पिछले दिनों एक किताब पढ़ रही थी रोचक रोमांचक अंटार्कटिका इसको पढ़ते हुए बहुत सी रोचक बातें पढने को मिली और महिला होने के नाते एक सवाल जो मेरे दिल में स्वभाविक रूप से इसको पढ़ कर आया था कि यहाँ क्या महिलायें भी जा सकती है ...इसका उत्तर यहाँ मुझे इसी किताब में मिला ...जी हाँ इस अभियान में न केवल महिलाएं गई है उन्होंने अपना योगदान भी दिया है ...
भारत का पहला स्टेशन दक्षिण गंगोत्री १९८४ के अभियान में भारत की पहली दो महिलायें वैज्ञानिक डॉ सुदीप्ता सेनगुप्ता और डॉ अदिति पन्त चार महीने के लिये गई थी ..डॉ सुदीप्ता भूवेज्ञानिक के क्षेत्र में प्रसिद्ध है .और डॉ अदिति समुन्दर विज्ञान के अनुसंधान में निपुण है यह दोनों दुबारा भी पाँचवे और नौवें अभियान में गई हैं .....इनके किए अनेक प्रयोग कई जगह प्रकशित हुए हैं ...डॉ सुदीप्त ने तो बहुत सारे रोचक लेख भी लिखे हैं जो बंगाल में बहुत लोक प्रिय हुए हैं
सन १९८९ से मैत्री स्टेशन यहाँ काम कर रहा है ...और कई अनुसन्धान यहाँ चल रहे हैं ...किसी भी क्षेत्र की महिला जैसे मनोवैज्ञानिक .बनस्पति विज्ञान ..भू विज्ञान ..मन- शरीर विज्ञान आदि से जुड़ी महिला यहाँ आ सकती है ....पहले सब महिलाए यहाँ सिर्फ़ ४ महीने के लिये यहाँ गई ..१६ महीने की विंटर टीम में यह मुश्किल माना जाता था , पर १९९९ में डॉ कमल विल्कू १६ महीने तक वहां रही है ... ..जब वह वहां गई वह ५३ वर्ष की थी ..उस अभियान की सबसे वरिष्ठ सदस्य .वह भारत सरकार के केन्द्रीय विभाग में मेडिकल आफिसर रही है .. उन्होंने जबलपुर से एम् .बी .बी .एस किया है .उन्होंने ड्राइंग व पेंटिंग में भी ४ साल का डिप्लोमा किया हुआ हैं अपने अंटार्कटिका प्रवास के दौरान उन्होंने वहां की बहुत सारी सुंदर पेंटिंग्स बनायी हैं
अंटार्कटिका में विंटररिंग करने के बाद उन्हें अनेक पुरस्कार मिले..... अखबारों और कई जगह उनके इस काम का उल्लेख हुआ .....उनके ख़ुद के भी अनेक लेख प्रकाशित हुए ......जिस में उन्होंने लिखा कई भारतीय महिलाओं का योगदान अंटार्कटिका में हो इस के बारे में उन्हें जरा भी संदेह नहीं है ..चार महीने का तो प्रवास वह वहां आसानी से कर सकती है ..१६ महीने के लिए उनको अपने घर बार से दूर रहना होगा...... तूफानी हवा का सामना ....कडाके की सर्दी .....मौसम का सामना करना और स्टेशन की देखभाल आदि करना काम है जिसको कोई भी महिला अपने संघर्ष से आसानी से कर सकती है ...लेकिन सबसे बड़ी समस्या होती है पुरूषों की मानसिकता से जो ख़ुद को महिलाओं से अधिक श्रेष्ट मानते हैं ...और यहाँ तो वैसे भी पुरुषों का दबदबा रहा है ....यह सिर्फ़ भारतीय पुरुषों के साथ नही है .अन्य केन्द्र भी यहाँ इसी दंभ से भरे हुए हैं ...इसका एक उदाहरण मिला यही की एक किताब में जब अमरीकी स्टेशन मैकमुर्डो पर दो अमरीकी महिला सदस्य पहुँची तो कोई पुरूष वहां स्टेशन पर रहने वाला उनके स्वागत को बाहर तक नही आया और यही अहंकार उनके पुरूष होने का उनकी वहां की हर बात चीत में झलकता है ..बस यही एक समस्या है कि जब अकेली महिला वहां हो तो उसको इस अतरिक्त मानसिक दबाब को सहना पड़ता है ..
भारतीय सेना में अफसर रहे अपने पति के साथ डॉ विल्कू मिजोरम .हिमाचल प्रदेश .,कश्मीर और लदाख जैसे दुर्गम इलाकों में यह डाक्टर की तरह काम कर चुकी हैं ...सन १९७९ में एक निर्जन पहाडी इलाकों में दुर्घटना ग्रस्त एक बस में दर्जनों घायल लोगो को बचाने के लिए अकेले ही इन्होने अपनी जान की बाजी लग दी थी .इस से इन्हे मिजोरम सरकार ने सम्मानित किया था ..
भारतीय महिलाओं में तीन वैज्ञानिक महिलाओं डॉ सुदीप्त सेनगुप्ता ,डॉ आदिती पन्त और डॉ जया नैथानी और एक मेडिकल आफिसर डॉ कंवल विल्कू को अंटार्कटिका अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है ...
महिलाए आज हर जगह अपनी कार्य कुशलता से अपने होने का प्रमाण दे रही है ..और अब आज की महिला किसी से कम नही है ..यह बात इस सुदूर दुर्गम जगह पर गई महिलाओं ने साबित कर दी है ...
रोचक रोमांचक अंटार्कटिका किताब के सौजन्य से यह जानकारी यहाँ लिखी गई है
रंजना [रंजू ] भाटिया
और जानकारी
http://www.ias.ac.in/womeninscience/Antartic.pdf
बहुत रोचक जानकारी हैं मुझे पता ही नहीं था
ReplyDeleteनारी तू नारायणी
ReplyDeleteरंजनाजी,
ReplyDeleteईमानदारी की बात ये है कि बहुत दिनों बाद इस तरफ आना हुआ, लेकिन यह सुंदर, सकारात्मक पोस्ट और इससे पहले रचना का पॉजटिव स्टोरीज़ का आह्वान देखकर दिल खुश हो गया। ऐसी घटनाएं कहने-सुनने भर की नहीं होतीं, बल्कि कई लोगों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं।
bahut rochak aur prerak jaan kari hai bdhaai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
रंजू जी आप के नाम पर यहाँ आई कि क्या बता रही हैं अच्छी जानकारी के लिए आप की आभारी हूँ और साथ ही रचना को बधाई जो पिछली बार उन तक न पहुँच सकी यानि राजस्थान पत्रिका में महिला ब्लागर्स कही भी अच्छी खबर वो भी बिरादरी अच्छा लगता है.... बधाईयाँ, आभार ,शुक्रिया ....
ReplyDeleteरोचक है जी यह सब जानना !
ReplyDeleteएकदम नई जानकारी है । पहले कभी सुना नही था ।
ReplyDeleteरोचक है जी यह सब जानना !
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