बात को आगे बढाते हुए
ये सही हैं की हमारे कानून बदलाव चाहते हैं , लेकिन कानून मे कोई भी बदलाव लाने से पहले मानसिकता मे बदलाव की जरुरत हैं और कानून को समझने की जरुरत हैं । आज भी उंची से ऊँची पोस्ट पर बैठी नारियां अगर विवाहित हैं तो उनके टैक्स और इन्वेस्टमेंट इत्यादि की जिम्मेदारी उनके पति की होती हैं और वो सहर्ष इसको करती हैं क्युकी " संरक्षित रहना " नारी ने अपनी नियति बना ली हैं । संरक्षित होने मे और मानसिक गुलाम होने मे अन्तर होता हैं जो बहुत बारीक होता हैं । अविवाहित महिला भी अपने पिता के या भाई के संरक्षण मे अपनी जिन्दगी बिता देती हैं और कमाते हुए भी अपनी आय के बारे मे बहुत कम फैसले लेती हैं ।नारी सशक्तिकरण का अर्थ केवल नौकरी करके या धन कमा कर सशक्त होना नहीं होता अपितु " अपने को हर फैसला लेने मे " सशक्त बनाना होता हैं । हम मे से कितनी नारियां इस सशक्तिकरण को समझती हैं ??
कानून मे क्या क्या है इस पर दिनेश जी निरंतर अवगत कराते हैं पर कितनी महिला उनको पढ़ कर उनसे कुछ प्रश्न करती है ?
कानून की जानकारी बढ़ना सबसे जरुरी हैं जो बहुत लोग नहीं करते , महिला तो बिल्कुल नहीं चाहे वो किसी भी वर्ग की क्यूँ ना हो । समय रहते अपनी कानूनी सुरक्षा करना जरुरी हैं और इसके लिये ये भी जरुरी हैं की हम लोग जो पढे लिखे हैं वो इस बात को समझे ।
हमारे कानून बदलाव चाहते हैं लेकिन वो तब आ सकता हैं जब हम मानसिकता को बदले । आज भी शादी लड़की के लिये बेस्ट आप्शन मानी जाती हैं और संरक्षित होना जरुरी माना जाता हैं चाहे लड़की कमाती ही क्यूँ न हो । जरुरी है की हम अपनी सोच को "पूरक " के लेवल से उठा कर " इंडिविजुअल आईडनटिटी " की और ले जाए तभी हम सबको समान दर्जा दे सकते हैं ।
न्याय कानून और साक्ष्य पर टिका होता हैं और उसमे बदलाव की मुहीम को आगे लाने के लिये बहुत से लोगो को आगे आना होगा और इस केस मे भी किसी न किसी को "PIL" देना चाहिये ताकि न्याय के ऊपर पुनेह विचार हो ।
वैसे हमारे यहाँ हर नयी चीज़ के विरोध कि परम्परा हैं इसीलिये कोई भी नया कानून नहीं बन पाता । कुछ दिन पहले लिवइन रिलेशनशिप कानून को ले कर वूमन सेल ने जितना हल्ला मचाया कि फिर से बात ख़तम होगई ।
नारिया ख़ुद अपने को दोयम कि स्थिति मे क्यों रखना चाहती हैं इस पर कोई कब बोलेगा ??
वैसे दिनेश जी पुष्टि कर सकते हैं क्या ये सही हैं , मैने कही पढा था कि कानून हैं कि
अगर दहेज़ मे अभिभावक पुत्री को मकान देता हैं और अगर पुत्री की मृत्यु हो जाती हैं तो वो मकान अभिभावक को वापस मिल जाता हैं उसको पति या बच्चे नहीं ले सकते अगर अभिभावक जिंदा हैं तो
ऐसे बहुत से कानून हैं जैसे अगर जोइंट प्रोपर्टी हैं किसी कि उसके अभिभावक के साथ तो अभिभावक कि मृत्यु के पश्चात वो सब भाई बहनों मे बांटी जायेगी चाहे उसे ख़रीदा उस संतान ने हो जिसके नाम जोइंट हैं ।
जरुरी हैं कि हम नारी और पुरूष को दो अलग अलग इकाई माने और समाज मे जो ये सोच हैं कि नारी और पुरूष एक दुसरे के लिये बने हैं उसको बदले क्युकी अब समय बदल गया हैं
दिनेश जी और स्वप्न दर्शी जी को थैंक्स , मैने अपना नजरिया प्रस्तुत किया हैं
रचना जी, मैं ने सारे प्रश्नों को नोट कर लिया है। इन सब पर अपने विचार अवश्य लिखूंगा। वे विस्तार चाहते हैं। उन के लिए पूरी पोस्ट लिखनी होंगी।
ReplyDeleteनारियाँ स्वयं आश्रित रहना चाहती हैं ,ऐसी बात नहीं है .दरअसल हमारे समाज में स्वतन्त्र नारी को सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है से देखा जाता है . मनु ने बहुत पहले कह दिया था "न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति",जिसे आज भी लोग मानते हैं .यह बात सही है कि सिर्फ कानून बदलने से कुछ नहीं होगा ज़रूरत तो मानसिकता को बदलने की है.
