इस बात पर सवाल कि यदि आपके घर के लड़के की शादी जिस लड़की से होने वाली है और मालूम हो जाये कि उसके साथ बलात्कार हुआ था तो क्या उसको घर की बहू बना लिया जायेगा? (यह सवाल विशेष रूप से उन महिलाओं से जो नारी सशक्तिकरण के नाम पर झंडा बुलन्द करतीं हैं और पुरुषों को गाली देकर इतिश्री कर लेतीं हैं)
ये प्रश्न क्युकी नारियों से पूछा गया हैं तो इसको यहाँ दे रही हूँ ।
इसका जवाब बहुत सीधा हैं के एक असम्वेदन शील व्यक्ति ही ये प्रश्न कर सकता हैं क्युकी कहीं ना कहीं उसकी मानसिकता मे जिस का बलात्कार हुआ हैं वहीं दोषी हैं ।
ये प्रश्न क्यूँ उठा और कब तक उठता रहेगा और कब तक नारियों से एक उत्तर नहीं एक एक्स्पलानेशन माँगा जाता रहेगा ?
कितनी गहरी हैं जेंडर बायस की जड़े ये प्रश्न सिर्फ़ यही दिखाता हैं । आज भी कितना ही पढ़ा लिखा व्यक्ति क्यूँ ना हो वो बलात्कार को एक स्टिग्मा ही मानता हैं इसीलिये उसकी स्वीकृति की बात करता हैं और वो भी महिला समाज से जिसको "कन्डीशन" किया गया हैं पुरूष की दासता के लिये ।
मेरा सीधा प्रश्न हैं की अगर एक लड़का { आप का बेटा या जानकर } अगर बलात्कार या यौन शोषण का दोषी हैं तो क्या आप उसको विवाह करने से रोकेगे ??
सदियों से नारियों को "बिगडे बेटो " को "सही" करने के लिये विवाह की वेदी मे बलि किया जाता हैं और समाज चुप रह कर आर्शीवाद वर्षा करता हैं , कभी कोई आवाज नहीं उठती देखी गयी । कभी कोई एक्स्प्लानाशन नहीं माँगा गया ?
फिर
इस प्रश्न का नारी सशक्तिकरण से क्या लेना देना हैं ? और क्या केवल महिला समाज का हिस्सा हैं ? और आज भी कितनी महिला के पास ये अधिकार हैं की वो अपने पति से असहमत हो कर अपने बच्चो का विवाह कर सके ?
नारी को कविता कहानी लिख कर प्ररित करना की " तुम बदलोगी तो समाज बदलेगा " से बेहतर हैं नारी को उसकी लड़ाई उसकी अपनी "सोच " से लड़ने दे । क्युकी भोग वो रही हैं , तकलीफ उसको हो रही हैं तो लड़ना भी उसको ही होगा पर आप की सोच से लडेगी तो फिर मात ही खायेगी क्युकी आप दोहरी सोच लेकर चलते हैं ।
आप चाहते
नारी सशक्तिकरण हो तो जैसे आप चाहे
नारी का विद्रोह हो तो जैसा आप चाहे
नारी को आप सोचने का अधिकार नहीं देना चाहते हैं क्युकी सदियों से उसकी सोच को आप ने कैद कर रखा हैं ताकि वो आप की सत्ता को स्वीकारती रहे और मानसिक दासता के साथ जीती रहे
मेरा उत्तरः यदि मेरा बेटा होता तो वह अपनी पसन्द से ही शादी करता। यदि उसकी पसन्द वह लड़की होती जिसका बलात्कार हुआ है तो भी वह उसकी पत्नी बनती। हाँ, शायद बलात्कारी से जितनी शत्रुता उस लड़की को होती उतनी ही मुझे भी हो जाती।
ReplyDeleteयदि मेरी बेटी बलात्कारी से विवाह करना चाहती तो मैं उसको मनःचिकित्सक से मिलने की सलाह अवश्य देती।
शायद समझ आया हो कि मुझे बलात्कारी विभत्स व अग्रहणीय लगता है न की बलत्कृत।
घुघूती बासूती
विरोध के स्वर कहीं से भी उठें, सवाल तो उनमें उठने ही होते हैं। हमारा कर्तव्य यह होना चाहिए कि हम उनका ईमानदारी से सामना करें।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रचना जी,
ReplyDeleteआपने हमारे सवालों में से केवल एक सवाल अपनी पोस्ट पर लगाया और उसका भी जवाब नहीं दिया। हमने किसी भी सवाल पर किसी प्रकार की विश्लेषणात्मक, समीक्षात्मक स्थिति नहीं चाही थी। इस सवाल का सीधा सा उत्तर है हाँ अथवा नहीं। इस पर पूरी व्याख्या करने की आवश्यकता ही नहीं थी।
आज स्त्री-पुरुष विवाद का एक बहुत बड़ा कारण स्त्रियों द्वारा किसी भी बात को स्वीकारना नहीं है। इस स्थिति में नारी समर्थक वे महिलायें अपना अहम रोल अदा कर रहीं हैं जिनके लिए नारी मुक्ति का कोई अर्थ नहीं।
सवाल ज्यों का त्यों है, बलात्कार की शिकार लड़की से आप अपनी लड़के की शादी करेंगीं या नहीं? यहाँ सवाल ये नहीं कि किसे मनोःचिकित्सक को दिखाना है या पसंद किसकी है।
इस सवाल के पूछने का मकसद यह नहीं कि हमें भी बलात्कारी से लगाव और बलात्कार की शिकार महिला से विरोध दर्शाना है। सवाल का मकसद इतना है तो इस प्रकार की घटना होने के बाद समाज में पुरुष वर्ग को गाली देतीं घूमती हैं किन्तु व्यावहारिक रूप में स्वयं भी उसी पुरुष वर्ग का हिस्सा बनीं होतीं हैं।
हो सकता हो कि आपको इस तरह के सवालों की आदत न हो पर यदि आप वाकई में इस तरह की समस्याओं से समाज को निजात दिलवाना चाहतीं हैं तो इस प्रकार की स्थितियों की कल्पना उस लड़की को केन्द्र में रखकर करिए जो इसका शिकार हुई है।
यह बात सौ फीसदी सत्य है और हम भी इस बात का समर्थन करते हैं कि समाज में बलात्कारी को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। बावजूद इसके भी हो सकता है कि कल को विवाह करवाने वाली स्थिति के आने पर हमारे भी कदम लड़खड़ा जायें। अब आप बताइये कि आप क्या कहतीं हैं इस सवाल पर?
