जनगणना के प्रारम्भिक आंकड़ों के मुताबिक लडको के अनुपात में लड़कियों कि संख्या कम हैंपर इस से नुक्सान क्या हो रहा हैं ?
जब भी अनुपात की बात होती हैं लडके और लड़कियों की तो लोग , सरकार और समाज यही समझाते हैं अगर लडकियां कम होगी तो शादी करने के लिये लड़की नहीं मिलेगी नयी पीढ़ी का सृजन करने वाली कोख नहीं होगी
कभी कभी सोचती हूँ
अगर किसी एक जगह १००० लडके पैदा हो और उसी जगह १००० लडकियां भी पैदा हो तो अनुपात बराबर हो जाएगा लेकिन क्या वो १००० लडके उन्ही १००० लड़कियों से विवाह करेगे ??? शायद उनमे से कुछ उनकी बहिन हो ??? तब क्या अनुपात सही रखने का ये कारण सही हैं ।
कभी भी जब अनुपात की बात होती हैं तो हम ये क्यूँ नहीं कहते की अनुपात सही होने से
दो हाथ और मिल जायेगे अपनी क्षमता के हिसाब से काम करने के लिये ।
एक दिमाग और मिल जायेगा कुछ नया सोचने और करने के लिये ।
अनुपात सही क्या केवल प्रजनन की प्रक्रिया और यौन संबंधो की शुचिता/उपलब्धता इत्यादि के लिये होना चाहिये या इस लिये भी होना चाहिये की प्रक्रति उसको कैसे सही रखना चाहती हैं ।
यहाँ कभी साइंस के जानकार क्यूँ नहीं नेचुरल बैलेंस की बात करते हैं ।
नेचर की बैलान्सिंग को बिगाडने की बात क्यूँ नहीं होती हैं ??
ये ठीक हैं की माँ बनने का अधिकार केवल नारी को दिया हैं प्रकृति ने लेकिन उसके साथ साथ प्रकृति ने उसमे और भी बहुत सी क्षमताये दी हैं लेकिन जेंडर रेश्यो की बात होते ही केवल और केवल एक ही बात सामने आती हैं एक ही सोच उभरती है की माँ कौन बनेगा या समलैंगिकता बढ़ेगी या स्त्रियों के लिये हिंसा बढ़ेगी यानी बलात्कार इत्यादि ।
इस सोच मे कहीं भी स्त्री / नारी की और क्या जरुरत हैं इस पर बात ही नहीं होती ।
एक माँ बनने की क्रिया को छोड़ दे तो कोई भी ऐसा काम नहीं हैं जो स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से ना कर सके और प्रकृति ने कोई भेद भाव किया ही नहीं हैं स्त्री और पुरुष मे । दोनों को समान रूप से सब कुछ दिया हैं और इसीलिये अनुपात की बात जब भी हो बात काम की भी , बात क्षमताओं की भी हो । पर नहीं होता हैं खुद महिला भी नहीं करती हैं ।
Gender Ratio Imbalance and Sex Ratio Imbalance एक नहीं हैं पर इनको एक ही समझा जाता हैं । सेक्स शब्द से मति भ्रम उत्पन्न होता हैं जिस के कारण अनुपात में अगर नारी के लिए जाती हैं तो सब को लगता हैं विवाह के लिये मुश्किल उत्पन्न हो जायेगी ।
अगर कभी सोच कर देखे तो बहुत सी जगह एक ही गोत्र मे विवाह की मनाई हैं वहाँ अगर जेंडर रैशियों सही हो तो भी आपस मे विवाह संभव हैं
एक कन्या को मार कर आप
दो हाथ कम करते हैं
एक दिमाग कम करते हैं
जो आगे चल कर अपनी क्षमता और योग्यता से बहुत कुछ कर सकती हैं और माँ भी बन सकती ।
जैसे नारी के लिये माँ बनना प्रकृति की देन हैं वैसे ही क्षमता भी प्रकृति की देन हैं और क्षमता को ख़तम करने का मतलब हैं तरक्की को ख़तम करना
अगर अनुपात सही करना हैं तो लोगो को समझाना जरुरी हैं की लड़की होने से उनको कोई नुक्सान नहीं हैं । आज की सामाजिक सोच लड़की को " खर्चे " से जोडती हैं अगर ये सोच बदलनी हैं तो लड़की को "कमायु पुत्र " की तर्ज पर "कमायु पुत्री " की तरह समाज के सामने रखना होगा । जैसे ही लड़की यानी खर्चा की बात ख़तम होगी जेंडर इम्बैलांस भी ख़तम होगा ,
सोच कर देखिये का की सोच बदलने से अगर बात बन सकती हैं तो सोच को बदलने मे नुक्सान क्या हैं
जब भी अनुपात की बात होती हैं लडके और लड़कियों की तो लोग , सरकार और समाज यही समझाते हैं अगर लडकियां कम होगी तो शादी करने के लिये लड़की नहीं मिलेगी नयी पीढ़ी का सृजन करने वाली कोख नहीं होगी
कभी कभी सोचती हूँ
अगर किसी एक जगह १००० लडके पैदा हो और उसी जगह १००० लडकियां भी पैदा हो तो अनुपात बराबर हो जाएगा लेकिन क्या वो १००० लडके उन्ही १००० लड़कियों से विवाह करेगे ??? शायद उनमे से कुछ उनकी बहिन हो ??? तब क्या अनुपात सही रखने का ये कारण सही हैं ।
कभी भी जब अनुपात की बात होती हैं तो हम ये क्यूँ नहीं कहते की अनुपात सही होने से
दो हाथ और मिल जायेगे अपनी क्षमता के हिसाब से काम करने के लिये ।
एक दिमाग और मिल जायेगा कुछ नया सोचने और करने के लिये ।
अनुपात सही क्या केवल प्रजनन की प्रक्रिया और यौन संबंधो की शुचिता/उपलब्धता इत्यादि के लिये होना चाहिये या इस लिये भी होना चाहिये की प्रक्रति उसको कैसे सही रखना चाहती हैं ।
यहाँ कभी साइंस के जानकार क्यूँ नहीं नेचुरल बैलेंस की बात करते हैं ।
नेचर की बैलान्सिंग को बिगाडने की बात क्यूँ नहीं होती हैं ??
