" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
June 20, 2011
एक प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में
क्या विवाहित , नौकरी करती , महिला को अपनी सैलरी अपने माता पिता को देनी चाहिये ?
एक विवाहित नौकरी करती महिला को अपनी सैलरी अपने माता पिता को देने मे हर्ज़ ही क्या है? कम से कम तब तो बिल्कुल नही जब उसके माता पिता को उसके पैसो की जरूरत हो । यदि माता पिता सम्पन्न है तो कोई जरूरत नही है या वो लडकी जहाँ उसकी शादी हुई है वहां कि स्थिति इस लायक नही है कि उसकी सैलरी के बिना गुजारा हो सकता हो तब तो उसे पहले अपने परिवार को देखना होगा मगर दोनो तरफ़ ही आर्थिक दृष्टि से कमजोरी हो तो उसे सामंजस्य बैठाना पडेगा क्योंकि दोनो तरफ़ ही उसे ध्यान देना होगा ………ये सब निर्णय परिस्थितियो पर निर्भर करते हैं।
महिला को अपनी सैलरी किसी को भी नहीं देनी चाहिये। विवाहित अथवा अविवाहित, दोनो स्थितियों में उसकी सैलरी केवल उसकी है। इस पर किसी और का अधिकार नहीं। ये अलग बात है कि महिला अपनी सैलरी का प्रयोग एक अथवा अनेक स्थानों पर कर सकती है, जो अक्सर वो करती भी है।
विवाहित होने की स्थिति में उसके स्वयं के परिवार के खर्च में हाथ बंटाने के साथ साथ यदि वो अपने मातापिता की भी आर्थिक रूप से सहायता करना चाहती है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। भारतीय परिवार और समाज सरंचना के हिसाब से यदि माता पिता आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों तो वे स्वयं ही ऐसी सहायता लेने से इंकार कर देंगें। लेकिन अगर महिला को महसूस होता है कि घर की स्थिति को देखते हुये उनकी सहायता करने उसका दायित्व बनता है तो ऐसे में उसको अपने जीवनसाथी से खुलकर बात करते हुये स्वयं निर्णय लेना चाहिये।
मेरी समझ में यही बात पुरूष पर भी लागू होती है। वैवाहिक सम्बन्ध में रूपये पैसे पर भी आपस में बात होनी चाहिये और इससे सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णयों में दोनो की भूमिका होनी चाहिये।
yes agar uske maa-baap ko iski aavshyakta hai beti ka farz kahin bhi bete se kam nahi aur yadi maa-baap ki sthiti sahi hai to bharat me to ve beti kee kamai kabhi bhi nahi lena chahte.
ये तो व्यक्तिगत निर्णय है। अगर पुत्री चाहे तो अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करने में हर्ज ही क्या है। जबकि आज पुत्र अपने कर्त्तव्य नहीं निभा रहे हैं। हाँ, हमारे समाज में(कानून में भी शायद) असमर्थ माँ-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पुत्र की होती है।
रचना न्जी आप वो सवाल पूछ रही हैं जिस की लोगों ने अभी कल्पना भी नही की होगी । मैं बेटियों की माँ हूँ और सच कहती हूँ कि कभी कभी लगता है कि सब कुछ हमने बच्चों पर खर्च कर दिया बेटियाँ बडे बडे पदों पर काम कर रही हैं फिर भी दिन त्यौहार पर खर्च करना ही पडता है शायद अभी पढ लिख कर भी बेटिओं की सोच अगर कुछ बदली भी है तो ससुराल के लोग क्या कहेंगे इस डर से माँ बाप को देना तो दूर लेने से भी परहेज नही करती। शायद शुरू से हमे भी जो संस्कार मिले हैं कि बेटी से लेना नही उसकी वजह से भी अभी सोच बदली नही है सीधा जवाब ये है कि अगर माँ बाप को जरूरत है तो उन्हें जरूर देना चाहिये बिना माँगे। आखिर उन पर भी उतना ही खर्च किया माँ बाप ने जितना बेटे पर। आप ये बात करती हैं मैने कितनी ही लडकियाँ देखी हैं जिन्हें माँ बाप को देना तो दूर अपने पास भी अपनी पगार नही रख सकती वो भी पति या सासू माँ को देनी होती है। खैर हर घर की अपनी अपनी सोच है। मुझे नीरज रोहिला जी की बात सही लगी । धन्यवाद।
क्या होना चाहिए ..और क्या होता है इसमें ज़मीन आसमान का अंतर है ...यहाँ माँ -बाप बेटी के घर का पानी आज भी नहीं पीते...वहां जिद करके मौको पर गिफ्ट देना भी उन्हें रास नहीं आता किसी ना किसी तरह सारे पैसे ..तीज- त्यौहार गिनाकर वापस कर देते है ...
नीरज जी ने सही बात कही है उनसे सहमत हूँ किन्तु इसके लिए पुरे समाज कि मानसिकता में बदलाव लाना होगा न केवल लड़की के घर पानी न पिने वाले माता पिता का बल्कि माँ बाप बेटो कि ही जिमेदारी होते है और मेराअसली घर तो केवल मेरा ससुराल ही है जैसी सोच वाली बेटियों का भी |
एक विवाहित नौकरी करती महिला को अपनी सैलरी अपने माता पिता को देने मे हर्ज़ ही क्या है?
