चरित्र जैसे शब्द का सबसे गहरा सम्बन्ध सिर्फ नारी क्यों माना जाता है
? हर आँख उठती है उसी की ओर क्यों ? शक सबसे अधिक उसी के चरित्र पर पर
किया जाता है. वह भी उससे कुछ भी पूछे बिना। वैसे तो सदियों से ये परंपरा
चली आ रही है कि नारी सीता की तरह अग्निपरीक्षा देने के लिए बाध्य होती है।
ऐसे कई मामले पढ़ चुकी हूँ , जिसमें सिर्फ संदेह की बिला पर औरतों को मार दिया जाता है क्योंकि उनके पति , पिता या भाई को उनके चरित्र पर संदेह हो जाता है या उनका कहीं प्रेम प्रसंग होता है जो उनके घर वालों को पसंद नहीं होता है और फिर दोनों को या फिर किसी एक को मौत घाट उतार दिया जाता है। इसका उन्हें पूरा हक होता है जैसे बेटी , बहन या पत्नी कोई जीते जागते इंसान न होकर उनकी जागीर हों , जिसे सांस लेने से लेकर बोलने , देखने और सोचने तक का अधिकार नहीं है। जरा सा कोई काम उनकी सोच या दायरे से बाहर हुआ नहीं कि--
--- उनके मुंह पर कालिख पुत जाती है
---वे समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते हैं।
---उनके खानदान के नाम पर बट्टा लगने लगता है.
---वे अपने पुरुष होने पर लानत मलानत भेजने लगते हैं।
वही लोग जो आज नारिओं के प्रगति की ओर बढ़ते कदम की दुहाई देते हैं और उसके बाद भी उन्हें अपना चरित्र प्रमाण-पत्र साथ लेकर चलना होता है क्योंकि ये एक ऐसा आक्षेप है जिसमें शिक्षा , पद , रुतबा या उपलब्धियां कोई भी ढाल नहीं बनता है। आप आगे बढ़ें लेकिन इस समाज के मन से। आपने आपातकाल में किसी से लिफ्ट ले ली , सहायता ली नहीं की संदेह के घेरे में कैद। इसमें साथ में कौन है , किस उम्र का है ? उससे क्या रिश्ता है ? ये भी कोई मतलब नहीं रखता है।
एक दिन अखबार में पढ़ा और उस घटना ने झकझोर दिया। एक २० वर्षीया पत्नी एक वर्ष पूर्व हुआ था , अपने कार्य स्थल से लौटने पर कोई सवारी न मिलने के कारण एक सहकर्मी के साथ साईकिल पर बैठ कर आ गयी और दूसरे ही दिन उसकी जली हुई लाश कमरे में बरामद हुई।
एक औरत को उसके पति ने सिर्फ शक के कारण उसके निचले हिस्से को लोहे से बने ऐसे किसी चीज से बंद करके उसमें ताला डाल रखा था और ताली अपने पास रखता था सिर्फ नित्य क्रिया के लिए खोलता था। जब वह कुछ दिन के लिए मायके गयी तो वह नित्य क्रिया के लिए भी मजबूर हो गयी और लोहे के कारण उसके उस हिस्से पर घाव हो गए थे। जब घर वालों को पता चला तो उसको कटवाया गया। उसके पति को पत्नी के चरित्र पर संदेह था। उस लोहे के बने यन्त्र को लौहसा के नाम से जाना जाता है यानि कि इसका प्रयोग और भी लोग करते रहे होंगे या हो सकता है कि कर भी रहे हों। (ये काल्पनिक बिलकुल भी नहीं है लेकिन अब मेरे पास इसका लिखित प्रमाण नहीं है )
अगर इसे हम पुरुष के मामले में देखें तो खुले आम एक पुरुष दो महिलाओं को पत्नी के तरह से रख कर रहता है। अभी हाल ही मैं ओम पुरी के मामले में पढ़ा कि उसकी पत्नी ने घरेलु हिंसा का मामला कोर्ट में दाखिल किया। ओम पुरी की दो पत्नियाँ है और वह दोनों के पास रहते है। यहाँ चरित्र का प्रमाण पत्र कैसे दिया जा सकता है ? एक वही क्यों ? कितने लोग एक पत्नी के रहते हुए दूसरी को पत्नी बना कर रह रहे होते हैं, लेकिन उनके चरित्र पर कोई उंगली नहीं उठा सकता क्योंकि वे समाज के सर्वेसर्वा जो है।
एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों और नामी गिरामी लोग तक एक पत्नी के रहते हुए ( बिना तलाक और अपने ही किसी घर में रखते हुए ) दूसरी पत्नी को भी रखते हैं लेकिन उनकी कोई बोल नहीं सकता है बल्कि पत्नी भी अपने भाग्य का दोष मानते हुए अपनी नियति मान कर इसको स्वीकार कर लेती है। अगर कोई औरत ऐसा करे तो क्या ये समाज और पुरुष समाज उसको जीने देगा ? शायद नहीं ( अपवाद इसके भी हो सकते हैं लेकिन ये पुरुषों की तरह से खुले तौर पर स्वीकार होता है। पुरुष ही क्यों इसे कोई स्त्री भी स्वीकार नहीं करती है। क्योंकि ये चरित्र सिर्फ नारी के साथ जुड़ा प्रश्न सदैव रहा है और रहेगा।
ऐसे कई मामले पढ़ चुकी हूँ , जिसमें सिर्फ संदेह की बिला पर औरतों को मार दिया जाता है क्योंकि उनके पति , पिता या भाई को उनके चरित्र पर संदेह हो जाता है या उनका कहीं प्रेम प्रसंग होता है जो उनके घर वालों को पसंद नहीं होता है और फिर दोनों को या फिर किसी एक को मौत घाट उतार दिया जाता है। इसका उन्हें पूरा हक होता है जैसे बेटी , बहन या पत्नी कोई जीते जागते इंसान न होकर उनकी जागीर हों , जिसे सांस लेने से लेकर बोलने , देखने और सोचने तक का अधिकार नहीं है। जरा सा कोई काम उनकी सोच या दायरे से बाहर हुआ नहीं कि--
--- उनके मुंह पर कालिख पुत जाती है
---वे समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते हैं।
---उनके खानदान के नाम पर बट्टा लगने लगता है.
