May 31, 2011

पहाड़ों की ऊँचाई से आकाश को छूना है


सूज़ेन अल हूबी


फलस्तीन की सुज़ेन अल हूबी लोवा विश्वविद्यालय से बायोमेडिकल इंजेनीयरिंग करने के बाद आगे बढ़ी तो फिर रुकने का नाम ही नही लिया....
पहली अरब महिला जिसने एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच कर सारी दुनिया को दिखा दिया कि हौंसले बुलन्द हो तो फिर मज़िल दूर नही होती...
पहाड़ों की दुर्गम चढ़ाई चढ़ने का शौक ही उन्हें चोटी तक पहुँचा देता है... क्लीमिंजरो , एलबर्ज़ और अब माउंट एवरेस्ट की चोटी पर....एवरेस्ट की चोटी पर पैर रखते ही सबसे पहले सुज़ेन ने अपनी बेटियों को याद किया.....उस वक्त सुज़ेन अपने आप को इतना हल्का महसूस कर रही थी जैसे पल में उड़ने लगेगी...
दुबई के जाने माने अमीरात अर्थराइटिस फाउंडेशन बोर्ड की कोषाध्यक्ष रह चुकी सुज़ेन उससे पहले दुबई बोन एंड जॉएंट सेंटर की वाइस प्रेज़िडेंट भी रह चुकी है...यह सेंटर अपने आप में पहला ऐसा सेंटर है जहाँ अर्थराइटिस के रोगियों से जुड़े रिसर्च प्रोजेक्ट होते हैं जिसके लिए एक बायोटेक कम्पनी भी खोली गई. जिसका श्रेय प्रिसेस हया बिंत अल हुसेन और सुज़ेन अल हूबी को जाता है ... यह एक चनौती भरा काम है जिसमें रोगियों के सुधार के लिए रिसर्च और 
इस रोग के साथ कैसे जिया जाए इससे जुड़ी चेतना फैलाने के लिए प्रचार व्यवस्था करने का काम और उस के लिए धन इकट्टा करना......सब कुछ सुज़ेन के लिए चुनौति भरा था लेकिन मुश्किल नहीं...
आजकल दुबई की एडवेंचर टूरिस्ट कम्पनी ‘रहाल्हा’ की सी.ई.ओ हैं....इस पर्यटन कम्पनी के माध्यम से दुनिया भर के दूर दराज़ देशों की साहसिक यात्राएँ करना...उनकी संस्कृति के बारे में जानना ही इनका लक्ष्य है....दुनिया देखने का सपना पूरा करने के लिए ही इस क्षेत्र से जुड़ी सुज़ेन दुनिया भर के लोगो को भी अपने साथ जोड़ती हुई चल रही है....रहाल्हा से होती आय का 1% दान देती हैं और जब भी मौका मिलता है फलीस्तीन के बच्चों को वहाँ का पारम्परिक डांस सिखाती हैं...
सुज़ेन का कहना है कि “किसी भी काम के लिए प्रेरित होना आसान है, लेकिन उस पर अमल करना आसान नहीं” इसलिए हमें जीवन में लगातार ऐसा सूत्र तलाशना चाहिए जिससे हम दिन के अंत में कह पाएँ कि आज के दिन का हर पल लाजवाब था ..उन पलों को यादों के ख़जाने में से जब भी निकालें तो चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान उतर आए कि हम कितनी खूबसूरत दुनिया में रहते हैं...” 

पराया धन क्यूँ उत्तराधिकारी होती हैं ??

विवाहित लड़कियों के लिये बेहतर क्या होगा
अपनी पैत्रिक सम्पत्ति में उत्तराधिकार {जैसा अभी कानून देता हैं }
या
जिस परिवार की वो बहू हैं उस परिवार की सम्पत्ति मे उत्तराधिकार { जो अभी नहीं हैं}

अभी जो कानून हैं उन मे लड़कियों को विवाहित और अविवाहित शेणी मे नहीं बांटा जाता हैं और इस कारण से उनके विवाह के बाद भी उनका अपने ससुराल मे कोई उत्तराअधिकार नहीं बनता हैं

एक बार मायके से ससुराल आने के बाद विवाहित स्त्री का घर वही माना जाता हैं फिर मायके की संपत्ति पर उत्तराअधिकार का औचित्य क्या हुआ ??


परायाधन कहलाती हैं आज भी कन्या और कन्यादान के बाद जब माँ पिता का अधिकार ख़तम हो जाता हैं तो उत्तराधिकार क्यूँ बना रहता हैं ??