ये ठीक हैं की माँ बनने का अधिकार केवल नारी को दिया हैं प्रकृति ने लेकिन उसके साथ साथ प्रकृति ने उसमे और भी बहुत सी क्षमताये दी हैं लेकिन जेंडर रेश्यो की बात होते ही केवल और केवल एक ही बात सामने आती हैं एक ही सोच उभरती है की माँ कौन बनेगा या समलैंगिकता बढ़ेगी या स्त्रियों के लिये हिंसा बढ़ेगी यानी बलात्कार इत्यादि ।
इस सोच मे कहीं भी स्त्री / नारी की और क्या जरुरत हैं इस पर बात ही नहीं होती ।
एक माँ बनने की क्रिया को छोड़ दे तो कोई भी ऐसा काम नहीं हैं जो स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से ना कर सके और प्रकृति ने कोई भेद भाव किया ही नहीं हैं स्त्री और पुरुष मे । दोनों को समान रूप से सब कुछ दिया हैं और इसीलिये अनुपात की बात जब भी हो बात काम की भी , बात क्षमताओं की भी हो । पर नहीं होता हैं खुद महिला भी नहीं करती हैं ।
Gender Ratio Imbalance and Sex Ratio Imbalance एक नहीं हैं पर इनको एक ही समझा जाता हैं । सेक्स शब्द से मति भ्रम उत्पन्न होता हैं जिस के कारण अनुपात में अगर नारी के लिए जाती हैं तो सब को लगता हैं विवाह के लिये मुश्किल उत्पन्न हो जायेगी ।
अगर कभी सोच कर देखे तो बहुत सी जगह एक ही गोत्र मे विवाह की मनाई हैं वहाँ अगर जेंडर रैशियों सही हो तो भी आपस मे विवाह संभव हैं
एक कन्या को मार कर आप
दो हाथ कम करते हैं
एक दिमाग कम करते हैं
जो आगे चल कर अपनी क्षमता और योग्यता से बहुत कुछ कर सकती हैं और माँ भी बन सकती ।
जैसे नारी के लिये माँ बनना प्रकृति की देन हैं वैसे ही क्षमता भी प्रकृति की देन हैं और क्षमता को ख़तम करने का मतलब हैं तरक्की को ख़तम करना
अगर अनुपात सही करना हैं तो लोगो को समझाना जरुरी हैं की लड़की होने से उनको कोई नुक्सान नहीं हैं । आज की सामाजिक सोच लड़की को " खर्चे " से जोडती हैं अगर ये सोच बदलनी हैं तो लड़की को "कमायु पुत्र " की तर्ज पर "कमायु पुत्री " की तरह समाज के सामने रखना होगा । जैसे ही लड़की यानी खर्चा की बात ख़तम होगी जेंडर इम्बैलांस भी ख़तम होगा ,
सोच कर देखिये का की सोच बदलने से अगर बात बन सकती हैं तो सोच को बदलने मे नुक्सान क्या हैं
न कोई नुक्सान नहीं है सोच बदलने से. लेकिन जिनकी सोच बदलनी चाहिये, वे कहां इसे फ़ायदे का सौदा मानते हैं?
ReplyDeleteआप को याद होगा मैंने बहुत पहले आप की पोस्ट पर ये बात कही थी , की मुझे ये अच्छा नहीं लगता है की लोग ये कहते है की कन्या भ्रूण ह्त्या इसलिए मत करो की नहीं तो बेटे के लिए बहु नहीं मिलेगी यहाँ भी चिंता घूम कर बेटे की है है बेटी की चाहत है ही नहीं , तब राजन ने कहा था की आम लोग ऐसे ही समझेंगे , मै बिलकुल सहमत हूँ , आखिर इस काम को रोकने का काम तो आम लोगो को ही करना है , जिस स्वार्थ के कारण वो लड़कियों को मार रहे है उन्हें समझाने के लिए उन्ही के फायदे की बात करनी होगी तभी वो इसको समझेंगे वरना हम कितने भी स्त्री की बात करते रहे किसी को एक रत्ती भी बात समझ नहीं आने वाली है , जब तक की उसमे उनका अपना फायदा न नजर आये | पूरी तरह से मानसिकता बदलना एक मुश्किल काम है , क्योकि ये मानसिकता हजारो सालो तक लोगो के मन में भरी गई है जो इतनी आसानी से नहीं निकलेगी |
ReplyDeleteजागरूकता फैलेगी और इस समस्या का हल निकलेगा ...
ReplyDeleteसोच बदलना आसां नहीं होता जब तक सिर पर नहीं पड़ती ...
"एक कन्या को मार कर आप
ReplyDeleteदो हाथ कम करते हैं
एक दिमाग कम करते हैं"
ये बिल्कुल सही reason है!!