June 28, 2010

शुक्रिया मैथिली जी एंड सिरिल

ब्लॉग वाणी कि सुविधा बंद होगई हैं , २००७ मे मैने लिखना शुरू किया था और २००७ मे ही ब्लोगवाणी बनी थीकई बार मैने अपने ब्लॉग पर ब्लोगवाणी के ऊपर भी लिखा , किसी किसी पोस्ट को ब्लोगवाणी पर देखा और अपना विरोध भी जताया और हर बार आप लोगो को संचालक के रूप मे "इंसान" पाया

ब्लोगवाणी केवल और केवल एक अग्रीगेटर ना रहकर ब्लॉग जीवन कि साथी बन गयीहम लिखते , ब्लोगवाणी पर आता , कभी पोस्ट ऊपर होती , कभी कोई उसे नीचे कर देता , हम फिर उसको ऊपर करते और इसी प्रकार तकनीक के जरिये हम अपने विचारो को देश कि सीमाओं से दूर ले जाते

धीरे धीरे कुछ ब्लॉगर ने अपने लेखन के अस्तित्व को ब्लोगवाणी कि सीढ़ी से जोड़ लिया और एक पायदान ऊपर या नीचे मे उन्हे अपना मान - अपमान दिखने लगा

यही ब्लोगवाणी कि सफलता का पैमाना था कि एक सुविधा जो महज हिंदी ब्लोगिंग को आगे ले जाने के लिये शुरू कि गयी थी उस पर आने के लिये लोग लाइन लगा रहे थे उसके पसंद ना पसंद के चटको से अपने लेखन को आंक रहे थे

कितनी अजीब बात हैं कि जो तकनीक आप ने दी उस पर ब्लॉगर अपनी रचनाओ का आकलन कर रहे थे, अपनी स्रजनात्मक प्रक्रियाओं को तोल नाप रहे थे !!!!!

सिरिल के लिये बस इतना कहना काफी हैं कि आज के ज़माने मे तकनीक के ज्ञाता अपने को खुदा / दानव समझ लेते हैं लेकिन सिरिल इंसान ही रहे । उनका मन व्यथित हुआ कि उनकी दी गयी सुविधा और जिस पर वो भविष्य मे सुधार भी कर रहे थे को लोग गाली दे रहे हैं लेकिन सिरिल संस्कार विहीन नहीं हैं इस लिये अपनी तकनीक के दरवाजे उन्होने आम ब्लॉगर के लिये बंद कर दिये पर पलट कर जवाब नहीं दिया किसी को भी किसी भी शिकायती पोस्ट पर ।

ब्लोगवाणी का इस तरह जाना मन को व्यथित कर गया पर क्युकी ब्लोगवाणी के समपर्क पेज पर दी हुई मेल disable की जा चुकी थी सो मुझे कई दिन से लग रहा था की शायद अबकी बार ब्लोगवाणी के संचालको ने तकनीक को बंद कर दिया हैं

ब्लोगवाणी दुबारा आये ना आये लेकिन मैथिली जी और सिरिल के लिये हमारे मन मे जो आदर हैं वो कभी ख़तम नहीं होगा

एक साथ छूटा हैं पर जिन्दगी रही तो फिर मिलेगे इसी दुआ के साथ


शुक्रिया मैथिली जी एंड सिरिल

June 20, 2010

एक खुला पत्र डॉ अरविन्द मिश्र के नाम

Arvind Mishra said...
अमित जी ,कुछ महिलाओं ने दुर्भाग्यवश अपनी निजी जन्दगी के दुखद तजुर्बों को पूरे ब्लॉग जगत पर लाद दिया है !

प्रिय डॉ मिश्र
आप का ये कमेन्ट यहाँ देखा । जानने कि बड़ी इच्छा हैं कि कितनी महिलाओं ने जो हिंदी मे ब्लॉग लिखती हैं आप से अपनी निजी जिन्दगी के अनुभवों / दुखद तजुर्बों को बांटा हैं ?? इस के अलावा कितनी ऐसी महिला हैं जो हिंदी मे ब्लॉग लिखती हैं जिनकी निजी जिन्दगी के दुखद अनुभवों कि सूची आप के पास हैं वो सूची बनाने के लिये आप ने किस जासूसी प्रक्रिया का सहारा लिया । किसी की निज जिन्दगी के दुखद अनुभव अगर आप के पास हैं तो जरुर या तो वो आप कि प्रगाढ़ मित्र हैं { मित्रता लिंग भेद भाव से परे होती हैं ये मेरा मानना हैं } और अगर ऐसा हैं तो आप कैसे इतने निर्मम हो कर अपने साथ बांटी जानकारी का भ्रम यहाँ दे रहे हैं । आप के ब्लॉग पर आप ने कई नारी ब्लॉगर के ऊपर आलेख दिये हैं क्या आप उनमे से किसी कि बात कर रहे हैं ?? अगर हाँ तो ये किसी का अपने ऊपर किया हुआ भरोसा तोडना ही हुआ

अगर उनमे से कोई नहीं हैं तो आप को कहां से हम सब नारी ब्लॉगर के निज जिन्दगी कि जानकारी प्राप्त हो रही हैं क्या आप वो जरिया साझा करना चाहेगे ??

