एक भारतीये ब्लॉगर के इंग्लिश ब्लॉग पर एक अमेरीकन महिला का पत्र छपा हैं ।
अमेरिकन महिला के अनुसार उनका सम्बन्ध एक भारतीये पुरुष से था । अमेरिकन महिला ने साफ लिखा हैं की वो लोग लिव इन रिलेशन शिप में नहीं थे । महज प्रेम सम्बन्ध था , ३ साल से जानते थे , ६ महीने से सम्बन्ध में थे ।
भारतीये पुरुष ने शुरू में ही साफ़ कह दिया था की वो शादी नहीं कर सकता हैं क्युकी उसके अभिभावक इस बात से खुश नहीं होगे और वो अपने अभिभावक को समाज में किसी भी तंज का सामना नहीं करने दे सकता हैं ।
अब वो भारतीये पुरुष कही और शादी कर रहा हैं भारतीये महिला से अपने अभिभावकों की पसंद से ।
अमेरिकी महिला का मानना हैं की
भारतीये अभिभावक अपने बच्चो की खुशियों में रोड़ा अटकाते हैं
भारतीये अभिभावक अपने बच्चो को कमोडिटी { जिसको बेचा ख़रीदा जाता हैं } समझते हैं
भारतीये अभिभावक मानते हैं की उनकी ख़ुशी इस बात पर निर्भर हैं की उनके बच्चो का जीवन साथी कैसा हैं
इस के अलावा अमेरिकी महिला का ये भी मानना हैं की
भारतीये समाज में शादी एक "ड्यूटी " की तरह हैं
अब आप बताये की आप क्या सोचते हैं
उसी पोस्ट पर एक कमेन्ट में एक भारतीये ब्लॉगर ने पूछा हैं की क्या क़ोई चाहेगा की जहां उस भारतीये पुरुष की शादी हो रही हैं वहाँ बताया जाये की उसका पहले से ही कहीं सम्बन्ध रहा हैं ?
क्या ऐसा करना सही हैं और क्या ऐसा करने से क़ोई फरक भी पड़ेगा या क्या आप ऐसा करेगे ??
आज कल कमेन्ट स्पाम में जा रहे हैं ।अगर ना दिखे तो इंतज़ार करिये दुबारा ऑनलाइन जाने पर में स्पाम फोल्डर में जा कर उसको पुब्लिश कर दूंगी । ।
All post are covered under copy right law । Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium ।
Indian Copyright Rules
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
अभिभावक अपने बच्चों को कमोडिटी नहीं मानते बल्कि उनके प्रति वात्सल्य भाव से व्यवहार करते हैं, उनका अच्छा ही चाहते हैं। इसके पीछे पुराने कुछ अनुभव होते हैं, कुछ रूढ़ियां होती हैं जो उन्हें बच्चों के भविष्य के प्रति आशंकित करती हैं और संभवत: यही वजह है कि वे अपने बच्चों के लिये अपनी सोच रखते हैं। इसमें कमोडिटी मानना या स्वामी तत्व ढूंढना गलत है।
ReplyDeleteजहां तक विवाह करना न करना उसे ड्यूटी की तरह मानने की बात है, मैं वैवाहिक जीवन का समर्थन करता हूं। ड्यूटी हो या ऑप्शनल.....विवाह जैसी पवित्र सामाजिक संस्था हितकर है ( भले ही कईयों के अपने अनुभव कटु हों) लेकिन बृहद रूप से यह सामाजिक स्थायित्व का बेहतर ऑप्शन है।
बकौल गिरिजेश राव.....वह बहुत बड़ा नारीवादी होगा जिसने समाज में 'विवाह संस्था' की खोज की।
हाँ , ये सही है- माता-पिता अपनी मर्जी से बच्चों की शादी कराना चाहते है। पर मैं मानती हूँ- यहाँ आकर बन्धन में बन्धन नहीं बल्कि स्वतन्त्रता होनी चाहिए ताकि बच्चा अपनी जिन्दगी के निर्णय खुद कर सके। बच्चे को बन्धन में कैद कर रिशतों की दुहाई नहीं देनी चाहिए । उसे अपना आसमान खुद चुनने की आजादी देनी ही चाहिये।
ReplyDeleteपुरुष अकसर दोनो हाथों में लड्डू रखकर चलता है जहाँ रिश्ते से बचना होता है माता_पिता की इज्जत का बहाना उसके पास तैयार रहता है। महिला के साथ गलत हुआ क्योंकि उसकी भावनाओ को ठेस पहुँचायी गयी है। महिला एक जगह गलत हो सकती है सम्बन्ध से पहले पता चल गया था कि वह शादी नहीं करेगा फिर भी वह जुड़ी । वह समय रहते कठोर निर्णय क्यों नहीं ले पायी दूर हो जाती उन अनचाहे रिश्तो से जिनका कोई भविष्य नहीं था।
ham bhartiyon ki vichitra maansikta hai ye,,, har baar ek naya mukhautaa...