ReplyDeleteकम से कम तब तो बिल्कुल नही जब उसके माता पिता को उसके पैसो की जरूरत हो । यदि माता पिता सम्पन्न है तो कोई जरूरत नही है या वो लडकी जहाँ उसकी शादी हुई है वहां कि स्थिति इस लायक नही है कि उसकी सैलरी के बिना गुजारा हो सकता हो तब तो उसे पहले अपने परिवार को देखना होगा मगर दोनो तरफ़ ही आर्थिक दृष्टि से कमजोरी हो तो उसे सामंजस्य बैठाना पडेगा क्योंकि दोनो तरफ़ ही उसे ध्यान देना होगा ………ये सब निर्णय परिस्थितियो पर निर्भर करते हैं।
महिला को अपनी सैलरी किसी को भी नहीं देनी चाहिये। विवाहित अथवा अविवाहित, दोनो स्थितियों में उसकी सैलरी केवल उसकी है। इस पर किसी और का अधिकार नहीं। ये अलग बात है कि महिला अपनी सैलरी का प्रयोग एक अथवा अनेक स्थानों पर कर सकती है, जो अक्सर वो करती भी है।
ReplyDeleteविवाहित होने की स्थिति में उसके स्वयं के परिवार के खर्च में हाथ बंटाने के साथ साथ यदि वो अपने मातापिता की भी आर्थिक रूप से सहायता करना चाहती है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। भारतीय परिवार और समाज सरंचना के हिसाब से यदि माता पिता आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों तो वे स्वयं ही ऐसी सहायता लेने से इंकार कर देंगें। लेकिन अगर महिला को महसूस होता है कि घर की स्थिति को देखते हुये उनकी सहायता करने उसका दायित्व बनता है तो ऐसे में उसको अपने जीवनसाथी से खुलकर बात करते हुये स्वयं निर्णय लेना चाहिये।
मेरी समझ में यही बात पुरूष पर भी लागू होती है। वैवाहिक सम्बन्ध में रूपये पैसे पर भी आपस में बात होनी चाहिये और इससे सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णयों में दोनो की भूमिका होनी चाहिये।
hum sahmat hai bandna ji ki baat se yaha bhi aaye aur apni raay hame de aap aaye aur hame apni baat se anugrhit kare
ReplyDeleteyes agar uske maa-baap ko iski aavshyakta hai beti ka farz kahin bhi bete se kam nahi aur yadi maa-baap ki sthiti sahi hai to bharat me to ve beti kee kamai kabhi bhi nahi lena chahte.
ReplyDeleteये तो व्यक्तिगत निर्णय है।
ReplyDeleteअगर पुत्री चाहे तो अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करने में हर्ज ही क्या है। जबकि आज पुत्र अपने कर्त्तव्य नहीं निभा रहे हैं।
हाँ, हमारे समाज में(कानून में भी शायद) असमर्थ माँ-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पुत्र की होती है।
प्रणाम
जब एक पुरुष अपनी आय पत्नी से पूछकर खर्च नहीं करता है तो महिला की भी मर्जी है कि वह अपनी सेलरी जहां मर्जी खर्च करे।
ReplyDeleteप्रणाम
नियम हमेशा लचीले होने चाहिए .. परिस्थितियों पर बहुत कुछ निर्भर करता है !!
ReplyDeleteI agree with Neeraj Rohilla. और यह बात पुरूष पर भी लागू होती है।
ReplyDeleteनीरज जी से सहमत.बहुत कुछ परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है.
ReplyDeleteरचना न्जी आप वो सवाल पूछ रही हैं जिस की लोगों ने अभी कल्पना भी नही की होगी । मैं बेटियों की माँ हूँ और सच कहती हूँ कि कभी कभी लगता है कि सब कुछ हमने बच्चों पर खर्च कर दिया बेटियाँ बडे बडे पदों पर काम कर रही हैं फिर भी दिन त्यौहार पर खर्च करना ही पडता है शायद अभी पढ लिख कर भी बेटिओं की सोच अगर कुछ बदली भी है तो ससुराल के लोग क्या कहेंगे इस डर से माँ बाप को देना तो दूर लेने से भी परहेज नही करती। शायद शुरू से हमे भी जो संस्कार मिले हैं कि बेटी से लेना नही उसकी वजह से भी अभी सोच बदली नही है
ReplyDeleteसीधा जवाब ये है कि अगर माँ बाप को जरूरत है तो उन्हें जरूर देना चाहिये बिना माँगे। आखिर उन पर भी उतना ही खर्च किया माँ बाप ने जितना बेटे पर। आप ये बात करती हैं मैने कितनी ही लडकियाँ देखी हैं जिन्हें माँ बाप को देना तो दूर अपने पास भी अपनी पगार नही रख सकती वो भी पति या सासू माँ को देनी होती है। खैर हर घर की अपनी अपनी सोच है। मुझे नीरज रोहिला जी की बात सही लगी । धन्यवाद।
क्या होना चाहिए ..और क्या होता है इसमें ज़मीन आसमान का अंतर है ...यहाँ माँ -बाप बेटी के घर का पानी आज भी नहीं पीते...वहां जिद करके मौको पर गिफ्ट देना भी उन्हें रास नहीं आता किसी ना किसी तरह सारे पैसे ..तीज- त्यौहार गिनाकर वापस कर देते है ...
ReplyDeleteनीरज जी ने सही बात कही है उनसे सहमत हूँ किन्तु इसके लिए पुरे समाज कि मानसिकता में बदलाव लाना होगा न केवल लड़की के घर पानी न पिने वाले माता पिता का बल्कि माँ बाप बेटो कि ही जिमेदारी होते है और मेराअसली घर तो केवल मेरा ससुराल ही है जैसी सोच वाली बेटियों का भी |
ReplyDeleteजरुरत पडने पर क्या परेशानी हो सकती है।
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