कुछ दिन पहले दीपिका पादुकोण ने एक वीडियो में " माय चॉइस " की बात कहीं। उनकी कहीं बातो के बहुत से मतलब निकाले गए , पक्ष विपक्ष मे बहुत कुछ लिखा गया।
लोगो ने वुमन एम्पावरमेंट के विरोध में बहुत लिखा पर लिखने वाले ये भूल गए की वुमन एम्पावरमेंट का सीधा सरल मतलब हैं आर्थिक रूप से सक्षमता।
दीपिका आर्थिक रूप से सक्षम हैं इस लिये "माय चॉइस " की बात कर सकती हैं दीपिका तो फिर भी एक सेलेब्रिटी हैं घरो में काम करके अपने को आर्थिक रूप से सक्षम करने वाली महिलाए भी आज कल " माय चॉइस " की सीधी वकालत करती हैं।
"माय चॉइस " यानी अपनी बात , अपनी पसंद , अपनी ना पसंद कहने / करने का सीधा अधिकार।
किसी भी महिला की "माय चॉइस " तभी मान्य हो पाती हैं जब वो अपने दम पर जिंदगी को जीने का माद्दा रखती हो।
दीपिका पादुकोण ने अपने को आज जिस मुकाम पर स्थापित किया हैं वो उनकी अपनी मेहनत हैं। आज आर्थिक रूप से वो सक्षम हैं। इस दौरान उन्होने ना जाने क्या क्या नहीं सुना कभी अपने रिलेशनशिप को लेकर तो कभी अखबारों में अपने वक्ष की तस्वीरो को लेकर। क्या इस सब का जवाब देना जरुरी नहीं हैं ? सो उन्होने जवाब दिया " माय चॉइस " .
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८ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता हैं। आज कल जगह जगह दुकानो पर सेल इत्यादि लगा दी जाती हैं और महिला को प्रोत्साहित किया जाता हैं की वो आ कर सामान ख़रीदे खुद। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वास्तविक वर्किंग वुमन डे था। इस दिन आर्थिक रूप से सक्षम महिला अपनी आर्थिक आज़ादी का जश्न मानती हैं। और लोगो ने फिर इसको सुन्दर महिला , खूबसूरत महिला इत्यादि को बधाई देने का दिन बना दिया। लोग भूल गए की इस दिन उन महिला को बधाई देनी चाहिये जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं।
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आज कल परिवारो में कलह का कारण हैं नारी सशक्तिकरण या वुमन एम्पवेर्मेंट क्युकी इसको स्त्री पुरुष की समानता का परिचायक मान कर आपसी लड़ाई का मुद्दा बनाया जाता हैं। एक पत्नी का घर में रह कर घर संभालना और एक महिला का बाहर जा कर नौकरी करना दोनों में बहुत अंतर हैं। बात घर के काम के छोटे बड़े या नौकरी करना बड़ी बात की हैं ही नहीं बात हैं की अगर आप समानता की बात करते हैं तो सबसे पहले आर्थिक रूप से सक्षम हो कर ही समानता की बात जरुरी हैं।
जब तक महिला आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती हैं तब तक उसको " माय चॉइस " मिल ही नहीं पाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अगर आप अपने पति से पैसा लेकर खरीदारी कर रही हैं तो आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का अर्थ ही नहीं जानती हैं। ये तो आप करवा चौथ पर भी करती हैं और बाकी दिन भी करती हैं फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और बाकी दिनों में क्या अंतर हुआ ज़रा सोचिये।
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नर और नारी दोनों आज़ाद हैं , बराबर हैं इस लिये उस मुद्दे पर बार बार बहस करना गलत हैं। दोनों को तरक्की के समान अधिकार मिले , पढ़ाई के समान अधिकार हो , रोजगार के समान अधिकार हो , समान काम के एवज में समान तनखा हो बात इन सब मुद्दो पर होनी चाहिये।
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नारी शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं ऐसा लोग मानते हैं क्यों नहीं होगी क्युकी उसको परवरिश ही ऐसी मिलती हैं की वो कमजोर रहे। घर में पनपने वाला पौधा और खुली हवा में पनपने वाले पौधे मे अंतर होता ही हैं। जिस दिन एक लड़की को वही परवरिश मिलेगी जो एक लड़के को मिलती हैं तो ताकत भी खुद बा खुद आ जाएगी।
लोगो ने वुमन एम्पावरमेंट के विरोध में बहुत लिखा पर लिखने वाले ये भूल गए की वुमन एम्पावरमेंट का सीधा सरल मतलब हैं आर्थिक रूप से सक्षमता।
दीपिका आर्थिक रूप से सक्षम हैं इस लिये "माय चॉइस " की बात कर सकती हैं दीपिका तो फिर भी एक सेलेब्रिटी हैं घरो में काम करके अपने को आर्थिक रूप से सक्षम करने वाली महिलाए भी आज कल " माय चॉइस " की सीधी वकालत करती हैं।
"माय चॉइस " यानी अपनी बात , अपनी पसंद , अपनी ना पसंद कहने / करने का सीधा अधिकार।
किसी भी महिला की "माय चॉइस " तभी मान्य हो पाती हैं जब वो अपने दम पर जिंदगी को जीने का माद्दा रखती हो।
दीपिका पादुकोण ने अपने को आज जिस मुकाम पर स्थापित किया हैं वो उनकी अपनी मेहनत हैं। आज आर्थिक रूप से वो सक्षम हैं। इस दौरान उन्होने ना जाने क्या क्या नहीं सुना कभी अपने रिलेशनशिप को लेकर तो कभी अखबारों में अपने वक्ष की तस्वीरो को लेकर। क्या इस सब का जवाब देना जरुरी नहीं हैं ? सो उन्होने जवाब दिया " माय चॉइस " .