अविवाहित लड़के-लड़की की स्थिति में यह न्याय बिलकुल भी सही नहीं है कि बलात्कारी का विवाह उसी लड़की से कर दिया जाये जिसका शारीरिक शोषण उस लड़के ने किया है। इस तरह के उदाहरण भी समाज में देखने को मिले हैं।
समाज से लड़कियों की, नारी की स्थिति के सुधार का चक्कर समाप्त कर दीजिए। नारी ने स्वयं इतना कुछ किया है तो आगे भी बहुत कुछ कर लेगी। अभी तक समाज में पुरुष ने उसके शरीर को दिखा-दिखा कर रुपया बनाया है अब महिला स्वयं अपना शरीर बनाकर ऐसा कर रहीं है तो बुरा क्या है?
कल तक नारी से देह-व्यापार करवाने वाला पुरुष था आज महिला ही दूसरी महिला को अपने चंगुल में फाँस कर उससे ऐसा करवाती है तो बुरा क्या है? यही सोच तो समाज का नारी का भला करेगी।
वैसे सवाल और भी हैं और उनके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
ReplyDeleteआप का सवाल ही अप्रसांगिक हैं क्युकी आप कहीं न कहीं इस सोच से जुडे हैं की आप को अधिकार हैं अपने बच्चो की शादी के लिये वर वधु खोजने का या स्वीकृति देने का । ये सामंती सोच हैं जहाँ आप सर्वे सर्वा हैं और बच्चे अपना जीवन साथी भी नहीं चुन सकते
मै उस सोच को ही गलत मानती हूँ तो जवाब नहीं दे सकती एक गलत सोच का
मुझे बलात्कारी से नफरत हैं और जिसका बलात्कार हुआ वो मेरे लिये कोई महत्व नहीं रखता क्युई दुर्घटना हैं और दुर्घटना कहीं भी हो सकती हैं उसके लिये जिसके साथ दुर्घटना हुई हैं वो दोषी ही नहीं हैं
"सवाल का मकसद इतना है तो इस प्रकार की घटना होने के बाद समाज में पुरुष वर्ग को गाली देतीं घूमती हैं किन्तु व्यावहारिक रूप में स्वयं भी उसी पुरुष वर्ग का हिस्सा बनीं होतीं हैं। "
बात हैं कंडिशनिंग की और कंडिशनिंग इतनी गहरी हैं की आप को अपनी सोच मे ही कोई जेंडर ब्यास नहीं दिख रहा तो उन महिला को क्या कहा जा सकता हैं जिनको पीढी डर पीढी मानसिक दासता के लिये तैयार किया जाता हैं ।
महिला वाद विवाद से बचती हैं ताकि घर मे शान्ति रहे और घरो मे आज भी पुरूष का ही वर्चस्व हैं जहाँ नहीं हैं वहाँ ऐसे प्रश्न भी नहीं हैं
आप को महिला का कहा हुआ सब कुछ पुरूष विरोधी ही लगता हैं जबकि वो समाज और समाज की रुदिवादी सोच के विरूद्व हैं ।
इस प्रकार की स्थितियों की कल्पना उस लड़की को केन्द्र में रखकर करिए जो इसका शिकार हुई है।
उस लड़की को मे बस इतना कहुगी जो हुआ उसके लिये जिसने किया वो जिम्मेदार हैं । तुम अपना सही इलाज करवाओ और अपने को एक दुर्घटना का शिकार से ज्यादा कुछ मत समझो । अपनी जिंदगी जियो , विवाह करो और इस बात को भूल जाओ । medical treatment aur trauma treatment jaruri haen बाकी अगर हिम्मत कर सको तो उस मुजरिम को सजा दिलावायो और कोशिश करो फांसी हो जाए
आप की बाकी सवालों का जवाब आपके ब्लॉग पर दे चुकी हूँ और नारी ब्लॉग की पुरानी पोस्ट देखे आप को बहुत से जवाब ख़ुद बा ख़ुद मिल जायेगे
thikhai.
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteआपने हमारे सवालों में से केवल एक सवाल अपनी पोस्ट पर लगाया और उसका भी जवाब नहीं दिया। हमने किसी भी सवाल पर किसी प्रकार की विश्लेषणात्मक, समीक्षात्मक स्थिति नहीं चाही थी। इस सवाल का सीधा सा उत्तर है हाँ अथवा नहीं। इस पर पूरी व्याख्या करने की आवश्यकता ही नहीं थी।
आज स्त्री-पुरुष विवाद का एक बहुत बड़ा कारण स्त्रियों द्वारा किसी भी बात को स्वीकारना नहीं है। इस स्थिति में नारी समर्थक वे महिलायें अपना अहम रोल अदा कर रहीं हैं जिनके लिए नारी मुक्ति का कोई अर्थ नहीं।