October 11, 2010

उफ़ ये घर तोडू औरते |

एक बात समझ में नहीं आती है की कुछ महिलाओ को दूसरे के जीवन में टाँग अड़ाने या दूसरों के घरों में ताका झाकी करने की आदत क्यों होती है | मैं तो बड़ी परेशान हुं एक ऐसी ही महिला से कुछ लोग उनको नारीवादी कहते है तो कुछ लोग उनको वो क्या कहते है हा याद आया घर तोडू औरत | कहते है उनको दूसरों के घर तोड़ने की आदत है | तलवार जी की बहु का एक साल में दूसरी बार मिस कैरेज हो गया बेचारी को पहले से ही दो लड़कियाँ है | हमारी नारीवादी वहा चली गई कहने लगी क्या बात है मिसेज तलवार आपकी बहु के साथ दूसरी बार ये घटना हो गई किसी अच्छे डाक्टर को दिखाइये मिसेज तलवार ने कहा की नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है हम तो खुद काफी अच्छे डाक्टर को दिखाते है | बेचारी बहु का उतरा सा मुँह देख कर उसे कह दिया की जब अगली बार फिर से प्रेग्नेंट होना तो अपने मायके चली लाना यदि बच्चा सुरक्षित चाहती हो | लो जी उनकी बहु ने तो सच में यही कर दिया अब तलवार परिवार का तो गुस्सा होना लाज़मी था | जिस बात का डर था उन बेचारो को वही हो गया तीसरी बार भी बेटी | उन्होंने भी साफ मना कर दिया की बहु हमारे इजाज़त के बिना मायके गई कैसे, अब हम उसे नहीं लायेंगे | तलवार साहब ने खुद कहा कि उन्हें बेटी होने का गम नहीं है पर बहु की आदते ख़राब हो गई थी देखिये अपनी मर्ज़ी से मायके चली गई अब पड़ी रहे वही पर हमें उसकी जरुरत नहीं है | बोलो तोड़ दिया उसका घर अरे अपने ससुराल में होती तो क्या होता ज्यादा से ज्यादा एक दो बार और उस का मिसकैरेज हो जाता जहा दो जन्म से पहले मार दी गई वहा एक और मार दी जाती क्या फर्क पड़ता पर कम से कम उसका घर तो बना रहता बाकी दो बेटियों को तो उनके पिता का प्यार मिलता आप जानते नहीं कितना प्यार है उसको बेटियों से अब बताओ वो भी पिता के प्यार से महरूम हो गई | उन नारीवादी की अपनी दो बेटिया है उनको बेटे की चाह नहीं है पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों को भी इसकी चाह नहीं हो अरे बेटा कुल का चिराग होता है माँ बाप का सहारा होता है पर इनको कौन समझाये | अरे मुझे तो लग रहा है की तलवार परिवार अच्छा कर रहा था देश की जनसंख्या बढ़ने से रोक रहा था नहीं तो आदमी बेटे के चक्कर में कितनी बेटियों को जन्म देते चले | कुछ बेवकूफ़ लोग इसे भ्रूण हत्या कहते है और इसको लड़के लड़कियों के अनुपात ख़राब होने का कारण मानते है | पर मुझे नहीं लगता है कि कुछ ऐसा होता है ,ब्लॉग जगत के एक ज्ञानी ने हमें बताया की ऐसा कुछ होता ही नहीं है ये तो प्राकृतिक कारण है जो आज लड़कियाँ कम जन्म ले रही है और लड़के ज्यादा | जय हो उस ज्ञानी बाबा की और उफ़ ये घर तोडू औरते |

