August 26, 2014

मर्दानी

मर्दानी शब्द का अर्थ मर्द जैसी नहीं होता हैं , मर्दानी का अर्थ हैं जो मर्दन करे। मर्दन का प्रयोग दुष्टो को मारने के सन्दर्भ मे लिया जाता हैं। मर्द शब्द से मर्दानी शब्द को जोड़ना कुछ उसी प्रकार की बात हुई की नारी के हर काम को ये कहना की वो पुरुष को कॉपी करती हैं या पुरुष बनती हैं ।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी , यानी दुष्टो का मर्दन करने वाली रानी लक्ष्मी बाई .

August 23, 2014

चट मंगनी पट ब्याह : कितना उजला कितना स्याह !

विवाह " जैसी सामाजिक संस्था का अस्तित्व जितना महत्वपूर्ण दशकों  पूर्व था वैसे अब नहीं रह गया है।  शिक्षा , प्रगतिवादी विचारधारा और पाश्चात्य  स्वरूप ने अपने  तरह से  पूरी तरह से बदल दिया है।  लडके और लड़कियों के प्रतिदिन  बदलते विचारों ने इसके स्वरूप को प्रभावित किया है।  अब दोनों को ही अपने इस रिश्ते के बारे में निर्णय लेने के लिए माता - पिता के साथ बराबर की भागीदारी कर रहे हैं।  इसके बाद भी पहल के रूप में माता - पिता इस निर्णय को अपने हाथ में ही रखना चाहते हैं - वह अच्छी बात है कि  उन्होंने दुनियां देखी होती है लेकिन आज के बदलते माहौल और विचारों के चलते सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या इसको बनाने से पहले कुछ खास सावधानियां बरतनी चाहिए ?  



