पिछले ग्यारह साल से हर दिन मेरे लिए कुछ आशंकाएं लिए आता है। मई 1998 में पहली कार मुझे कैंसर होने का पता चला। पूरा इलाज कोई 11 महीने चला। इसके बाद लगातार फॉलो-अप, चेक-अप, ढेरों तरह की जांचें, तय समयों पर और कई बार बिना तय समयों पर भी, जब भी कैंसर के लौट आने की जरा भी आशंका हुई। उसके बाद सारे एहतियात के बाद भी मार्च 2005 में कैंसर का दोबारा उभरना। इन सबके बीच इन छोटी-छोटी मोहलतों की हसरत बनी हुई है, जिनमें से कुछेक पूरी हुईं भी, लेकिन उस इत्मीनान के साथ नहीं, जो मैं दिल से चाहती हूं। इसलिए जिंदगी से इजाजत मांगने का मन है कि क्या कभी हो पाएगा। और मुझे उम्मीद है कि होगा।मै आर. अनुराधा को निरंतर पढ़ती हूँ क्युकी एक कैंसर से सम्बंधित हर जानकारी मिल जाती हैं जो कहीं ना कहीं किस के काम आ सकती हैं और दूसरा जिन्दगी जीने का सलीका भी आ जाता हैं ।
कविता यहाँ हैं आप जरुर पढे और कमेन्ट भी वही दे इस पोस्ट पर कमेन्ट देने की सुविधा नहीं हैं ताकि उस कविता पर आया हर कमेन्ट इन्द्रधनुष के सातो रंगों मे रंगा रहे
बहुत अच्छा सवाल पूछा है। संयोग से मेरी कोई बेटी नहीं है। मेरे दो बेटे हैं। पत्नी की बहुत इच्छा थी कि एक बेटी भी हो। बहरहाल मैं जो कहने जा रहा हूं वह बेटी और बेटे दोनों से ही एक अभिभावक के नाते मेरी अपेक्षा है। पहली बात तो यही कि जीवन में आत्मसम्मान को सबसे ऊपर रखो।ऐसा कुछ मत करो जिससे स्वयं की नजरों में ही गिर जाओ। स्वयं की नजरों में गिरने की ग्लानि जीवन भर रहती है। परिवार में आपका जो भी स्थान हो आप औरों को उनके स्थान के मान से पर्याप्त आदर और स्पेश दें। कुछ बातों या मसलों पर लिए गए फैसलों पर पहले इस नजरिए से भी सोचना आवश्यक होता है कि अगर आपको यह फैसला लेना होता तो आप क्या करते। हर अभिभावक यह चाहता है कि उसके बच्चे ऐसा व्यवहार करें,जिससे बच्चों के साथ-साथ उनका भी मान-सम्मान बढ़े। स्वतंत्रता सबको चाहिए। बच्चों को भी मिलनी चाहिए। लेकिन उसका सदुपयोग करना भी हमको सीखना चाहिए। मुझे लगता है यही असली मूल-मंत्र है।
किसी शायर की पंक्तियाँ है कि-
तुमको खुले मिलेंगे तरक्की के रास्ते।
पहला कदम उठओ लेकिन यकीन से।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मेरा एक निवेदन स्वीकार करो , कृपया अपने चरित्र को तन के स्तर पर मत तौलना , चरित्र सिर्फ मन में होता है ||
ओशो के शब्दों में कहूँ तो पूर्ण स्त्री बनने का प्रयास करो न कि पुरुष नम्बर दो ||
धन्यवाद ||
eajesh ji se sehmat ke aatma samman se badhke kuch nahi,shiksha ke jaise duji koi sangini nahi,vyawahar ka gyan shiksha se hi milta hai,magar har kadam par milne wale hadson se tum bahut kuch sikh paaogi,koi naya kadam uthane e pehle do bar soche,dil jise galat kahe wo naa kare.
"छोटी सी बिटिया का बड़ा सा महत्वपूर्ण प्रश्न" ---
अपनी बेटी मानकर ही विचार प्रस्तुत किये हैं.
सकारात्मक सोच ,सौम्य सुलझा व्यवहार ,अच्छी शिक्षा व कठोर परिश्रम ही सफलता की कड़ी है.