जी उनकी हिमाकत यही नहीं रुकी मिस्टर नारायण ने पार्टी दी उनका बेटा आस्ट्रेलिया जा रहा था पढ़ने के लिए सभी वहा गये वो भी गई और कहने लगी वहा नारायण जी आप के बच्चे तो बड़े होसियार है भाई इस साल बेटे को आस्ट्रेलिया भेज रहे है अगले साल लड़की भी ग्रेजुएशन कर लेगी उसे कहा भेज रहे है पढ़ने के लिए | नारायण जी ने कहा नहीं भाई बेटी को नहीं भेज रहा हुं लड़की है आप समझ सकती है थोड़ा सुरक्षा का मामला है तो कहने लगी की नारायण जी आप बेटा बेटी में इतना फर्क करते है बेटी कि इतनी चिंता आप को बेटे की जरा भी फ़िक्र नहीं है रोज टीवी पर आस्ट्रेलिया से भारतीय छात्रों के पीटने की खबर आ रही है आप को उससे डर नहीं लगता है | लो जी लगा दी आग नारायण जी के घर में वो दिन है और आज का दिन उनकी बेटी ने जब से ये बात सुनी है तब से ज़िद पर अड़ी है की पाप मैं तो भईया से ज्यादा पढ़ने में तेज हुं मुझे भी आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाना है और नारायण जी उसे जाने नहीं दे रहे है भंग हो गई घर की शांति | अब आप ही बोलो की लड़कियों की पढ़ाई में कोई इतने पैसे खर्च करता है क्या अरे उनको तो फिर ससुराल चले जाना है उनकी पढ़ाई माँ बाप के क्या काम आयेगा बेटा पढ़ेगा कुछ अच्छा बनेगा उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा आज इन्वेस्ट किया है कल वही कमाई बनेगा | फिर ये भी तो डर रहता है कि लड़कियों को बाहर भेजो तो उनको कुछ ज्यादा ही पर निकल आते है बाहर पढ़ने को भेजा तो क्या पता वहा से किसी थॉमस पीटर को लेकर चली आवे का इज़्ज़त रह जाएगी नारायण जी की | पर उन नारीवादी को ये बात समझ आये तब ना उफ़ ये घर तोडू औरते |

हद करती है राय साहब के बेटी की तो शादी ही तोड़ दी हुआ ये की लड़के वालो ने कुछ भी नहीं मागा था बड़े भले लोग थे राय साहब तारीफ करते नहीं थक रहे थे राय साहब काफी पैसे वाले थे सब जानते थे सो लड़के वालो ने कह दिया की बेटी की ख़ुशी के लिए जो देना है आप खुद ही दे दे | लड़का बैंगलोर (बैंगलुरू) में साफ्टवेयर इंजीनियर था उन्हें जा कर बोल आई की भाई पैसे दे रहे हो अच्छा कर रहे हो बेटी का भी पिता के धन पर हक़ बनता है आप के पास है तो अवश्य उसकी खुशी के लिए दे ऐसा करे की अपनी बेटी के नाम पैसे डाल दे बैंगलोर जाएगी तो वही पर अपने घर गृहस्थी का समान ले लेगी फैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स किया है अपना बुटिक खोल लेगी एक अनजान शहर में वो कहा पैसों के लिए भाग दौड़ करेगी | राय साहब की मति मारी गई थी और उनकी बात मान ली शादी के चार दिन पहले जब लड़कों वालो के हाथ कुछ नहीं आया और उन्हें पता चला की सारा पैसा लड़की के नाम है तो उन्होंने शादी ही तोड़ दी | अब बोलो तो "आप को जो देना है खुद ही दे दो हमारे पास तो भगवान का दिया सब कुछ है" अरे ये सब बाते तो कहने के लिए होती है मानने के लिए नहीं | बिना लड़के वालो को कुछ मिले शादी संभव है क्या लड़के को पढ़ाने लिखाने में इतना खर्च किया है माँ बाप ने क्या उसको नहीं वसूलेंगे | अग्रवाल जी की लड़की को तो थाने तक ले कर चली गई हुआ ये की बेचारे के दामाद को बिज़नेस के लिए पैसे चाहिए था सो पत्नी को भेज दिया मायके की जाओ पापा से पैसे ले कर आना उसे ससुराल नहीं आने दे रहे थे | अग्रवाल जी को लेकर थाने चली गई और दामाद के खिलाफ रपट लिखा दी कि पैसे के लिए पत्नी को पिटता है और अब उसे साथ नहीं रख रहा है | तोड़ दिया एक और घर अग्रवाल जी को दे देने थे पैसे बेटी का घर बसा रहे ये ज़रुरी नहीं था और बेटी भी मार खा के चली आई ये नहीं कि मार सह कर भी अपना घर बचाती | कौन समझाये इनको उफ़ ये घर तोडू औरते |

