October 24, 2013

"आस्था " और " विश्वास " से बड़ा कुछ नहीं होता


@यह मान  बैठना कि व्रत /उपवास करने वाली सभी विवाहित स्त्रियाँ बेड़ियों में जकड़ी है , एकतरफा  सोच है , पूर्वाग्रह है।  

मेरा एक नियम हैं की किसी भी तीज त्यौहार पर चाहे वो किसी भी धर्म या जेंडर से जुड़ा  ना हो , जिस दिन वो त्यौहार होता हैं उस दिन मै उस पर कभी कोई बहस नहीं करती क्युकी "आस्था " और " विश्वास " से बड़ा कुछ नहीं होता।
आप की इस पोस्ट पर कमेन्ट इस लिये दे रही हूँ क्युकी कई बार कोई भी जो किसी बात पर बात करता हैं ख़ास कर अगर वो धर्म , मान्यता इत्यादि से जुड़ी होती हैं तो लोग उसको प्रगति शील , फेमिनिस्ट का तमगा दे ही देते हैं ऐसा क्यूँ हैं ?? पूर्वाग्रह तो ये भी हैं।

 गीता में एक जगह कहा गया हैं अँधा अनुकरण धर्म नहीं अधर्म हैं धर्म मान्यता में नहीं होता हैं मान्यता धर्म को प्रचारित करने के लिये बनती हैं

आप ने सही कहा हैं की साथ रहने के लिये तालमेल बैठाना /सामंजस्य /समझौता जरुरी हैं लेकिन किसी को महज कुछ ऐसा करना हो जो करना उसका अंतर्मन नहीं चाहता तो वो उस मान्यता का अंधा अनुकरण हैं , या वो एक डर हैं की समाज क्या कहेगा
समाज हम से हैं हम समाज से नहीं हैं , जीव हैं तो समाज की जरुरत हैं जीव ही नहीं होगा तो समाज भी नहीं होगा

करवा चौथ स्त्री की सहनशीलता का प्रमाण हैं उसके पति प्रेम का नहीं क्यूँ बहुत सी ऐसी सुहागिने भी हैं जो इस व्रत को केवल और केवल इस लिये रखती हैं क्युकी ना रख कर उनको तमाम सवाल के जवाब देने पड़ते हैं , और कुछ तो पति को गाली दे दे कर नहीं थकती पर वर्त भी रखती हैं

मेरे लिये जो रखती हैं या जो नहीं रखती हैं ये उनका पर्सनल मामला हैं , लेकिन ये परम्परा पुरुष को स्त्री से ऊपर के स्थान पर स्थापित करती हैं , स्त्री में एक डर बिठाती हैं की अगर पति नहीं होगा तो उसको सुहाग सिंगार नहीं मिलेगा

करवा चौथ विवाहित स्त्री के लिये नहीं होता हैं केवल सुहागिन के लिये होता हैं इस लिये इसका महत्व स्त्री से नहीं जुड़ा हैं अपितु उसके सुहागिन होने से जुड़ा हैं

बहुत सी  विधवा स्त्री के लिये ये दिन एक दुःख भरा रहता हैं क्युकी उस दिन उसको निरंतर ये एहसास होता हैं की वो विधवा हैं

@विवाह या व्यवहार प्रेम /पसंद से हो या प्रायोजित !!


विवाह करना या न करना जब तक व्यक्तिगत निर्णय ना हो कर , पारिवारिक निर्णय , सामाजिक निर्णय , सही समय पर सही काम , इत्यादि से जुड़ा मुद्दा रहेगा तब तक विवाह का वर्गीकरण , प्रेम , प्रायोजित , इन्टर कास्ट , इन्टर रेलिजन होता रहेगा। 

October 22, 2013

October 20, 2013

क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस

 ओपन मार्केट में जिस सामान की कीमत महज १५ रूपए थी उसको घर में काम करने वालो को  ज्यादा दाम में बेच दिया और इसको दान कहा ???ये तो महज बिज़नस हैं और कुछ नहीं बस फर्क ये हैं की खरीदार घर में ही काम करता हैं गीता में बताये किसी भी दान में ये नहीं आता हैं और पात्र सुपात्र इत्यादि की बात करना ही यहाँ बेकार हैं सीधा सीधा फायदा का सौदा हैं उनका जिनका सामान हैं पैसा भी मिला और अहम की तुष्टि भी

आप ऊपर का लिंक क्लिक करके उस पोस्ट पर जा सकते हैं जहां ये कमेन्ट मैने दिया हैं

मुझे सच में जानना हैं की अपने घर की पुरानी वस्तु अपने घर में काम करने वालो को देना या उनको इन वस्तु को बेचना क्या दान की परिभाषा में आता हैं

क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस


October 05, 2013