ना जाने कितनी बार डाइवोर्स पर बहस होती रही हैं लेकिन भारतीये समाज इसको एक सहज सम्भावना मानने से इंकार करता रहा हैं।
हमेशा बच्चो का हवाला दे कर साथ रहने के समझौते को करते रहना ही शादी में बने रहने के लिये जरुरी समझ लिया जाता हैं।
कल एक नाबालिग बच्चे ने , जिसने अपने ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की निर्मम हत्या की हैं जुविनाइल बोर्ड को अपनी अन्य बातो के अलावा ये भी कहा की उसके घर का माहौल अच्छा नहीं हैं। माँ पिता की निरंतर लड़ाई के कारण उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता।
क्या सही हैं इस केस में क्या नहीं लेकिन कहीं ना कहीं समाज के पुराने नियमो को या तो सख्ती से लागू करने का समय हैं या उन्हे बदलने का समय हैं।
नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं। उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या हैं।
हमेशा बच्चो का हवाला दे कर साथ रहने के समझौते को करते रहना ही शादी में बने रहने के लिये जरुरी समझ लिया जाता हैं।
कल एक नाबालिग बच्चे ने , जिसने अपने ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की निर्मम हत्या की हैं जुविनाइल बोर्ड को अपनी अन्य बातो के अलावा ये भी कहा की उसके घर का माहौल अच्छा नहीं हैं। माँ पिता की निरंतर लड़ाई के कारण उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता।
क्या सही हैं इस केस में क्या नहीं लेकिन कहीं ना कहीं समाज के पुराने नियमो को या तो सख्ती से लागू करने का समय हैं या उन्हे बदलने का समय हैं।
नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं। उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या हैं।
कहीं ना कहीं समाज के पुराने नियमों को या तो सख्ती से लागू करने का समय है या उन्हें बदलने का समय है।
ReplyDeleteसाथ ही यह व्यक्तिगत रूप से किसी की मनोवृत्ति का मामला है | हर घर में आदर्श माहौल नहीं होता | पर हर बच्चा ऐसा दुस्साहस तो नहीं करता |
हर बच्चा ऐसा दुस्साहस तो नहीं करता sahii kehaa par naabalig kaa crime rate badh rahaan haen
ReplyDeletethanks
मुझे इस बात की शिकायत सदा ही रही है कि लोग स्पष्ट नहीं होते सोच में। आप जो हैं,वहाँ आपके क्या कर्तब्य हैं,यह नहीं सोच पाते। जैसे कि यदि आप विद्यार्थी हैं,तो आपका कर्तब्य है कि आप विद्यार्थी जीवन जियें,न कि एक गृहस्थ का जीवन। इसी तरह यदि आप गृहस्थ हैं,माता पिता भी हैं,तो आपका कर्तब्य है कि उसी अनुसार गरिमामयी जीवन जियें। बच्चे अपने आप उन मूल्यों को वहन करने लगेंगे जिन्हें आपने अपने जीवन में अपनाया है। फिर यूँ पारिवारिक विघटन,तनाव मानसिक विचलन आदि आदि का कोई स्थान ही नहीं बचेगा।
ReplyDeleteपति पत्नी का तनावपूर्ण सम्बन्ध बच्चों का पूरा जीवन ही नष्ट भ्रष्ट कर देता है,यह ध्रुव सत्य माता पिता बने स्त्री पुरुष बिल्कुल नहीं सोच पाते।
जबतक हम न समहलें ऐसी ही दुःखद दुर्घटनाओं से दो चार होने को अभिशप्त रहेंगे।
गरिमामयी जीवन जियें yahii log bhul gaye haen
ReplyDeleteकई बार लगता है कि जब बच्चे के नाम पर साथ रहने के लिए कहा जाता है तो लोगो को ये क्यों नहीं दिखता की माता पिता के झगड़े से बच्चे पर ही गलत असर पड़ रहा है |
ReplyDeleteनई पीढ़ी के दिशा हीन होने में काफ़ी हद तक हम भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि हमारा ही बनाया “product” है. पुख़्ता तैयारी के बिना ही हम उन्हें परिवार बनाने और उसे बढ़ाने की ओर धकेल देते हैं , इसी तरह यह “system” कमज़ोर जड़ों के साथ दिशाहीन सा फलता फूलता रहता है और हम समझ नहीं पाते कि कहाँ चूक हो रही है. जहाँ समझदारी के साथ परिवार रूप लेता है वहाँ जड़ें मज़बूत होती हैं. नई पीढ़ी घर परिवार के दायरे से निकल कर भी बहुत कुछ सीखती और सिखाती है.
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ReplyDeleteनई पीढ़ी के दिशा हीन होने में काफ़ी हद तक हम भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि हमारा ही बनाया “product” है. पुख़्ता तैयारी के बिना ही हम उन्हें परिवार बनाने और उसे बढ़ाने की ओर धकेल देते हैं , इसी तरह यह “system” कमज़ोर जड़ों के साथ दिशाहीन सा फलता फूलता रहता है और हम समझ नहीं पाते कि कहाँ चूक हो रही है. जहाँ समझदारी के साथ परिवार रूप लेता है वहाँ जड़ें मज़बूत होती हैं. बहुत सुंदर