आप बताइये की एक नारी के जीवन में उसके घर गृहस्थी पति परिवार से भी बड़ा कोई होता है अरे भगवान ने उसे बनाया ही इसीलिए है की वो सारा जीवन दूसरों की देखभाल करे उनकी सेवा करे क्या और कोई जीवन है उनका | पति उनका परमेश्वर होता है सारा जीवन उनके चरणों में गुजार देना चाहिए कभी कदार यदि उसको गुस्सा आये और पत्नी को पिट दे तो उसका प्यार समझ कर ग्रहण कर लेना चाहिए और कुछ नहीं कहना चाहिए पर इनको देखो वर्मा जी अपनी पत्नी को पिटते थे उनके बीच में कूद पड़ी अरे भाई ये उनके परिवार का आपस का मसला है जब वर्मा जी के बड़े भाई भाभी और पिता जी माता जी कुछ नहीं कर रहे है तो आप को पति पत्नी के बीच जाने की क्या जरुरत है कभी कदार पति ने पिट दिया तो क्या हुआ आखिर प्यार भी तो करता है एक दो झापड़ खा लेने में क्या बुराई है मुझे तो सारी गलती औरतों की ही लगाती है क्या जरुरत है पति से झगड़ा करने की चुप चाप वो जो कहे गाली दे सुन लेना चाहिए ज्यादा बोलेंगी तो मार तो खायेंगी ही ना | चुप रहेंगी तो दो झापड़ में पति शांत हो जायेगा और कुछ देर में भूल जायेगा आप भी भूल जाइये | पर ये समझती नहीं है उफ़ ये घर तोडू औरते |


एक नारी तो अपना अस्तित्व खो कर ही सही जीवन पाती है उसका काम तो बस बच्चे पैदा करना उसे अच्छे संस्कार देना और उनका पालन पोसन करना है | जब तक कोई स्त्री प्रसव आनंद सह कर किसी पुत्र को नया जीवन नहीं देती है वो संपूर्ण नहीं होती है | पर ये निकल पड़ी है कि बेटियों की भी पहचान होनी चाहिए उनका भी नाम होना चाहिए उनका अपना अस्तित्व होना चाहिए उनको भी घर से बाहर निकल कर काम करना चाहिए का नारा लेकर | एक ज्ञानी ने हमें बताया है देश में महिलाओ के खिलाफ अपराध इसी के कारण बढ़ गये है क्योंकि वो घर से बाहर निकल रही है | सीधा हिसाब है की जब वो घर के बाहर निकलेंगी ही नहीं तो उनके खिलाफ कोई अपराध होगा ही नहीं ना | चुपचाप घर में बैठिये ना, किसने कहा है घर से बाहर जाने के लिए | पहले घर से बाहर निकल कर पुरुषों को उकसायेंगी फिर जब वो कुछ कर देगा तो तमाशा खड़ा कर देंगी | दोष तो महिलाओ का है आप गई ही क्यों उसके सामने ना आप उसके सामने जा कर उसे उकसाती ना वो कुछ करता उसमे उस बेचारे का क्या दोष है | पर ये मानती कहा है उफ़ ये घर तोडू औरते |