                                    सबसे पहले चाहे माता पिता हों या बच्चे अपने जीवनसाथी के रूप में आर्थिक , सामाजिक और व्यावसायिक तौर पर अपने स्तर का साथी चुनना अधिक पसंद करते हैं. इस दिशा में कभी कभी बहुत देर भी हो जाती है।  उस स्थिति में माता - पिता की रातों की नींद गायब हो जाती है बेटी/बेटे  की बढती उम्र और अपने दायित्व के प्रति अपराध बोध उन्हें घेरने लगता है।  फिर वे मनचाहा वर मिलने पर या उसकी जानकारी मिलने पर आतुर हो उठते हैं कि अगर ये रिश्ता हो जाए तो मन मांगी मुराद मिल जायेगी।  इस दिशा में वे ऊपरी तौर पर जानकारी हासिल कर लेते हैं लेकिन उसके विषय में गहन छानबीन नहीं करते है क्योंकि उन्हें ये भय रहता है कि अधिक छानबीन करने से अगर लडके वाले नाराज हो गए तो ये भी लड़का हाथ से न निकल जाए। गुपचुप कहीं रिश्तेदारों और पड़ोसियों को पता न चल जाए और कुछ ऐसा हो कि रिश्ता न हो।
                                   वैवाहिक साइट और विज्ञापन में तो और अधिक धोखा होता है लेकिन कभी कभी खुद से खोजे हुए रिश्ते भी इतने धोखे वाले साबित हो जाते हैं कि जीवन या तो एक बोझ बन जाता है या फिर उस बच्ची/बच्चे  को जिंदगी से ही हाथ धोना पड़  जाता है।  कहते हैं न कि अगर बेटी एक साल पिता के घर में कुमारी बैठी रहे तो समाज को मंजूर है लेकिन विवाह होने के बाद अगर वह दो महीने भी पिता के घर रह जाती है तो कितना ही पढ़ा लिखा समाज हो - उंगली उठाने लगता है।  तरह तरह के कटाक्ष माता पिता और बेटी पर किये जाते हैं।  चट मांगनी पट ब्याह होना बुरा नहीं है लेकिन उस समय में तयारी के साथ साथ छानबीन भी उतनी ही जरूरी है।
                                       करुणा के माता पिता ने उसके ग्रेजुएट होते ही शादी करने की सोची।  उन्हें एक बहुत अच्छा लड़का मिला बहुत पैसे वाले लोग , लड़का इकलौता  था और पिता के साथ बिज़नेस संभाल रहा था। किसी रिश्तेदार ने बताया था।  कुछ उम्र का अंतर था लेकिन देखने में लड़का ठीक ही लग रहा था।  विवाह के बाद कुछ दिन तो ठीक रही लेकिन पति तो रोज कुछ  कुछ दवाएं खाता रहता था. उसने कभी पूछा तो कह दिया की विटामिन्स है।  इतना तो उसको पता ही था कि विटामिन्स में और इन दवाओं में कितना अंतर है ? करुणा की बड़ी बहन डॉक्टर थी ,  एक दिन करुणा ने सोचा कि दीदी से ये दवाएं होंगी तो लेती आउंगी और पति की दवाओं के पत्ते लेकर बहन के यहाँ गयी।  उसकी बहन ने देखा  तो पैरों तले जमीन खिसक गयी।
                                   उसके पति की दवाएं शुगर और किडनी से सम्बन्धी रोगों की थी।  उसने अपने तरीके से उस डॉक्टर से संपर्क किया जो उसके बहनोई का इलाज कर रहा था।  पता चला कि उसका पैंक्रियाज की स्थिति बदतर हो चुकी थी।  शुगर अनियंत्रित थी और हार्ट और किडनी की स्थिति भी ठीक नहीं थी।  तरुणा की आँखों के आगे अँधेरा छा गया।
                                  उसने सीधे से करुणा के ससुराल अपने माता पिता के साथ जाकर बात की तो सच ये था कि उनके बेटे की जिंदगी कुछ ही सालों की डॉक्टरों ने बतलाई थी , इसी लिए जल्दी से शादी की जिससे बहू को कोई बच्चा  हो जाएगा तो घर को वारिस मिल जाएगा और फिर बहू भी बच्चे को लेकर कहाँ जायेगी ? उनके बुढ़ापे का सहारा बना रहेगा।
                                   धोखाधड़ी का मामला बन रहा था लेकिन वो आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो गए और करुणा अपने घर आ गयी।  उसको विवाह जैसे संस्कार से घृणा हो चुकी है।
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                           स्मिता के माता पिता ने  २२ लाख रुपये खर्च किये थे अपनी बेटी की शादी में , बड़ी कोठी ,  लड़का कनाडा में इंजीनियर और पिता बैंक का मैनेजर। स्मिता के स्थानीय रिश्तेदारों ने कुछ कहना चाहा तो उन लोगों को लगा कि हमारी बेटी को इतना अच्छा घर और वार मिल रहा है सो सबको जानकारी कर लेने की बात सूझ रही है।  उन लोगों  देखते ही हाँ कर दी  और तुरंत सगाई हो गयी।  लड़का फिर बाहर चला गया।  लडके और लड़की में बात चीत होती रही।  सब कुछ अच्छा था।  लड़की को नौकरी छोड़ने को कहा गया और उसने शादी से पहले ही नौकरी छोड़ दी। 
                          शादी के कुछ महीने के बाद लड़का वापस कनाडा और स्मिता उसके माँ बाप के पास।  तरह तरह से परेशान करना।  गर्भवती हो गयी तो मायके भेज दिया ये कह कर - जब तुम्हारे बाप के पास खाने को ख़त्म हो जाए तो चली आना।  उसके वहीँ पर अपने मां के घर बेटी हुई लेकिन ससुराल से कोई भी देखने नहीं आया।  पति भी नहीं।  ससुर ने साडी संपत्ति बेटी के बेटे के नाम कर दी।  
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ये सिर्फ लड़कियों के मामले में लागू नहीं होता बल्कि लड़कों के मामले में भी ऐसे ही धोखे दर्ज हैं  कभी कभी तो ऐसे धोखे सामने आते हैं कि सामने वाले की जिंदगी ही तबाह हो जाती है। 
                          रमन की शादी किसी रिश्तेदार ने ही करवाई थी , बहुत करीबी का नाम लेकर रिश्ता आया था।   रिश्तेदार थे सो खोजबीन की जरूरत नहीं समझी।  लड़की मानसिक तौर पर  बीमार थी।  बताती चलूँ मैं भी उसमें शामिल हुई थी।  शादी की रस्मों के बीच कुछ ऐसी हरकतें की कि  मुझे कुछ अजीब लगा लेकिन शादी हो गयी।  सिर्फ १ महीने बाद ही उसकी असामान्य हरकतें शुरू हो गयीं।  माँ आकर ले गयी और दामाद से  कहने लगी कि तुम भी साथ चलो इसकी बीमारी में पति का साथ होना जरूरी है।  
                          फिर वह वापस नहीं आई आया तो दहेज़ उत्पीड़न का नोटिस।  लड़का जेल गया , माता पिता की उम्र और बीमारी के देखते हुए जमानत मिल गयी।  दस साल तक कोर्ट के चक्कर लगाये और तब ३ लाख रुपये लेकर समझौता किया और तलाक दिया।  
                           चट मंगनी पट ब्याह जरूर करें लेकिन उससे पहले पूरी जानकारी हासिल करके -  विज्ञापन या वैवाहिक साइट का भरोसा तो बिलकुल भी  न करें।  अपने को अनाथ बताने वालों से सावधान रहें।  पद , स्थिति और परिवार सम्बन्धी जानकारी लेकर ही निर्णय लें।

