March 11, 2010

कल एक पोस्ट पढी आप आज पढिये

दस वर्षीया बच्ची से दुष्कर्म के एक मामले में राजधानी की एक निचली अदालत ने अनोखा फैसला सुनाते हुए दुष्कर्मी को आदेश दिए कि वह पीड़िता के विवाह योग्य होने तक उसे प्रतिमाह पांच सौ रुपए गुजारा भत्ता दे। अदालत ने दुष्कर्मी चंद्रपाल को दस साल कैद तथा 11 हजार रुपए के जुर्माने की सजा भी सुनाई है। यह जुर्माना राशि भी पीड़िता को मुआवजा स्वरूप दी जाएगी।

कड़कड़डूमा के एडिशनल सेशन जज गुरदीप सिंह की अदालत ने इस अहम फैसले को सुनाते हुए कहा कि भारत में देवियों के रूप में पूजी जाने वाली औरतों के साथ ही दुष्कर्म जैसे अपराध घटित हो रहे हैं। इस कृत्य से न केवल महिला शारीरिक रूप से आहत होती है, बल्कि उसे आत्मिक तौर पर भी गहरी ठेस पहुंचती है। हादसे का असर पूरी उम्र उसकी जिंदगी को प्रभावित करता है। इस तरह के अपराध को करने वाले मुजरिम को कठोर सजा मिलनी ही चाहिए।

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने अदातल को बताया था कि करावल नगर क्षेत्र में रहने वाले सतीश (बदला हुआ नाम) ने थाने में मामला दर्ज कराया था कि उसकी दस वर्षीय बेटी 16 मई 2009 की दोपहर को छत पर स्थित शौचालय में गई थी।

इस दौरान चंद्रपाल ने उसके साथ दुष्कर्म किया। लड़की की चीख पुकार सुनकर एक पड़ोसन छत पर पहुंची थी और उसने अभियुक्त को यह कृत्य करते हुए देखा। इसके बाद चंद्रपाल वहां से भाग निकला था, जिसे बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। अदालत में चंद्रपाल के खिलाफ पेश किए गए गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने उसे यह सजा सुनाई।

13 comments:

  1. 10 saal our 11 hajar rupeye... bas.. kanoon kitnaa naram he..

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  2. शर्मनाक घटना .. ऐसे लोगों को जीने का क्‍या हक ??

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  3. मुझे लगता है कि अब कानून को भी सजा देने के कुछ नए तरीके अपनाने ही होंगे जिससे पीड़ित को राहत मिले।
    घुघूती बासूती

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  4. जाने कब तक मानवता के विरुद्ध ये अपराध होते रहेंगे? इस सम्बन्ध में मैं घुघूती बासूती जी से सहमत हूँ.

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  5. सजा प्रचलित सजा से कम नहीं है। अतिरिक्त रूप से पाँच सौ रुपया प्रतिमाह देने का जो आदेश दिया है उस से निर्णय में एक सामाजिक दृष्टिकोण का समावेश हुआ है। निर्णय सही है।

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  6. अदालत के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं. अपराधी को सजा चाहे जीतनी भी मिले....फैसले में चाहे जो भी लिखा जाए...सत्य यही है कि कोई जुरमाना-कोई सजा उस बालिका के ह्रदय में अंकित हो चुके भयावह द्रश्य को नहीं मिटा सकता....कोई उसके शील को वापस नहीं लौटा सकता. ये कब तक चलेगा कि हम नारी को पूजने के श्लोक पढ़े....खुद की संस्कृति को महान बताएं और फिर मासूम बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनायें!! अच्छा होगा हम मानव बने, न कि हवसी.

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  7. बेह्द शर्मनाक घटना है....कानून मे और सख्ती की ज़रुरत है!

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  8. kanun,saza se aise log kab dar pate hay..inki insaniyat mar chuki hay aur inhe kisi tarah ka parbhaw nahi padne wala..aise log jinhe naitik patan kar
    apni bachchi ke umar ke bachchon ke sath khilwad karna sahi lage ..unhe jine ka koi haque nahi dena chahiye.

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  9. बेह्द शर्मनाक घटना है..

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  10. अपराधी को सजा चाहे जीतनी भी मिले....फैसले में चाहे जो भी लिखा जाए...सत्य यही है कि कोई जुरमाना-कोई सजा उस बालिका के ह्रदय में अंकित हो चुके भयावह द्रश्य को नहीं मिटा सकता....कोई उसके शील को वापस नहीं लौटा सकता.

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  11. कुछ लोगों ने शील शब्द का उपयोग किया है और यही सबसे बड़ा विषाद है महिला के लिए . मनोवैज्ञानिक रूप से इस बात का इतना ज्यादा प्रभाव है की अच्छे पढ़े लिखे लीग भी इस भावना से ग्रसित हैं . क्या इज्जत केवल स्त्री की होती है और जो लुट जाने पर वापस नहीं आ सकती . पुरुष इतना गया गुजरा है जिसका कोई शील या इज्जत नहीं होती . सबसे ज्यादा जरूरत है इस दुर्भावना को हटाने की तभी इस अपराध से प्रभावित ज्यादा से ज्यादा लोग सामने आयेंगे और अपराधियों को सजा मिलेगी .

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  12. अंधा कानून...शर्मनाक घटना ...

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