September 05, 2008

शिक्षा का प्रसार निरंतर चलता रहे इसी आशा के साथ हर गुरु मेरा नमन स्वीकारे और हम सब को आशीर्वाद दे की माँ सरस्वती का वास हम सब के घरो मे हो ।

अनीता , सुजाता , नीलिमा , मिनाक्षी , जे सी फिलिप शास्त्री , मसिजीवी सभी अध्यापन के कार्य से जुडे हैं । और भी बहुत से ब्लॉगर जो अध्यापक हैं या टीचिंग प्रोफेशन से जुडे हैं उन सब को " टीचर्स डे " की शुभकामनाए , नारी ब्लॉग सदस्यों की तरफ़ से ।
गुरु और गोविन्द मे से जब भी चुनो , गुरु को की चुनो क्युकि गुरु ही गोविन्द से मिलवाता हैं ।
शिक्षा का प्रसार निरंतर चलता रहे इसी आशा के साथ हर गुरु मेरा नमन स्वीकारे और हम सब को आशीर्वाद दे की माँ सरस्वती का वास हम सब के घरो मे हो ।

9 comments:

  1. @गुरु और गोविन्द मे से जब भी चुनो , गुरु को ही चुनो क्युकि गुरु ही गोविन्द से मिलवाता हैं ।
    बिल्कुल सही बात है. पर आज कल तो शिबू सोरेन गुरु जी कहलाते हैं.
    जो गुरु गोबिंद से मिला सके उसे मेरा प्रणाम.

    ReplyDelete
  2. मेरी ओर से भी अनीता , सुजाता , नीलिमा , मिनाक्षी , जे सी फिलिप शास्त्री , मसिजीवीजी तथा अन्य ब्लागर शिक्षकों को को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  3. शिक्षकों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।



    ------------------------------------------
    एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.

    ReplyDelete
  4. शिक्षक दिवस के अवसर पर समस्त गुरुजनों का हार्दिक अभिनन्दन एवं नमन.

    ReplyDelete
  5. यह एक कटु सत्य है कि आज शिक्षा के मायने और उद्देश्य बदल गए है. प्रत्येक शिक्षक न तो गुरु हो सकता है न गुरु का स्थान ले सकता है. गुरु तो अति आदरणीय पूज्य देवतुल्य होते है जो व्यक्ति से कुछ पाने कि आशा नही करते अपितु उसे सुयोग्य व विज्ञ बनाना अपना परम पुनीत उद्देश्य समझते है.
    आजका व्यक्ति शिक्षक और गुरु को एक ही मानने कि भूल कने लगा है. आज के इस व्यावसायिक और भौतिकवादी समय में गुरु मिलना तो असंभव व सौभाग्य की बात है. आजके शिक्षक उनका उद्देश्य ये केन प्रकारेण धनोपार्जन हो गया है जिसके लिए छात्रो को ट्यूशन हेतु बाध्य और विवश करते है. शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो जाने से अनेक विकृतियां उत्पन्न हुई है. प्रश्न पत्र को सेट करना, लीक कराना, अपने कोचिंग या विद्यालय के छात्रो को उत्तीर्ण कराने, मैरिट में लाने, अपने विद्यालय को परीक्षा केन्द्र बनवाने, तरह तरह से नक़ल करवाने जैसे घृणित और निंदनीय कार्यो में रत लोग अपने विद्यार्थियों को क्या दे पायेगे क्या दशा और दिशा दे सकेगे सोचने की बात है. आज विद्यालयों और महाविद्यालयों कि अंदरूनी राजनीति किसी से छुपी नही है.
    विशेषकर उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का इतना बुरा हाल इस लिए है कि प्राथमिक शिक्षक क्षमा कीजियेगा विशेषकर महिलाए विद्यालय जाते ही नही है. वो तैनात तो गाव में होते है पर शहर में रह कर पूरा वेतन लेने जैसा निर्लज्जतापूर्ण कार्य अत्यन्त सहजता से करते है. ये शिक्षिकाये अपने घर में रह कर पूरा वेतन लेती रहती है.
    इस अंधेरे भरे समय में भी रोशनी कि किरण के रूप में ऐसे विरले, प्रणम्य, स्तुत्य है जो शिक्षा और समाज के प्रति समर्पित है और आज का यह दिन उन्ही महामना अपवादों को समर्पित है.

    ReplyDelete
  6. सही बात लिखी है रचना जी।
    आदमी के व्‍यक्तित्‍व के निर्माण में गुरुजनों का योगदान बहुत बड़ा होता है।
    शिक्षक दिवस पर मेरी ओर से भी आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  7. शिक्षक या गुरु वही जिसे एक भी शिष्य ऐसा मिल जाए जो जीवन की सच्ची राह पर चलना सीख जाए.. सभी को शिक्षक दिवस पर बधाई और शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  8. चाहे जितना हम अपनी शैक्षिक प्रणाली को कोस् ले उसके बावजूद हर क्षेत्र में सफल व्यक्ति के पीछे एक शिक्षक की भूमिका देखी जा सकती है । एक स्कूल में तमाम तरह के संसाधनों के बावजूद एक शिक्षक के न होने पर वह स्कूल नहीं चल सकता है । दुनिया में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, और रोज ऐसे हजारों उदाहरण गढे जा रहे हैं ,जंहा बिना संसाधनों के शिक्षक आज भी अपने बच्चों को गढ़ने में लगे हैं । वास्तव में आज के प्रदूषित परिवेश में यह कार्य समाज में आई गिरावट के बावजूद हो रहा है ,इसे तो दुनिया का हर निराशावादी व्यक्ति को भी मानना पड़ेगा ।
    आज शिक्षक दिवस को 5 सितम्बर के दिन हम सबको यह बातें ध्यान में रखनी चाहिए , इसके साथ हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न भी उठना ही चाहिए कि आख़िर अपने पुरातन संस्कृति में महत्व के बावजूद आज समाज में एक शिक्षक इतनी अवहेलना का निरीह पात्र क्यों बन जाता है? स्कूली शिक्षा का यह स्तम्भ जब तक मजबूत नहीं होगा ,तब तक अपनी शैक्षिक प्रणाली में कोई आमूल - चूल परिवर्तन फलदायी नहीं हो सकता है । हाँ सब को यह समझना होगा कि संस्कृति से अधूरे बच्चे केवल साक्षरों की संख्या ही बढ़ा सकते हैं, पर कोई मौलिक परिवर्तन उनके बूते कि बात नहीं?

    प्राइमरी का मास्टर
    http://primarykamaster.blogspot.com/

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.