अरे इन्होंने तो कामवालियों तक के घर नहीं छोड़े उसे भी तोड़ डाला वो कामवाली भी बेवकूफ़ एक दिन रोते हुए इनके पास चली आई कहने लगी की जो कमाती है वो सब पति छीन लेता है और अपनी मर्ज़ी से उसे खर्च करता है शराब जुए में उड़ा देता है बच्चों के फ़ीस के पैसे नहीं है | लो जी चली गई उसके घर और उसके पति को धमका आई की आज के बाद यदि उसने पैसे छीने तो उसकी शिकायत पुलिस से कर देंगी और उसे छोड़ आया वहा जी वही जहा शराब वराब छुड़ाने है | क्या किया क्या जाये इनका इनको इतनी भी समझ नहीं है की जब अपना सब कुछ पति का है तो क्या पैसा उसका नहीं है आखिर कोई महिला कमाती ही क्यों है इसीलिए ना की पति के साथ खर्च में हाथ बटा सके जब बेचारे पति के शराब जुए का खर्च कम पड़ेगा तो पत्नी से नहीं लेगा तो किससे लेगा | आखिर एक नारी का धर्म ही क्या है अब जा कर जाना है की पुरुषों को खुश रखना तभी तो वो अपने पत्नी माँ या बेटी बहन को खुश कर सकते है वो दुखी रहेंगे तो सभी को दुखी करेंगे | पर उफ़ इन घर तोडू औरतों को क्या पता |

याद करीये हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति को कैसे नारिया अपना सर्वस्त्र निक्षावर करके भी अपना घर बचाती थी | भले पति पिट पिट कर मार डाले ससुराल वाले दहेज़ के लिए जला दे पर कभी मायके वापस नहीं आती थी अपना घर नहीं तोड़ती थी | माँ की वो सिख नहीं भूलती थी की बेटी जिस ससुराल में तेरी डोली जा रही है वही से तेरी अर्थी निकलनी चाहिए | पर आज इन नारी वादियों के कारण लोगो के घर टूट रहे है ये नारियो को बिगाड़ रही है हमारी संस्कृति का ख़राब करके रख दिया है | इनकी इन हरकतों से तो सीता माता भी दुखी है |

खुद इनको तो सब कुछ मिल गया है एक समझदार पति दो प्यारी बेटिया सम्मान और प्यार करने वाले सास ससुर समाज में नाम और पहचान खुद का घर तो ये खूब संभालती है पर दूसरों का घर तोड़ती है | उफ़ ये घर तोडू औरते |
कल आई थी मैडम जी मेरे पास सबकी खबर सुनाने कहने लगी " आज कल दिन ठीक नहीं चल रहे है तलवार जी के कुल के चिराग उनके बेटे ने उन्हें घर अपने नाम करके घर से निकल दिया है बेचारे बेटी के पास रह रहे है | नारायण जी का बेटा वही आस्ट्रेलिया में ही बस गया है पर वो किसी को बताते नहीं क्या बताये किसी के साथ रहता है किसी थॉमस के साथ हा बेटी बड़ी अच्छी पोस्ट पर पहुँच गई है सीना फूला कर सबको बताते है | राय साहब की बेटी की शादी उसी लड़के के साथ हो गई है | लड़के ने अपने घर वालो की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली | अग्रवाल जी की बेटी का तलाक हो गया है उसकी भी दूसरी शादी तय हो गई है | वर्मा जी तो पुलिस की एक झाड़ के बाद ही सुधर गए | कामवाली के पति की भी शराब जुए की लत छूट गई है अब ढंग से काम करता है कही | " अपनी झूठी वाह वही करके मैडम जी चलती बनी | पर जो भी हो वो है तो घर तोडू औरत ही |
अंशुमाला

17 comments:

  1. anshumala
    thanks for joining the NAARI blog . I will comment on the post latter .

    ReplyDelete
  2. नारीवादी बनाम घरतोडू औरत....ऐसी नारीवादियों से बच के रहने में ही भलाई है.