अपने अंदर के *आकाश और जीवन* को विराट व बुलंद बनाने के लिए बहुत सारे अवरोध ,संकट ,कंटक ,भेद भाव तुम्हारे पथ में आएंगे पर अपना *आत्म-विश्वास* व अपने *आत्मीय परिजनों व गुरुजनों* पर विश्वास सदा बनाये रखना. *सही निर्णय को संकल्पित करना* कार्यान्वित करने को सभी सहयोग को तत्पर रहेंगे.
नवीन मार्ग में सशक्त कदम बढ़ाने के पहले गंभीर सोच-विचार ही मार्ग प्रशस्त करता है न.
*हाँ गलत व सही की निश्चित परख करनी होगी.*
नए सपने चुनकर नयी उडान भरनी ही होती है पर समझदार बनकर ,प्रेम-प्यार,सहयोग- सहकारिता, धीरज की निर्मल भावना से ही जीत होती है *असंयमित* होकर कभी भी नहीं. *सदैव खुश व सफल रहोगी.*
अपनी क्षमताओं में वृद्धि करके अपनी महत्वाकांषाओं ,आदर्शों ,उद्देश्य को पूरा करो.
याद रहे ,अच्छी सोच लेकर कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती .
*हमारी ही मुठ्ठी में है आकाश सारा ,जब भी खुलेगी तो चमकेगा तारा.*
प्रिय बेटी को स्नेहिल आशीष अपना मार्ग प्रशस्त-उत्कर्ष करो.
अलका मधुसूदन पटेल
मेरी बेटी १२ साल की है इसलिए जबाब देने मे मुझे ३ साल इंतज़ार करना होगा
आप के सवाल का जवाब देने के लिए मुझे शादी करनी पड़गी ,
यानि मेरी लिए परेशानी ,
फिर १६ - १७ साल का इंतजार ,
जब हो कर
मै आप के सवाल का जवाब देने के लिए तैयार .....:)amitjain
न मै बाप हूँ न ही मेरी कोई बेटी है
मेरी उम्र मात्र २१ वर्ष है .एक बहन समझ ke
एक छोटी सी बात रख रहा हूँ=======
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आकाश khula है tere लिए
जमीं क़दमों tale है तेरे लिए
चाहो तो हाथ उठा के आसमान छू लो
चाहो तो धरती की दूरियां माप लो
तुम आजाद हो मनचाहा करने को
बस जो भी करना
अपने और दूजे के हित में करना
की वक़्त और किस्मत तुझे पुकार रही है
इतिहास तुझे ललकार रही है
तेरे ही दम से ये दुनिया है
की तेरे लिए ही दुनिया है.
की अब तुम जाग जाओ
की अब तुम जाग जाओ.
बहुत-बहुत शुभ-आशीष
प्यार स्नेह और एक कप जोश-उम्मीद का प्यालa
’ वत्स ’ !
तुमने जो मौका दिया है एक पिता को सलाह देने का उसे मैन ना सिर्फ़ अपना बल्कि सभी पिताओन का सम्मान मानता हून .वरना मेरे सहित ना जाने कितने बाप इस सम्मान के अधिकारी नहीन हो सकते .
जो भी ’ पुरुश सत्तात्मक ’ व्यवस्था का समर्थन करे ,सहभागी बने ,सहकारी बने , वो चाहे किसी भी वर्ण ,जाति, धर्म, भाषा , प्रान्त ,देश ,काल का ’ व्यक्ति ’ हो , चाहे पुरुष हो चाहे नारी हो उससे लडना ही पडेगा . और ’यह’ बाप तब तुमसे उम्मीद भी करेगा इसकी .
तुमने ’विद्रोह’ की बात की है . मैन सिर्फ़ यह कहून्गा कि ...............
जो विवेक से गलत लगे उस हुक्म का प्रतिकार असम्म्मान नहीन होता .हर असम्मान विरोध नहीन होता , हर विरोध विद्रोह नहीन होता ......और हर विद्रोह गलत भी नहीन होता .