विवाहित महिलाए इस पर अपना नज़रिया देगी तो समझाने में आसानी होगी आम पाठको को

May 30, 2011

कही हम गलत रीति -रिवाजों या परम्पराओं को स्थापित तो नहीं कर रहे

कुछ दिनों पूर्व मेरी एक रिश्तेदार महिला  मेरे घर आई . (जो की स्वयं काफी पढ़ी लिखी है तथा शिक्षण क्षेत्र में अच्छे पद पर कार्यरत है )..उन्होंने मुझे गुरुवार के दिन कपडे धोते देख कर टोका और कहा कि तुम्हे पता नहीं कि गुरुवार को कपडे नहीं धोना चाहिए ...मैंने उनसे कारण पुछा तो वे कहने लगी ..तुम नई उम्र कि लडकियों की यही तो ख़राब बात है ...हर चीज़ में कारण पूछने लगती हो ....फिर उन्होंने बताया कि ऐसा मानते है कि गुरुवार को कपडे धोने से घर का बुरा होता है ...फिर मैंने उनसे कहा कि फिर तो गुरुवार को पोछा भी नहीं लगाया जाना चाहिए ...और किचेन भी नहीं साफ किया जाना चाहिए ...क्योंकि इस काम को करने में इस्तेमाल किये जाने वाले कपडे को पानी से धोना पड़ता है ..तो वे कहने लगी कि यह रिवाज़ तो सिर्फ पहने जाने वाले मैले कपड़ो के लिए है ...मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की  कि ऐसा हो सकता है कि पुराने समय में हफ्ते में एक दिन आराम के उद्देश्य से या किसी और कारण से गुरुवार को कपडे न धोये जाते होंगे ...पर इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं नज़र आता ...तो वे नाराज सी होने लगी .....दुसरे दिन बातो ही बातो में उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारे घर में भगवन गलत दिशा में रखे है ...और गलत दिशा में भगवन रखने से पूजा नहीं लगती ...मैंने सोचा कि मैं उन्हें बताऊ कि भगवन कि पूजा अर्चना तो अपनी अपनी श्रद्धा कि बाते है ....और भगवन ने कब कहा है कि इस दिशा में मूर्ती रखो या इस दिशा में मत रखों ...लेकिन प्रत्यक्ष में  मैंने उन्हें कोई जवाब न देना ही उचित समझा ..क्योंकि मुझे मालूम था कि मैं कितना भी समझाउंगी ...वे समझने वाली नहीं है ...

मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत दुःख हुआ क्योंकि कोई कम पढ़ी लिखी महिला ऐसा कहती तो शायद मैं समझ सकती थी ...लेकिन एक उच्च शिक्षित ...उस पर भी शिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत महिला से यह उम्मीद नहीं थी . प्रायः यह देखा गया है कि किसी घर या परिवार में रीति रिवाजों ., परम्पराओं कि स्थापना महिला ही करती है ..इसलिए महिलाओ को इस विषय में बहुत सचेत हो जाना चहिये कि कही वे गलत रीति -रिवाजों या परम्पराओं को स्थापित तो नहीं  कर रही ...हर परंपरा गलत नहीं होती ...लेकिन यह विचार कर लेना चाहिए कि आज के परिवेश में इसका क्या औचित्य है ...बहुत सी परम्पराए तथा रीति - रिवाज़ पुराने समय के हिसाब से बनाये गए थे ..क्योंकि ऐसा करना उस समय कि ज़रुरत थी ...धीरे धीरे वे रिवाजों के रूप में स्थापित हो गए ..पर  आज ज़रुरत है कि बदले समय के हिसाब से उन्हें ढाले.

एक और जगह मैंने देखा कि बारात निकलने वाली थी तो दुल्हे को उसकी माँ के कमरे में ले जाया गया और बाकि औरते हसते हुए कमरे के बहार खड़ी रही ...मैंने पुछा कि यह कौन सा रिवाज़ हो रहा है ..तो उस घर कि औरतो ने हस्ते हुए बताया कि दूल्हा बारात के लिए निकलते वक़्त अपनी माँ का दूध पीता है ..फिर रवाना होता है ...मुझे बड़ा अजीब सा लगा ...२६-२७ साल का नव युवक और उसकी माँ यह रिवाज़ कैसे निभा पाएंगे ...बाद में इस पर मैंने विचार किया तो लगा कि जैसे पुराने समय में बाल विवाह की परंपरा थी और उस समय घर की स्त्रीया बारात में नहीं जाया करती थी ..तो बारात के लिए निकलते वक़्त दुल्हे (जो कि एक छोटा सा बच्चा रहता था , ) को माँ का दूध पिला कर ही निकलते होंगे ...पर आज के समय में इस परंपरा का पालन करना तो मुर्खता पूर्ण ही कहा जायेगा ...
इसीलिए नारी को इस विषय में सचेत और सावधान हो जाना चाहिए ...क्योंकि नारी  ही घर-परिवार को चलाती है और रीति -रिवाजों और परंपराओ को सहेज कर उन्हें आगे बढाती है ..और जब नारी ऐसे गलत रीति रिवाजों और अंध विश्वासों कि स्थापना अपने परिवार में करेगी ..तो परिवार के अन्य सदस्य भी वही सीखेगे ...


May 28, 2011

तलाक के बाद

जो नारियां किसी वजह से तलाक लेती हैं और अपने बच्चे के लिये अपने पति से कोर्ट द्वारा तय राशि लेती हैं उनको ध्यान देना चाहिये की इस राशि को वो कहीं भी इस्तमाल नहीं कर सकती हैं । ये राशि केवल बच्चे के ऊपर ही खर्च की जा सकती हैं ।
बहुधा देखा गया हैं की स्त्रियाँ इस धन को जो एक मुश्त होने के कारण कई बार लाखो मे भी होता हैं अचल सम्पत्ति मे निवेश करना चाहती हैं लेकिन कानून इस की इज़ाज़त नहीं देता हैं ।

दूसरा विवाह करने पर ऐसी महिला को अपने बच्चो से अवश्य पूछ कर उनके उत्तराधिकार का भी निश्चय कर लेना चाहिये

May 27, 2011

दूसरे विवाह मे पहले विवाह से उत्त्पन्न बच्चे किसके उत्तराधिकारी होगे ??

