इस पोस्ट का मुद्दा था ???
क्या जो शिक्षित स्त्रियाँ व्रत उपवास रखती हैं वो वास्तव मे शिक्षित हैं या नहीं हैं ??
क्या जो शिक्षित स्त्रियाँ व्रत उपवास रखती हैं वो गलत करती हैं ??
क्या शिक्षित स्त्रियों को व्रत उपवास नहीं रखना चाहिये अन्यथा उनकी शिक्षा ही प्रश्न चिन्ह हो जायेगी ??
क्या व्रत उपवास रखना ढकोसला हैं और शिक्षा के प्रचार प्रसार से ये ढकोसला ख़तम हो सकता हैं ??
जो कमेन्ट आये हैं उनमे जो प्रश्न उठाए गये हैं उन से मुद्दा बनता हैं
डिग्री धारी होना शिक्षित होने का प्रमाण नहीं हैं
शिक्षित होने से ज्ञानी हो जाए जरुरी नहीं हैं
क्या आदर्श के साथ पुरुष लगाना सही हैं , आदर्श व्यक्तित्व क्यूँ नहीं कहा जाये ??
इसके साथ साथ एक प्रश्न
क्या शिक्षित स्त्रियाँ जो करवा चौथ , परदोष , बेटे के लिये व्रत , जन्माष्टमी इत्यादि रखती हैं वो गलत हैं
दिल और दिमाग में जिन परम्पराओं की गहरी जड़ें हों उन्हें निकाल पाना मुमकिन नहीं चाहे यह नया युग है... पुराने समय की बात करें तो भी मुझे लगता है कि औरत अपने लिए ही व्रत रखती थी....विधवा और सती होने के ख्याल से ही सिहर जाती होगी...दिन रात प्रभु से पति की लम्बी उम्र की कामना करती होगी..इसलिए हर तरह के व्रत करके अपने ही सुखी जीवन की कामना करती होगी..आज समय बदल चुका है.. बदलाव हो रहा है...लेकिन धीरे धीरे.....
ReplyDeleteश्रद्धा के कारण रखे जाने वाले व्रत -उपवास और ढकोसलों , अंधविश्वासों और भय के कारण रखे जाने वाले व्रत उपवासों में बहुत अंतर है ...
ReplyDeleteकरवा चौथ व्रत को निर्जल ही किये जाने की परंपरा रही है ..टी वी कार्यक्रमों में ऐसा ही दिखाया जाता है , जबकि अधिकांश जनता चाय -पानी पीते हुए इस व्रत को करती है ...ये अपनी- अपनी श्रद्धा की बात है !
श्रद्धा को डर से जोड़ने की परंपरा व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित थी भोले भाले लोगों को फंसाने का यही एक तरीका था आज एक दूसरे से आगे निकलने की दौड मे आदमी स्वयं इन जंजालों मे फँस रहा है देखिये न समाचार चेनल तक दिन मे दो या तीन बार ज्योतिष वास्तु आदि से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित करते हैं कुछ मजबूत लोग समस्याओं से जूझते हुए कमजोर क्षणों मे यह कदम उठा लेते हैं
ReplyDeleteरही बात आदर्श पुरुष कहे जाने की तो आदर्श नारी भी कहा जाता है सीता को यशोधरा को और साकेत मे उर्मिला को ...पूर्वाग्रहों से परे रहकर इन आदर्शों की तलाश करना और दुनिया के सामने लाना ये जिम्मेदारी हमारी है .
पता नहीं आप लोग किन घरों, संस्कारों और धर्मों की बात करते हैं. हमारे यहां फतवे जारी नहीं होते कि ऐसा मत करो, ऐसा करो. अरे मन आये करो, मन आये मत करो. हमारे यहां ठेठ गांव में हमारी अम्मा ने कहीं कुछ नहीं बांधा, कि ये करना जरूरी है या वो करना. आपको अच्छा लगे व्रत रखो, न अच्छा लगे मत रखो. कौन आपके सर पर सवार है कि नहीं रखोगे तो निकाल दिये जाओगे...
