@यह मान बैठना कि व्रत /उपवास करने वाली सभी विवाहित स्त्रियाँ बेड़ियों में जकड़ी है , एकतरफा सोच है , पूर्वाग्रह है।
मेरा एक नियम हैं की किसी भी तीज त्यौहार पर चाहे वो किसी भी धर्म या जेंडर से जुड़ा ना हो , जिस दिन वो त्यौहार होता हैं उस दिन मै उस पर कभी कोई बहस नहीं करती क्युकी "आस्था " और " विश्वास " से बड़ा कुछ नहीं होता।
आप की इस पोस्ट पर कमेन्ट इस लिये दे रही हूँ क्युकी कई बार कोई भी जो किसी बात पर बात करता हैं ख़ास कर अगर वो धर्म , मान्यता इत्यादि से जुड़ी होती हैं तो लोग उसको प्रगति शील , फेमिनिस्ट का तमगा दे ही देते हैं ऐसा क्यूँ हैं ?? पूर्वाग्रह तो ये भी हैं।
गीता में एक जगह कहा गया हैं अँधा अनुकरण धर्म नहीं अधर्म हैं धर्म मान्यता में नहीं होता हैं मान्यता धर्म को प्रचारित करने के लिये बनती हैं
आप ने सही कहा हैं की साथ रहने के लिये तालमेल बैठाना /सामंजस्य /समझौता जरुरी हैं लेकिन किसी को महज कुछ ऐसा करना हो जो करना उसका अंतर्मन नहीं चाहता तो वो उस मान्यता का अंधा अनुकरण हैं , या वो एक डर हैं की समाज क्या कहेगा
समाज हम से हैं हम समाज से नहीं हैं , जीव हैं तो समाज की जरुरत हैं जीव ही नहीं होगा तो समाज भी नहीं होगा
करवा चौथ स्त्री की सहनशीलता का प्रमाण हैं उसके पति प्रेम का नहीं क्यूँ बहुत सी ऐसी सुहागिने भी हैं जो इस व्रत को केवल और केवल इस लिये रखती हैं क्युकी ना रख कर उनको तमाम सवाल के जवाब देने पड़ते हैं , और कुछ तो पति को गाली दे दे कर नहीं थकती पर वर्त भी रखती हैं
मेरे लिये जो रखती हैं या जो नहीं रखती हैं ये उनका पर्सनल मामला हैं , लेकिन ये परम्परा पुरुष को स्त्री से ऊपर के स्थान पर स्थापित करती हैं , स्त्री में एक डर बिठाती हैं की अगर पति नहीं होगा तो उसको सुहाग सिंगार नहीं मिलेगा
करवा चौथ विवाहित स्त्री के लिये नहीं होता हैं केवल सुहागिन के लिये होता हैं इस लिये इसका महत्व स्त्री से नहीं जुड़ा हैं अपितु उसके सुहागिन होने से जुड़ा हैं
बहुत सी विधवा स्त्री के लिये ये दिन एक दुःख भरा रहता हैं क्युकी उस दिन उसको निरंतर ये एहसास होता हैं की वो विधवा हैं
@विवाह या व्यवहार प्रेम /पसंद से हो या प्रायोजित !!
विवाह करना या न करना जब तक व्यक्तिगत निर्णय ना हो कर , पारिवारिक निर्णय , सामाजिक निर्णय , सही समय पर सही काम , इत्यादि से जुड़ा मुद्दा रहेगा तब तक विवाह का वर्गीकरण , प्रेम , प्रायोजित , इन्टर कास्ट , इन्टर रेलिजन होता रहेगा।
सहमत हूँ आपसे।आप जब खुद ही पुरुष को चने के झाड बल्कि खजूर के झाड पर चढ़ा देंगे तो वो आपको अपने से कमतर समझेगा ही।पहले यह तो तय होने दीजिए कि विवाह में पति पत्नी का स्थान बराबर है दोनों का हक बराबर है कोई किसी पर आश्रित नहीं है।कोई किसी पर अहसान नहीं कर रहा है।दोनों के व्यक्तित्व समान है।इतनी जागरुकता आ जाए उसके बाद यदि फिर भी कोई महिला ये व्रत वगैरह करना चाहे तो उसकी मर्जी।तब कोई क्या कर सकता है।
ReplyDeleteजहाँ तक करवा चौथ की बात है, ये भारत के अधिकतर हिस्सों में नहीं मनाया जाता है, हाँ ये आधुनिक भारत के समृद्ध इलाको में मनाया जाता है इसलिए इसकी चर्चा ज्यादा होती है. इस त्यौहार का व्यवसायीकरण भी बहुत हो रहा है जिसके वजह से भी इसका प्रचार प्रसार भी हाल के दिनों में बढ़ा है. ऐसे भी जो त्यौहार या पर्व भारत के गरीब लोग गरीब इलाकों में मनाते हैं उसके बारे में लोगों को कम जानकारी है. यह त्यौहार जिन जगहों में शुरु हुआ अगर उनका का हाल का इतिहास उठा कर देखे तो पता लगेगा की ये इलाके के तरफ से ही आक्रमणकारी बाहर से भारत में घुसे और यहाँ के लोगों को बहुत ही मार काट झेलना पड़ा.. इन इलाके के पुरुष दुश्मनों से लोहा लेते हुए मारे जाते थे और आक्रमणकारी उनकी स्त्रियों को उठा के ले जाते थे .. इन परिस्थितयों में पुरुषों की लम्बी आयु की कामना करना एक तरह से बहुत ही स्वाभाविक बात लगती है क्योंकि पुरुष ही बाहर जाकर जोखिम भरा काम करते थे / हैं..