जिन लोगो के संतान हैं और किसी कारणवश उनको दूसरा विवाह करना पड़ता हैं तो उनको पता होना चाहिये की उनके पहले पति/ पत्नी की संतान उनके दूसरे पति / पत्नी की उत्तराधिकारी नहीं हो सकती हैं ।

अगर आप चाहते हैं की आप के दूसरे पति / पत्नी की संतान आप की उत्तराधिकारी हो तो आप को उसको कानून गोद लेना होगा ।

ये उन पर लागू होता हैं जिनके पहले पति / पत्नी की मृत्यु हो गयी हैं ।

दूसरे पति / पत्नी द्वारा गोद ना लिये जाने की स्थिति मे बच्चे पहले पति/पत्नी के ही उत्तराधिकारी माने जाते हैं और गोद लेने के बाद उनका ये उत्तराधिकार ख़तम हो जाता हैं

महज इसलिये की किसी ने किसी से विवाह करलिया हैं तो उनका बच्चा खुद बा खुद जिस से विवाह हुआ हैं उसका भी हो जाता हैं ये समझना भ्रान्ति हैं

परिवार मे अगर बच्चे हैं तो उनके अधिकारों के प्रति सचेत रहे ताकि कभी कोई अनहोनी हो जाए तो बच्चो को उनका हक़ मिल सके सुचारू तरीके से

इस पर विस्तार से आप यहाँ पढ़ सकते हैं

पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान का संपत्ति का अधिकार और उत्तराधिकार



नारी ब्लाग की संचालिका रचना जी ने सांपत्तिक अधिकारों से संबंधित प्रश्न प्रेषित किया है -


दि स्त्री या पुरुष दूसरा विवाह करते हैं, तो उनकी अपनी संतान का दूसरे पति/ पत्नी की सम्पत्ति पर तब तक कोई क़ानूनी अधिकार नहीं होता जब तक की उस बच्चे को दूसरा पति या पत्नी क़ानूनी रूप से गोद ना ले लें। भारतीय कानून के अनुसार इस में कितनी सत्यता है। उदाहरण के बतौर की पहली शादी से अपने पति की एक संतान है, यदि दूसरी शादी से करती है तो क्या उसकी पहली संतान जो पूर्व पति से है, क्या उसका पति की सम्पत्ति पर क़ानूनी अधिकार बनता है, महज इस लिये कि उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया, या तब बनेगा जब क़ानूनी रूप से वो का पुत्र होगा। उसी तरह अगर पति के पहले से कोई संतान है तो इस स्त्री की संपत्ति पर क्या उसका अधिकार बनेगा या उसको भी गोद लेने के बाद ही अधिकार मिलेगा?




रचना जी,

प का प्रश्न बहुत भ्रामक है। आप किस अधिकार की बात पूछ रही हैं? यह स्पष्ट नहीं है। कानून में किसी भी संपत्ति पर केवल उस के स्वामी का अधिकार होता है, अन्य किसी भी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं होता। संपत्ति पर स्वामी का यह अधिकार तब तक बना रहता है जब तक कि वह स्वयं इसे किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित न कर दे अथवा किसी न्यायालय की डिक्री आदि से वह संपत्ति कुर्क न कर ली जाए। यह हो सकता है कि किसी संपत्ति के एक से अधिक संयुक्त स्वामी हों। तब उस संपत्ति के बारे में वही अधिकार संयुक्त रूप से उस के संयुक्त स्वामियों के तब तक बने रहते हैं जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन न हो जाए अथवा एक संयुक्त स्वामी के हक में अन्य संयुक्त स्वामी संपत्ति पर अपना अधिकार न त्याग दें।

प के प्रश्न के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि कोई संपत्ति यदि पति की है तो उस पर पति का ही अधिकार होता है उस की पत्नी का उस में कोई अधिकार नहीं होता। इसी तरह यदि कोई संपत्ति किसी पत्नी की है तो उस पर पत्नी का ही अधिकार होता है उस के पति का उस में लेश मात्र भी अधिकार नहीं होता। पिता और माता की संपत्तियों में उन के पुत्र-पुत्रियों का कोई अधिकार नहीं होता। उसी तरह पुत्र-पुत्रियों की संपत्ति में उन के माता-पिता का कोई अधिकार नहीं होता है। जब किसी पत्नी का अपने पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है तो उस में पत्नी के पूर्व पति की संतान के अधिकार की बात सोचना सिरे से ही गलत है। क्यों कि उन दोनों के बीच तो कोई सम्बन्ध भी नहीं है। वस्तुतः यह संपत्ति के अधिकार का मूल तत्व है कि संपत्ति केवल उस के स्वामी की हो सकती है और उस पर उसी का एक मात्र अधिकार होता है। व्यक्ति जिस संपत्ति का स्वामी है, अपने जीवनकाल में उस का किसी भी प्रकार से उपभोग कर सकता है और उसे किसी भी प्रकार से खर्च कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी सारी संपत्ति को अपने जीवन काल में ही खर्च कर सकता है, उसे खर्च करने में उस पर किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है।

बालकों और अल्पवयस्कों का अपने माता-पिता की संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता। उन का अधिकार केवल भरण पोषण तक सीमित है। यदि माता-पिता उन के वयस्क होने तक उनका भरण पोषण नहीं करते हैं तो उन के इस अधिकार को कानून के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इसी तरह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी का पति पर, पति का पत्नी पर, माता-पिता का अपनी संतानों पर भरण-पोषण का कानूनी अधिकार है और उसे भी कानून द्वारा लागू कराया जा सकता है।