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८ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता हैं। आज कल जगह जगह दुकानो पर सेल इत्यादि लगा दी जाती हैं और महिला को प्रोत्साहित किया जाता हैं की वो आ कर सामान ख़रीदे खुद। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वास्तविक वर्किंग वुमन डे था। इस दिन आर्थिक रूप से सक्षम महिला अपनी आर्थिक आज़ादी का जश्न मानती हैं। और लोगो ने फिर इसको सुन्दर महिला , खूबसूरत महिला इत्यादि को बधाई देने का दिन बना दिया। लोग भूल गए की इस दिन उन महिला को बधाई देनी चाहिये जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं।
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आज कल परिवारो में कलह का कारण हैं नारी सशक्तिकरण या वुमन एम्पवेर्मेंट क्युकी इसको स्त्री पुरुष की समानता का परिचायक मान कर आपसी लड़ाई का मुद्दा बनाया जाता हैं। एक पत्नी का घर में रह कर घर संभालना और एक महिला का बाहर जा कर नौकरी करना दोनों में बहुत अंतर हैं। बात घर के काम के छोटे बड़े या नौकरी करना बड़ी बात की हैं ही नहीं बात हैं की अगर आप समानता की बात करते हैं तो सबसे पहले आर्थिक रूप से सक्षम हो कर ही समानता की बात जरुरी हैं।
जब तक महिला आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती हैं तब तक उसको " माय चॉइस " मिल ही नहीं पाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अगर आप अपने पति से पैसा लेकर खरीदारी कर रही हैं तो आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का अर्थ ही नहीं जानती हैं। ये तो आप करवा चौथ पर भी करती हैं और बाकी दिन भी करती हैं फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और बाकी दिनों में क्या अंतर हुआ ज़रा सोचिये।
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नर और नारी दोनों आज़ाद हैं , बराबर हैं इस लिये उस मुद्दे पर बार बार बहस करना गलत हैं। दोनों को तरक्की के समान अधिकार मिले , पढ़ाई के समान अधिकार हो , रोजगार के समान अधिकार हो , समान काम के एवज में समान तनखा हो बात इन सब मुद्दो पर होनी चाहिये।
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नारी शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं ऐसा लोग मानते हैं क्यों नहीं होगी क्युकी उसको परवरिश ही ऐसी मिलती हैं की वो कमजोर रहे। घर में पनपने वाला पौधा और खुली हवा में पनपने वाले पौधे मे अंतर होता ही हैं। जिस दिन एक लड़की को वही परवरिश मिलेगी जो एक लड़के को मिलती हैं तो ताकत भी खुद बा खुद आ जाएगी।
True lines!!
ReplyDeleteजब तक माँ आत्मनिर्भर नहीं होगी वह बेटियों के लिए वकालत कैसे कर सकती है ?और कहीं कहीं तो आत्मनिभर माँ को भी बेटियों के विषय में निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता है। अपने को पहले मजबूत बनाइये और फिर बेटियों के साथ खड़े होकर उनका सम्बल बनना होगा।
ReplyDeleteशुभारंभ ।Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteफुल कितना भी ताकत वर हो वह महज उलझाने के दांव पर खुद मसल कर बिखर जाता है। और महिला सशक्ती का जितने लोगों ने बल दिया ए वे लोग हैं जो मौके की तलाश में हैं कि आज की महिला चार दिवारी से कब आए,और उनकी सोच यह है कि मेरे जैसी सोच वाले इस मौके फायदा उठाते हैं। आज के समय से पहले इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने जब जब खुद को बराबर समझा और उनको ऐसा लगता है कि उन्हें कम आंका जा रहा है तो वहां पर द्वंद्व का जन्म हुआ। हमारे शास्त्रों में कहीं भी दोएम या निम्न स्तर पर स्त्रियों को नहीं रखा। ये तो हिन्दूस्तान मे मुगलों के अत्याचार के बाद (शायद आप लोगों ने सही इतिहास को नहीं पढ़ा) संपूर्ण देव संस्कृत को मानने वाले महिलाओं की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया,यदि वे ऐसा नहीं किया होता तो -जैसे आयसिस(ISIS)आज महिलाओं के साथ कर रहा -शायद ए कल्चर आप लोगो पसंद है -यही मुगल उस वक्त कर रहे थे। तब उस वक़्त के साामाज के विचारकों ने स्त्रियों की मान सम्मान बरकरार रखने के लिए -चार दिवारी मे रखा। पर आज भी शैतानी ताकतें उसी तरह की ही।आप चाहते /चाहती हैं कि आपके साथ भी ऐसा ही है। तो फिर आपको स्वतंत्र रहने का पूरा अधिकार है। मैं आपको अंत मे ए भी बता हमारी संस्कृति मे पुरुषों से भी अधिक अधिकार महिलाओं को प्राप्त थे।लेकिन जंगलीपन आज की महिलाओं को ज्यादा पसंद है।जिसका पती सीधा सादा उसको महिलाएं चुिया/बेवकूफ समझती हैं। पुराण का एक श्लोक शायद आप जैसी महिलाओं के दिमाग की बत्ती जला सके ये मेरी कोशिश है - यत्र यत्र स्त्रियां पुज्यंते्।तत्र तत्र देवता रमंते।।
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