कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये
कुछ दिन हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी से इस लिये डाइवोर्स लेने की सहमति दे दी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ये माना की पत्नी का पति से उसके वृद्ध माता पिता से अलग होकर रहने का आग्रह करना गलत हैं। कोर्ट ने ये माना की अगर बेटा अपने वृद्ध माता पिता के साथ रहना चाहता हैं तो पत्नी को भी वही रहना होगा { अगर को ख़ास वजह नहीं हो तो अलग होने की } क्योंकि ये एक स्थापित सत्य हैं की पत्नी को अपने मायके से विवाह के बाद अपने पति के घर रहना होता हैं। पति को उसके माता पिता से अलग होने के लिये ज़िद करना मानसिक कलह और मानसिक प्रतारणा हुआ और इसके आधार पर डाइवोर्स दिया जा सकता हैं
http://www.firstpost.com/india/restricting-son-to-fulfil-duties-to-aged-parents-a-valid-ground-for-divorce-sc-3040124.html
दूसरा फैसला आया हैं जिस में अब डोमेस्टिक वोइलेंस का केस सास अपनी बहु और नाबालिग पोते पोती पर लगा सकती हैं। कोर्ट ने ये माना हैं की डोमेस्टिक वोइलेंस बहु भी करती हैं पति पर दबाव बनाने के लिये। अभी तक केवल बहु का अधिकार था की वो अपने पति और परिवार की स्त्रियों पर जो की कोर्ट के अनुसार एक तरफ़ा था। इसके अलावा "एडल्ट मेल " का कोर्ट के हिसाब से कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि डोमेस्टिक वोइलेंस ना बालिग बच्चे भी करते हैं
http://www.hindustantimes.com/india-news/daughter-in-laws-minors-can-be-tried-for-domestic-violence-says-sc/story-xyyfs2PUJRLwmCe4lte6sO.html
कुछ दिन हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी से इस लिये डाइवोर्स लेने की सहमति दे दी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ये माना की पत्नी का पति से उसके वृद्ध माता पिता से अलग होकर रहने का आग्रह करना गलत हैं। कोर्ट ने ये माना की अगर बेटा अपने वृद्ध माता पिता के साथ रहना चाहता हैं तो पत्नी को भी वही रहना होगा { अगर को ख़ास वजह नहीं हो तो अलग होने की } क्योंकि ये एक स्थापित सत्य हैं की पत्नी को अपने मायके से विवाह के बाद अपने पति के घर रहना होता हैं। पति को उसके माता पिता से अलग होने के लिये ज़िद करना मानसिक कलह और मानसिक प्रतारणा हुआ और इसके आधार पर डाइवोर्स दिया जा सकता हैं
http://www.firstpost.com/india/restricting-son-to-fulfil-duties-to-aged-parents-a-valid-ground-for-divorce-sc-3040124.html
दूसरा फैसला आया हैं जिस में अब डोमेस्टिक वोइलेंस का केस सास अपनी बहु और नाबालिग पोते पोती पर लगा सकती हैं। कोर्ट ने ये माना हैं की डोमेस्टिक वोइलेंस बहु भी करती हैं पति पर दबाव बनाने के लिये। अभी तक केवल बहु का अधिकार था की वो अपने पति और परिवार की स्त्रियों पर जो की कोर्ट के अनुसार एक तरफ़ा था। इसके अलावा "एडल्ट मेल " का कोर्ट के हिसाब से कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि डोमेस्टिक वोइलेंस ना बालिग बच्चे भी करते हैं
http://www.hindustantimes.com/india-news/daughter-in-laws-minors-can-be-tried-for-domestic-violence-says-sc/story-xyyfs2PUJRLwmCe4lte6sO.html
घरेलु हिंसा वाली बात सहमत पीड़ित में कोई भी हो सकता है ।
ReplyDeleteतलाक वाले मामले को आज सुबह बी बी सी पर पढ़ा उस में बहुत कुछ और भी है जहाँ तक मुझे समझ आया आर्थिक रूप से समर्थ होने पर सुप्रीम कोर्ट ने माता पिता से अलग रहने की सहमति दी है हाई कोर्ट ने नहीं दी थी और केस में दो और पहलुओ पर भी तलाक मंजूर किया है ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "समय की बर्बादी या सदुपयोग - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteकानून के दुरउपयोग भी रुकने जरूरी हैं ।
ReplyDeleteबदलाव अपेक्षित भी हैं।
ReplyDeleteRights sbke pass hone cahiye...
ReplyDelete