January 05, 2013

बस इतना ही




बलात्कार से बचने के लिये अनगिनत उपाय सदियों से जा रहे हैं बताये

कभी कोई आगये आये और बलात्कार को रोकने का उपाय बताये


शिकार को पिंजरे में कैद कर दो और बताओ तुम यहाँ आज़ाद हो शिकारी को आज़ाद रखो और कहो की तुम यहाँ के रक्षक हो अगर शिकार तुम्हारी बात ना माने तो और पिंजरे से बाहर आये तो जैसे जैसे युग बदले तुम अपनी चाल बदलो कभी ऊँगली डालो तो कभी रोड डालो क्युकी ये अधिकार है शिकारी तुम्हारा ही हैं

राम बनो तो सीता को घर से निकालो
रावण बनो तो उसका हरण करो
कांग्रेस बनो तो dented painted कहो
बीजेपी बनो तो लाली लिपस्टिक कहो

रांड कहो , छिनाल कहो , क्युकी शिकारी तुम हो शिकार की क्या बिसात 

कहो जी भर के कहो

बस इतना ही सुन सको तो सुनो

बलात्कार से बचने के लिये अनगिनत उपाय सदियों से जा रहे हैं बताये

कभी कोई आगे  आये और बलात्कार को रोकने का उपाय बताये


बलात्कारी को फांसी भी अगर होजाती हैं तो क्या जिस का बलात्कार हुआ हैं उसकी सजा कम हो जाती हैं

बलात्कार का अपराध जो करता हैं , उसको मृत्यु दंड उसकी किये की सजा हैं पर जिसका सदियों से बलात्कार होता आया हैं वो केवल और केवल अपने "औरत होने की सजा " पाता आया हैं 

9 comments:

  1. सच में आज कल नारीयों पर हद से ज्यादा अत्याचार हो रहा है पता नहीं हमारी सरकार इसे रोक क्यों नहीं पा रही है। जब सरकार कुछ ना कर पाए तो हमें ऐसे सरकार की जरूरत ही क्या है, हम तो बगैर इनके भी जी सकते है।

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    1. बलात्कार को सरकार नहीं रोक पा रही ये कह कर बात ख़तम , क्या बलात्कार सरकार के कहने से होते हैं ???

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  2. जब तक पुरुषों का दंभ समाप्त नहीं होगा और जब तक महिलाएं कमज़ोर बनती रहेंगी... स्थिति तब तक बदलने वाली नहीं है...

    बदलाव तो अपने और अपनों के बदलने से ही आएगा...

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  3. अपना अपना करो सुधार, तभी मिटेगा बलात्कार।

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  4. क्योंकि शिकारी हम हैं...

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  5. आ . रचना जी,


    जब कोई समाज विकृति को प्राप्त हो जाए तब समाज के सच्चे हितैषी चाह कर भी उसे बार-बार दर्पण नहीं दिखाते ... कि वह भद्दा है, कुरूप है, भौंडा है, घिनौना है आदि-आदि।


    आप सीधा-सीधा अपने आक्रोश को व्यक्त कर रहे हैं। शायद सही हो ... आपका मर्म पर चोट करना और आपकी फिलहाल की भाषा।


    मुझे रामधारी सिंह की एक कहानी याद आती है - एक साधु थे। घने जंगल में एकांत वास करते थे। उनमें किसी प्रकार की एषणा नहीं थी। उनके बारे में जानकर किसी जिज्ञासु बालक ने उन्हें अपना शिष्य बनाने को बाध्य किया।

    एक बार वे अपने एकमात्र शिष्य को उपदेश कर रहे थे ... संसार में कोई भी ऐसा नहीं जो तीनों प्रकार की एषणाओं से बच पाया हो। वित्तएषणा और पुत्रएषणा से कोई किसी विधि बच भी जाए लेकिन यशएषणा से तो कोई विरला ही बचा होगा।'

    शिष्य ने शांत भाव से गुरु से कहा - 'गुरुजी, केवल आप ही हैं जो इस संसार में मुझ मात्र शिष्य को पढ़ाकर संतुष्ट हैं।' यह सुनकर गुरु के मुख पर स्मिति तैर गयी।



    रचना जी, एक और प्रसंग सुनाना चाहता हूँ :

    'एक नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। जिनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। उनके ब्रहमचर्य की साधारण ब्रह्मचारी सौगंध लिया करते थे। उनकी प्रतिष्ठा तब हास्यास्पद होती चली गयी जब वे अपने सत्संगों में हमेशा स्त्रियों से दूर रहने की बात करने लगे। किसी-न-किसी बहाने स्त्री चर्चा में उन्हें सुख मिलने लगा। जिससे विरक्त रहने की बातें वे करते उसमें मन सुख ढूँढने लगे।


    आप सोच रहे होंगे मैंने यहाँ ये दो प्रसंग क्यों कहे .... यह स्पष्ट करने का मुझमे साहस नहीं। फिर भी आपकी भाषा को मैं आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप देखना चाहता हूँ।

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    1. http://ajit09.blogspot.com/2011/06/blog-post_28.html?showComment=1309335824743#c4148955042312043455
      प्रतुल जी नमस्ते
      देर से जवाब इस लिये दे रही हूँ ताकि ज्यादा तलख होकर ना कहूँ
      ज़रा ऊपर दिया हुआ लिंक देखे याद करे उन बहसों को , उन अपशब्दों को { छुपाए हुए तन्चो को } जो महज मुझे इस लिये मिलाए क्युकी मेने नारी ब्लॉग के जरिये वो सब "बड़ी शालीनता और सद्भाव " से कहना चाहा जो आज सब "ढोल " बजा कर कह रहे हैं जब एक लड़की जो 23 साल की थी इस दुनिया से अपने अधुरे सपनो के साथ इस समाज का शिकार हो चुकी हैं .
      कहां चली गयी थी वो सब सद्भावना तब जब समानता की बात मै करती थी

      आप से आग्रह हैं अगर आप अपना सम्मान मेरे मन और jeevan में चाहते हैं तो मुझे कभी भी नैतिकता , शालीनता का पाठ ना पढाए . ये पाठ हर लड़की माँ से घुट्टी में पाती हैं

      आगे से कभी भी मुझे संत महत्मा और ज्ञानी के उपदेश ना सुनाये क्युकी आप { जी हाँ आप भी ,}सब में कोई संत नहीं हैं अपने अपने समय में कहीं ना कहीं आप सब ने इस समाज में नारी के विरुद्ध प्रदुषण फेलाया हैं

      मेरी प्रतिष्ठा की चिंता ना करे प्रतुल , मुझे अपनी प्रतिष्ठा की चिंता करना आता हैं

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  6. अभी की समाज की सबसे बड़ी समस्या बलात्कार ही है।हमारी सरकार तो अत्याचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठा नही रही है,हम सब को मिलकर ही इस समस्या को मिटाना होगा।बहुत ही मार्मिक प्रस्तुती।

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