चरित्र की परिभाषा ही गलत है, कोई व्यक्ति रिश्वत लेकर, चोरी करके, मर्डर करके,आतंक फ़ैला के, धार्मिक भावनाओं का शोषण करके चरित्रहीन नहीं होता किन्तु यदि कोई महिला-पुरुष आपस में बात-चीत भी कर लें तो भी वे चरित्रहीन हो जाते हैं. महिलाओं का चरित्र तो छुई-मुई के पोधे की तरह है कोई भी उंगली उठाकर महिला की इज्जत की बखिया उधेड सकता है. चरित्र का नाम लेकर अच्छे-अच्छे महिला पुरुषों को षड्यन्त्र रचकर बर्बाद कर दिया जाता है और अपराधी मजे मारते हैं. गोवा में एक लड़्की का मर्डर हुआ था, उस लड़्की के हत्यारों को पकड़ने की अपेक्षा लड़्की के व्यक्तिगत जीवन की ही बखिया उधेड़ी गयीं थीं. इस चरित्र नाम के शब्द को शब्दकोश से हटा देना चाहिये या इसे पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिये.
ReplyDelete