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ReplyDeleteमीनाक्षी जी की बात सही है.लेकिन कोई महिला पति या बेटों के लिये किये जाने वाले व्रतों को न भी करना चाहती तो ये मान लिया जाता कि उसे पति या बेटे से प्रेम नही है.दूसरी महिलाओं सहित पति की भी नजरे टेढी हो जाया करती थी.ऐसे में महिला क्या करती?आज भी ये कही कही देखने को मिलता है.लेकिन आज इन व्रतों को करना सही नहीं लगता.
ReplyDeleteकई जगह आदर्श व्यक्तित्व के स्थान पर आदर्श पुरुष शब्द प्रयोग होता है जो कि गलत है.लेकिन फिर भी इन दोनों शब्दों में अन्तर है ठीक वैसे ही जैसे नरीवाद और मानववाद में अंतर है.
@Vandana,
ReplyDelete"रही बात आदर्श पुरुष कहे जाने की तो आदर्श नारी भी कहा जाता है सीता को यशोधरा को और साकेत मे उर्मिला को ...पूर्वाग्रहों से परे रहकर इन आदर्शों की तलाश करना और दुनिया के सामने लाना ये जिम्मेदारी हमारी है."
Aapki baat sahi hai kintu, kya aap isliye khush hain kyunki adarsh purush ke sath kabhi kabhi adarsh nari bhi kahi jati hai? Agar aisa hai then why Most of the men blame Sita for Ram-ravana war? Kyun ye kaha jata hai ki sita ke karan uska haran hua tha. Kyun bhai Ram ji ke paas bhi to dimag tha fir wo sita se agni pariksha kaise mang baithe? Bus isliye ki "log kya kahenge?"
Baat adrash purush/stri kahne se nahi hai...baat hai kisi bhi insan ki pahchan uske vyaktitv se hoti hai na ki uske gender se. Thoda deeply sochiye to aapko apne statement ka jawab khud mil jayega.
rgds.
हर व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार इनकी व्याख्या करने के लिए हाजिर है।
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भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
ये सब मन की बातें हैं मन माने तो करो वरना मत करो क्योंकि ये सब करने से यदि सब सही होता तो आज दुनिया का नक्शा बदला होता………क्या करवा चौथ का व्रत करने वाली नारी विधवा नही होती? और इसके अनुसार तो ऐसा ही होना चाहिये मगर ऐसा नही होता…………ये सिर्फ़ डर की उपज है …………बाकि जो होना होता है वो होकर रहेगा चाहे कोई व्रत उपवास करो या नही……………सिर्फ़ सोच बदलनी चाहिये इंसान की और सकारात्मक होनी चाहिये ना कि परम्परागत्।
ReplyDeletetyaag ki devi! mamta ki murti! nisvarth seva! aur bhi na jane kya.... hamare samaj ne striyo ke charo or aisi aisi na jane kitne shabdo ka mayajaal bandh rakha hai, jise khud striya bhi nahi tor pati... savaal keval adarsh ka nahi savaal hai ki kya ye sare upmaye sirf mahilao ke liye hain? kyo? kyonki mahilaye kabhi khud ke liye nahi soche? agar vo aisa karne lagengi to purusho ka kya hoga? unki satta ka kya hoga?
ReplyDeletebachcha jab do din ka bhi nahi hota to use bhagwan ke age hath jorna sikhlaya jata hai..
atah ye paramparaye hamari chetna me basi hai. hum savaal nahi karte bas in paramparao ka nirvah karte aa rahe hain... aur kyunki paramparao ka bojh sabse jyada mahilao ke kandho par hain isliye apni chetna ko sabse pahle unhe hi jagana hoga..
--disha
मेरे विचार से व्रत रखना गलत नही है,उन पर अन्धविश्वास करना गलत है. बाकि जहाँ तक करवाचौथ की बात है , परिवार की ख़ुशी के लिए एक दिन भूखे रहने में कोई हर्ज नही है .
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