अंशुमाला की पिछली पोस्ट जो एक अखबार से दी गयी थी उस में बलात्कार के अपराधी पर आर्थिक जुर्माने का प्रश्न था ।
आर्थिक दंड क्यूँ ???
सबसे पहले हमे एक बात ध्यान देनी होगी वो हैं मानसिकता जो कहती हैं " स्त्री का शील भंग होगया " , "उसकी इज्ज़त चली गयी " इत्यादि । हमे सजा बलात्कारी को देनी चाहिये जब की समाज की मानसिकता , सजा स्त्री को देती हैं । एक बलात्कार पीडिता को समाज मे "गिरी" हुई माना जाता हैं जो की गलत हैं । समाज का ये नजरिया बलात्कार पीडिता के परिवार वालो को मजबूर करता हैं की वो इस अपराध को छुपाये ।
शील भंग होना , इज्ज़त जाना इत्यादि उस मानसिकता के सूचक हैं जहां स्त्री को पुरुष की संपत्ति माना जाता हैं और स्त्री का अपमान करके उस से जुड़े पुरुष वर्ग को सजा दी जाती हैं ।
समाज मे इतने अपराध हैं जिनके लिये सजा और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान हैं फिर हम "बलात्कार " को एक अपराध क्यों नहीं मानते ?? क्यों हम बलात्कारी को "केवल और केवल बलात्कार अपराध का दोषी " नहीं मानते ??
शायद " बलात्कार " ही ऐसा अपराध हैं जहाँ जिसके खिलाफ अपराध होता हैं उसे ही अपराधी मान कर उसका ही कोर्ट मार्शल होता हैं ताकि जिसने "बलात्कार किया हैं " उस अपराधी को बचाया जा सके ।
कोर्ट अब बलात्कार को अपराध मानता हैं और इस लिये आर्थिक जुर्माना लगाता हैं ।
एक बलात्कार पीडिता अरुणा शौन बौग पिछले ३७ साल से अस्पताल मे बिस्तर से बंधी हैं उसके परिवार वाले उसको अपने साथ नहीं लेगए क्युकी आर्थिक रूप से वो उसका इलाज करने मे सक्षम नहीं थे । आर्थिक जुर्माने का प्रावधान ऐसे लोगो के लिये राहत ला सकता हैं
हम कब तक ये मानेगे की आर्थिक जुर्माने से गयी इज्ज़त वापस नहीं आती ??
बलात्कार से नारी की इज्ज़त जाने का प्रश्न खडा करना ही गलत हैं
हर अपराध मे आर्थिक दंड हो तो जो अपने पैसे के बल पर अपराध करते हैं और छुट जाते हैं वो जरुर एक बार सोचेगे ।
अब जेसिका लाल केस मे अगर मनु शर्मा की पूरी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती तो क्या आप को नहीं लगता कोई दुबारा ऐसा करने से पहले नहीं सोचेगा ??
उसी तरह नितीश कटारा कांड मे अगर यादव परिवार की सम्पत्ति जब्त कर दी जाती तो क्या समाज मे कुछ दर नहीं होगा
हमारा समाज निरंकुशता की और बढ़ रहा हैं । हम रोक टोक अपराधी पर नहीं निरपराध पर लगाते हैं । हम कानून को मानना ही नहीं चाहते हैं ।
आर्थिक जुर्माने से क्या क्या किया जा सकता हैं और लोगो ने किस प्रकार मिले हुए आर्थिक जुर्माने से समाज के लिये क्या क्या किया हैं इस पर फिर कभी , आज के लिये इतना ही
बलात्कार एक अपराध हैं और इसको भी अपराध ही मानना चाहिये । इसको अन्य अपराधो से अलग नहीं मानना चाहिये और ना ही इसके लिये दोषी महिला को मानना चाहिये ।
पिछले लेख में ये सवाल नहीं था की आर्थिक दंड क्यों दिया गया सवाल ये था की जिन अपराधियों को १० साल की सजा हुई थी उन्हें उपरी आदालत ने सिर्फ आर्थिक दंड दे कर क्यों छोड़ दिया गया | जहा तक मेरी जानकारी है की ऐसे केस में अपराधियों पर कुछ आर्थिक दंड लगता है जो पीड़ित के लिए होता है किन्तु साथ में उसे जेल की सजा भी होती है | लेकिन ये तो गलत होगा की आर्थिक दंड दुगना कर अपराधी को जेल की सजा से छुट दे दी जाये | वैसे ऐसे केस में समस्या सजा के प्रावधान में नहीं है समस्या है की अपराध या तो सामने ही नहीं आते या अपराध साबित करना मुश्किल हो जाता है या फिर कई बार कुछ गरीब महिलाए या उनका परिवार पैसे ले कर या दबाव में केस वापस ले लेते है जैसे शाहनी आहूजा के केस में अब हो रहा है |
