April 26, 2013

फ़िल्मी शादी

मै बराबरी की पक्षधर हूँ अगर पुरुष को अधिकार हैं की वो फिल्म और मॉडल से कमा खा सके तो स्त्री को भी हैं .

लोग जिस दिन फरक करना सीख जायेगे की ये मॉडल , ये प्रोनो ये फिल्मो के सीन इत्यादि एक नाटक हैं जो होता नहीं हैं बस भ्रम मात्र देता हैं उस दिन से बदलाव होगा
फिल्म बनाना तकनीक हैं जहां जो होता हैं महज तकनीक से होता हैं वरना
हर सात  फेरे की शादी को जो फिल्म में होती हैं उसको मान्यता क्यूँ नहीं दी जाती हैं . 

क्यूँ नहीं हमारे धर्म गुरु और हमारा समाज इसके खिलाफ कभी कुछ कहता हैं

हर फिल्म से पहले अब सिगरेट पीने को हानि कारक बताया जाता हैं और डिस्क्लेमर होता हैं की फिल्म के कलाकार अगर इस का सेवन कर रहे तो एक्टिंग कर रहे हैं वो इसका प्रमोशन नहीं कर रहे


फिर क्यूँ ये जो शादी . फेरे , मन्त्र , इत्यादि दिखाये जाते हैं उनके लिये कोई डिस्क्लेमर नहीं होता .

नारी अपने को बेचती हैं फिल्मो में डांस करके , अश्लील गाने गा के ये सब कहना हमेशा मुद्दे के लिये उसी को जिम्मेदार बनाने जैसा होता हैं जो हमेशा से समाज का दोयम दर्जा माना गया .

ये सब एक हिस्सा हैं समस्या का जिसके तहत यौन हिंसा होती हैं लेकिन ये मानना की यही कारन हैं यौन हिंसा का खुद गलत सोच का हिस्सा हैं .

जब फिल्म नहीं बनती थी औरते तब भी मंदी और बाजारों में नंगी नचवाई जाती थी , बेची और खरीदी जाती थी . उस यौन हिंसा मे किस फिल्म अभिनेत्री का हाथ था ???


8 comments:


  1. १.नारी का क्रय- विक्रय,दैहिक शोषण यदि देखा जाय राजायों,नबाबों के के जमाने में ज्यादा हुआ है परन्तु उस समय उसका विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं थी. राजा/नबाब के आगे सब मजबूर थे.
    २ .आज काल उस मास स्केल में नहीं हो रहा है परन्तु जो होरहा है यह भी स्वतंत्र भारत में नहीं होना चाहिए.जहाँ तक फिल्म/माडलिंग में अंगप्रदर्शन की बात है यह तो स्वेच्छा पैस लेकर कर रहे है..समाज पर उसका क्या प्रभाव पड़ता इससे उनका कोई लेना देना नहीं है.
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  2. वह तो खैर माँग और आपूर्ति वाला सिद्धांत है जैसा कि फिल्मों में सेक्स परोसा जा रहा है ।इसके लिए महिला को दोष नहीं दिया जा सकता हाँ पर एक छोटा सा वर्ग उनका भी है जो इसे सफलता के एक शॉर्टकट के रूप में देखने लगा है।लेकिन मुझे ये नहीं समझ आता फिल्मों में जब महिलाओं की बात होती है तो केवल अंगप्रदर्शन की ही बात क्यों होती है।क्या फिल्म टीवी या विज्ञापनों के जरिये महिला विरोधी विचार नहीं बेचे जाते।कुछ समय पहले तक की फिल्मों में बहन बेटी एक समस्या हुआ करती थी।हीरो अपनी बहन के लिए दहेज का ही इंतजाम करने में लगा रहता था तो पत्नियाँ पतियों की पूजा करने और आशिर्वाद लेने या हर वक्त आँसू बहाने में।सीरियलों में तो अब भी यही हो रहा है।मैं उत्पाद भूल गया पर कुछ साल पहले एक विज्ञापन आता था जिसमें एक बुजुर्ग महिला पति से पूछती है कि आज बाई क्यों नहीं आई तो वो कहता है कि मैंने उसे हटा दिया अब घर का काम तुम करोगी।तब जो बचत होगी उससे तुम्हे स्विटजरलैंड ले चलूँगा।पत्नी यह सुन गदगद है क्योंकि पति स्विट्जरलैंड घुमाने का एहसान जो कर रहा है भले ही इसके लिए वह सारा त्याग महिला से ही चाहता है।
    क्या इन सब बातों का कुछ कम गलत असर होता है?

