जिस दिन लड़कियां सहने की जगह मारने को सही मानेगी , डरने की जगह डराने
को सही मानेगी उस दिन समाज उन्हे "पुरुष जैसा " " स्त्री जैसी नहीं "की पदवी देता हैं। पुरुष जैसा यानी अमानुषिक व्यवहार।
रोहतक की दोनों बेटियां कहीं भी अन्याय सहन नहीं करती हैं वो खुल कर कहती हैं हम अपने साथ ये अमानुषिक व्यवहार नहीं बर्दाश्त करेगे। हम मारेगे अगर कोई बदतमीज़ी करेगा। पर छेड़ना , घूरना , छूना , मोलेस्ट करना , रेप करना तो पुरुष के वो अधिकार हैं जो समाज ने उसको " स्त्री का पूरक " बनाते समय दिये
हैं। और यहां तो ऊँची जाति के सुपुत्रो की बात हैं सो गलत तो लड़कियां ही हैं।
सच सामने हैं बस उस सच को बर्दाश्त करने की ताकत समाज में नहीं हैं
रोहतक की दोनों बेटियां कहीं भी अन्याय सहन नहीं करती हैं वो खुल कर कहती हैं हम अपने साथ ये अमानुषिक व्यवहार नहीं बर्दाश्त करेगे। हम मारेगे अगर कोई बदतमीज़ी करेगा। पर छेड़ना , घूरना , छूना , मोलेस्ट करना , रेप करना तो पुरुष के वो अधिकार हैं जो समाज ने उसको " स्त्री का पूरक " बनाते समय दिये
हैं। और यहां तो ऊँची जाति के सुपुत्रो की बात हैं सो गलत तो लड़कियां ही हैं।
सच सामने हैं बस उस सच को बर्दाश्त करने की ताकत समाज में नहीं हैं
मुलायम सिंह यादव ने कहा था " लड़को से गलती हो जाती हैं " और उन के जिले मैनपुरि के शिव यादव निरंतर टैक्सी ड्राइवर बन कर ये गलती कर रहे हैं और कानून से बच रहे हैं। उनको
रेपिस्ट दरिंदा कह कर समाज अपने कर्तव्य की इत्ति कर लेता हैं। टी वी पर
लम्बी बहसों में पोलिटिकल पार्टी एक दूसरे पर उसी तरह इल्जाम लगाती हैं
जैसे पुलिस चौकी पर ऑफ आई आर दर्ज करते समय इलाका निश्चित किया जाता हैं।
रचना जी इसे पीटना कहना ही गलत है। उन लड़कियों ने किसी को नहीं पीटा। उन्होने अपनी आत्मरक्षा की और आत्मरक्षा में तो किसी दूसरे की जान भी लेनी पड़े तो भी गलत नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति का पहला कर्तव्य अपना बचाव व विकास करना है। जिस समाज के सदस्य भरी हुई बस में उन लड़कियों को सुरक्षित माहोल नहीं दे पाये, उस समाज की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। भरी हुई बस में उन्हें अपना बचाव अपने आप करने की आवश्यकता पड़ी, यह तथाकथित समाज के ठेकेदारों को शर्माने की बात है। यदि सवारी उन शरारती लड़कों को डांट-डपट कर अलग कर देतीं तो यह बखेड़ा ही खड़ा क्यों होता। समाज की संवेदनशून्यता ही इस प्रकार की सम्स्याओं के लिये जिम्मेदार है। विचार करने की बात है कि हम लोगों को सामाजिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक कैसे करें!
ReplyDeleteजब लड़कियां पीटेगी बदलाव अब तभी आएगा वरना नहीं आएगा..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने ..मारना ही क्यों! मेरा तो मत है कि ऐसे दरिंदों को तो सीधे फांसी से कम सजा देनी ही नहीं चाहिए ...
I agree... lekin dekho ladki thodi si himmat dikhaye nahi ki kaise saari duniya defend karne lag jati hai "bechare" ladko ko.. :-/ Clear hai ki hume khud hi turant aur mazbooti se apna virodh darz karwana hoga.. sabko aisa roz karna chahiye.. shuru se seekhna chahiye.. badlaav ayega hi.
ReplyDeleteउत्तम रचना
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