August 16, 2014

बात गलत और सही की होनी चाहिये , बात स्त्री के सही और पुरुष के लिये सही की नहीं होनी चाहिए

भाइयो-बहनो, आज जब हम बलात्कार की घटनाओं की खबरें सुनते हैं, तो हमारा माथा शर्म से झुकजाता है। लोग अलग-अलग तर्क देते हैं, हर कोई मनोवैज्ञानिक बनकर अपने बयान देता है, लेकिन भाइयो-बहनो, मैं आज इस मंच से मैं उन माताओं और उनके पिताओं से पूछना चाहता हूं, हर मां-बाप से पूछना चाहताहूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और बाप चौकन्ने रहते हैं, हर बात पूछते हैंकि कहां जा रही हो, कब आओगी, पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं,लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, कौनदोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं।क्या मां-बाप के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो? अगर हर मां-बाप तयकरे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डाल करके देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।


कल १५ अगस्त को नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले से दिये अपने भाषण में जब ये कहा तो लगा समस्या का निदान यही हैं।  इस ब्लॉग पर ना जाने कितनी पोस्ट इसी विषय पर लिखी हैं मैने और जगह जगह पुरुष विरोधी , परिवार विरोधी , असंस्कारी , नारीवादी और भी ना जाने कितने नाम मुझे दिये गये।

 एक सो कॉल्ड कवि जो इस दुनिया में अब नहीं हैं उन्होंने तो एक कविता तुम लिंग पकड़ के बैठी रहो इस ब्लॉग जगत में लिखी थी ,
एक और जो अपने को लेखक और पत्रकार कहते हैं उन्होने रंडापा टाइप स्यापा कहा
तो एक और हैं जो अपने को वैज्ञानिक कहते हैं उन्होने विधवा विलाप का  नाम दिया। 
एक हैं जो जर्मनी में रहते हैं उनको तो हर महिला मांस का लथोरा लगती हैं।
 एक और हैं जो बड़े फक्र से कहते हैं उनकी ३०० गर्ल फ्रेंड हैं। 
एक और हैं जो सबकी हिंदी का टंकण सही करते थे और जब महिला पर पोस्ट लिखते थे तो कॉमेंट सेक्शन बंद कर देते थे लेकिन अपने को महान लेखक मानते हैं।  
एक हैं जो कहते थे अच्छी औरते नहीं हैं
एक थे जो कहते थे बिका हुआ माल वापिस नहीं होगा
एक थे जो सारे नेट पर से खोज कर मेरे घर काम पता और काम अपने ब्लॉग पर डालते थे


इस ब्लॉग पर हर इस बात का लिंक किसी ना किसी पोस्ट में मौजूद होगा। 

कल जब देश के प्रधान मंत्री ने वही बात कही की  बेटो पर लगाम लगाओ तो लगा काश इन सब पर भी बचपन में वो सख्ती की गयी होती तो जो इनके घर की महिला पर की गयी तो शायद ये सब पुरुष ना बनकर एक बेहतर इंसान बनते और एक बेहतर समाज की रचना करते।

इन में से बहुत से ब्लॉगर अपनी बेटियों के चित्र , उनकी उपलब्धि  ब्लॉग पर शेयर करते हैं और अपने को अच्छा पिता साबित करने की कोशिश करते हैं लेकिन एक अच्छा पिता केवल अपनी बेटी के लिये अच्छा होता हैं पर दूसरी महिला के प्रति उसका नज़रिया बहुत ही संकुचित हैं।

