श्री शब्द स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग हैं यही प्रश्न घूम रहा है जब से यहाँ पढ़ा ये आलेख ।
श्री शब्द को हम पिता श्री , माता श्री , भ्राता श्री , दीदी श्री , जीजा श्री , दादा श्री , दादी श्री और जहां भी आदर देना होता हैं जोड़ देते हैं ।
श्री को केवल और केवल संबोधन मे पुरुषो के नाम के साथ ही जोड़ा जाता हैं ऐसा क्यूँ हैं और कब से शुरू हुआ ??
क्यूँ श्री शब्द को पुल्लिंग माना गया { ये मानते हुए कि शब्दों के मूल अर्थ कुछ भी हों, जब एक बार रूढी हो जाती है, भिन्न अर्थ अजीब ही लगता है } जबकि श्री शब्द देवी के लिये लक्ष्मी के लिये प्रयोग होता आया हैं ।
श्रीमती शब्द स्त्री के "वैवाहिक " होने का प्रमाण हैं तो सौभाग्यकांक्षिणी उसके लिये प्रयोग होता हैं जो विवाह करने जा रही हैं
अब प्रश्न हैं कि क्या सौभाग्य कि आकांशा सब को नहीं होती , सौभाग्य कि आकांक्षा क्या केवल उसी युवती को हैं जो विवाह करना चाहती हैं ।
सुश्री शब्द केवल अविवाहित या सिंगल स्त्री के लिये प्रयुक्त किया जाता है जबकि श्री शब्द पुल्लिंग है ही नहीं क्युकी श्री शब्द आदर का सूचक मात्र हैं ।
आप क्या कहते हैं ???
इन शब्दों की उत्पत्ति कब कैसे हुई ये तो भाषाविद ही ज्यादा बेहतर बता पाएंगे ...मगर जहां तक मुझे लगता है कि श्री शब्द का प्रयोग जब दैवीय संदर्भों में किया जाता है तो वो लिंग भेद से ऊपर होता है जबकि मानवीय संदर्भो में इसके चलन के स्वरूप श्री हमेशा पुरूष के साथ उपयोग किया जाने लगा ,और तदनुसार ही श्रीमती का महिलाओं के लिए । हां सौभाग्य की चाहत वाले तर्क से मैं सहमत नहीं हूं हो सकता है इसे और किसी तरह से व्याखायित किया जा सके ॥ विषय दिलचस्प है ..॥
ReplyDeleteइन शब्दों की उत्पत्ति कब कैसे हुई ये तो भाषाविद ही ज्यादा बेहतर बता पाएंगे ...मगर जहां तक मुझे लगता है कि श्री शब्द का प्रयोग जब दैवीय संदर्भों में किया जाता है तो वो लिंग भेद से ऊपर होता है जबकि मानवीय संदर्भो में इसके चलन के स्वरूप श्री हमेशा पुरूष के साथ उपयोग किया जाने लगा ,और तदनुसार ही श्रीमती का महिलाओं के लिए । हां सौभाग्य की चाहत वाले तर्क से मैं सहमत नहीं हूं हो सकता है इसे और किसी तरह से व्याखायित किया जा सके ॥ विषय दिलचस्प है ..॥
ReplyDeleteरचना जी, अभी इंगित लिंक पर विवेचन हो रहा है -फिर इधर भी ट्रैफिक उधर भी ?
ReplyDeleteअन्यथ न लें किन्तु ....... फिर से एक निरर्थक प्रश्न................
ReplyDeleteरचना जी, मेरा खयाल है कि श्री शब्द "श्रीयुत" का अपभ्रंश है. जिसका मतलब श्री से पूर्ण यानि धनवान होने से है. शास्त्रों में पुरुष को स्त्री के बिना "श्रीहीन" माना गया है. यानि स्त्री के कारण ही पुरुष सम्मानित है,इस धारणा को पुष्ट करते हुए पुरुषों के नाम के आगे श्री लगाया जाता है.
ReplyDeleteये विडम्बना ही है कि हमारे देश में आदिकाल से स्त्रियों का सौभाग्य पुरुष से जोडा गया. और शादी को तत्पर कन्या को सौभाग्यकांक्षिणी कहा गया.
