ओपन मार्केट में जिस सामान की कीमत महज १५ रूपए थी उसको घर में काम करने वालो को ज्यादा दाम में बेच दिया और इसको दान कहा ???ये तो महज बिज़नस हैं और कुछ नहीं बस फर्क ये हैं की खरीदार घर में ही काम करता हैं गीता में बताये किसी भी दान में ये नहीं आता हैं और पात्र सुपात्र इत्यादि की बात करना ही यहाँ बेकार हैं सीधा सीधा फायदा का सौदा हैं उनका जिनका सामान हैं पैसा भी मिला और अहम की तुष्टि भी
आप ऊपर का लिंक क्लिक करके उस पोस्ट पर जा सकते हैं जहां ये कमेन्ट मैने दिया हैं
मुझे सच में जानना हैं की अपने घर की पुरानी वस्तु अपने घर में काम करने वालो को देना या उनको इन वस्तु को बेचना क्या दान की परिभाषा में आता हैं
क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस
आप ऊपर का लिंक क्लिक करके उस पोस्ट पर जा सकते हैं जहां ये कमेन्ट मैने दिया हैं
मुझे सच में जानना हैं की अपने घर की पुरानी वस्तु अपने घर में काम करने वालो को देना या उनको इन वस्तु को बेचना क्या दान की परिभाषा में आता हैं
क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस
पता नहीं विषय से संबद्ध है या नहीं लेकिन ’दान’ शब्द से मुझे नचिकेता की कहानी ध्यान आ गई, एक लिंक भी मिला है। पढ़ देखियेगा -
ReplyDeletehttp://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80
अपना पुराना सामान देकर (बेचने की बात तो पहली बार सुनी ...न मैंने न मेरे आस-पास के लोगों ने आजतक कामवालियों को पुराना सामान पैसे लेकर दिए हैं ,टी.वी., फ्रिज़, वाशिंग मशीन जैसे चीज़ भी ) न तो किसी अहम् की तुष्टि होती है, न ही दान करने या मदद करने जैसा कोई भाव होता है . आपका पुराना सामान सही हालत में है, आपको नया खरीदने की इच्छा है और एक्सचेंज में कम्पनी वाले इतना कम पैसे देते हैं कि लगता है ,इस से अच्छा तो ये है कि मुफ्त में किसी को दे दी जाए जो इसका उपयोग कर सके.
ReplyDeleteइसमें दान ,मदद या अहम् तुष्टि जैसी कोई भावना नहीं होती.
आपके ब्लॉग पर दिए गए लिंक पर पहुंचकर पोस्ट और बहस को पढ़ा। वहां हम यह कह आए हैं-
ReplyDelete‘पहले व्यापार भी एक सेवा थी। अलग अलग इलाक़ों में पैदा होने वाली उपज को व्यापारी जन-जन तक पहुंचाने का काम करते थे। अब सेवा भी व्यापार बन गई है।
पहले मालिक दाता होता था। वह अपने सेवकों को कुछ देता था तो बदले में कुछ लेता नहीं था लेकिन अब लेने लगा है। ज़माना बदल गया है लेकिन शब्द आज भी पुराने ही चल रहे हैं।
दान भी एक पुराना शब्द है, जिसका पुराना अर्थ अब कम लोगों के जीवन में है।
पुराना सामान फेंकने से अच्छा है कि उसे किसी को दे दिया जाए और मुफ़्त में देने से अच्छा है कि बदले में कुछ ले लिया जाए। जो ज़्यादा दयालु होते हैं वे लोग सामान देकर पैसे सेवक की सैलरी में से काटते रहते हैं। हां, बचा हुआ खाना और पहने हुए कपड़े ये लोग मुफ़्त भी दे देते हैं। ऐसा हमने देखा है।
बेशक शहरों में ग़रीब भी गांव के अमीर जैसे रूतबे से रहता है लेकिन भारत में भयानक ग़रीबी मौजूद है। आजकल बुंदेलखंड में लोग जंगली चारे ‘पसई’ का चावल खाकर ज़िन्दा हैं। मध्य प्रदेश के भूखे देखकर राहुल गांधी को अफ़्रीक़ा याद आ गया।
गीता के काल से सुपात्र को दान देने की परंपरा है लेकिन भूखे की भूख और ग़रीब की ग़रीबी आज तक ख़त्म क्यों नहीं हुई?