आप कहेगे किसी के लेख से उसकी मानसिकता पता चल जाती हैं तो यही बात अगर आप पर भी लागू कर दी जाए तो आप क्या कहेगे ??

नारी को समाज मे आज भी दोयम का दर्जा प्राप्त हैं । आज भी घरो मे भेद भाव होता हैं बेटी बेटे मे जो परोक्ष ना भी दिखे होता हैं । फिर भी हमारी बेटियाँ निरंतर आगे बढ़ रही हैं और अपने को साबित कर रही हैं कि वो किसी से कम नहीं हैं । मेरा प्रश्न हैं कि अगर आज भी लड़कियों को अपने को "साबित " करना पड़ता हैं तो "बराबरी " कहां हैंबात पुरुष समाज से प्यार पाने कि नहीं हैं बात हैं अपने अस्तित्व को बराबरी से स्वीकारे जाने की । नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं केवल और केवल पति पत्नी के सन्दर्भ मे ही सही हैं लेकिन आज की नारी अपनी एकल छवि बना रही हैं इस लिये पूरक का प्रश्न उसके सन्दर्भ मे बेमानी हैं ।

संविधान और न्याय ने भारतियों को कुछ अधिकार दिये हैं जो समानता कि बात करते हैं पर वो समानता दिखती नहीं हैं अगर दिखती होती तो आप जैसा प्रबुद्ध { आप के लेखो को पढ़ कर लोग यही समझते हैं } इस प्रकार का कमेन्ट देने से पहले एक बार जरुर सोचता ।

और हां पत्र ख़तम करते करते ये जरुर कह दूँ कि अगर ये कमेन्ट मेरे ऊपर हैं तो मैने आप से कभी अपने व्यक्तिगत अनुभव नहीं बांटे हैं हां गाहे बगाहे आप के आलेखों और कमेन्ट मे जब भी नारी के प्रति दोयम का दर्जा दिखा मैने प्रतिकार जरुर किया हैं । हाँ अब ये मुझे ही नहीं औरो को भी दिखने लगा हैं शायद अब आप को लेगा कि ये बड़ा दुर्भाग्य हैं कि महिला ब्लॉग भी लिखती हैं ।

आप अपने दुर्भाग्य को कोसते रहिये हम फिर भी जहाँ भी भेद भाव देखेगे लिखेगे , जो बन पड़ता हो कर लीजिये ।

"मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउंगी
वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा" परवीन शाकिर

June 18, 2010

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धांजलि

*ओ! बुंदेला भूमि जननी रख ले प्रदेश का पानी ,एक बार फिर से दे दे लक्ष्मीबाई सी रानी*

आज १८ जून को झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि है ,उनकी स्मृति में सारे भारतवर्ष की न सिर्फ महिला-शक्ति बल्कि हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊँचा होता है. हर नारी को झाँसी की रानी से प्रेरणा लेकर साहसी बनना है व आवश्यकता पड़ने पर विवेकपूर्ण निर्णय लेकर अपने कदम बिना किसी से डरे आगे बढ़ाना होगा. ज्ञातव्य है सदियों से ही हमारे देश की नारी ने बड़े से बड़े कार्य किये हैं ,वर्तमान में भी नारियों ने वैसे भी हर क्षेत्र में अपने परचम लहराने प्रारंभ कर दिए हैं लगभग हर जगह आगे आकर अपना लोहा मनवा रही हैं ,तो फिर किसी भी बात(समस्या) से न घबराकर अपनी गरिमा बनाये रखकर आगे बढते रहना है.
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई- नारी शक्ति के साहस व शौर्य का गुण-गान आज भी समस्त बुंदेलखंड के कण-कण में ही नहीं संपूर्ण भारतवर्ष के जन-मानस के रग-रग में व्याप्त है.जहाँ जाकर उनके बारे में जानकर हमारे मन में भी वैसा ही स्वाभिमान व एक अपूर्व शक्ति जाग्रत हो जाती है . हमें हमारी मानसिक व शारीरिक शक्ति चैतन्य करनी ही होगी.
*झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता प्रशस्ति विभिन्न स्वरूपों में*
प्रख्यात कवियों+साहित्यकारों ने उनको अपनी भावनात्मक श्रद्धांजलि अपने अलग-अलग रूप में प्रगट की है.
• श्रीयुत बाई लक्ष्मी शोभित त्रिविध स्वरुप ,सभा सरस्वती ,गृह रमा, युद्ध कालिका रूप.
तज कमलासन ,कर कमलासन,गहि रंग तलवार,कुल कमला काली गयी,झाँसी दुर्ग द्वार.
.--वियोगी हरि
• देश की गुलामी और नमक -हरामी इन दोनों से ही लक्ष्मी देश लक्ष्मी सी छली गई ,
आखिरी प्रणाम कर झाँसी को उसांसी भर, साथ कर सुरमों के एक थी अली गई,
विप्रधन श्याम हांकते ही रहे बांटें अरि , तकते ही रहे जन कौन सी गली गई,
बैरियों की भीर थी , हाथ शमसीर थी ,यों चीरती फिरंगियों को तीर सी छली गई.
घनश्यामदास पाण्डेय
• गर्दन पर गिर पड़ने वाली ,काँटों से कढ़ जानेवाली ,

