September 22, 2009

सुमन की पिछली दो पोस्ट से कुछ आगे की बात आज

एक और धारावाहिक की बात करे तो वो हैं "आप की अंतरा " कहानी autism की . इसी धारावाहिक मे एक पात्र हैं अन्तर की बुआ जिसने अभी पढाई ख़तम की हैं और उसका विवाह होने वाल हैं । अंतरा की ये बुआ जिनके माता पिता नहीं हैं अपने भाई और भाभी के साथ रहती हैं और वही इनका विवाह भी कर रहे हैं । वो अपने भाई की आर्थिक स्थति से पूर्णता अवगत हैं पर शादी मे हो रहे किसी भी खर्चे का विरोध करना तो दूर अपने भाई से जितना ज्यादा खर्चा करा सके इसके लिये आतुर दिखती हैं । उनको भाई का बैंक से क़र्ज़ लेकर उनकी शादी मे खर्च करहा इस बात को जानते हुए भी वो ज्यादा से ज्यादा समान खरीदने के लिये और महंगे से मंहगे शादी के इंतजाम के लिये तत्पर हैं । उनके लिये अपनी शादी से ज्यादा कोई बात जरुरी नहीं हैं । अपने भाई और भाभी से उनकी अपेक्षा हैं की वो "कर्तव्य " की तरह उनकी शादी करे। इस लड़की का होने वाला पति बार बार उनको माना भी करता हैं पर वो साधिकार शादी मे हो रहे खर्चे को बढाते जाने के लिये तत्पर लगती हैं ।
उनके होने वाले ससुर भी हर रीति रसम को खर्चे के साथ करना चाहते हैं और इसमे कुछ ग़लत भी नहीं समझते क्युकी शादी तो एक बार ही होती हैं ना !!
किस और ले जा रहे ये धारावाहिक समाज को ?
सुमन की पिछली दो पोस्ट से कुछ आगे की बात आज

8 comments:

  1. मैं कोई भी टी0 वी० धारावाहिक नहीं देखता क्योंकि केबल टी0 वी० आने के बाद उन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के एक- आध एपिसोड देखकर ही मन वितृष्णा से भर गया था. इन धारावाहिकों के पटकथा लेखको की अभिरूचि को देखकर क्षोभ और घृणा होती है इसीलिए इन्हें न देखना ही इनके विरोध का एकमात्र उपाय दीखता है.

    जहाँ तक बात दिखाई गई प्रवृति की है तो इस विषय में यही कहना चाहूँगा की टी0 वी0 सूचना, संचार और शिक्षण का शशक्त माध्यम होते हुए भी ऐसे लोगों के हाथों में पड़ गया है जो इसे व्यापार से ज्यादा कुछ नहीं समझते. साथ ही इनका सदाबहार कुतर्क होता है कि हम तो वही दिखा रहे हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं. मेरा इनसे विनम्र किन्तु ठेठ देशी भाषा में आग्रह है कि देखना तो दर्शक 'ब्लूफिल्म' भी चाहेंगे और वह भी उनकी बहन -बेटियों के किरदार वाली. क्या वे वह भी दिखायेंगे??

    इस असभ्य आग्रह हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ परन्तु इनके कुतर्क का ठेठ जवाब मुझे यही सूझा.

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  2. आप की बात को मान देते हुआ मे सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगी कि "वह भी उनकी बहन -बेटियों के किरदार वाली" मानसिकता पर आप एक बार पुनर्विचार करे । बहिन बेटी किसी कि भी हो उस को "शरीर" ना बनाए । जिस दिन ये बात मन से निकल जायेगी किस किसी कुतर्क का जवाब देने के लिये "उसकी माँ बेटी " करना जरुरी हैं उसी दिन से स्वस्थ समाज कि संरचना शुरू हो जायेगी ।

