December 18, 2009

ये विदाई कि रस्म क्यों ?

बहुत तो नहीं कम ही ब्लॉग पर आती हूँ, पर कुछ हवा लग ही जाती है कि आजकल बहुत लोग विदा लेकर जा रहे हैं? ब्लॉग को विदा करने से क्या होगा? क्या आप लिखना बंद कर देंगे? सुमन का तो समझ आता है कि उसने थोड़े दिन के लिए ही पद संभाला था तो उनको तो जाना ही था। लेकिन लोग तो ब्लॉग ही बंद कर विदा ले रहे हैं।

अरे अचानक ये विदाई कि रस्म क्यों शुरू होगई? मेरी तो समझ ही नहीं आ रहा है, अरे विदाई में तो तभी मजा आता है, जब कि किसी कि भी विदाई हो और लोग आंसूं पोंछ रहे हों? गले मिल कर रो रहे हो? पर ये तो कुछ ही वक्त पर अच्छी लगती है।
एक तो लड़की कि विदाई जब वह ससुराल जाती है, वह अवसर अच्छा है और रोने के पीछे भी एक शुभकामनाओं से भरा आशीष दे रहे होते हैं। अब तो यह विदाई भी बस रस्म भर रह गयी है। न लड़की रोती है और बाकी लोग। हाँ माँ-बाप और भई बहन दुखी जरूर होते हैं। लड़की नहीं रो रही तो बाकी क्यों रोयें? सो ये भी विदाई ख़ुशी वाली ही होती है।

दूसरे जब कोई बहुत दिनों के बाद स्कूल , कालेज, या संस्था से विदा होता है, याद है बचपन में अगर कोई प्रिय शिक्षिका स्कूल छोड़ कर जाने लगती थी हम पूरी क्लास के लोग रोते थे। या स्कूल की फेयरवेल में जब प्रिंसिपल लेक्चर देती थी, तो सबको रोना आता था। वह भी विदाई भी कुछ तो अवसाद से भर देती थी पता नहीं कब मिलें या न मिलें। तब ये नेट तो हुआ नहीं करता था। अब तो कहीं भी रहें हालचाल से वाकिफ होते हैं।

तीसरी विदाई होती है, इस दुनियाँ से, जो वास्तव में विदाई है, इस इहलोग से जानेवाले को विदा दी जाती है। फिर न कभी उसको मिलना है और दिखना है। बस एक याद के सहारे या उसकी तस्वीरों को देख कर ही उसके होने के अहसास को जिन्दा रखते हैं।

फिर भई ये ब्लॉग की दुनियाँ से विदाई किस श्रेणी में रखी जाए। ये किससे विदाई ले रहे हैं सब, लिखने की आदत तो छूट नहीं जाती है, अभिव्यक्ति कहीं न कहीं तो होगी ही, इस ब्लॉग पर न सही किसी दूसरे नाम से । फिर ये हमारी अपनी बसाई हुई दुनियाँ है, इसको हम किसी के कहने और टोकने पर क्यों छोड़ें? हम किसी के घर में झाँकने नहीं जाते अगर आप को अच्छा न लगे तो मत झांकिए हमारे ब्लॉग में। अगर झांकिए भी तो अच्छा लगे पढ़िए नहीं तो छोड़ दीजिये। ये तो प्रजातंत्र है, सबको स्वतंत्रता है, हम क्यों कहें कि पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते हैं नए नए ब्लॉग बनाने वाले। लिखने की ए बी सी डी तो आती नहीं है। अरे किसी को आये न आये हमारी बला से । हम बहुत बड़े साहित्यकार है तो अपने लिए हैं न, दूसरों को हम गाली देनेवाले कौन होते हैं? आप शौक से पढ़िए - अनुसरण करने की कोई बाध्यता भी नहीं होती है इसके लिए। पर ऐसा सीन न बनाइये कि दूसरों को इसको विदा ही कहना पड़े। जिसको विदा होना होगा अपनी ख़ुशी से अपनी दुकान बंद करके चल देंगे, पर आप क्यों दोष लेते हैं अपने सिर पर। इसके लिए दूसरों के सर पर ठीकरा मत फोडिये कि उसने ऐसा कहा तो मैंने ब्लॉग की दुनियाँ ही छोड़ दी। हम जैसे कम अक्ल वाले तो बस इतनी प्रार्थना कर सकते हैं कि सब वापस आ जाओ। जिन्दगी बहुत छोटी होती है, जितने लोगों के हंस बोल कर जी लें अच्छा है नहीं तो अकेले आये हैं और अकेले ही जाना है। ये दुनियाँ तो बस पल दो पल का ही ठिकाना है.

6 comments:

  1. आपने बिलकुल सही कहा है...और शायद आपकी सलाह सुन,सब वापस आ भी गए.लिखने वालों को एक बार कोई माध्यम मिल जाए तो छोड़ना मुश्किल होता है....और सच...आपको अच्छा ना लगे...इगनोर करो..जबरदस्ती का विवाद खड़ा करने की क्या जरूरत?

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  2. कभी-कभी लगता है कि‍ ब्‍लॉग लि‍खना, ब्‍लॉगरों से अदृश्‍य संबंध, कमेंटस फोलोअर्स की प्रतीक्षा सब बहुत की कृत्रि‍म और मायावी सा है। बेशकीमती समय भी नष्‍ट होता है। पर कुछ लोग जो एक ही जन्‍म में धरती के अलावा भी अन्‍य लोकों में रहते हैं उनके लि‍ए यह एक नशा सा भी है, इससे वि‍दाई अन्‍य वि‍दाईयों से ज्‍यादा उदास करने वाली होगी।

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  3. rekhaji
    bahut sahi kaha ahi aapne .koi madhyam mila hai abhivykti ke liye to avsar uthaye aur sbka svagat kre .

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  4. बेहतरीन रचना
    बहुत -२ हार्दिक शुभ कामनाएं

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