हमें इस पर विचार करने की भी ज़रूरत है। दान की लुप्त हो चुकी प्राचीन रीति को उसके वास्तविक भाव के साथ ज़िन्दा करना हमारी प्राथमिकताओं में से होना चाहिए।
जिसने जितना ज़्यादा समेट रखा है। उसकी ज़िम्मेदारी उतनी ही ज़्यादा है।’
मध्यवर्गीय चितन की एक झलक बहुत सारे ब्लोगों पे देखने को मिल जाती है. भारत की गरीबी और गरीब लोग शहरी मध्यवर्गीय लोगों को कई तरह के सुख देने का काम कर रहे हैं - घरेलु काम और बच्चा सँभालने से लेकर दान पुण्य का अवसर भी प्रदान कर रहे हैं. बीच बीच में भंडारा वगैरह कर के स्वर्ग में अपना स्थान पक्का कर रहे हैं और ये गरीब लोग इन दान में मिली वस्तुओं से अपना जीवन किसी सेठानी(?) की तरह ठाठ से बिता रहे हैं.. और अपने पैसे से गाँव में जमीन खरीद रहे हैं. ...कोई बता रहा है की कामवालियों 16 हज़ार तक की आमदनी कर रही हैं ..कोई बता रहा है की कामवालियों को मुफ्त में सामान देकर उनकी आदत बिगाड़ रहे हैं या सामान की क़द्र कम हो रही है ..डॉ. अनवर जमाल जी ने पूछा है की गरीबी और भुखमरी इतने सारे दानी और दाता के होते हुए ख़त्म क्यों नही हो रही है - अमां अगर गरीबी ख़त्म हो जाए तो घरों में काम करने को नौकरानियां कहाँ से आएगी और आपको नवाब होने का सुखद अनुभूति कैसे होगा और फिर दान-वान करके आप पुण्य कैसे कमाएंगे? अगर कामवालियां/ गुलाम/ गरीब न हो तो आर्थिक रूप से स्वतंत्र प्रगतिशील महिलाए बेकार से घरेलु कामो में जकड के ना रह जाए ????? भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गुलाम पाए जाते हैं ये तो हमारे तरक्की और समृधि की निशानी है की हम इतने सारे गुलाम और बेगार को मैनेज कर रहे हैं.
ReplyDeleteइस पोस्ट में मुझे कहीं भी पैसे लेकर सामान दिए जाने जैसा कुछ दिखा नहीं । बस पुराना सामान (जो एक्सचेंज में पैसे कम करा कर दिया जा सकता था ) काम वाली आदि को इस्तेमाल में देने की बात मिली - जो काफी अच्छा लगा । यह बिजनेस तो किसी दृष्टि से नहीं लगता ।
ReplyDeleteसुपात्र कुपात्र आदि तो अपने विवेक से ही समझना होता है ।
शिल्पा
ReplyDeleteपोस्ट में क्या हैं और क्या नहीं इसका फैसला हर पाठक अलग अलग करता हैं , ब्लॉग पर पाठक को प्रश्न करता हैं और फिर उत्तर स्पष्ट करता हैं की जो पोस्ट में उसको दिखा वो था की नहीं ,
आप अगर इस पोस्ट पर प्रश्न का उत्तर पढ़ेगी तो आप को दिखेगा की उसमे कहा गया हैं
http://tsdaral.blogspot.com/2013/10/blog-post_18.html?showComment=1382164861640#c6936546405422390020
"हमने भी यह नहीं कहा कि सारा सामान मुफ्त मे दे दिया" tarif daral
oh - yah kah rahi thin aap - maine nahi dekha tha ....
Deletevaise main bhi aksar puraana saamaan baaiyon ko deti hoon. chhoti moti cheezen aise hi lekin puraane tv aadi type ki cheez ho to nominal paise zaroor leti hoon - yah daan nahi hota , yah kya hai yah to main define nahi kar sakti lekin daan to bilkul nahi ... shayad recycling jaisa kuchh..