जिस समाज मे , जिस काल मे, जिस दुनियान मे तुमने जनम लिया है उसमे इन सब तरीकोन को आज्माना ही होगा .
लेकिन यह काम कितना मुश्किल होगा , खतर्नाक भी उसका अन्दाज़ा तुम्हेन ना दून तो भी अपने ’ पिता धर्म ’ के न पालन करने का अपराधी बनून्गा .
इसलिये सिर्फ़ इतिहास ही नहीन कहून्गा पढने के लिये, तुम्हेन हर ’ धर्म ’ और ’ पुरान ’ को भी पढना पडेगा ताकि इस ’ षडयन्त्र ’ को समझ सको . सज़ा भी जान लोगी इस विद्रोह की अलग अलग समय पर पायी गयी .साथ ही साथ इस ’विद्रोह’ की सफ़लता का अपना आकलन भी बता दून .
इतिहास के किसी भी मोड पर आज जितने मौके नहीन मिले किसी भी ’विद्रोही’ को . तुम्हे वह मौका है , तुम जैसी तमाम उन बेटियोन को मौका है . सम्भाव्नायेन सिर्फ़ ख्वाब रह जाने की ही नहीन रह गयी हैन , सच्चायी बन जाने की कगार पर भी हो सकती हैन . अब दुनियान इतनी दूर नहीन रह गयी है कि अपने आप को अकेला ही समझ लो . दुनियान मे बहुत सारी जगहोन पर इमान्दार और न्याय मानने वाले यह लडायी लड भी रहे हैन और साथ भी आ रहे हैन .
यह चुनौती भी है और हर एक चुनौती एक अवसर भी होती है . इसे एक अवसर की तरह लो भी .
आज बस इतना ही . जितना बडा ’ प्रश्न ’ तुमने पूछा है उन्हेन उतने शब्दोन की जरूरत नहीन थी .लेकिन उसके उत्तर मे घेरोन के दायरे बडी दूर तक जाते हैन .
उनको तुम्हेन खुद जानना होगा और खुद ही लान्घना भी होगा .
अन्त मे यही कहून्गा " आत्म दीपो भव "
यह बात भी बताना चाहुन्गा कि उम्र के जिस मोड पर तुम हो , उम्र के उस मोड पर यही बात मैन अपनी बेटियोन को ना बता सका . क्योन्कि ’तब’ मैन खुद ’गलत’ था . और वे ’सही’ . भाग्य मेरा यह है कि उन्होन ने विद्रोह किया और मेरे ’ गलत ’ को ’ सही ’ नहीन होने दिया .
तुम्हेन मेरे स्नेह तथा आशीश !
एक गीत है
ससुराल चली तू आजरी घर को वैकुण्ठ बनाना
तू है मेरी पुत्री प्यारी,
पढ़ी लिखी अति ही सुकुमारी
आँखों की पुतली सी प्यारी
खेना धर्म जहाज री
घर भर को शीश झुकाना
ससुराल चली तू आज री ......
पिता ने आशीष दिया है
माता ने तुझे विदा किया है
करो सुहागन राज री
प्रिय पति से प्रेम बढाना
ससुराल चली तू आज री ............
यह गीत भले ही ससुराल जाने वाली लडकी क लिए हो पर यह सीख हर उस लडकी क लिए है जो अभी १५ बरस
की है और नये संसार में कदम रख रही है बहार की दुनिया उसके लिए ससुराल की तरह ही है जहा अपने व्यवहार से अपनी मर्यादाओ में रहकर सबको अपना बनाना है और और शीर्ष पर पहुंचना है चाहे वः परिवार हो या फ़िर घर क बाहर का कार्य क्षेत्र |
बेटी अभी तुमने अभी अभी तुम्हें लड़कपन से योवन की और कदम रखा है ,अपनी माँ को हर कदम पर साथी बनाना ,पिता की अनुशासन की धुप से नही घबराना और अपने गुरु ,शिक्षक क बताये रस्ते पर निरंतर चलते रहना तुम जरुर अपनी मंजिल पाओगी।
हमारी ढेर सारी शुभकामनाये .और जब भी मन उदास गो हम तुम्हारे पास होगे |
shobhana chourey