---वे अपने पुरुष होने पर लानत मलानत भेजने लगते हैं।
वही लोग जो आज नारिओं के प्रगति की ओर बढ़ते कदम की दुहाई देते हैं और उसके बाद भी उन्हें अपना चरित्र प्रमाण-पत्र साथ लेकर चलना होता है क्योंकि ये एक ऐसा आक्षेप है जिसमें शिक्षा , पद , रुतबा या उपलब्धियां कोई भी ढाल नहीं बनता है। आप आगे बढ़ें लेकिन इस समाज के मन से। आपने आपातकाल में किसी से लिफ्ट ले ली , सहायता ली नहीं की संदेह के घेरे में कैद। इसमें साथ में कौन है , किस उम्र का है ? उससे क्या रिश्ता है ? ये भी कोई मतलब नहीं रखता है।
एक दिन अखबार में पढ़ा और उस घटना ने झकझोर दिया। एक २० वर्षीया पत्नी एक वर्ष पूर्व हुआ था , अपने कार्य स्थल से लौटने पर कोई सवारी न मिलने के कारण एक सहकर्मी के साथ साईकिल पर बैठ कर आ गयी और दूसरे ही दिन उसकी जली हुई लाश कमरे में बरामद हुई।
एक औरत को उसके पति ने सिर्फ शक के कारण उसके निचले हिस्से को लोहे से बने ऐसे किसी चीज से बंद करके उसमें ताला डाल रखा था और ताली अपने पास रखता था सिर्फ नित्य क्रिया के लिए खोलता था। जब वह कुछ दिन के लिए मायके गयी तो वह नित्य क्रिया के लिए भी मजबूर हो गयी और लोहे के कारण उसके उस हिस्से पर घाव हो गए थे। जब घर वालों को पता चला तो उसको कटवाया गया। उसके पति को पत्नी के चरित्र पर संदेह था। उस लोहे के बने यन्त्र को लौहसा के नाम से जाना जाता है यानि कि इसका प्रयोग और भी लोग करते रहे होंगे या हो सकता है कि कर भी रहे हों। (ये काल्पनिक बिलकुल भी नहीं है लेकिन अब मेरे पास इसका लिखित प्रमाण नहीं है )
अगर इसे हम पुरुष के मामले में देखें तो खुले आम एक पुरुष दो महिलाओं को पत्नी के तरह से रख कर रहता है। अभी हाल ही मैं ओम पुरी के मामले में पढ़ा कि उसकी पत्नी ने घरेलु हिंसा का मामला कोर्ट में दाखिल किया। ओम पुरी की दो पत्नियाँ है और वह दोनों के पास रहते है। यहाँ चरित्र का प्रमाण पत्र कैसे दिया जा सकता है ? एक वही क्यों ? कितने लोग एक पत्नी के रहते हुए दूसरी को पत्नी बना कर रह रहे होते हैं, लेकिन उनके चरित्र पर कोई उंगली नहीं उठा सकता क्योंकि वे समाज के सर्वेसर्वा जो है।
एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों और नामी गिरामी लोग तक एक पत्नी के रहते हुए ( बिना तलाक और अपने ही किसी घर में रखते हुए ) दूसरी पत्नी को भी रखते हैं लेकिन उनकी कोई बोल नहीं सकता है बल्कि पत्नी भी अपने भाग्य का दोष मानते हुए अपनी नियति मान कर इसको स्वीकार कर लेती है। अगर कोई औरत ऐसा करे तो क्या ये समाज और पुरुष समाज उसको जीने देगा ? शायद नहीं ( अपवाद इसके भी हो सकते हैं लेकिन ये पुरुषों की तरह से खुले तौर पर स्वीकार होता है। पुरुष ही क्यों इसे कोई स्त्री भी स्वीकार नहीं करती है। क्योंकि ये चरित्र सिर्फ नारी के साथ जुड़ा प्रश्न सदैव रहा है और रहेगा।
बाजिब सवाल। मैं भी सोंच रहा हु की आखिर कोई महिला दो पति के साथ क्यूँ नहीं रहती। यह सर्वाधिकार भी पुरुष के पास है। और कलंक महिला के माथे।
ReplyDeleteये सोच ही तो नारी को दोयम दर्जे का बनाती है , अभी इन्तजार करना है क्योंकि धीरे धीरे नारी जाति के प्रतिशत में जो कमी आ रही है। वह कल का इतिहास बदलने की तैयारी है.