प अपने उक्त प्रश्न में जिस अधिकार के बारे में पूछना चाहती हैं, उस से लगता है कि आप उत्तराधिकार के संबंध में बात करना चाहती हैं। उत्तराधिकार का अर्थ किसी मृत व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर अधिकार से है। भारत में उत्तराधिकार का कोई सामान्य कानून नहीं है। उत्तराधिकार लोगों की व्यक्तिगत विधि से तय होता है। मृत मुस्लिम व्यक्ति की संपत्ति पर उत्तराधिकार का प्रश्न मुस्लिम विधि से तय होता है और मृत हिन्दू व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू विधि से तय होता है। हिन्दू विधि को एक सीमा तक आजादी के बाद संहिताबद्ध किया गया है। एक मृत हिन्दू व्यक्ति की निर्वसीयती संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम से तय होता है।

त्तराधिकार का मूल सिद्धान्त ही यह है कि एक मृत व्यक्ति की संपत्ति उस के निकटतम रक्त संबंधियों को मिलनी चाहिए। उन में पत्नी और पति को और सम्मिलित किया गया है। अब रक्त संबंधी भी दूर और पास के हो सकते हैं, इस कारण से उन की अनेक श्रेणियाँ बनाई गई हैं। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में से एक के भी जीवित होने तक मृत हि्न्दू की संपत्ति पर उन का उत्तराधिकार होता है। प्रथम श्रेणी के जितने भी उत्तराधिकारी होंगे उन सब का मृत व्यक्ति की संपत्ति में समान अधिकार होता है। प्रथम श्रेणी का कोई भी उत्तराधिकारी न होने पर ही द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारियों को संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होता है।


प पत्नी की पूर्व पति से संतानों पर दूसरे पति की संपत्ति के अधिकार की बात करना चाहती हैं। इस तरह का कोई भी अधिकार केवल विवाह के समय पति द्वारा स्वेच्छा से प्रदत्त किया जा सकता है या पत्नी के साथ हुई किसी संविदा के अंतर्गत ही प्रदान किया जा सकता है अन्यथा नहीं। उत्तराधिकार तो किसी भी प्रकार से उसे प्राप्त नहीं हो सकता। क्यों कि ऐसी संतान किसी भी प्रकार से पति की रक्त संबंधी नहीं हो सकती और उसे इस प्रकार का अधिकार प्राप्त होना उत्तराधिकार के मूल सिद्धांत के विपरीत होगा। वैसे भी पत्नी के पूर्व पति की संतान को अपने पिता का उत्तराधिकार प्राप्त होगा और अपनी माता का भी। जहाँ तक दत्तक संतान का प्रश्न है, किसी भी दत्तक संतान को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता की औरस संतान की ही तरह अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह जिसे भी दत्तक ग्रहण किया जाएगा उसे ये अधिकार प्राप्त होंगे। अब यह और बात है कि कोई पति अपनी पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान को दत्तक ग्रहण करता है तो ऐसी संतान को दत्तक पुत्र होने के नाते ये सब अधिकार प्राप्त होंगे, न कि पूर्व पति से उत्पन्न पत्नी की संतान होने के कारण।


पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान का संपत्ति का अधिकार और उत्तराधिकार




May 26, 2011

इंडियन होम मेकर ब्लॉग पर नारी ब्लॉग की पोस्ट

बहू के क़ानूनी अधिकार


नारी ब्लॉग की इस पोस्ट को एक इंग्लिश मे ब्लॉग लिखती महिला ने अपने ब्लॉग पर ट्रांसलेट कर के पोस्ट किया हैं । आप वहां जा कर इस विषय पर आयी प्रतिक्रियाए देख सकते हैं

लिंक ये हैं

आप अगर अपनी प्रतिक्रियाए देना चाहते हैं इस विषय पर तो
यहाँ
या
यहाँ

दे सकते हैं

May 25, 2011

एक नारी से दूसरी नारी के संबंधो मे तानव का कारण -- असुरक्षा का भाव

विवाहित महिला ध्यान रखे की कानून आप ससुराल की किसी भी संपत्ति की अधिकारी नहीं हैं ।
आप का अपने पति की संपत्ति पर अधिकार हैं लेकिन उस पर आप के पति की माँ , और आप के पति के बच्चो का भी आप के समान बराबर का अधिकार हैं ।
अगर कोई भी संपत्ति{चल / अचल } आप के पति की उनकी माँ के साथ जोइंट हैं तो माँ के हिस्से पर आप के पति के अलावा उनके और बच्चो और आप के पति के पिता का भी अधिकार हैं ।
अगर आप के पति ने अपनी माँ को या अपने पिता को कहीं भी नॉमिनी बना रखा हैं तो उस चल / अचल सम्पत्ति पर आप का कोई क़ानूनी अधिकार नहीं हैं ।

आप सास हो या बहूँ या बेटी या माँ अपने क़ानूनी अधिकार की समझ रखना आप को आना चाहिये ।
इसके अलावा अगर आप अपनी सास , अपनी बहु और अपनी बेटी और अपनी माँ के क़ानूनी अधिकारों का भी ध्यान रखेगी तो भविष्य मे समाज मे कोई भी स्त्री असुरक्षित महसूस शायद ना करे ।
और जैसे ही ये असुरक्षा का भाव ख़तम होगा वैसे ही संबंधो मे तनाव ख़तम होगा


