दिल्ली हाट की गुनगुनी धूप में ब्लॉग जगत की सतरंगी किरणों से मिलने का एक अलग ही आनन्द था. हर किरण की अपनी एक अलग चमक थी.
रचनाजी, मनविन्दरजी और रंजनाजी पहले से ही दिल्ली हाट पहुँच चुकी थीं. हमें देखते ही पहचान लिया. एक पल के लिए भी नहीं लगा कि सबसे पहली बार मिल रहे हैं.
रचनाजी को मिलकर ऐसा लगा जैसे दूर दूर तक फैली बर्फ पर सूरज की रोशनी पड़ते ही आँखें चौंधिया जाएं, गज़ब की उर्जा शक्ति दिखाई दी उनमें ... मनविन्दरजी का मुस्कुराता मौन उस मौसम में मन्द मन्द बयार जैसा दिल को लुभा रहा था. मौन में शक्ति साफ साफ दिख रही थी।
रंजनाजी, शांत सौम्य मुस्कान के साथ बैठी थीं. लग रहा था शायद मन ही मन कविता बुन रही हैं।
कुछ देर में इन्द्रधनुष ब्लॉग की आर. अनुराधा आ गईं. उस दौरान किताबों पर चर्चा होने लगी. रंजनाजी के कविता संग्रह ‘साया’ पर बात हुई तो रचनाजी की माताजी डा.मंजुलता की रेकी की किताब पर चर्चा हुई. कैंसर विजेता आर. अनुराधा द्वारा लिखी किताब ‘इन्द्रधनुष के पीछे पीछे’ देखकर पढ़ने की उत्सुकता जागी. लिखने पढ़ने वालों का किताबों से स्वाभाविक मोह होता है सो फौरन पुस्तकों का आदान प्रदान हुआ.
रचनाजी के कारण यह सभा सम्भव हो पाई तो बाकि सदस्यों ने उस सभा की रौनक बढ़ा दी।
चोखेरबाली ब्लॉग की सुजाता को सामने से आते देखकर एक पल को लगा जैसे साँझ की बेला में दामिनी दमक उठी हो. मेरी बेटी होती तो ऐसी होती की पुरानी चाह फिर से चहक उठी।
वैसे कुछ वक्त के बाद तो दो बेटियाँ घर की रौनक बन कर आ ही जाएँग़ी. (आप सबको जानकर हैरानी होगी कि चोखेरबाली की नियमित पाठिका होते हुए एक बार भी टिप्पणी न देना शायद एक रिकॉर्ड कहा जा सकता है. ऐसा करने का कोई खास कारण नहीं है, शायद बिना चीनी या शहद के कड़वी दवा खाने या खिलाने की आदत नहीं हैं।)
खैर कुछ इंतज़ार के बाद उत्तरी दिल्ली से सुनिता ‘शानू’ भी पहुँच गई.. खाने-पीने के दौरान सुनिता ‘शानू’ ने अपनी मधुर आवाज़ में कविता पाठ किया तो सुजाता ने अपने मीठे सुर में गीत गुनगुनाया. हम कहाँ पीछे हटने वाले थे, हम भी उसी के सुर में सुर मिलाने लगे. रंजना ने अपने साया कविता संग्रह से एक कविता सुनाई. रचना और अनुराधा अपनी मीठी मुस्कान बिखेरते हुए स्वर लहरी का आनन्द ले रही थीं.
किताबों का आदान प्रदान तो हुआ लेकिन किताब लिखने पर भी चर्चा हुई. अनुराधा ने अलग अलग विषयों पर किताब लिखने की बात करके किसी भी तरह की सहायता का आश्वासन दिया. सुजाता ने हिन्दी ब्लॉग जगत की मानसिकता पर बात की जिसे बदलने में अभी बहुत वक्त लगेगा. सभी किसी न किसी रूप में समाज में कमज़ोर पक्ष की सहायता के लिए तत्पर लगे।
अभी आगे बहुत कुछ हैं और भी हैं मंजिले , कारवां बन रहा हैं , समय कम हैं काम ज्यादा फिर कहूंगी क्या क्या पाया किस किस से , अभी इंतज़ार हैं बाकि सब के मौन के टूटने का , सुजाता , रंजना , मनविंदर , अनुराधा और सुनीता आलेखों का ।
ye ingradhanu ke rang yuhi nikhare rahe,sundar varnan mano hum vaha baithe ho aapke saath.
ReplyDeleteजिवंत वर्णन पढ़ कर बहुत अच्छा लगा लेकिन यह भी लगा कि हमने जो नहीं मिल सके बहुत कुछ मिस किसा लेकिन सब कुछ अपने चाहने से नहीं संभव होता है. फिर कभी.......
ReplyDeleteसतरंगी किरणे, हर किरण की अपनी एक अलग चमक, बहुत सुंदर.
ReplyDeletepahle to badhai is milan ki .
ReplyDeletebahut pyaare dhung se aapne is milan ka varnan kiya hai. afsos ki hum isme shamil nahi ho sake .
आप सब मिल लिए और हम पढ़, देखकर ही मिल रहे हैं, इस मिलन का आनन्द उठा रहे हैं । सबके बारे में व वहाँ हुई चर्चा के बारे में बताने का धन्यवाद ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
अच्छा वर्णन किया है मीनाक्षी जी आपने, अब इंतजार है आगे कौन लिखता है, आप सबसे मिलकर सचमुच बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteIts a great pleasure to see you all
ReplyDeletetogether
बहुत अच्छी तरह से आपने लिखा मीनाक्षी जी ..यह सोहार्द चर्चा सच में बहुत अच्छी लगी ..लगा ही नहीं की पहली बार सब मिल रहे हैं ...सफल रहा सबसे मिलना .
ReplyDeleteसही रपट दी. आभार.
ReplyDeleteमीनाक्षी जी,
ReplyDeleteआपके द्वारा भेजी गई सतरंगी पंक्तियाँ पढ़कर मन भी सतरंगा हो गया. भावों के सातों स्वर मन में झंकृत हो गए. आपकी मिलन गोष्ठी बहुत ही सफल रही. मैं भी यदि इसमें शामिल हो पाती तो कितना अच्छा होता. वैसे तो आपके वर्णन से और वहाँ के चित्र देखकर मैंने यहीं पर गोष्ठी का पूरा आनंद ले लिया.
गोष्ठी की सफलता के लिए आप सब बधाई की पात्र हैं. विशेष रूप से रचना जी को बधाई, क्योंकि उनके ही प्रयास से यह सतरंगी मिलन संभव हो पाया. पुनः एक बार बधाई.
डॉ. मीना अग्रवाल
This is such a nice write up about the meeting --
ReplyDeleteWonderful ...keep your efforts alive.
God bless ...
& warmest rgds to all,
- Lavanya
मेरी बेटी होती तो ऐसी होती की पुरानी चाह फिर से चहक उठी।
ReplyDelete___
मीनाक्षी जी ,
आपने तो मुझे धराशायी कर दिया :-) इससे बढकर कोई क्याकुछ भी और कह सकता है !! आपसे मिलना वाकई बहुत सुखद रहा । जल्द ही अपना अनुभव सामने रखूंगी।
मीनाक्षी जी,
ReplyDeleteआपके द्वारा भेजी गई सतरंगी पंक्तियाँ पढ़कर मन भी सतरंगा हो गया. भावों के सातों स्वर मन में झंकृत हो गए.