Deletesahi farmaya.......
Deleteमुझे लगता है एक पंक्ति और जुड़नी चाहिए कि अगर किसी मर्द के कदम बहकते हैं तो उसकी दोषी भी औरत होती है क्यूँ कि वो पति को संभाल नहीं सकी
ReplyDeleteक्यूँ क्या कहती हैं आप दीदी ................
विभा , मैंने आज सुबह ही ये बात अपनी एक रचना में लिखी है।
Deleteखुद को समर्थ कहलाने के लिए ,
पत्नी के रहते
एक और घर बसाने लगे।
पश्चिम सा साहस न जुटा पाए .
चोरी छिपे जीते रहे,
जब खुला तो बिखरा परिवार
तुम नहीं पत्नी दोषी बनी
बांध कर नहीं रख पायी,
कोई जानवर नहीं
कि खूंटे से बाँध कर रखा जाए उसे ।
धन्यवाद दर्शन जी।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-09-2013) के चर्चा मंच 1355 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteghinn aati hai purush kee soch se .sarthak aalekh nari kee trasdi ko parakt karta huaa .aabhar rekha ji
ReplyDeleteचरित्र का मानदंड नारी-नर दोनों के लिए समान होता तो आज समाज में इतनी विकृतियाँ न होतीं.
ReplyDeleteजो बीत गया सो गया ,अब तो चेत जाओ !
चरित्रवान होना या चरित्रहीन होना सिर्फ स्त्री पे ही लागु होता है ऐसा किसने कहा है? स्त्री और पुरुष दोनों के लिए चरित्रवान या चरित्रहीन होने के पैमाने भी लगभग एक ही हैं। विवाह के बाहर अगर पुरुष भी किसी गैर स्त्री/ मर्द से सम्बन्ध बनाता है तो ये उसके मर्दानगी का पैमाना तो नहीं हुआ ना - और ये किसी भी काल या समाज में चरित्रहीनता ही माना जायेगा। द्रौपदी ने पाँच पतियों से सम्बन्ध रखे लेकिन इसे चरित्रहीनता नहीं कहा गया क्योंकि ये विवाह के अन्दर था। द्रौपदी के मान सम्मान में कोई दाग नहीं लगा। आसाराम के कृत्या पे लोग उसे सिर्फ एक अपराधी ही नहीं कह रहे हैं बल्कि एक चरित्रहीन भी कह रहे है। नेहरु जी के चरित्र पे भी उँगलियाँ उठाई जाती हैं। दिल्ली, मुंबई, बंगलोर जैसे बड़े शहरों में पढाई/ नौकरी के सिलसिले में दूर-दराज से आये कई लड़के-लड़कियां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगते हैं लेकिन रिलेशनशिप के ना चल सकने में लड़की अक्सर ही लड़के के खिलाफ शादी का झांसा देकर बलात्कार का मुकदमा दर्ज करती है लेकिन इसके उलट अगर लड़की इस रिलेशनशिप को तोड़ कर चली जाती है तो लड़के का पास क्या विकल्प होता है? ये बदलते दौर की बातें है जहाँ अगर किसी की पत्नी की गैर मर्द के साथ सम्बन्ध बनाती है तो स्त्री के चरित्र पे उतना सवाल नहीं उठता है जितना पुरुष के मर्दानगी पे। इसे progressive और independent नारियों का अपने सेक्सुअलिटी को लेकर सजग और सहज होना कहा जात है चरित्रहीनता नहीं। किसी आतंकवादी को उसके धर्म या सम्प्रदाय से जोड़ना (जबकि वो आतंकी कार्य धर्म के नाम पे ही करता है) एक संकुचित और सांप्रदायिक मानसिकता है उसी तरह किसी सामंती सोच और हरकत को पुरुषवादी कह कर पुरुषो से ही घृणा करना एक संकुचित मानसिकता की निशानी है। एक शहरी मध्यवर्गीय कामकाजी महिला किसी गरीब और पिछड़े इलाके के स्त्री को अपने घरो में गुलाम / slave बनाकर रखना और अमानवीय व्यवहार करना भी एक सामंती सोच का परिणाम है। उल्लखनीय है की ये लोग किसी गरीब लड़के को अपने घर में slave बना कर रखने के बजाये लड़कियों को रखना ज्यादा पसंद करती है। लेकिन मैंने शायद ही किसी नारीवादियों को इसके ऊपर कुछ बोलते और लिखते हुए देखा है।
ReplyDelete100% agree with your views sochne ka ek naya dristikos diya
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