    रचना आप ने पोस्ट दी मेरी बात को आगे बढाते हुए शुक्रिया ।

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  3. रचना,
    वैसे तो मैं टी वी देखने के लिए समय निकाल ही नहीं पाती हूँ, फिर भी कल किसी के यहाँ गयी तो परफेक्ट ब्राइड ' आ रहा था और देखा तो सोचा कि तुम्हारी पोस्ट के लिए ये कमेन्ट अच्छा रहेगा.
    ये टी वी धारावाहिक तो बाजार का नजारा पेश करते नजर आ रहे हैं. 'परफेक्ट ब्राइड' क्या लगता है? लड़कियाँ यहाँ बिकाऊ है और उनको ठोक बजा कर सासें खरीदने के लिए आयीं हैं. फिर उसके ऊपर लड़कियों के ऊपर किये गए कमेन्ट उनको क्या लगता है कि वे ही एक बेटे कि माँ हैं , उनके अधिकार बहुत बड़े हैं और लड़कियों की माँ उनसे कमतर है. उन्हें भी हक़ है अपनी बेटी के लिए वर खरीदने का . ये काली है, इसके नैन-नक्श अच्छे नहीं या फिर इसको निकाल दिया जाना चाहिए. ये सार्वजनिक तमाशा बंद किया जाना चाहिए. वे यह भूल रही हैं कि वे सिर्फ किसी लड़की को ही आरोपित नहीं कर रही हैं बल्कि अपनी छवि प्रस्तुत करके अपने लडके के भविष्य के लिए भी बाधक बन रही हैं. ऐसी तेज तर्र्रार सास के साथ लड़कियाँ भी इनकार कर सकती हैं. देखती जाइए अभी आगे क्या होता है? और ये माँ के हाथ के कठपुतले भविष्य में क्या करेंगे? जो सारा काम छोड़ कर इस तमाशे में शामिल होने चले आये.

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  4. रेखा जी उन लड़कियों का क्या तो इस तरह " परफैक्ट ब्राइड " बन रही हैं । सभी आधुनिक हैं और सभी पढ़ी लिखी ।

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  5. t.v dharavahiko ke madhym se bajar aur apne ghre pav jmata ja rha hai .in dharavahiko ko dekhkar hi aajkal shadiyo me anap shnap kharch badh raha hai aur sbse bdi bat hai ptktha likhne vale bhi to madhaym vrggey parivar ke log hai jinka bazar chlane vale jmkar uyog kar rhe hai .

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  6. मुझे ये धारवाहिक कभी पसंद नहीं आते पर श्रीमती जी देखती रहती है..गोया की महिलाएं ही उसको पसंद करती है.अब नारी तो अपने आपको बदले, उसको तर्कपूर्ण और समझदारी भरे निर्णय लेते क्यों नहीं दर्शाया जाता है...प्राय तो महत्वपूर्ण निर्णय लेते ही नहीं दर्शाया जाता है..अब जब हम लड़कियों को निर्णय लेने के संस्कार ही नहीं डालने देंगे तो फिर धारवाहिकों में नारी के यही चरित्र दिखाए जायेंगे..
    बोधपूर्ण आलेख के लिए आभार.

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  7. जब धारावाहिकों की बात चली है तो मैं भी एक धारावाहिक की बात करती हूँ. मैं आजकल ना आना इस देश लाडो देख रही हूँ. हालाँकि इसमें भी सभी धारावाहिकों की तरह मिर्च-मसाला है. पर हाल ही में इसकी एक कड़ी में औरतों को एक पुरुष की कम्बल-परेड करते दिखाया गया है क्योंकि उसने अपनी पत्नी को बुरी तरह पीटा था. इस प्रसंग में एक बात गौर करने लायक है कि औरतें जब तक अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध खुद नहीं करतीं उनका शोषण रोकने कोई और नहीं आयेगा.

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  8. टीवी की महिमा टीवी ही जाने !!

    बचपने में टीवी की जो ललक थी अब कहाँ?

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