January 08, 2013

आर पार की लड़ाई

हर लड़ाई जब अपने पीक पर पहुचती हैं तो आमने सामने की लड़ाई होती हैं . यानी या तो आक्रमण करने वाला आप को मार देगा या आप आक्रमण करने वाले को मार देगे

आक्रमण करने वाले को मारना " आत्मा रक्षा " माना जाता हैं और इस के लिये कानून कोई सजा नहीं देता हैं .

इस देश मे आज उन महिला को कानून दोषी नहीं मान रहा हैं जिन्होने किसी बलात्कारी पुरुष को मारा हो . { जो इस बात को नहीं जानते हैं वो ज़रा अखबार ध्यान से पढ़े }

आज देश में लड़कियों को बलात्कार करने के बाद मारने की शुरुवात हो चुकी हैं , दिल्ली रेप के बाद नॉएडा में इसी प्रकार की  हुई हैं

दिल्ली रेप बाद लड़कियों ने सेल्फ डिफेन्स के लिये पिस्टल के लाइसेंस लेना शुरू कर दिया हैं और ये संख्या 2012 में पहले से काफी ज्यादा हैं { अगेन प्लीज रीड पेपर }

अब समय जीओ और जी ने दो से बदल कर मारो या मर जाओ हो गया हैं



7 comments:

  1. समय के साथ समाज के नियम और सिद्धांत दोनों बदलते रहते है , डार्विन बाबा ने (शायद उन्होंने ही ) कहा था जो संघर्ष करेगा वो जीवित बचेगा , इन्सान के लिए जीवित का मतलब बस जिन्दा होना नहीं होता है , अब आज के बाबा जी कहते है की जिन्दा रहना है तो आक्रमण करने वाले के पैरो में गिर जाऊ उसे अपना भाई बना लो , रहम की भिख मांगो, शुक्र है की राम और पांडवो के सलाहकार ये न थे वरना सीता और राम को भी यही रावण के साथ करने को कहते । जीने के कुछ तरिक को तो बदलने ही पड़ेंगे कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल बढ़ा दो वाला सिद्धांत अब नहीं चलेगा , संवेदनशीलता के साथ मजबूत भी बनाना होगा थोड़े सकरात्मक के साथ थोडा नकारात्मक भी होना होगा हमारे साथ कुछ भी नहीं होगा की जगह हमारे साथ कुछ भी हो सकता है की तैयारी जरुरी है , बन्दुक चलाने के कितना काम आएगी पता नहीं , कम से कम डराने के काम तो आ ही सकती है, वैसे कितनी लड़कियों को आज हिम्मत होगी उसे चलाने की किन्तु हां हालत ऐसे ही रहे तो एक दिन बात बात पर चलाने की हिम्मत भी आ ही जाएगी ये समाज को सोचना है की उसे कौन से हालात पसंद है रहने के । अभी खबर पढ़ा की यहाँ लड़कियों को आर टीओ ने कॉलेजों में जा कर लर्निग लाइसेंस का फार्म दिया है और कुछ मोटर ट्रेनिग स्कुलो ने उन्हें मुफ्त में दो पहिया चलने की ट्रेनिग देने की बात कही है ,अब देखते है की कभी कभी बिना जरुरत तो कभी जरुरत पर अपने बेटो को 18 साल से पहले ( कई बार ) ही है स्पीड मोटरसाइकल देने वाले कितने माता पिता अपनी बेटियों को दो पहिया वाहन देते है उनकी सुरक्षा के लिए ( कम से कम लड़किया रोज रोज पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तमाम परेशानियों से तो बचेंगी ) या घरो में बंद करना ही सबसे सस्ता सुलभ उपाय उन्हें लगता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. Aise babaji log women ko kya sikha rahe hain....inke charitra kitne achche hain wo to sabko pata hai. insabke dohre chehre hote hain...parde ke samne kuch and parde ke peeche kuch aur. Ye sab kutton se kam nahi hain jo befijul sirf bhaukna jante hain...Warna abtak rapists mar chuke hote.

      Delete
    2. rewa ji,आप क्यों बेचारे कुत्तों को बदनाम कर रही हैं।वास्तव में तो कुत्ते कभी महिला विरोधी नहीं हो सकते ।इस कुढमगज दढियल जैसी सोच रखने वालों के लिए तो एक ही अपशब्द हो सकता है।
      आशाराम बापू कहीं के।

      Delete
    3. Aapki baton se sahmat hun...yelog janwar ke shreni mein bhi nahi aane wale hain...bad se bhi badtar hain.

      Delete
  2. @ मारो या मर जाओ

    यह कोई नया नियम या सिद्धांत नहीं है। जीव मात्र की आदिम प्रकृति यही होती है। आदिमानव यही करता था, पशुओं में यह आम है हर ताकतवर निर्बल को मार गिराता है। जब निदान नहीं हो पाता, उपाय सूझने बंद हो जाते है सहज ही मानस में यह आदि सिद्धांत प्रबल हो उठता है।

    ReplyDelete
  3. जब किसी सभ्य समझे जाने वाले समाज में अराजकता फ़ैल चुकी हो, वहैशीपना व दरिंदगी पर काबू न रहा हो तब जंगल का क़ानून ही विकल्प है। 'मारो या मर जाओ' नियम किसी भी सभ्य समाज की उपलब्धि नहीं कहा जाएगा, लेकिन तब यह पूरी तरह सही लगता है जब न्यायव्यवस्था लचर हो चुकी हो। मैं भी कहता हूँ कि हर महिला अपनी सुरक्षा को कटार या पिस्टल रखे। लेकिन सत्ता पक्ष के पुरुष नेता ऐसा होने नहीं देंगे। स्त्री अपनी सुरक्षा के लिए कई उपाय कर सकती है। उन उपायों में शस्त्र रखना भी एक श्रेष्ठ उपाय है।

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.