    ReplyDelete
  3. जय हो नारीवादियो की………………तब तो हर घर बस जायेगा………………॥बेहतरीन व्यंग्य।

    ReplyDelete
  4. shabdo ki paribhashaye samay kae saath badaltee haen
    naarivaadi shabd kyaa tha aur kyaa haen aaj kae samay mae is par koi post mukti dae to achcha lagegaa

    aap ki post ki dhaar paeni haen shyaad ab mujhe/aapko/hamko kuchh kam galiyaan padae !!!!!

    ReplyDelete
  5. किसी दर्द से ही व्यंग्य उभरता है।
    'सार'गर्भित!!

    ReplyDelete
  6. अच्छा व्यंग्य लिखा है अंशुमाला. पर देखो अभी कोई आ जाएगा और कहेगा "एक और निरर्थक पोस्ट" :-)
    खैर, हमलोग भी जब गाँव में लोगों को अपनी बेटियों को पढाने के लिए समझाते थे और लड़कियाँ पढ़ने की जिद कर लेती थीं, ता हमें भी घरतोडू और लड़कियों को बिगाड़ने वाली कहा जाता था, पर आज वो लड़कियाँ पढ़ पायी हैं और उनमे से एक तो बी.एड. कर चुकी है. तो मेरे ख्याल से इन सारी उपाधियों को एक ओर रखकर अपना काम करते रहना चाहिए.
    रचना जी, आपके कहे अनुसार मैं जल्दी ही एक पोस्ट 'नारीवाद' की वर्तमान अवधारणा पर लिखूँगी.

    ReplyDelete
  7. हे ईश्वर ! इन घर फोडू औरतों को थोडी अक्ल दे।ये इन्हे क्या हो गया हैं?हमने इनके लिये क्या क्या नहीं किया ।इन्हे गृहशोभा,गृहलक्षमी या देवी जैसे तमगे दिये।देवी मानकर इन्हे तेरे बगल में बिठा दिया।ये समझाने के लिये की पति की सेवा में क्या सुख हैं,घर घर में हमने लक्षमी,विष्णु जैसे आदर्श जोडे की तस्वीरें लगवाई।लेकिन इन्हें लक्षमी के पैर दबाना तो याद रहता हैं पर उसके चेहरे की मुस्कान नहीं दिखाई देती।इन्हे सीता की अग्नि परीक्षा याद रहती है पर ये नहीं दिखता कि आज भी हम सीता का नाम राम से पहले लेते है? फिर भी ये देवी के बजाए इन्सान ही बने रहना चाहती हैं।हे ईश्वर अब तू ही कुछ कर,हम घर जोडू पुरूष तो इनके आगे हार चुके हैं।

    ReplyDelete
  8. जानकर खुशी हुई कि अंशुमाला जी भी अब इस ब्लोग की सदस्य हैं।किसी भी विषय पर उनकी टिप्पणियाँ बहुत ही संतुलित होती हैं।लेकिन उन्हें बहुत पहले यहाँ होना चाहिये था।खैर... देर आयद, दुरुस्त आयद ।उन्हें और इस ब्लोग को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाऐं।

    ReplyDelete
  9. बहुत उम्दा व्यंग्यात्मक लेख…
    कई सटीक उदाहरण एक साथ एक ही जगह…

    ReplyDelete
  10. वाह-वाह! क्या बात कही है आपने. इतनी सुंदर और सार्थक व्यंग्य-रचना आजकल कम ही पढने को मिलती है. शायद इस भाषा में ही समाज की सोच में कुछ परिवर्तन आये!