अविवाहित महिलाए जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं उनको भी ध्यान देना चाहिये की अगर उनका कोई भी जोइंट अकाउंट हैं अपने माँ -पिता के साथ तो उनके भाई / बहिन का क़ानूनी अधिकार उस ५० % प्रतिशत पर अपने आप हो जाता हैं जो माँ या पिता का हिस्सा हैं । इस लिये आवश्यक हैं की आप अपने अकाउंट मे किसी को जोइंट रखने से पहले क़ानूनी पक्ष का ध्यान अवश्य रखे ।

कोई भी चीज़ अगर खरीदी है आप ने अपने पैसे से लेकिन अगर रसीद पर नाम आप के माँ और पिता का हैं तो बटवारे के समय उस वस्तु पर आप का पूरा अधिकार नहीं होगा ।

May 24, 2011

किसी भी रिश्ते इस लिये बंधना की हम विपरीत लिंग के हैं केवल और केवल अपने आसक्त मन को भरमाने का तरीका हैं ।

बहुत से लोग ये मानते हैं की विपरीत लिंग का आकर्षण एक ऐसा सत्य हैं जिस से ऊपर उठ कर यानी जेंडर से ऊपर उठ कर कुछ सोचा ही नहीं जा सकता । सीधे शब्दों मे कहे तो नर नारी मे दोस्ती जैसा कोई सम्बन्ध हो ही नहीं सकता और उन मे अगर वो अकेले हैं किसी जगह तो शारीरिक रिश्ता बनना निश्चित ही हैं । इस विषय मे एक पोस्ट यहाँदेखी

मेरे अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभव हैं जिनको बाँट कर जानना चाहती हूँ की क्यूँ जहां भी स्त्री पुरुष हो उस जगह सबको एक ही सम्बन्ध दिखता हैं

मै दो बहनों में बड़ी हूँ और अविवाहित हूँ । छोटी बहिन विवाहित हैं । छोटी बहिन के पति के साथ मेरे दोस्ताना सम्बन्ध रहे जब से शादी हुई उनकी मेरी बहिन के साथ तक़रीबन २२ साल होगये हैं । मेरा अपना व्यवसाय हैं आयत निर्यात का और जब भी मै किसी international exhibition के लिये विदेश जाती हूँ मेरे बहनोई को साथ ले जाती हूँ क्युकी मुझे तो किसी ना किसी को पैसा खर्च के अपने साथ ले जाना ही होगा तो किसी परिवार के सदस्य पर ही क्यूँ ना करूँ । बहनोई का अपना व्यवसाय हैं लेकिन जब भी वो मेरे साथ जाते हैं मेरी कम्पनी की तरफ से उनको पूरा भुगतान होता हैं काम का और वो सहर्ष लेते हैं ।
जहां मेरे बहनोई का अपना ऑफिस हैं वहाँ पर अन्य लोग उनके मेरे साथ जाने को लेकर निरंतर अश्लील मजाक करते हैं ? क्यूँ महज इस लिये क्युकी मै स्त्री हूँ और वो पुरुष ?? किस अधिकार और समझ के तहत ये समझा जाता हैं की साथ विदेश जाने का अर्थ , साथ काम करने का अर्थ महज इस लिये बदल जाता हैं क्युकी दो लोगो में एक स्त्री हैं और दूसरा पुरुष ।

इसके अलावा अभी मेरे बहनोई का जनम दिन था , बहिन ने काफी लोगो को बुलाया था हमे भी । मैने अपने बहनोई को गले लगा कर बधाई दी और मेरी माँ ने सिर पर हाथ रख कर । बहनोई के दोस्तों को उसमे भी अश्लील मजाक करने की गुंजाईश दिख गयी । मेरी जगह अगर मेरी बहिन का बड़ा भाई होता तो भी क्या वो अपने बहनोई को गले ना लगाता ?? किस किताब में लिखा हैं की बहनोई को अगर पत्नी की बड़ी बहिन गले लगाती हैं तो उनका आपस में "रिश्ता " हैं या "साली आधी घरवाली " का फंडा फिट होता हैं

इसी तरह जब मेरा अपना व्यवसाय नहीं था और मै ऑफिस में काम करती थी देर रात भी होती थी और तब ऑफिस के पुरुष मित्र और कभी कभी तो ड्राइवर घर तक छोड़ जाते थे किसी के साथ ४ बार घर आजाओ , ऑफिस के अलावा घर के आस पास भी काना फूसी होती थी , माँ से पूछा जाता था कब शादी हो रही हैं फिर चाहे वो ऑफिस का पीयून हो या ड्राइवर या सह कर्मचारी । क्यूँ क्या हर विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ किसी भी लड़की को शादी करना जरुरी होता हैं ।

स्त्री और पुरुष को लेकर जो मिथिया भ्रम लोगो ने पाल रखे हैं की उनमे दोस्ती संभव नहीं हैं वो उनकी अपनी सोच हैं । शरीर से ऊपर भी सम्बन्ध होते हैं और विपरीत लिंग का आकर्षण हर स्त्री पुरुष में एक दूसरे के लिये एकांत मिलते ही हो जाए ये सोचना गलत हैं ।