अरि की बोटी से चटख-चटख ,छोटी तक चढ़ जानेवाली '
छू गई कहीं पर किंचित भी,जिसको इनकी विष बुझी धार,

विष चढ़ते ही गिर पढ़ते थे अरि एक-एक पर चार.
• प्रतिपल शोणित की प्यास थी,पर पानीदार कहती थी ,

जिसके पानी से पानी में बेलाग आग लग जाती थी.

*लक्ष्मीबाई की सु स्मृति का गति हूँ अनुपम आव्हान ,
खोजा करती हूँ दुर्गा की पदरज पावन पुण्य महान.*

*हम सभी महिला शक्ति की ओर से हमारी प्रेरणा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को हम सबकी ओर से श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं .*

“उनकी शक्ति से अभिमंत्रित व विजित ” ,

कोमल है कमजोर नहीं ,शक्ति का नाम नारी है ,
सबको जीवन देनेवाली मौत भी उससे हारी है.
इल्म ,हुनर, औ दिलोदिमाग में कहीं किसी से कम नहीं,

वह तो अपने सारे अधिकारों की पूरी अधिकारी है.
बहुत हो चुका ये दुःख सहना अब इतिहास बदलना है ,

नारी को अब कोई कह न पाए ये अबला बेचारी है.
*जय हो रानी लक्ष्मीबाई की , जय हो भारतीय नारी शक्ति की एकता की ,जयहिन्द*

*अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका -साहित्यकार*

नमन एक वीरांगना को

गंगा धर राव की पत्नी होना मनु का धर्म था और क्रांति गुरु होना मनु का कर्म था । आज मनु , मणिकणिका , रानी लक्ष्मी बाई की पुण्य तिथि १८ जून हैं ।



https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX865LtpuoqXdmL926iIJ-cjclC4-nM9IX9DcqcJPvIrunEXP1i-Ke4CfTnh7ZjcN4Ijeo_IywQtXGOpQNnCKBdglEJBFG0OKFLxb1FXJomwEwlO6rtkVWGKdyYnccQmzaV_T3Bj-7f2bz/s1600/Rani+Lakshmibai.jpg.jpg
हिंदी
ब्लॉग जगत मे कुछ प्रविष्टियाँ आयी हैं जिनको संगृहीत कर दिया हैं
हर प्रविष्टि को पढे और नमन का कमेन्ट दे कर अपने कर्तव्य की पूर्ति करे

हर हर महादेव

ये है झांसी की रानी (jhansi ki rani)का असली चित्र.

रानी लक्ष्मीबाई का दुर्लभतम फोटोग्राफ
खूब लड़ी मरदानी, अरे झांसी वारी रानी (पुण्यतिथि 18 जून पर विशेष)
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

June 17, 2010

गृह रावण एक सच्चाई , गृह दुर्गा बनने मे भलाई

गृह रावण भी होते हैं । आज ही एक खबर पढी जहाँ एक पति ने अपनी पत्नी को ग्रुप सेक्स के लिये मजबूर कियाअपने ही भाइयों और बिज़नस पार्टनर के साथ । पति ने ये डोमेस्टिक वोइलांस ४ साल तक अपनी ही पत्नी पर की . पति का नाम आप यहाँ पढ़ सकते हैं ।


पत्नी मे गृह लक्ष्मी और सरस्वती खोजने वाले , पत्नी मे संस्कार और भारतीये सभ्यता खोजने वाले लोग इन गृहरावणों के लिये क्या कहेगे ।

पत्नियों को अब गृह दुर्गा ही बनाना होगा शायद क्युकी


कार्येषु मन्त्री करणेषु दासी
भोज्येषु माता शयनेषु रम्भा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री
भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥


ये सब करके पत्नियों ने देख लिया हैं और इसी सब का नतीजा हैं की पत्नियों को वो सब भुगतना पड़ता हैं जो सोच कर भी दिल दहल जाता हैं


लिंक जरुर देखे

बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?