समानता का अर्थ ही हैं हर चीज़ में समानता ,

जो बेटी के लिये गलत हैं वही बेटे के लिये भी गलत हो
जो पत्नी के लिये गलत हैं वही पति के लिये भी गलत हो
बात गलत और सही की होनी चाहिये , बात स्त्री के सही और पुरुष के लिये सही की नहीं होनी चाहिए


नरेंद्र मोदी जी आप को मै  एक दकियानूसी नेता समझती थी मैने आप को वोट केवल इस लिया दिया था क्युकी आप बी जे पी के थे , लेकिन आज मुझे फक्र हैं की बी जे पी ने एक सही व्यक्ति का चुनाव किया प्रधान मंत्री पद के लिये।
आप का कल का भाषण बता रहा था की इस देश को एक लीडर मिल गया हैं।  आप को सादर नमन।  

August 15, 2014

सोचने का समय खत्म हो रहा जागृति का मशालवाहक नरेंद्र मोदी अपनी हर संभव कोशिश करने को प्रतिबद्ध दिख रहा हैं तो आप और हम भी कोशिश करे

आज़ादी के पावन पर्व की सबको बधाई।
आज प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पहली बार लाल किले पर तिरंगा लहराया।  मोदी जी ने अपने पहले भाषण में जो " बेटो " पर लगाम कसने की बात कहीं है वो बात इसी नारी ब्लॉग की हर पोस्ट में अनगिनत बार कहीं गयी हैं।    ११५६ पोस्ट पब्लिश करके निरंतर यही कहा गया हैं की समानता तभी आ सकती हैं जब बेटे पर पाबंदियां लगाई जाए।  जो नियम घर में हो वो बेटे और बेटी  के लिये एक से हो।  ये पुरुष विरोधी होना या नारीवादी होना नहीं हैं ये समाज को याद दिलाना हैं की आप अगर "पाबंदियों में समानता का व्यवहार" नहीं करेगे तो कभी ना कभी आप को  आने वाली पीढ़ी की " उछ्रंखलता में समानता को "  स्वीकार करना ही होगा .
नरेंद्र मोदी जी ने बिलकुल सही कहा अभिभावक अपने बेटो से डरते हैं  और इसीलिये उन से कभी प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं करते।

बेटो के प्रति मोह और बेटियों के प्रति निष्ठुरता का परिणाम हैं ये असमानता जो आज भी हर परिवार में व्याप्त हैं।  हर नियम हर कानून केवल बेटी के लिये और कारण "उसकी सुरक्षा " .

किस से समाज अपनी बेटी की सुरक्षा उस से जो रिश्ते में उसका पिता , भाई , चाचा , मामा , ताऊ या एक पुरुष हैं जिसको वो नहीं जानती पर ये समाज जानता हैं , क्युकी वो इसी समाज का वो हिस्सा हैं जिस पर पाबंदी लगाना ये समाज भूल गया।

नतीजा क्या हुआ आज समाज हर प्रकार की उछ्रंखलता को स्वीकार कर रहा हैं।  हर घर में पोर्न , शराब , सिगरेट ब्लू मूवी और भी बहुत कुछ आज की पीढ़ी जिसमे लड़के और लड़की दोनों हैं के लिये उपलब्ध हैं।  बहुत से अभिभावक समझते हैं इस बात को पर इग्नोर करते हैं। 

असमानता  को ले कर लड़कियों के मन में जो रोष हैं वो लावा बन चुका हैं और विस्फोट की तैयारी में है इस लिये जरुरी हैं की कानून और संविधान को माना जाए।  लड़को और लड़कियों में बराबरी हो प्रतिबंधों पर।  जो लड़की के लिये गलत हो उसे लड़को को भी ना करने दिया जाये।  


सोचने  का समय खत्म हो रहा जागृति का मशालवाहक नरेंद्र मोदी अपनी हर संभव कोशिश करने को प्रतिबद्ध दिख रहा हैं तो आप और हम भी कोशिश करे

August 08, 2014

उसको सही खाना मिले , और वो हमारे घर में हंसती बोलती रहे बस इतना ही हमारे वश हैं - कब मेरे देश के बच्चे अपना बचपन जी पायेगे

आज कल एक १४-१५ साल की बच्ची हमारे साथ रहती हैं जो मेरे ऑफिस जाने के बाद माँ के पास रहती हैं और घर का काम करती हैं।  सबसे जरुरी की दिन भर माँ का सिर खाती हैं और उनको प्यार से खाना खिलाती हैं।