पुरुष वही जिसे स्त्री पुरुष माने और स्त्री वही जिसे पुरुष स्त्री माने ।
विपरीत लिंग का आकर्षण होता हैं लेकिन तब जब कोई अपने मित्र को विपरीत लिंग का माने । पारंपरिक सोच हैं की स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं यानी जहां एक स्त्री पुरुष बैठे और एकांत हुआ वहाँ वो दोनों एक दूसरे को "पूरा " करने लग गए । इस सोच से ऊपर उठ कर सोचने वाले मानते हैं की केवल पति पत्नी ही एक दूसरे के पूरक होते हैं इस लिये उनका आकर्षण सही हैं ।

जरुरत हैं अपनी अपनी सोच को सही रखने की । विपरीत लिंग का आकर्षण तो सगे भाई बहिन मे भी होता हैं और कई बार उनमे दैहिक सम्बन्ध भी बनते देखे ही गए इस लिये जरुरी हैं की हम जेंडर से ऊपर उठ कर सोचे , और जो हर विपरीत लिंग के व्यक्ति से आकर्षित होकर पूर्णता खोजते हैं वो मित्र बनाने के लायक नहीं हैं ।

अगर कोई किसी पर आसक्ति रखता हैं और इस लिये मित्रता करता हैं तो वो मित्रता के आवरण में किसी मंतव्य को पूरा करना चाहता हैं । चाहती हैं ।

किसी भी रिश्ते इस लिये बंधना की हम विपरीत लिंग के हैं केवल और केवल अपने आसक्त मन को भरमाने का तरीका हैं । एक पर्दा दारी हैं । रिश्ता हो ना हो फिर भी नैतिकता रहे ये जरुरी हैं और नैतिकता सबके लिये एक ही होनी चाहिये नहीं होती हैं ।


कोई साइंस का आधार मान कर डिफाइन करता हैं कोई धर्म ग्रंथो का , पर आधार होना चाहिये अपने मन और दिमाग का । जो पढ़ लिया उसको अपने जीवन मे बरतना आना चाहिये ।


विपरीत लिंग में मित्रता सहज बात हैं अगर आप अपनी सीमाये जानते हैं और उन पर अटल रहते हैं । रिश्तो की अपनी मर्यादा होती हैं और किसी की मित्रता को केवल इस लिये अस्वीकार कर देना की वो विपरीत लिंग से हैं अपनी पसंद की बात हैं । लेकिन हर विपरीत लिंग के रिश्ते , मित्रता को अस्वीकार करना या उन पर अश्लील मजाक करना अपरिपक्वता और सामाजिक कंडिशनिंग का नतीजा होता हैं ।

हर व्यक्ति एक दूसरे से फरक हैं सबकी सोच , परिस्थितियाँ फरक होती हैं , सबका मेंटल लेवल भी फरक हैं इस लिये किसी भी बात का जर्नालईज़शन करना संभव नहीं होता हैं ।