ReplyDeleteअंशुमाला अभी एक केस हुआ हैं जहां महिला ने कोर्ट से केस बंद करने के लिये कहा हैं क्युकी उसने अपने बलात्कारी से शादी कर ली हैं और उनके एक बच्चा भी हैं । वो अब "शांति " से रहना चाहते हैं । कानून ऐसे मे क्या करसकता हैं ।
ReplyDeleteकेवल आर्थिक दंड भुगता कर छोडना, बलात्कार जैसे अपराध के लिये निन्दनीय है। यानि जिसके पास पैसा है उसे ये अपराध करने पर भी कुछ फर्क नहीं पडेगा। हाँ सारी सम्पत्ति जब्त करना और उसके बाद सजा भी देना ज्यादा कारगर हो सकता है।
ReplyDeleteप्रणाम
होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं ,
ReplyDeleteजब तक समाज में पैसे से क़ानून खरीदा जाता रहेगा तब तक यही होगा. यहाँ कानून दबंगों को बचाने के लिए बना है. फिर यादव परिवार हो, मनु शर्मा हों उनका कोई कुछ नहीं कर सकता है. ये सत्ताएं और हमारी अदालतें इस दबाव में ही काम कर रही हैं. दूर क्यों जाते हैं? हसन अली को जमानत दे दी गयी. जब सुप्रीम कोर्ट ने उसको फटकार लगायी तब उसका समर्पण हुआ. ये हमारे न्यायाधीश किस बिला पर अपराधी को छोड़ने का निर्णय देते हैं. बलात्कार के अपराधी अधिकतर दबंग ही होते हैं और फिर वे सौदा करने के लिए तैयार होते हैं.
ReplyDeleteहजारों और सैकड़ों में कितने बलात्कार के मामले संज्ञान में आते हैं. क्षतिपूर्ति की व्यवस्था होनी चाहिए.
पहली नजर में ही ..जब कोई ऐसी मामला नजर आये .तब बलात्कारी के परिवार वालो के पूरी सम्पति सील कर देनी चाहिए ..जब तक जज मेंट न आ जाये ! अन्यथा खरीद - फ़रोख होती रहेगी ! न्याय भी दूर ! इससे ये होगा की ...दुसरे परिवार वाले भी अपने युवाओ को सबक सिखायेंगे !
ReplyDeletemy visit is not visible ..why ?
ReplyDeletewhere is your visit not visible
ReplyDeleteif recent visitor counter then you need to be logged into your blogger account i think
its a widget by google so i am not too sure just put it on the blog to see the visitor
agree करती हूँ
ReplyDeleteकेवल आर्थिक दंड भुगता कर छोडना, बलात्कार जैसे अपराध के लिये निन्दनीय है।
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत शुभकामनाएं|
सजा के साथ आर्थिक दण्ड आवश्यक है... सजा से भी काम चल सकता है बशर्ते कि ऐसी सजाओं के साथ अन्य चीजें भी हों, जैसे किसी प्रकार की सहायता, लोन का न मिलना. उद्यमों इत्यादि के लाइसेंस जब्त करना व आगे न देना. किसी भी प्रमाण पत्र में एन्ट्री करना कि यह व्यक्ति बलात्कार के आरोप में इतने वर्ष सजा काट चुका है.
ReplyDeleteरचना जी मैं समझता हूँ पिछले लेख में बलात्कारी पर आर्थिक जुरमाना लगाने का विरोध नहीं किया गया था बल्कि सिर्फ जुर्माना लेकर अपराधी को छोड़ देने की मानसिकता का विरोध था. अगर बलात्कारी कुछ पैसे भरने के बाद सजा से बच जाता है तो इस प्रवृति पर रोक कैसे लगेगी. संपन्न बलात्कारी के लिए तो ये पैड सेक्स जैसा ही होगा.
ReplyDeleteमेरे हिसाब से बलात्कार को दुसरे आम अपराधो जैसा भी नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि बलात्कार का असर पीड़ित पर शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक,सामाजिक, हर स्तर पर पड़ता है. अतः बलात्कारी को भी शारीरिक और आर्थिक हर स्तर पर सजा दी जानी चाहिए ताकि दुसरे इस प्रकार का अपराध करने से डरें .