प्रकृति ( evolutionary process NOT the social conditioning ) ने पुरुष को जोखिम लेने वाला बनाया है चाहे हम hunter-gatherer युग की बात करे या आज के आधुनिक युग की ये पुरुष ही जो जान-जोखिम भरे कार्य करने को उपयुक्त माने जाते हैं या करते हैं - देश की सीमा की रक्षा करना हो , खदानों में काम करना हो, सीवर साफ़ करना हो , रेलवे ट्रैक की मरम्मत करना हो, समुन्द्र में मछली पकड़ना या फिर कोई और सारे दुनिया में किसी भी काल में इन तरह के खतरनाक काम के लिए पुरुष ही लगाये गए है. ये बहुत आश्चर्य की बात नहीं है की male mortality rate has been much higher than female mortality rate ...Women have historically lived much longer than men ... ये बात तो कतई नहीं है की इसे पुरुषों ने स्त्रियों पे लादा है .. हाँ ये हो सकता है की एक परंपरा के रूप में सैनिकों के स्त्रियों ने अपने सैनिक पति की दुआ सलामती के लिए ये व्रत रखना शुरू किया होगा जो बाद में चलकर एक त्यौहार का रूप ले लिया है...और आज जिनके पति बिलकुल ही निकम्मे है और जो एक चूहे से भी dar जाते हैं उनके लिए भी उनकी पत्नियाँ करवा चौथ का व्रत रखती है .....जहाँ तक विवाह की बात है ये कोई सामाजिक व्यवस्था नहीं है (जैसा की बहुत लोग समझते हैं) बल्कि ये मनुष्य की जैविक प्रवृति है evolutionary science के टर्म में pair - bonding कहते हैं. अगर ये सामाजिक संस्था होता तो शायद ये किसी समाज में पाया जाता और किसी में नहीं ...मनुष्य ने पहले परिवार बनाया फिर जाकर समाज बना, एक इंसान ही वो जीव है जो अपने दोनों जन्मदाता (माता और पिता ) के द्वारा पाला जाता है वो भी लम्बे समय तक ..और जब मनुष्य नामक जीव परिवार बनाकर अपने बच्चो को पालना शुरू किया तब जाकर ही उसका मष्तिष्क अपने निकटतम पूर्वज (बन्दर) से तीन गुना बड़ा हुआ और वो ही आज का बुद्धिमान जीव Homo sapiens (Latin: "wise man") कहलाया.. मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी को आज भी अपने माता पिता की उतनी ही जरूरत है जितने इसके शुरुआत में थी (शायद ज्यादा ही हो) विवाह (या pair-bonding) को सामाजिक संस्था मानना मेरे समझ से एक बुनियादी भूल है और करवा चौथ तो एक त्यौहार है जो इस बुनियादी बात तो रेखांकित करता है की पुरुष की जान और जिंदगी ज्यादा जोखिम से भरी रही है. .. जब स्त्रियों भी जान जोखिम भरे कामो में पुरुषो से आगे निकला जाएगी तो शायद पुरुष भी कर्वी चौथी जैसा व्रत अपने स्त्रियों के लिए करने लगे..हाँ एक सवाल मेरे मन में आ रहा है की पाषाण कालीन पुरुषो ने स्त्रियों से जोखिम भरे काम क्यों नहीं करवाए ???
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को ब्लॉग - चिठ्ठा में शामिल किया गया है, एक बार अवश्य पधारें। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteनई चिठ्ठी : चिठ्ठाकार वार्ता - 1 : लिखने से पढ़ने में रुचि बढ़ी है, घटनाओं को देखने का दृष्टिकोण वृहद हुआ है - प्रवीण पाण्डेय
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ये सारे व्रत उपवास हमारे पितृसत्ताक पध्दती की ही देन है। प्राकृतिक रूप से ही स्त्री भ्रूण पुरुष भ्रूण से ज्यादा ताकतवर होता है। परंतु हर भ्रूण पहले स्त्री रूप में ही शुरु होता है। पाषाणकालीन युग में तो पुरुष शिकार करते ते तो स्त्रियां भी फल फूल कंद मूल इकठ्ठा करती थीं। खेती का काम तो शायद स्त्रियों ने ही ईजाद किया पर बाद में अपने सत्ता पर आंच आती देख स्त्रियों को पुरु, के आधीन कर दिया गया।
ReplyDeleteपर ये अपने अपने श्रध्दा की बात है। जिसकी जैसी है। मेरे जानने में बहुत सी स्त्रियां भूख से ध्यान हटाने के लिेये मेटिनी शो देखने जाती हैं। ये कैसा व्रत है। हर प्रांत में इस प्रकार का कोई ना कोई व्रत होता ही है। महाराष्ट्र में हरतालिका व्रत होता है, गुजरात मे जया पार्वती व्रत होता है।