May 23, 2011

धारा ४९८-क:एक विश्लेषण

.विवाह दो दिलों का मेल ,दो परिवारों का मेल ,मंगल कार्य और भी पता नहीं किस किस उपाधि से विभूषित किया जाता है किन्तु एक उपाधि जो इस मंगल कार्य को कलंक लगाने वाली है वह है ''दहेज़ का व्यापार''और यह व्यापर विवाह के लिए आरम्भ हुए कार्य से आरम्भ हो जाता है और यही व्यापार कारण है उन अनगिनत क्रूरताओं का जिन्हें झेलने को विवाहिता स्त्री तो विवश है और विवश हैं उसके साथ उसके मायके के प्रत्येक सदस्य.कानून ने विवाहिता स्त्री की स्थति ससुराल में मज़बूत करने हेतु कई उपाय किये और उसके ससुराल वालों व् उसके पति पर लगाम कसने को भारतीय दंड सहिंता में धारा ४९८- स्थापित की और ऐसी क्रूरता करने वालों को कानून के घेरे में लिया, पर जैसे की भारत में हर कानून का सदुपयोग बाद में दुरूपयोग पहले आरम्भ हो जाता है ऐसा ही धारा ४९८- के साथ हुआ.दहेज़ प्रताड़ना के आरोपों में गुनाहगार के साथ बेगुनाह भी जेल में ठूंसे जा रहे हैं .सुप्रीम कोर्ट इसे लेकर परेशान है ही विधि आयोग भी इसे लेकर , धारा ४९८- को यह मानकर कि यह पत्नी के परिजनों के हाथ में दबाव का एक हथियार बन गयी है ,दो बार शमनीय बनाने की सिफारिश कर चुका है.३० जुलाई २०१० में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से धारा ४९८- को शमनीय बनाने को कहा है .विधि आयोग ने १५ वर्ष पूर्व १९९६ में अपनी १५४ वीं रिपोर्ट तथा उसके बाद २००१ में १७७ वीं रिपोर्ट में इस अपराध को कम्पौन्देबल [शमनीय] बनाने की मांग की थी .आयोग का कघ्ना था ''कि यह महसूस किया जा रहा है कि धारा ४९८- का इस्तेमाल प्रायः पति के परिजनों को परेशान करने के लिए किया जाता है और पत्नी के परिजनों के हाथ में यह धारा एक दबाव का हथियार बन गयी है जिसका प्रयोग कर वे अपनी मर्जी से पति को दबाव में लेते हैं .इसलिए आयोग की राय है कि इस अपराध को कम्पओंदेबल अपराधों की श्रेणी में डालकर उसे सी.आर.पी.सी.की धारा ३२० के तहत कम्पओंदेबल अपराधों की सूची में रख दिया जाये.ताकि कोर्ट की अनुमति से पार्टियाँ समझौता कर सकें.''सी.आर.पी.सी. की धारा ३२० के तहत कोर्ट की अनुमति से पार्टियाँ एक दुसरे का अपराध माफ़ कर सकती हैं.कोर्ट की अनुमति लेने की वजह यह देखना है कि पार्टियों ने बिना किसी दबाव के तथा मर्जी से समझौता किया है.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि इस अपराध को शमनीय बना दिया जाये तो इससे हजारों मुक़दमे आपसी समझौते होने से समाप्त हो जायेंगे और लोगो को अनावश्यक रूप से जेल नहीं जाना पड़ेगा.लेकिन यदि हम आम राय की बात करें तो वह इसे शमनीय अपराधों की श्रेणी में आने से रोकती है क्योंकि भारतीय समाज में वैसे भी लड़की/वधू के परिजन एक भय के अन्दर ही जीवन यापन करते हैं ,ऐसे में बहुत से ऐसे मामले जिनमे वास्तविक गुनाहगार जेल के भीतर हैं वे इसके शमनीय होने का लाभ उठाकर लड़की/वधू के परिजनों को दबाव में ला सकते हैं.इसलिए आम राय इसके शमनीय होने के खिलाफ है.
धारा-४९८- -किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता-जो कोई किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा ,वह कारावास से ,जिसकी अवधि वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित होगा.
दंड संहिता में यह अध्याय दंड विधि संशोधन अधिनियम ,१९८३ का ४६ वां जोड़ा गया है और इसमें केवल धारा ४९८- ही है.इसे इसमें जोड़ने का उद्देश्य ही स्त्री के प्रति पुरुषों द्वारा की जा रही क्रूरताओं का निवारण करना था .इसके साथ ही साक्ष्य अधिनियम में धारा ११३- जोड़ी गयी थी जिसके अनुसार यदि किसी महिला की विवाह के वर्ष के अन्दर मृत्यु हो जाती है तो घटना की अन्य परिस्थितयों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय यह उपधारना कर सकेगा की उक्त मृत्यु महिला के पति या पति के नातेदारों के दुष्प्रेरण के कारण हुई है.साक्ष्य अधिनियम की धारा ११३- में भी क्रूरता के वही अर्थ हैं जो दंड सहिंता की धारा ४९८- में हैं.पति का रोज़ शराब पीकर देर से घर लौटना,और इसके साथ ही पत्नी को पीटना :दहेज़ की मांग करना ,धारा ४९८- के अंतर्गत क्रूरता पूर्ण व्यवहार माने गए हैं''पी.बी.भिक्षापक्षी बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य १९९२ क्रि०ला० जन०११८६ आन्ध्र''
विभिन्न मामले और इनसे उठे विवाद
-इन्द्रराज मालिक बनाम श्रीमती सुनीता मालिक १९८९ क्रि०ला0जन०१५१०दिल्ली में धारा ४९८- के प्रावधानों को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी की यह धारा संविधान के अनुच्छेद १४ तथा २०'' के उपबंधों का उल्लंघन करती है क्योंकि ये ही प्रावधान दहेज़ निवारण अधिनियम ,१९६१ में भी दिए गए हैं अतः यह धारा दोहरा संकट की स्थिति उत्पन्न करती है जो अनुच्छेद २०'' के अंतर्गत वर्जित है .दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा ''धारा ४९८- व् दहेज़ निवारण अधिनियम की धरा में पर्याप्त अंतर है .दहेज़ निवारण अधिनियम की धारा के अधीन दहेज़ की मांग करना मात्र अपराध है जबकि धारा ४९८- इस अपराध के गुरुतर रूप को दण्डित करती है .इस मामले में पति के विरुद्ध आरोप था कि वह अपनी पत्नी को बार बार यह धमकी देता रहता था कि यदि उसने अपने माता पिता को अपनी संपत्ति बेचने के लिए विवश करके उसकी अनुचित मांगों को पूरा नहीं किया तो उसके पुत्र को उससे छीन कर अलग कर दिया जायेगा .इसे धारा ४९८- के अंतर्गत पत्नी के प्रति क्रूरता पूर्ण व्यवहार माना गया और पति को इस अपराध के लिए सिद्धदोष किया गया.
