आज कल ब्लॉग पर नारी आधरित विषयों पर बहुत लिखा जा रहा हैं । अबला नारी सबला बनी , नहीं जमी । हर काम मे आगे , हर दौड़ को जीतने की नहीं प्रथम आने की चाह । बस यही से शुरू हुआ
पुरुषों के क्षेत्र में निरंतर अतिक्रमण
और उसके साथ ही शुरू हुआ नारी के शील , उसके वस्त्रो पर अतिक्रमण ।
यौनाकर्षण: स्त्रियों की जिम्मेदारी/गैरजिम्मेदारी 1
यौनाकर्षण: स्त्रियों की जिम्मेदारी/गैरजिम्मेदारी 2
यौनाकर्षण, स्त्रियां, बलात्कार !
बलात्कारी एवं मनोविज्ञान
अबला से सबला बनी और जवाब दिया
तो शुरू हुआ शालीनता की परिभाषा को समझाने का अभिभावकिऐ सफर
नारी और बिना संरक्षण बिना अभिभावक !!!!! यानी ये अच्छी औरत नहीं हैं का टैग ।
और अगर किसी ने इस विषय को दूसरी तरह से समझने का प्रयत्न किया तो कहा गया ब्लागजगत की सौन्दर्य देवियाँ [जहाँ कथित अभिजात्य लोग भी बिना नागा अनवरत दिखते हैं -कहाँ गयी व्यस्तता ?]
मानसिकता की बात करते ही विवाद हो गया और जब हिन्दी ब्लॉग और पुरूष मानसिकता की बात की तो विषय से हट कर ही बात हुई ।
अबला से सबला के सफर मे अगर "मैं सब कर सकती हूँ, मुझमें पूरी काबिलियत है" कहा
तो सुना यदि कोई किसी ऐसी महिला को जानता हो जो ४० पार कर चुकी हो लेकिन फिर भी शादी न की हो तो कृपया उनसे पूछकर बताये कि क्या वे वाकई में खुश हैं? ।
सफर अभी जारी हैं हो ही नहीं सकता
आगे जाने का सफर एक +++++ दूसरे से जुडने का सफर , मज़ा तो अब आ रहा हैं जब सब तरफ़ एक ही बात हो रही हैं हमारी बात , हमारी कामयाबी की बात और शायद यही सफलता हैं महिला ब्लॉग लेखन की ।
फक्र हैं की हम महिला हैं और ब्लॉग समाज मे आज चाहते ना चाहते हुए भी बात हो रही हैं हमारे लेखन की ।
रास्ता मुश्किल हैं पर सफर का असली आनद वही पाते हैं जो मुश्किल रास्तो पर चलते हैं ।
हर महिला ब्लॉगर ने कही ना कही इस यात्रा मे अपना सहयोग दिया हैं ,कही बोल कर कही चुप रह कर इसीलिये आज कम से कम हम सब फक्र से कह सकते हैं स्त्री ही स्त्री का शोषण नहीं करती ।
यात्रा चलती रहे ।
Good.
ReplyDeletehttp://streevimarsh.blogspot.com/2008/09/blog-post.html
बुरा न माने, ये एकतरफा विचार है-
ReplyDelete'हम सब फक्र से कह सकते हैं स्त्री ही स्त्री का शोषण नहीं करती।'
फक्र मुझे भी होता, पर अनुभव इस बात पर सहमत होने नहीं देता। मेरी मॉं को मेरी दादी ने बहुत सताया। आस-पड़ोस में भी आए दिन ये सब सुनने को मिलता है। संभव है, अधिकांश लोग मेरे इस बात को अपनी बात भी मान लें। टी.वी पर भी इस शोषण को ही भुनाया जा रहा है(दर्शकों को झगड़े में असीम आनंद जो मिलता है)। तो सवाल मै पूछूँ कैसे, क्योंकि आपने इसी बात से रूटैंड ले लिया है कि स्त्री, स्त्री का शोषण ही नहीं करती।
(एक अनुरोध, इतने सारे लिंक होने पर पढ़ने में बाधा होती है। सभव हो सके तो एक पोस्ट पर ही सामग्री रखी जाए। मैं सकारात्मक रूप से चर्चा करना चाहता हूँ, किसी बात को अन्यथा न लें।)
जब कोई किसी निजाम को चुनौती देता है तो उसे इस बात के लिए पहले ही तैयार रहना चाहिए कि निजाम उस चुनौती को समाप्त करने का हर संभव प्रयत्न करेगा।
ReplyDeleteयह तो अभी आरंभ है, नारी को और नारी ब्लाग को अनेक चुनौतियों का मुकाबला करना होगा।
@ जितेन्द्र भगत
ReplyDeleteसही है नारी को नारी बहुत सताती है, बहुत ही नहीं, सब से अधिक सताती है। लेकिन वह तब जब वह नारी एक नारी के रूप मे अपनी हैसियत खो देती है और उस शोषण तंत्र का एक पुर्जा बन जाती है, जिस के विरुद्ध आज नारी संघर्ष के मैदान में है। वह खुद भी शोषित है और शोषण के तंत्र का पुर्जा बन कर नारी के शोषण में हिस्सेदार भी।
आप ने बालिका वधू सीरियल में देखा होगा। किस तरह दादी अपनी पौत्रवधू को सता-सता कर उसे भी उस शोषण तंत्र का हिस्सा बनाने का प्रयत्न करती है जिस का वह खुद एक हिस्सा है। या फिर शमा जी के ब्लाग The Light by a Lonely Path की पोस्टें पढ़ें।
देखिये हम किसी भी हालत मे शास्त्री जी से ना तो ऐसे विचारो के ज्ञानार्जन की उम्मीद करते थे .ना ही उनके इस प्रकार के बेहूदा विचारो से किसी भी प्रकार सहमत हो सकते. ये जानवरो से ज्यादा गये बीते तर्क या कुतर्क है. सारे जानवर नंगे रहते है पर बहुत कम आपको बलातकारी दिखाई देंगे. कुछ लोग जो मंदिर मे जाकर भी महिलाओ के अंगो को अपनी कपडा भेदी नजर से देखते है ( इस बारे मे महिलाओ की अनूभूती को आप नही समझ सकते) के लिये आप क्या कहे? शास्त्री जी ? खुशंवंत सिंह जैसे लेखक गुरुद्वारे मे जाकर आपनी इस आदत को लिख तक डालते है आप भी ठीक कुछ वैसा ही कर रहे है. ये आपकी नजरे है कि आप अपनी बिटिया को कम कपडो मे देख कर उसे ढंग से रहने को कहे या महेश भट्ट की तरह शादी कर लेता जैसी सोच से नवाजे .