ReplyDeleteसभी माता पिता बच्चों को कोमोडिटी नहीं समझते ....पर हाँ बहुत से हैं जो यक़ीनन कोमोडिटी समझते हैं..... बाकायदा हवाला देते हैं बच्चे पर कितना खर्च किया, उसे क्या बनाया, कितनी मेहनत से बनाया आदि .... खास कर उसकी शादी के समय .....
ReplyDeleteजो बच्चे माता पिता की मर्ज़ी से शादी करना चाहते हैं वे अपने परिवार के माहौल को पहले से ही समझते हैं तो ऐसे रिश्तों में क्यों पड़ते हैं ...जिनका भविष्य नहीं है, और यह बात उन्हें पहले से ही पता होती है .....
यानि सीधी सी बात है दोनों तरफ मुखौटा लगाये खेल खेलते हैं..... मुझे तो यह अफसोजनक लगता है रचना ......
यह कोई नयी बात नहीं है भारत में भी ऐसा anadi काल से होता आया है, लेकिन मीडिया की वजह से अब सामने आने लगा है! गांवों और शहरों में हर युवक और युवती कभी न कभी, किसी न किसी के सानिध्य की चाह रखते हैं! बहुत से साहसी युवक और युवती अपनी चाह पूरी कर पते हैं और फिर विवाह की कथित पवित्र वेदी पर साथ जुड़कर जीवनभर एक दूसरे को धोखा देते रहते हैं! इनमें से अनेक तो विवाह के बाद भी मौकों की तलाश में रहते हैं या मौका मिलने पर मौके का लाभ उठाने से नहीं चूकते! लेकिन सार्वजानिक रूप से कहने का साहस अभी तक हम भारतियों में नहीं है! जिसकी मूल वजह है, हमें बचपन से ही धर्म, नीति और समाज के प्रतिमानों के नाम पर भीरू बनाया जाता है!
ReplyDeleteडॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सभी अभिभावक ऐसे नहीं होते और अब पहले की तुलना में बहुत फर्क भी आया है लेकिन एक हद तक उस महिला की बात सही है.खासकर विवाह जैसे मामले में अभिभावक उनकी इच्छाओं को नजरअंदाज करते है.कभी परंपराओं या सामाजिक दबाव के कारण तो कभी लालच के कारण.और केवल लडकियों ही नहीं लडकों के साथ भी ऐसा होता है जैसे कि कई लडकों का रिश्ता मोटे दहेज के कारण ही कैसे भी घर में कर दिया जाता है.
ReplyDeleteयदि वो लडका अभी भी नहीं सुधरा हैं तो जहाँ उसका रिश्ता हो रहा हैं वहाँ ये बात बता देनी चाहिए (मैं इस पर आपका पक्ष भी जानना चाहूँगा कि आप क्या सोचती है)
लेकिन हाँ, जहाँ तक बात हैं विवाह संस्था की जरूरत की तो बेशक हमारी हालत खराब है लेकिन खुद अमेरिकियों की हालत भी ऐसी नहीं हैं कि वो दूसरों को उपदेश देने की भूमिका में आ जाए.विवाह को बचाए रखने के लिए वहाँ भी खूब समझौते होते है.और क्या प्रेम में धोखेबाजी वहाँ नहीं होती?
कमेंट स्पाम में जा रहे हैं तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी नाम से की गई कई टिप्पणियाँ भी कई बार अपने आप बेनामी प्रकाशित हो जाती है,इसका कोई उपाय हो तो बताएँ.