2-बी एस. जोशी बनाम हरियाणा राज्य २००३'४६' ०सी ०सी 0779 ;२००३क्रि०ल०जन०२०२८'एस.सी.'में उच्चतम न्यायालय ने माना कि इस धारा का उद्देश्य किसी स्त्री का उसके पति या पति द्वारा किये जाने वाले उत्पीडन का निवारण करना था .इस धारा को इसलिए जोड़ा गया कि इसके द्वारा पति या पति के ऐसे नातेदारों को दण्डित किया जाये जो पत्नी को अपनी व् अपने नातेदारों की दहेज़ की विधिविरुद्ध मांग की पूरा करवाने के लिए प्रपीदित करते हैं .इस मामले में पत्नी ने पति व् उसके नातेदारों के विरुद्ध दहेज़ के लिए उत्पीडन का आरोप लगाया था किन्तु बाद में उनके मध्य विवाद का समाधान हो गया और पति ने दहेज़ उत्पीडन के लिए प्रारंभ की गयी कार्यवाहियों को अभिखंडित करने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन किया जिसे खारिज कर दिया गया था .तत्पश्चात उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल की गयी थी जिसमे यह अभिनिर्धारित किया गया कि परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामले में उच्च तकनीकी विचार उचित नहीं होगा और यह स्त्रियों के हित के विरुद्ध होगा.उच्चतम न्यायालय ने अपील स्वीकार कर कार्यवाहियों को अभिखंडित कर दिया.
- थातापादी वेंकट लक्ष्मी बनाम आँध्रप्रदेश राज्य १९९१ क्रि०ल०जन०७४९ आन्ध्र में इस अपराध को शमनीय निरुपित किया गया है परन्तु यदि आरोप पत्र पुलिस द्वारा फाइल किया गया है तो अभियुक्त की प्रताड़ित पत्नी उसे वापस नहीं ले सकेगी.
-शंकर प्रसाद बनाम राज्य १९९१ क्रि० ल० जन० ६३९ कल० में दहेज़ की केवल मांग करना भी दंडनीय अपराध माना गया .
- सरला प्रभाकर वाघमारे बनाम महाराष्ट्र राज्य १९९० क्रि०ल०जन० ४०७ बम्बई में ये कहा गया कि इसमें हर प्रकार की प्रताड़ना का समावेश नहीं है इस अपराध के लिए अभियोजन हेतु परिवादी को निश्चायक रूप से यह साबित करना आवश्यक होता है कि पति तथा उसके नातेदारों द्वारा उसके साथ मारपीट या प्रताड़ना दहेज़ की मांग की पूर्ति हेतु या उसे आत्महत्या करने के लिए विवश करने के लिए की गयी थी .
- वम्गाराला येदुकोंदाला बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य १९८८ क्रि०ल०जन०१५३८ आन्ध्र में धारा ४९८- का संरक्षण रखैल को भी प्रदान किया गया है .
-शांति बनाम हरियाणा राज्य ए०आइ-आर०१९९१ सु०को० १२२६ में माना गया कि धारा ३०४ - में प्रयुक्त क्रूरता शब्द का वही अर्थ है जो धारा ४९८ के स्पष्टीकरण में दिया गया है ........जहाँ अभियुक्त के विरुद्ध धारा ३०४- तथा धारा ४९८- दोनों के अंतर्गत अपराध सिद्ध हो जाता है उसे दोनों ही धाराओं के अंतर्गत सिद्धदोष किया जायेगालेकिन उसे धारा ४९८- केअंतर्गत पृथक दंड दिया जाना आवश्यक नहीं होगा क्योंकि उसे धारा ३०४- के अंतर्गत गुरुतर अपराध के लिए सारभूत दंड दिया जा रहा है.
- पश्चिम बंगाल बनाम ओरिवाल जैसवाल १९९४ ,,एस.सी.सी. ७३ '८८' के मामले में पति तथा सास की नव-वधु के प्रति क्रूरता साबित हो चुकी थी .मृतका की माता ,बड़े भाई तथा अन्य निकटस्थ रिश्तेदारों द्वारायह साक्ष्य दी गयी .कि अभियुक्तों द्वारा मृतका को शारीरिक व् मानसिक यातनाएं पहुंचाई जाती थी .अभियुक्तों द्वारा बचाव में यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त साक्षी मृतका में हित रखने वाले साक्षी थे अतः उनके साक्ष्य की पुष्टि अभियुक्तों के पड़ोसियों तथा किरायेदारों के आभाव में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है .परन्तु उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चित किया कि दहेज़ प्रताड़ना के मामलो में दहेज़ की शिकार हुई महिला को निकटस्थ नातेदारों के साक्षी की अनदेखी केवल इस आधार पर नहीं की जा सकती कि उसकी संपुष्टि अन्य स्वतंत्र साक्षियों द्वारा नहीं की गयी है .
इस प्रकार उपरोक्त मामलों का विश्लेषण यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि न्यायालय अपनी जाँच व् मामले का विश्लेषण प्रणाली से मामले की वास्तविकता को जाँच सकते हैं और ऐसे में इस कानून का दुरूपयोग रोकना न्यायालयों के हाथ में है .यदि सरकार द्वारा इस कानून को शमनीय बना दिया गया तो पत्नी व् उसके परिजनों पर दबाव बनाने के लिए पति व् उसके परिजनों को एक कानूनी मदद रुपी हथियार दे दिया जायेगा.न्यायालयों का कार्य न्याय करना है और इसके लिए मामले को सत्य की कसौटी पर परखना न्यायालयों के हाथ में है .भारतीय समाज में जहाँ पत्नी की स्थिति पहले ही पीड़ित की है और जो काफी स्थिति ख़राब होने पर ही कार्यवाही को आगे आती है .ऐसे में इस तरह इस धारा को शमनीय बनाना उसे न्याय से और दूर करना हो जायेगा.हालाँकि कई कानूनों की तरह इसके भी दुरूपयोग के कुछ मामले हैं किन्तु न्यायालय को हंस की भांति दूध से दूध और पानी को अलग कर स्त्री का सहायक बनना होगा .न्यायलय यदि सही दृष्टिकोण रखे तो यह धारा कहर से बचाने वाली ही कही जाएगी कहर बरपाने वाली नहीं क्योंकि सामाजिक स्थिति को देखते हुए पत्नी व् उसके परिजनों को कानून के मजबूत अवलंब की आवश्यक्ता है.
शालिनी कौशिक [एडवोकेट ]
धारा ४९८-:एक विश्लेषण