ReplyDeleteरचना जी, आपके उठाए मुद्दे से असहमत होने का कोई कारण नहीं है।
ReplyDeleteकिन्तु यह सोच कि विवाहित स्त्रियाँ किसी प्रकार की स्पौंज होती हैं जो विवाह से मिली सुविधाएँ केवल सोखती व भोगती भर हैं थोड़ी गलत है। चाहे सही हो या गलत किन्तु उनपर परिवार व बच्चों का बहुत बड़ा दायित्व होता है। पिता बहुत बार संतान की अवश्यकताओं से मुख मोड़ सकता है। उसके कर्मठ या वर्कोहोलिक होने को समाज व परिवार सहज रूप से लेता है। यदि स्त्री नOकरी भी करती हो तो उसके पास समय तो तोड़ेंगे घटे का ही होता है और दायित्व बहुत अधिक। पति से सहयोग की अपेक्षा तो होती है परन्तु वह सहयोग दें भी तो उचित ट्रेनिंग न होने के कारण बहुत कम ही देते हैं।
खैर, जो भी हो समस्या हमारी है तो समाधान भी हमें ही खोजना होगा। पैसों के सही उपयोग व पूँजी निवेश के मामले में भी आत्मनिर्भर होना होगा।
घुघू्ती बासूती
make family not only nuclear family because life want two parts for successful nature or everything
ReplyDeleteबदलाव प्रत्येक समय की जरूरत होत है। पर लोगों को बदलने में समय तो लगता ही है।
ReplyDelete-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM
I think This issue needs a political solution. AS a individual you can have a will, but if the law so ridiculous. The will can be challenged and not everybody is going to have will.
ReplyDeleteIts also not related to only widows, but too all women, who earn their living.
जब हम स्वतन्त्रता की बात करते है, किसी न किसी स्तर पर समाज को तो दर-किनार कर नही सकते, परिवार और वैयक्तिक स्वतंत्रता दोनो एक-दूसरे के विरोधी प्रकृति लिये हुये है यह महिला के लिये ही नही पुरुष के लिये भी सही है. हाँ, जो अकेले ही अपनी पहचान बनाना चाहे उसे इसका हक मिलना चाहिये. कानून मे बदलाब कर विभिन्न अभिलेखो मे महिला के नाम के साथ पिता या पति के नाम की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिये. अभी तो महिला पति से अलग रहकर अपने मायके मे भी किसी प्रदेश का निवास प्रमाण पत्र भी नही पा सकती. महिलाओ को पूरी स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिये पुरुष के शोषण से भी और संरक्षण से भी. वह किसी का साथ नही चाहे तो थोपा नही जाना चाहिये.किंतु स्वतंत्रता भी महिलाओ पर थोपी नही जा सकती, खासकर उन पर जो अपने परिवार के साथ,परिवार के लिये, परिवार की संरक्षा मे आन्नदित रहना चाहती है, जो केवल बोद्धिक मनोरंजन के लिये न जीकर देश,परिवार व समाज के लिये जीना चाहती है.
ReplyDeleteकेवल हिन्दू उत्तराधिकार कानून मे बदलाव की बात क्यो? क्या ईसाई और मुस्लिम महिलाओ को आदर्श स्थितियाँ प्राप्त है?
ReplyDeleteFirst time is blog par ayi. bahut acchi infomation hain. no doubt it would enhance my knowledge.
ReplyDeleteआपके उठाए मुद्दे से असहमत होने का कोई कारण नहीं है।
ReplyDeleteकिन्तु यह सोच कि विवाहित स्त्रियाँ किसी प्रकार की स्पौंज होती हैं जो विवाह से मिली सुविधाएँ केवल सोखती व भोगती भर हैं थोड़ी गलत है। चाहे सही हो या गलत किन्तु उनपर परिवार व बच्चों का बहुत बड़ा दायित्व होता है।