June 18, 2011

कन्या को मत आने दें!

इतना बड़ा जनसख्या में अनुपात का अंतर होने के बाद भी हम अपनी किस सोच के तहत कन्या भ्रूण की हत्या करते जा रहे हैंसब ये दिलासा देते हैं कि अब समय बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है लेकिन फिर एकाएक कुछ ऐसा घट जाता है हम मजबूर हो जाते हैं की हम कहाँ बदल रहे हैं? कहाँ हमारी सोच बदल रही हैहम बिना पढ़े लिखे लोगों की बात माँ सकते हैं की वे लड़की को बोझ समझ रहे हैं लेकिन वे पढ़े लिखे लोग - जो डॉक्टर हैं, जो नर्सिंग होम चला रहे हैं वे तो अनपढ़ नहीं हैं वे तो इस वास्तविकता से अच्छी तरह से वाकिफ है की लिंग अनुपात तेजी से गिरता जा रहा है और इसका परिणाम मानव जाती के लिए अच्छा नहीं है
हम चीख चीख कर अख़बारों में , पत्रिकाओं में और ब्लॉग सभी पर गुहार लगा रहे हैं की इस जाती को भी जीने का हक़ है और वे आते ही अपने अधिकारों की मांग नहीं करने लगती हैं , वे बालक की तरह से ही जीवन जीती हैं , उन्हें संतान समझ कर जीवन दीजिये और अगर नहीं देना है तो फिर अगर आपके पास कोई निश्चित पुत्र ही पैदा करने का उपाय है तो उसको अपना लीजिये लेकिन भ्रूण की हत्या का पाप मत लीजियेइसके परिणाम कभी कभी कितने गंभी हो जाते हैं इस बात को वही समझ सकता है जो इसका भुक्तभोगी है
पिछले दिनों में विदर्भ क्षेत्र में ही थी और एक दिन ये खबर ने तो अन्दर तक हिला दिया की महाराष्ट्र के बीद जिले के एक नाले में बह रहे कन्या भ्रूण पर लोगों की नजर पड़ी और उन सबको लेकर जब उनका परीक्षण किया गया तो पता चला की वे सारे कन्या भ्रूण थेइस जिले में सर्वाधिक लिंगानुपात १०००/८०१ (२०११) में आँका गया हैमहाराष्ट्र में यह१०००/८८३ हैइन सारे भ्रूणों के एक स्थान पर पाना इस बात का प्रतीक है कि इसमें कितने लोग शामिल हैं? सिर्फमाता पिता या उनके घर वाले नहीं, इसमें शामिल है वह डॉक्टर जो इस काम को अंजाम दे रहे हैं और वह नर्सिंग होम याहॉस्पिटल जो अपने यहाँ खुले आम भ्रूण हत्या करवा रहे हैं
हम सुधर रहे हैं, हमारी सोच बदल रही है या फिर हम कन्या को एकमात्र संतान की तरह से ख़ुशी ख़ुशीस्वीकार कर रहे हैंहमारी इन दलीलों पर ये घटना प्रश्न चिह्न लगा रही हैअब हम क्या और करें कि अपनी इस जाति कोबचाने के लिए लोगों को बदल सकेंकुछ आप सोचें और कुछ हमऐसे अपराधी लोगों के लिए कौन सी सजा होनीचाहिए चाहे वे प्रतिष्ठित लोग हों या फिर समाज के निर्माता ही क्यों हों? हमें अपने प्रयास और तेज करने होंगे

9 comments:

  1. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है -क़ानून बनने के बाद भी न तो जागरूकता दिखती है और न ही कोई भय !

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  2. ये तो दुर्भाग्यपूर्ण बात है…………इस तरफ़ ध्यान देना होगा।

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  3. डाक्टर भी तो व्यापारी जैसे बन चुके हैं. पैसा क्या उन्हें प्यारा नहीं. काहे के इथिक्स.

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  4. जी हाँ यह बहुत दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है तथा इसके लिए हमारी रुढ़िवादी मानसिकता ही दोषी है जिस कन्या को हम देवी का रूप मानते है उसी की हम जन्म लेने के पहले ही ह्त्या कर रहे हैं |

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  5. mai bhi aapki baatoein se puri tarah sehmat hu, maine takriban aaj se 3 saal pehle ak data mei padha tha k agar ladke or ladki ka anupat dekha jaye to har 1000 ladko k peeche sirf 800 ladkiya h ab to ye diffrence or badh gaya hoga, isko rokna boht jaruri h

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  6. mai bhi aapki baatoein se puri tarah sehmat hu, maine takriban aaj se 3 saal pehle ak data mei padha tha k agar ladke or ladki ka anupat dekha jaye to har 1000 ladko k peeche sirf 800 ladkiya h ab to ye diffrence or badh gaya hoga, isko rokna boht jaruri h

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  7. रेखा जी

    हमारे समाज में कन्या को जन्म लेने के बाद भी मार देने की परम्परा रही है और है भी, अक्सर आप ने सुना होगा की कचरे में लड़की मिली स्टेशन पर माँ बाप लड़की छोड़ कर चले गए आदि आदि कभी सोचा है फेकी गई या त्यागे गए बच्चो में लड़किया ही क्यों होती है लडके क्यों नहीं होते | डाक्टर यदि बताना बंद भी कर दे तो लोग इतने क्रूर होते है या हो चुके है की वो जन्म के बाद बच्चियों को मार देंगे या इस तरह सड़क पर मरने के लिए छोड़ देंगे | इसलिए जरुरी है की लोगो की मानसिकता में पहले बदलाव आया जाये तभी कुछ हो सकता है |

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  8. इस तरफ सार्थक प्रयास की जरूरत है

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  9. veena ji ne sahi kaha sarthak prayas kee zaroorat hai.

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