September 03, 2008

"बालिका वधू" यानी " नारी को फिट करो सामजिक व्यवस्था मे "

आज संगीता मनरल ने चोखेर बाली पर नये चैनल "कलर्स" में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम "बालिका वधू" पर एक बहुत अच्छी पोस्ट डाली हैं , मे ख़ुद लिखना चाहती थी पर शब्दों ने साथ नहीं दिया । आज पढ़ कर लगा की हाँ अब मुझे क्या लिखना हैं । सो पहले संगीता को थैंक्स फिर आगे

"बालिका वधू" मे कहानी हैं एक छोटी लड़की की जिसको सामाजिक "व्यवस्था " मे " फिट " किया जा रहा हैं । ये कहना की ये नेगेटिव हैं तो एक बार आप इस जगह किसी एडल्ट नव विवाहित को रख ले । क्या उसको नहीं समझाया जाता की ये सब करना होता हैं । क्या आज भी बहुत से घरो बहु को नहीं समझया जाता "पति " की इज्ज़त करो , बहस मत करो , पति आए तो सब काम छोड़ कर उसका काम करो । अब शादी हो गयी हैं सो घर संभालो । हाँ अब बहुत सी लड़किया इस सब को उतना नहीं सुनती पर सिर्फ़ वो जो या तो आर्थिक रूप से सक्षम हैं या बहुत दहेज़ लाई हैं !!!!!!!

और ये कहना की ये सब उसकी सास कहती हैं इस लिये सास ही जिम्मेदार हैं इस सब व्यवस्था की तो एक बिल्कुल ही ग़लत हैं । क्युकी व्यवस्था मे हमेशा कानून इसे रहे हैं जिसमे फायदा पुरूष का रहा हैं ।

इस सीरियल को देख कर व्यवस्था बदलने का मन सब का करेगा उअर यही सार्थकता हैं इस सीरियल की .

हर नारी पात्र की एक्टिंग देखने लायक हैं ।

और एक विस्तृत समीक्षा हमारी रंजना लिख चुकी हैं लिंक उन्होने अभी दिया सो जोड़ रही हूँ देखे

बालिका वधु कलर टेलीविजन का सामाजिक संदेश

6 comments:

  1. इन दिनों टीवी पर जितने सीरियल आ रहे हैं, उन में यह अकेला देखने लायक है।
    यह सिखाता है कि अब इस व्यवस्था को बदलना चाहिए। लेकिन यह व्यवस्था संश्लिष्ट व्यवस्था है। सामाजिक ढाँचा आर्थिक ढाँचे से जटिलता से गुँथा हुआ है। समूची व्यवस्था बदलेगी, उस की अपनी प्रक्रिया है। हम इस बदलाव में योगदान करना चाहते हैं तो राज्य व्यवस्था को ही बदलने की प्रक्रिया समझनी होगी।

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  2. देखने में तो वह बुजुर्ग औरत ही कहती भी है और समझाती भी है, न सिर्फ़ दोनों बाल वर-वधु को पर सास को भी. अब यह बुजुर्ग औरत भी यह सब ख़ुद सीखी होगी किसी न किसी से. सिलसिला बहुत लंबा है. समय लगेगा बदलने में. आशा पूर्णा देवी की 'प्रथम प्रितिश्रुती' में भी यही कहानी थी. उनकी अपनी कहानी में भी बहुत कुछ बदल गया था. इस में भी बदलेगा.

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  3. रचना जी बालमन में परम्परा को निभाने की समझ नही होती और जब उसे इस बंधन में बाधने की बात हो तो वो इसे पूरा कहां से करे। जहां तक एडल्ट नव विवाहिता की बात है वो पहले ही इतनी समझदार हो जाती है कि उसे पता है कि उसे क्या और कैसे करना है।
    वैसे देखा जाए तो ये बात काफी हद तक सही है कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है।

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  4. rachana ji...
    chokherbali per mene bhi padi thi wo post....
    sawaal je hai ki oerat he orat ki dushman dikhaee ja rahi hai....
    bklika wadhu ke ghar mai ek orat hai jo Nandini ko khush nahi dekhana chahti hai...wahi ek orat or hai jo Nandini ki khushio ka khayal rakh rahi hai....

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  5. preeti
    conditioning is what i am talking about
    the serial has more to it then just child marriage
    its about how to make a woman a mental slave so that she should not think about any thing but house hold work
    and tender age helps in conditionin better because children are fast learners
    rachna

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