यह एक ट्रांजिशन फेज है, जिससे मेरी उम्र के आस-पास के लोग गुजर रहे हैं. बच्चों को कमोडिटी समझना भी एक तरह का ब्रेनवाश है जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है, और धीरे-धीरे यह अब टूट रहा है. मैं नहीं जानता की वह पुरुष झूठ बोल रहा है या सच, अगर झूठ बोल रहा होगा तो अगर यह कारण नहीं रहता तो वह कोई और बहाना बना लेता. मगर यह तो यकीन से कह सकता हूँ की "बच्चों की अच्छाई चाहते हैं" कहकर कई दफ़े उनकी खुशियों का अनजाने में गला घोंटा जाता है.. इसमें मैं माता-पिता को दोष देना उचित नहीं समझता हूँ, क्योंकि शुरू से ही उन्हें यह उनका हक दिखता है, कुछ इसी तरह की हमारे समाज को बुना गया है. कुछ-कुछ वैसा ही जैसा की एक नवजात शिशु को बचपन से ही भगवान की मूर्ती या तस्वीर के आगे हाथ जोड़ना सिखाया जाता है और जब वह बच्चा बड़ा होता है तो उसे ही आखिरी सत्य मान बैठता है..
ReplyDeleteमैंने शुरू में इसे ट्रांजिशन फेज इसलिए कहा है क्योंकि मैंने अपनी उम्र के लड़के/लड़कियों के घर में ऐसा होते देखा है की माता-पिता अपनी तरफ से बच्चों को छूट तो दे देते हैं कि अपनी मर्जी से शादी कर लो, मगर जब वे शादी कर लेते हैं तो उसे उतनी सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते हैं जितनी सहजता से अपने दूसरे बच्चे के जीवनसाथी को जिसे वह चुन कर लाये हों.. एक तरह से यह दो नावों में सफ़र करने जैसा है, की वह परम्पराओं से भी बंधे हुए हों और अपने बच्चों को छूट भी देना चाहते हों. मेरी समझ में यह धुंध भी छंटेगा, मगर कम से कम बीस-पच्चीस साल का समय और चाहिए इसके लिए.
"अमेरिकियों की हालत भी ऐसी नहीं हैं कि वो दूसरों को उपदेश देने की भूमिका में आ जाए.विवाह को बचाए रखने के लिए वहाँ भी खूब समझौते होते है.और क्या प्रेम में धोखेबाजी वहाँ नहीं होती?"
ReplyDelete---एक दम सही वक्तव्य है ..राजन जी...मेरे विचार में तो शब्द ’..अमेरिकियों की औकात नहीं है’ होना चाहिये....
----जब लडके ने पहले ही साफ़ कह दिया था तो वह क्यों सम्बन्ध बनाये रही? पैसे का चक्कर होगा...यही तो अमेरिकियों का चरित्र है... अब दूसरे को दोष देकर बद्नाम करना चाहती है...दबाव बना कर...
---मं बाप अनुभवी होते हैं..सन्तान का भला चाह्ते हैं...भारत में विवाह कोई सिर्फ़ स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं होता अपितु मन,परिवार, समाज, सन्स्क्रितियों का मिलन होता है ...कम्पेटीबिलिटी के आधार पर विवाह होते हैं...
----असफ़लता कहां, किस सिस्टम में नहीं होती...यह मानव स्वभाव है....
सबसे पहले तो उस अमेरिकन महिला को बधाई। वह एक रीढ़विहीन, अनैतिक, खोखले, भद्दी मानसिकता वाले मनुष्य के साथ बन्धने से बच गई। उसकी बातें अधिकतर भारतीय माता पिताओं के लिए सच हैं। हाँ हमारी विशेषता एक और भी है हम अपनी भद्दी से भद्दी आदत को भी स्वच्छ श्वेत वस्त्र पहना उन्हें कोई दिव्य रूप दे सकते हैं व उसे हमारे चरित्र, संस्कृति की महानता बताकर मूँछें ऐँठ सकते हैं। सच में हम धन्य हैं।
ReplyDeleteपैसा एँठने को उस महिला को कोई अमेरिकन नहीं मिला था? या विवाह योग्य उम्र वाले भारतीय ही वहाँ सेठ रह गए हैं।
घुघूती बासूती
@भारतीये पुरुष ने शुरू में ही साफ़ कह दिया था की वो शादी नहीं कर सकता हैं क्युकी उसके अभिभावक.....
ReplyDelete@अमेरिकी महिला का मानना हैं की
भारतीये अभिभावक अपने बच्चो की खुशियों में रोड़ा अटकाते हैं
ये चल क्या रहा है ?????????????
जब रिश्ते का अंत पता था तो उसे शुरू ही क्यों किया गया ??? इस पर क्या कोई सवाल नहीं उठना चाहिए ?????
.......या फिर भारतीय समाज को लेकर कहीं भी कुछ नेगेटिव लिखा ढूंढना भर ही हम प्रबुद्ध आधुनिक भारतीयों का एक मात्र उदेश्य होता है ???
ReplyDelete