रचना "श्री" शब्द निस्संदेह स्त्रीलिंग शब्द है. परन्तु संस्कृत में इससे उस शब्द के अर्थ पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि शब्द किस लिंग का है. अतः श्री शब्द के अनेक अर्थ हैं. संस्कृत में विवाहित और अविवाहित दोनों स्त्रियों के लिये "श्रीमती" शब्द प्रयुक्त होता है, हिन्दी में यह विवाहित स्त्रियों के लिये रूढ़ हो गया. सुश्री शब्द हिन्दी का है और जेन्डर न्यूट्रल है. अतः इसका प्रयोग प्रत्येक नारी के लिये उचित है चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित. रही बात आपके लेख के अन्तिम भाग की तो पितृसत्तात्मक समाज तो हमेशा से विवाहिता नारी को महिमामन्डित करता रहा है. इसीलिये सौभाग्यवती जैसे शब्द उसके लिये रखे गये. इसका सीधा सा मतलब कि जिसका विवाह नहीं हो पाया वह सौभाग्यहीन है.
ReplyDeleteश्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीगणेश!!!
ReplyDeleteलक्ष्मी का एक रूप "श्री" है।
ReplyDeleteराजश्री, भाग्यश्री, श्रीदेवी ऐसी कितनी ही "श्री" हैं।
रचना जी, बिना किसी पूर्वाग्रह के बात करते हैं, श्री का शाब्दिक अर्थ है लक्ष्मी से, धन सम्पदा माँ ले या देवी लक्ष्मी तो विष्णु श्रीमान वां इसलिए हुए क्यूकि लक्ष्मी उनके साथ थी तो वो श्रीमान श्रीमंत हो गए. स्त्री के लिए श्री को भी विशेषण के साथ काम मे लिया गया हमेशा इसलिए ये गलत धारणा चलती रही कि श्री पुरुष ke liye कम आता है. रही बात सुभाग्यवती या सौभाग्यवान होने की तो अतीत के लिए हमें शर्मिन्दा होने या उस पर प्रश्न खड़े करने के बजे कोशिश करनी चाहिए कि नए ज़माने मे उनमे सुधर कर सकें हो सकता है आप और हम बहुत जाग्रत हो गए honge ( मुझे अपना ठीक ठीक पता नहीं है पर विश्वास है कि आप जाग्रत हो गए हो ) लेकिन 2-3 पीढी पीछे जायेंगे तो सभी की घर की स्त्रियों का सौभाग्य ya असुभाग्य पति के साथ जुदा रहा है और उसके धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और शारीरिक कारण हो सकते हैं. कुछ कारण अभी भी हैं और रहेंगे. शिक्षा, जागरूकता और समान अवसर मिलने से कुछ बाते धीरे धीरे महत्व खो रही हैं. क्यों न हम नए प्रभात का स्वागत करे और इसे सधी हुई दिशा दे.
ReplyDeletehttp://hariprasadsharma.blogspot.com/
काफी अच्छी चर्चा है....लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि " श्री " शब्द स्त्रीलिंग कैसे हैं?
ReplyDeleteश्री शब्द किसी भी संबोधन के साथ आदर के लिए प्रयुक्त होता है........... ना कि प्रयुक्त होती है...
श्री शब्द का प्रयोग पुरुषों के नाम के आगे लगाया जाता है लेकिन इसका अर्थ ये कदापि नहीं है कि
ये केवल उनके लिए ही प्रयोग किया जाये...किसी को भी सम्मान के साथ संबोधित करने के लिए श्री शब्द का उपयोग किया जाता है जैसा कि लेखिका ने स्वयं ही लिखा है ----माता श्री , पिता श्री आदि ....
मेरा मानना है कि यदि " श्री " को केवल शब्द की दृष्टि से पुल्लिंग या स्त्रीलिंग के दायरे में देखना हो तो ये शब्द पुल्लिंग है....
चर्चा चल रही है, हम पढ रहे हैं।
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जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
हे भगवान । हेलो रचना दीदी कैसी हैं ?
ReplyDeleteबहुत देर से आया ना , क्या करुं आप तो मना करती हैं अपने ब्लोग पर आने को पर कमबख्त दिल मानता नहीं । फिर से वही घिसीपीटि बेकार की बांते , जानता हूँ कि आप ने मुझे नहीं बुलाया लेकिन जब आया हूँ तो अपन मन की तो कह ही सकता हूँ । अच्छा ये सवाल आपको देता हूँ इसको भी अपनी ब्लोग पर पुछीयेगा
१ - हमेशा ये शिकायत क्यों आती है कि फला लड़का मुझे देखकर लाईंन मार रहा था , कभी किसी लड़के की शिकायत क्यों नही आती ऐसे ???
२- हमारी माँ महिलाएँ ही क्यो होती है , हम पुरुष को माँ क्यो नहीं कहते ???? वैसे इस प्रथा को भी अब बदलना चाहिए क्यों बहुत दिन हो गये फालतु के पुराने ग्रन्थों की बातो को क्यो माने ???