    ReplyDelete
  11. @ रचना जी

    धन्यवाद | पर ये क्या किया एक झटके में सारी मेहनत पर पानी फेर दिया मैंने मेहनत से ये पोस्ट नारीवादियो की बुराई करके उन्हें और गाली पड़वाने के लिए लिखी थी पर आपने तो कह दिया की गाली कम पड़ेगी | उफ़ आप भी |

    @ के के यादव जी

    ये नारीवादी बनाम घरतोडू औरत नहीं है ये घरतोडू औरत बनाम घर जोडू लोग है और मै घर जोडुओ के साथ हु |

    @ वंदना जी

    धन्यवाद

    @ सुज्ञ जी

    धन्यवाद आप ने व्यंग्य को समझा |

    @ मुक्ति जी

    ये व्यंग्य नहीं है मै सीरियस हु अभी देखिएगा सभी मेरी बातो से सहमत होंगे |

    @ राजन जी

    चलो कोई तो मिला जो इसे व्यंग्य नहीं कहा रहा है हम दोनों के विचार कितने मिलते है चलिए हम मिल कर इनको समझाते है | ये नारी वादिय कहती है की हमें सेवा का मेवा नहीं चाहिए शायद डाइटिंग पर है मेवा खाने से डर रही है |

    जब आप के पीछे दस बीस हाथ इस इंतजार में खड़े हो की कब आप असंतुलित हो और वो आप को धक्का मार के गिरा दे तो वहा तो संतुलन बना कर ही रखना पड़ता है ना |

    @ सुरेश जी

    उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद

    @ पूनम जी

    सही कहा असल बात तो है समाज की सोच में परिवर्तन जिस भाष में भी उन्हें समझ आ जाये वही सही है

    ReplyDelete
  12. अन्शुमालाजी
    बहुत ही धारदार और सही कटाक्ष |
    ऐसी ही एक घर फोडू औरत को मै भी जानती हूँ उसकी अपनी ही नन्द अपनी ही बेटी को अपनी घर फोडू मामी से कोसों दूर रखती है और ये हिदायत भी उनके (नन्द) के पति ने दे रखी है की देखो ,अपनी भाभी से कह देना ये फालतू की बाते (ज्यादा पढाई करना ,जींस टॉप पहनना बडो से बहस करना )अपने तक ही रखे |हमारे परिवार में ये सब चलता नहीं है |मामी भी कहाँ मानने वाली थी जैसे तैसे घर फोड़ने के बिज बो ही दिए भांजी के मन में अपनी तिन साल की बेटी के बाद अब उसका मन पंख लगाकर उड़ने लगा है और उसने अच्छी नौकरी हासिल कर ही ली |अब बारी आ गई है भांजा बहू की घर टूटने की ,उच्ह शिक्षित बहू लाये है दिन भर सर पर पल्लू धरकर सारा काम करती है ससुरजी की सेवा करती है क्योकि सारा सब कुछ उनके हाथ में ही है |मामीजी लगी है कोशिश में कब घर फोड़े |

    ReplyDelete
  13. सामन्ती मनोजगत में घर का अर्थ होता है पुरुष की रियासत और नारी की हैसियत होती है प्रजा जैसी। अब अगर कोई प्रजा को उकसाने लगे तो गालियां त्प पड़ेंगी ही। एक धारदार आलेख के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  14. बहुत बढिया व्‍यंग्‍य .. मैं तो शीर्षक देखकर चौंक ही गयी थी !!

    ReplyDelete
  15. @ शोभना जी

    सही कहा ये घर तोडू ऐसे ही सभी के घर तोड़ती है और लोग इनसे बचते है | धन्यवाद

    @ संजय जी

    आपका धन्यवाद

    @ अमर जी

    बिल्कूल राज्य में विद्रोह करने वाला गाली के ही काबिल होता है |

    @ मोनिका जी

    जब ये कटाक्ष सही जगह लगे तो बात बने |

    @ संगीता पूरी जी

    लिखा ही इसी लिए था की सब चौक जाये की मैंने नारी ब्लॉग पर ही इनकी पोल खोल दी |

    @ अनवर जमाल जी

    धन्यवाद | किसी ने भी कहा हो पर त्यागी गई और विधवा नारी का पुनर्विवाह उतना ही सही है जितना की किसी पुरुष का पुनर्विवाह |

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.