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  4. एक गाना हाल ही में बहुत चला 'फेविकोल से'।इसमें एक लाईन है -'मैं तो तंदूरी मुर्गी हूँ यार कटका ले सईयाँ एल्कॉहल से'।गंदे और द्विअर्थी गाने आजकल बहुत सुनने मिलते हैं पर किसी गाने में ऐसी घटिया बात मैंने तो कभी नहीं सुनी।कैसा गीतकार है वो जिसने यह लाइन लिखी।कितना सोचना पड़ा होगा उसे ये लाइन लिखने से पहले।कैसी छवि बनी होगी उसके दिमाग में महिला की जब उसने यह लिखा।अब बच्चे बूढ़े सब इन पंक्तियों पर झूमते हैं उत्सव मनाते हैं।
    मैं तो कहता हूँ कि यदि ऐसा गाना फिल्म में डाल दिया गया है तो फिर पोर्न सॉफ्ट पोर्न डालने की क्या जरूरत ।

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  5. मांग और आपूर्ति का सिद्धान्त बेतुका है. आप आपूर्ति से बाजार को लाद दो, ग्राहक की मजबूरी होगी उसी चीज को लेना. इसलिए फिल्मकार भी इसमें जिम्मेदार हैं.

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    1. बेतुका तो नहीं कह सकते पर हाँ आपकी बात इस लिहाज से जरूर सोचने वाली है कि जब हम माँग और आपूर्ति की बात करते हैं तो कहीं न कहीं उन लोगों को निर्दोष बता रहे होते हैं जो ये सब दिखा रहे हैं।दोषी तो इसमें दोनों ही हैं।ये लोग भी जब कुछ रचनात्मक और सार्थक नहीं कर पाते या नहीं करना जानते तो सेक्स का सहारा लेते हैं।वर्ना अच्छी चीजों को भी पसंद करने वाले हैं।

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  6. आपकी कुछ बातों से में सहमत हूँ , मगर ये कारण जिस पेड़ की शाखा है उसकी जड़ अगर में ढूँढता हूँ तो मुझे हमेशा से सबसे बड़ा कारण हमारी फिल्मों का लगता है , हालां के अगर फिल्म उद्योग जगत के किसी भी व्यक्ति से, अगर ये कहे तो वो नहीं मानेगा , क्योकि वो कहता है की फिल्म तो समाज का आईना है जो समाज में होता है वही वहां दिखाया जाता है ,मगर में उनसे ये पूछना चाहता हूँ की अगर कोई जुर्म किसी एक जगह हुआ तो मुजरिम को उचित सजा देकर उस जुर्म को वही दफन किया जा सकता है, सजा के खौफ से वो जुर्म शायद आसानी से दुबारा सर नहीं उठा पायेगा , मगर वही जुर्म को फिल्मो द्वारा देश के हर घर [बच्चे-बच्चे] तक पंहुचा दिया जाये,किसी बिमारी के संक्रमण की तरह तो क्या होगा .....?.....एक ताज़ा उदाहरण देना चाहूँगा ....Sunny Leone का जिसके हाथों से बड़े - बड़े फिल्म समारोह में पुरस्कार दिलवाये जाते है,बड़े बजट की फिल्मों और टीवी Ads. में काम दिया जाता है ,हममे से कितने लोग अपने मासूम बच्चों को उसकी पहचान बता सकते है की पोर्न कलाकार का मतलब क्या है, यदि वो हमसे पूछे ....?यही नहीं कितने समझदार बच्चे जिनको पैसा और शौहरत की चाह है ऐसों को समाज की उचाईयों पर जाते देख,क्या वो रास्ता नहीं भटकेंगे ,टी सीरीज के मालिक की हत्या से लेकर ...मुंबई बम ब्लास्ट ,{ मोनिका बेदी ,मंदाकिनी ,ममता कुलकर्णी आदि के संबंध } तक में फिल्मों [ और इस उद्योग से जुड़े लोग ] का योगदान जग जाहिर है ही ...ये तो वो बाते है जो पर्दे के बाहर आ गई बाकी सबकुछ तो पर्दे के पीछे ही है ..??

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