ReplyDeleteअब बात महिलाओ के शोषण की - इस मामले मे हम पूरे सहमत है जी , महिलाये महिलाओ का ही नही पुरुषो का भी शोषण करती है ,लेकिन हम इस पर कोई टिप्पनी नही करेगे . हमे भी शाम को घर जाना होता है जी :)
कई दिनों के बाद आना हुआ तो एक ही पोस्ट में इतने लिंक देख कर लग रहा है कि काफी वक्त देना पड़ेगा इस पोस्ट को पढ़ने में...अनायास विचार जो मन मे आया कि जो कमज़ोर है उसका शोषण होगा ही.चाहे स्त्री स्त्री का शोषण करे या पुरुष पुरुष पर शोषण करे.....लेकिन आज शिक्षा पाकर आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी स्त्री समाज में अपनी अलग पहचान बना रही है....
ReplyDeleteआज जो स्थिति हिन्दी ब्लाग जगत में स्त्री की है, मुझे नही लगता की आप सब अनजान हैं, मगर फिर भी मुझे कहीं, यह आग नहीं दिखाई देती! ऐसा लगता है कि ...आप लोग नियति से समझौता कर चुकी हो !
ReplyDeleteआग का अर्थ यह मत समझियेगा कि आइये पुरुषों को ललकारते है और उनके ख़िलाफ़ कोई भी अच्छा विचार दिमाग में ही नही आए ! मगर..
----- सीने में आग होनी चाहिए, अन्याय के खिलाफ
------सीने में आग होने चाहिए शोषण के ख़िलाफ़ और खास तौर पर तब जब बहुमत आपके खिलाफ हो ...
------सीने में आग होनी चाहिए कि जब आपको कमजोर समझा जाए और आपके नेतृत्व ( यदि कोई यह झंडा उठाने की हिम्मत कर रहा हो ) पर ही लगातार चोट की जा रही हो !
आज हिन्दी ब्लाग जगत में जो कुछ लिखा जा रहा है उसे सुसंस्कृत लोग हेय द्रष्टि से देखते हैं, तो इसका कारण यह बिल्कुल नही की इंग्लिश में बहुत अच्छा कार्य हो रहा है बल्कि इसका कारण हिन्दी लिखने वाले बहुत कम हैं और बदकिस्मती से काफी लोग निरुद्देश्य तथा अनुपयुक्त लिखते हैं जिसको हर वर्ग पढने योग्य ही नही मानता !
और महिलाओं में, टेक्नोलाजी के प्रति शायद कम रुझान होने की वजह...कम्पयूटर पर कार्य कम करने की आदत !
नतीजा यहाँ पुरुषों का बहुमत ! सो आपकी आवाज कैसे सूनी जायेगी !
अगर दिल में जज्बा हो और ग़लत चीज का विरोध करना हो, तो आप जागरूकता पैदा करने में समर्थ हो सकती हैं , बशर्ते आपके पास नेतृत्व प्रदान करने की शक्ति हो !और अगर आप लोग यह नही कर पाये तो आप सिर्फ़ अपनी इसी स्थिति को ही भोगेंगी !
मुझे लगता है की यह स्थिति अभी लगभग २०-३० साल तक और रहेगी जबतक मेरी पीढी (लगभग ४०-५० बर्षीय) समाप्त नही हो जायेगी ! यह पीढी जिसको मैं जी रहा हूँ एक कुंठित पीढी है, हमने पूरे जीवन कुछ नही पाया और अब जब देश एक नएपन की और बढ़ रहा है, हमें अपनी कुंठा पूरी करने का जो साधन मिलता है, उसे झपटने की कोशिश करते है और करते रहेंगे !
मगर हमारे बच्चे ( स्मृति जैसे ) इन लांछनों से सुरक्षित हो जायेंगे, आने वाला समय अच्छा होगा ऐसा मेरा विश्वास है ! निराशा की गर्त से बाहर निकल कर इन बुराइयों का मुकाबला करना ही होगा !
मगर ध्यान रहे इस कहानी में सिर्फ़ पुरूष ही दोषी हो और नारी बिल्कुल बेदाग़, ऐसा मेरा विश्वास नही है,
समाज का चलन है कि कमजोर को हमेशा ताकतवर अपना निशाना बनाता है ..अब वह स्त्री हो या पुरूष ....जिसका जैसा दांव लगता है वह वैसा अपने को दिखा देता है |
ReplyDeleteबहुत अच्छा काम किया। इस सन्दर्भ मे सभी उपयोगी लिंक्स एक साथ दे दिये हैं ।आभार !
ReplyDelete@'हम सब फक्र से कह सकते हैं स्त्री ही स्त्री का शोषण नहीं करती।'
ReplyDeleteइस विषय से सम्बंधित आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक ख़बर छपी है - 'Govt to review anti-dowry law'.