आजकल हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में महिलाओं के साथ होने वाली छेङछाङ और यौन हिंसा के खिलाफ़ लगभग एक सी दलीलें दी जाने लगी हैं। किसी महिला के साथ कोई अनहोनी होते ही हमारे आसपास एक अजीब सी फुसफुसाहट शुरू हो जाती है कि उसने क्या पहना था ? कितना पहना था ? उस वक्त वो फलां जगह क्या कर रही थी? वगैरह वगैरह । ऐसे वाहियात सवालों के ज़रिये पूरा समाज और सिस्टम उस महिला कि पोशाक को अमर्यादित बताकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोने लगता है। जबकि हकीकत यह है कि पारंपरिक परिधानों में भी महिलाओं के साथ ईव टीजिंग और बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। ऐसे हालात में सबसे ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है जब इस दर्दनाक स्थिति से गुजरने वाली महिला को ही कटघरे में खड़ा कर देने वाले लोगों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि अगर किसी औरत के कपड़े ही उसके साथ हुए अश्लील व्यव्हार के लिए जिम्मेदार हैं तो साल भर कि भी उम्र पार न करने वाली मासूम बच्चियों के साथ आये दिन ऐसी घटनाएँ क्यों होती हैं? इतना ही नहीं क्यों वे उम्र दराज़ औरतें ऐसी वीभत्स घटना का शिकार होती हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ पारंपरिक लिबास ही पहने हैं। यह शर्मनाक है कि इस तरह के स्त्री विरोधी स्वर नारी कि अस्मिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं।

बचपन से एक कहावत हम सब सुनते आये हैं कि ''खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है" मेरा सवाल पूरे समाज और सिस्टम से कि अगर खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है तो उन्हीं आँखों में अश्लीलता क्यों नहीं हो सकती? बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?


June 15, 2010

ऐसे में आप क्या कहेंगे ?

नारी सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन है (माफ़ कीजिये मेरी भाषा थोड़ी असभ्य हो गई है )ये बात आज के ५० से ७० साल और शायद उससे पहले से ही समाज के मूल में रही है और आज भी उतनी ही गहरी पैठी है कुछ लोगो के मन में |फर्क इतना है की पहले १० से १२ बच्चे सामान्य बात थी फिर ६ से ७ बच्चो पार बात आई फिर तीन से चार और फिर हम दो हमारे दो |और अब तो एक ही है हमारा |लेकिन कुछ लोगो की मानसिकता है अभी भी वही है शादी हो गई बस एक बच्चा हो जाय वो भी लड़का तो परिवार का वंश नाम चलेगा |हमें तो हमारा पोता मिल गया .हमे हमारा भतीजा मिल गया , तुम तो बाहर की लडकी हो तुमसे क्या लेना देना ?तुमको जो जीवित रहने के लिए जरुरी है वो सब मिल ही रहा है न ?यहाँ ये मिथक भी टूटता जा रहा है की एक नारी को माँ बनने पर ही सम्मान मिलता है या पूर्णता आती है |(अगले जनम के लोहासिंग की पोता पाने की लालसा उसके सनकी पन की निशानी कही जाती हो )पर ये सोच अभी विद्यमान है |एक शिक्षित परिवार भी अपनी बहू के साथ ऐसा ही बर्ताव करता है |

June 14, 2010

परिचारिका का काम अपमान जनक होता हैं

एक परिपार भुखमरी के कगार पर हैं । पति पत्नी और दो बच्चे आत्म सम्मान से जीना चाहते हैं । दो तरीके हैं मित्रो से आर्थिक सहायता लेना और दूसरा कहीं नौकरी इत्यादि करना । पत्नी भी पढ़ी लिखी हैं , पति भी लेकिन अफ़सोस नौकरी नहीं मिल रही ।

किसी ने आर्थिक सहायता की जगह पत्नी को एक वृद्ध महिला की परिचारिका बनने के लिये कहा । काम था महिला के साथ सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक रहना , उनके सब काम करना जैसे उनके लिये खाना बनाना , उनके कपड़े धोना , उनके साथ बेठना बाते करना , वो जहाँ जाए साथ जाना इत्यादि । हां चोका , झाड़ू , पूछा इत्यादि नहीं करना वो केवल उस दिन करना जिस दिन उस काम को करने वाले ना आये । सारे काम के लिये वो वृद्ध महिला ३००० रूपए प्रति माह देने के लिये तैयार थी ।


महिला को ये बात बहुत नागवार गुजरी । उसको लगा उसका अपमान किया गया । क्या वाकई ??

