किसी भी हादसे के बाद तमाम तरह के विचार , मंथन पढ़ने को मिलते हैं। रेप या मोलेस्टेशन के बाद भी यही होता हैं।
कुछ महिला और पुरुष इस समय एक ही सुर में लड़कियों के कपड़े और उनके रहन सेहन को जिम्मेदार मानते हैं और नसीहत देते हैं।
कुछ पुरुष मखोल की मुद्रा में व्यंग करते हैं
कुछ पुरुष सीरियस होकर औरत के नंगे नाच पर पोस्ट देते हैं और भारतीये संस्कृति के पतन के लिये विलाप करते हैं
वहीं कुछ पुरुष इस सब के विरोध में लिखते हैं नॉट आल मेन का नारा देते हैं
और स्त्रियां कोख से पुत्री के अन्याय से ले कर पूरी जिंदगी तक के अन्याय पर लिखती हैं
यानी सब कहीं ना कहीं इस सब से परेशान तो जरूर हैं।
मुझे लड़कियों को सबक की तरह सही समय पर आना , सही कपडे पहनना इत्यादि नसीहत भरी पोस्ट से बड़ी चिढ़ होती हैं क्योंकि इन सब में दोषी को नहीं जिसके साथ दोष हुआ उसको सजा की बात लगती हैं।
पर मुझे ये काउंसलिंग जब स्त्रियां लड़कियों की करती हैं तो कम बुरा लगता हैं क्योंकि हर के स्त्री कहीं ना कहीं कभी ना कभी बचपन से ले कर मरने तक में इस प्रकार के दुर्व्यवहार से गुजरी हैं , बस कम ज्यादा की बात होती हैं। पीढ़ी आती हैं जाती हैं बस समस्या वहीँ की वहीँ रहती हैं। इस लिये बिना अपनी पीड़ा को बताये नारी दूसरी नारी को समझाती हैं की बेटी देर से मत आओ , तन को ढाँक कर रखो , दूरी बना कर रखो। नारी जानती हैं नारी शरीर को किस पीड़ा से निकलना होता हैं अनिच्छित स्थिति में और वो दूसरी नारी को काउन्सिल करना चाहती हैं। बहुत बार हम इन स्त्रियों को mysogynist कह देते हैं , ये कुछ वैसा ही हैं जैसे नारी अधिकारों की बात करने वाली नारी को feminist कहना। दोनों ही स्थिति में नारी की छवि को negative बना दिया जाता हैं।
नारी , नारी को काउंसिल कर रही हैं , कंडीशन कर रही हैं गलत कर रही हैं , बदलाव आ रहा हैं नारी की सोच में और भी आएगा , दूर नहीं हैं वो समय जब आज के जनरेशन यानी २० वर्ष - २५ वर्ष की लड़की अपनी लड़की को पिस्तौल का लाइसेंस दिलवा देगी और कानून भी अपनी हिफाज़त में बेनिफिट ऑफ़ डाउट देगा।
लेकिन पुरुषो का क्या औचित्य हैं लड़कियों को काउन्सिल करने का . क्यों नहीं वो पुरुषो की काउंसिलिंग करते हैं , क्यों नहीं वो पुरुषो के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर पर बात करना चाहते हैं , क्यों नहीं वो आपस में डिसकस करना चाहते हैं की जब बरमूडा पहने टॉप लेस पुरुष को , सड़क के किनारे खड़े होकर अपने को हल्का करते पुरुष देख कर लड़कियां उनको रेप या मोलेस्ट नहीं करती हैं तो क्यों पुरुष क्यों करता हैं।
क्यों नहीं पुरुष को पुरुष द्वारा कॉउंसिल किया जाता हैं की अपनी नीड्स को कैसे कण्ट्रोल किया जाए। हर पिता अपनी बेटी को ले कर किसी पुरुष से क्यों डरा रहता हैं।
सोचिये http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/08/segmentation-of-women.html
सबसे ज्यादा जरुरत आज इसी की है कि पिता अपने पुत्र को समझाये , किन्तु ये न कभी हुआ न कभी होगा । पिता अपने आप को बेटे का मित्र कहते हुए शराब सिगरेट तो दे देते है हर तरीके की बात कर लेते है किन्तु ये सीख देने जरुरत नहीं समझते की स्त्री सम्मान करो और इनकार को अपने ईगो पर न लो , क्योकि वो ये काम स्वयं ही नहीं करते है । जब पुत्र देखते है की घर में माँ का वो सम्मान नहीं है जो पिता का है या माँ के ना का कोई मतलब ही नहीं है तो वो भी वही सीखते है । जरुरत घर के माहौल को बदलने की है , आगे आने वाली पीढ़ी खुद ही सुधर और समझ जायेगी ।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आज घंटों बैठ कर लैपटॉप को दुरुस्त किया और पहली टिप्पणी यहाँ देने पहुँची...मेरे विचार में माता-पिता और बच्चे (बेटा या बेटी) बेझिझक होकर सभी समस्याओं पर बात करें,,, स्वस्थ माहौल में स्वस्थ बातचीत होगी तो ही स्वस्थ समाज की नींव पुख़्ता होगी...
ReplyDeleteमनीषा बापना जी एक असाधारण सामाजिक कार्यकर्ता है जो आम जनता के लिए नारी सशक्तिकरण के आधार पर निर्भरता से काम कर रही है और उन्हें प्रत्येक कल्पनीय प्रस्ताव सहायता प्रदान करती है। नारी सशक्तिकरण
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