April 11, 2008

यौन शोषण के खिलाफ लड़ी और जीती

मिसाल हैं " रुपन देओल बजाज " जिसने १७ साल मुकदमा लड़ा "के पी एस गिल" के खिलाफ , यौन शोषण का । जिस समय ये घटना हुई थी रुपन देओल बजाज IAS ओफ्फिसर और वह भी सीनियर लेवल पर और के पी एस गिल पंजाब पुलिस के सब से ऊँचे ओहदे पर थे । एक पार्टी मे उन्होने शराब के नशे मे रुपन देओल बजाज के नितंब पर थप्पड लगाया था । उस पार्टी मे सभी आला अफसर थे पर किसी ने भी गवाही नहीं दी थी । कोर्ट ने रुपन देओल बजाज की ख़ुद की गवाही को ही माना था । पर मुकदमे का फ़ैसला आते आते पूरे १७ साल लगे और इन १७ सालो मे रुपन देओल बजाज निरंतर इस बात पर अड़ी रही कि नारी के शील का शोषण करने का अधिकार किसी भी पुरूष नहीं हैं । और ऊँचे ओहदे पर जो पुरूष हैं उनको अपनी मर्यादा मे रहना होगा ।
इस चरित्र कोई यहाँ रखने का मकसद हैं की नारी को यौन शोषण के ख़िलाफ़ हमेशा सजग रहना होगा और समय रहते ही इसके ख़िलाफ़ लड़ना भी होगा । ज्यादा जानकारी इस लिंक पर हैं ।

11 comments:

  1. एक संघर्षशील महिला को याद करने के लिए आभार।

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  2. आपने बहुत बढ़िया जानकारी दी है धन्यवाद

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  3. आपने बहुत बढ़िया जानकारी दी है धन्यवाद

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  4. अभी जागरूकता की जरुरत है। क्यूंकि आज भी नारी इस तरह के शोषण का शिकार होती है और चुप रह जाती है।

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  5. जब तक हर नारी चुपचाप इस को सहन करती रहेगी यही सब होता रहेगा ..अभी जागरूक होने के साथ साथ हिम्मत और आने वाली बेटियों को यह समझाने की जरुरत है कि यह सब नही सहना है .अभी कल ही एक खबर देखी टीवी पर दिल्ली में मकान मालिक ने उसके घर किराए पर रहने वाली लड़की का रेप किया और उसकी बीबी ने पति को दोष देने कि बजाय मोहल्ले वालो के साथ मिल कर उस लड़की को बुरी तरह से पीटा ..पुलिस मूक दर्शक बन के सब देखती रही और वह लड़की सब से पीट के लहुलुहान होती रही .आखिर इसका अंत क्या है .कसूर किसका है ? बहुत से सवाल अभी भी अपना जवाब माँगते हैं

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  6. बिल्कुल मिसाल है ,क्यूंकि उस वक़्त गिल साहेब बहुत बड़े आदमी थे ,अन्तक-वादियों से पंजाब को मुक्त कराने का सेहरा उनके सर पे था ....ऐसे आदमी के खिलाफ लड़ना अपने आप मे बड़ी बात है.....

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  7. I appreciate your blog...which is about 'WE'..NAARI.keep going on.

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  8. अच्छा ब्लॉग है

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  9. जनवरी 1991 में 'समकालीन जनमत' के लिए पंजाब पर रिपोर्टिंग करते वक्त मैंने भटिंडा जिले में एक धकियल एसएसपी से बात की थी। बातचीत अनौपचारिक हुई तो मैंने उनसे रूपन देओल बजाज प्रकरण पर भी एक-दो सवाल पूछ लिए। उन्होंने पहले तो गिल साहब की लंबी विरुदावली गाई,फिर ऑफ द रिकॉर्ड जाते हुए कहा कि सेनापतियों और राजाओं से शुचिता की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। 1998 में गिल के खिलाफ फैसला आ जाने के बाद मुझे लगा कि ऐसे 'वीरों' का असली पराक्रम इनकी बंदूकबाजी में नहीं बल्कि सरे बाजार सौ-सौ जूते खाकर भी मूंछे फड़काते रहने वाले लतखोरपन में देखा जाना चाहिए। बाई द वे, ये एसएसपी साहब खुद भी फर्जी मुठभेड़ के एक मामले में 1996के आसपास जेल गए, जहां इनके हाथों सताए गए कैदियों ने इन्हें इतना मारा कि मरते-मरते बचे।

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  10. kabile tariff hai rupan ka hausla aur jeet bhi,desh ki raksha karnewala hi agar aisi harkate karein to aam janata to umeed se gayi.

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