क्या दोस्तों से आर्थिक साहयता माँगने की जगह परिचारिका का काम करना अपमान जनक कार्य हैं ।

June 09, 2010

एक माँ नहीं रही , बच्चे भूखे रहे और लोग चरित्र कि बात करते रहे ।

कल कि पोस्ट से आगे

अभी अभी समाचार पत्र मे पढ़ा कि वो महिला एक स्लम निवासी थी जो उस रात लिफ्ट लेकर उस टैक्सी से यात्रा कर रही थी ।
उसको उसके पति ने ५ साल पहले ही छोड़ दिया था ।
उसके तीन बच्चे हैं बड़ा १० साल और सबसे छोटा २ साल ।

३ दिन से भूखे प्यासे बच्चे झुग्गी मे थे जब पुलिस फोटो के सहारे वहाँ पहुची ।

एक माँ नहीं रही , बच्चे भूखे रहे और लोग चरित्र कि बात करते रहे ।

June 08, 2010

प्रश्न सिर्फ इतना हैं कि क्या महिला के चरित्र ही संदिग्ध हैं क्या इस पूरे सन्दर्भ से जुड़े औरो के चरित्र साफ़ हैं ??

दिल्ली मे एक सड़क दुर्घटना मे एक मंत्री के बेटे कि कार से एक टैक्सी कि टक्कर होती हैं । टैक्सी मे सवार महिला यात्री कि दुर्घटना स्थल पर ही मौत हो जाती हैं , ड्राईवर को अस्पताल मे भर्ती किया जाता हैं । ड्राइवर अस्पताल से गायब हो जाता हैं । टैक्सी एक नामी होटल के स्टैंड से ली गयी थी ।
महिला यात्री के फ़ोन मे तक़रीबन ३५० नंबर पाए जाते हैं ।
पुलिस अब तक महिला कि शिनाख्त मे ना कामयाब हैं ।

हमेशा कि तरह महिला के चरित्र पर संदेह कि उंगलियाँ उठ रही हैं ।

प्रश्न सिर्फ इतना हैं कि क्या महिला के चरित्र ही संदिग्ध हैं क्या इस पूरे सन्दर्भ से जुड़े औरो के चरित्र साफ़ हैं ??
जो इस दुनिया मे नहीं हैं उस पर तो कार्यवाही हो नहीं सकती पर जो हैं क्या उन पर कार्यवाही होनी चाहिये ??

आज कि अपडेट यहाँ

June 07, 2010

नया कलेवर!

                        अभी अभी "नारी" को नए कलेवर में देखा. इन तीनों चित्रों का संयोजन क्या कुछ कह रहा है. खुद अपनी भाषा में कुछ कह रहे हैं और शांत सी नारी की जीवन से जुड़ी विधाओं की ओर इंगित कर रहे हैं.  क्या नारी का ये नया कलेवर आप सबको भी अच्छा लगा. अपने विचारों से अवगत कराएँ.

June 03, 2010

ब्लॉगर मित्रो धोखा ना खाना तकनीक के खेल मे ।

वैसे तो जन साधारण बहुत सक्षम और ज्ञानी हैं ही फिर इस पोस्ट के जरिये एक बात बाँट रही हूँ

कल अगर मोबाइल कि घंटी बजे और आप को उधर से किसी महिला की आवाज सुनाई दे तो ज़रा सावधानी बरतने कि जरुरत हैं । कुछ मोबाइल हैण्ड सेट मे ये सुविधा हैं कि आप सैटिंग्स मे जा कर आवाज को बदल सकते हैं । यानी अगर आप चाहते हैं कि आप जिस को फ़ोन कर रहे हैं वो एक महिला कि आवाज सुने तो आप के पास सैटिंग्स मे जा कर ये करने कि सुविधा हैं । यानी बात एक पुरुष भी कर सकता हैं लेकिन सुनने वालो को लगेगा महिला कर रही हैं ।

सो ब्लॉगर मित्रो धोखा ना खाना तकनीक के खेल मे ।
फर्जी पी , डी के बाद फर्जी आवाज भी ब्लोगिंग मे हैं