March 10, 2011

मुस्लिम/इस्लाम धर्म मे परायी स्त्री कि तरफ देखना गुनाह हैं फिर आप महिला ब्लोगर के ब्लॉग पर क्यूँ जाते हैं

कही पढ़ा था कि मुस्लिम/इस्लाम धर्म मे परायी स्त्री कि तरफ देखना गुनाह हैं

हिंदी ब्लॉग जगत मे मुस्लिम संस्कृति और सभ्यता मे औरत कितनी सुरक्षित हैं इस पर ना जाने कितने आलेख चुके हैं

कोई बात नहीं आप का अधिकार हैं अभिव्यक्ति कि स्वंत्रता हैं लेकिन आप का धर्म इसकी इजाजत ही नहीं देता हैं कि आप विभन्न महिला ब्लॉगर के ब्लॉग पर जायेख़ास कर उन महिला ब्लोग्गर के ब्लॉग पर जिनके प्रोफाइल पर तस्वीर लगी हैं क्युकी ये कुफ्र हैं

इस के अलावा किसी भी महिला ब्लॉगर जो आप कि शरीके हयात नहीं हैं उससे ना तो आप बात करसकते हैं और ना ही उसको देख सकते हैं इस लिये जो मुस्लिम/इस्लाम धर्म को मानते हैं वो पुरुष ब्लॉगर अगर किसी महिला ब्लॉगर के पोस्ट या कमेन्ट के जवाब मे कमेन्ट मे अपना चित्र या फ़ोन देते हैं तो वो भी मुस्लिम/इस्लाम धर्म के हिसाब से गलत हैं कुफ्र हैं

किसी भी गैर स्त्री / महिला ब्लोगर का चित्र अपने ब्लॉग पोस्ट मे अगर कोई भी मुस्लिम पुरुष ब्लोगर देता हैं तो वो अपने धर्मं का अपमान कर रहा हैं

मुस्लिम/इस्लाम धर्म मे औरत कितनी महफूज़ हैं ये बताने वाले कभी उस धर्म मे लिखी हर आयत को पढ़ कर उस पर खुद अमल कर ले तो स्त्री वाकई महफूज़ हो जाएगी और अपनी जिन्दगी जी सकेगीकम से कम ब्लॉग जगत मे

नारी के कपड़ो को देखने वाले मुस्लिम ब्लॉगर कृपा कर अपने धर्म का पालन करे और किसी भी गैर नारी को ना देखे

किसी भी महिला ब्लोगर को ये कहना कि सामने आओ तब जवाब देगे वो भी एक मुस्लिम पुरुष ब्लोगर द्वारा तौबा तौबा

लगता
हैं उसने अपने धर्म कि किताबो को केवल देखा हैं पढ़ा नहीं हैं

आशा करती हूँ मुस्लिम / इस्लाम धर्म मे आस्था रखने वाले ब्लोगर किसी भी महिला ब्लोगर से बात करने से पहले , उसके ब्लॉग पर कमेन्ट देने से पहले एक बार अपने धर्म ग्रंथो को अवश्य पढ़ेगे और महिला को महफूज़ रखने मे हमारी सहायता करेगे

16 comments:

  1. बहुत अच्छी बात कही आपने, लेकिन इस पर अमल होगा इसमें संदेह ही है, क्योंकि जब तक "वे" पराई औरत पर निगाह नहीं डालेंगे, तब तक चौथे निकाह तक कैसे पहुँचेंगे?

    धर्मग्रन्थों में लिखी हुई हर बात को फ़ॉलो नहीं किया जाता… सिर्फ़ उन बातों को फ़ॉलो किया जाता है जिसमें "खुद" का फ़ायदा हो और "दूसरे" (खासकर स्त्रियों) का नुकसान हो… :) :)

    ब्लॉगरों का क्या है? उन्हें तो पैसा मिलता है इस्लाम का प्रचार करने के लिये… न कि इस्लाम को अपने जीवन में उतारने के लिये… :)

    Theory is Theory and Reality is Reality... :)

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  2. .
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    .
    रचना जी,

    आपने कुछ ऐसे सवाल उठाये हैं जो लगभग हर किसी के दिमाग में उठते हैं... पर यहाँ आकर कोई समझने लायक भाषा में मुद्दे से न हटते हुऐ अपनी स्थिति स्पष्ट करेगा, इसकी आशा कम ही है... लोग आयेंगे व एक बार फिर से कुछ दुरूह सी मुद्दे से बाहर की बातें कर व एक दो लिंक थमा निकल जायेंगे...

    और हाँ, 'मुस्लिम धर्म' को सुधार कर 'इस्लाम' कर लें... आशा है अन्यथा नहीं लेंगी इस आग्रह को...


    ...

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  3. महिला को महफूज़ रखने मे हमारी सहायता करेगे!! सही है..

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  4. भारत मे तो ये अक्सर देखा गया है कि मुस्लिम अपने धर्म का पालन दूसरे धर्मों के साथ क्लेश पैदा करने के लिये करते है। अपना जहां कहीं भी फायदा होता है वहीं मजहब भूलजाते है मैं तो कोई इसलाम का जानकार नही हूं किन्तु जैसा देखता सुनता हूं उससे तो यही लगता है कि मुसलमान अपने फायदे के लिए अपने मजहब को ताख पर रख देते है। विशेषतया महिलाओ के मामले में और आर्थिक लाभ के मामले में

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  5. कुछ धर्म दरअसल बने ही दोगलापन करने के लिए है !! ये फ़ायदा दिखे तो अपने बाप को भी पडोसी और पडोसी को बाप बना ले !!

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  6. धर्म चाहे जो हो पर पुरूषों ने अपने ऊपर लगाये ज्यादातर प्रतिबंध सुविधानुसार ढीले कर दिये या तोड दिये है जबकि महिलाओं को दबाने की पूरी कोशिश की गई हैँ.मुस्लिम पुरुष भी कम नहीं हैं उनमें भी वही निपट कठमुल्ली मुर्खता भरी हुई है.मेहर जैसी परंपरा को नाममात्र की बना देना,हिजाब को बुर्का बना मारना,आपातकाल और युद्द के समय की गई चार शादियों की व्यवस्था को अपने मझे के लिये स्थायी बना डालना,सहशिक्षा के नाम पर लडकियों की शिक्षा में अडंगा लगाना(क्या फर्क पडता है अगर इस्लाम स्त्री शिक्षा के खिलाफ नही है).यानी हर वो बात जिससे महिलाओं में भी जागृति आए उसे रोकने की पूरी कोशिश की गई हैं.यही हाल हिंदू पुरूषों का भी हैं लेकिन हाँ वो कभी दूसरों को ये नहीं कहते कि हमारे धर्म में आ जाओ तो सब ठीक हो जाएगा.इस और मुस्लिम भाईयों को सुधार करना चाहिये.

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  7. aaj ham 20th schr mein hai ... mein is baat ko sahi nai manti...tx
    visit my blog plz
    Download latest music
    Lyrics mantra

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  8. agar aapne aisa padha he, to ye unke dharm ki bat he, aur hame sabhi dharmon ka samman karna chahiye, lekin is bat ko blog se jodne ka kya matlab he! ye abhasi duniya he, iska vastvik jivan se koi lena dena nhi! sp let them do what they want! kam se kam yaha to inko apas me milne /dekhne dijiye/ shayad yahi se kuch shuraat ho jaye!ek badlaab ki, jiski aur aapka ishara he!

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  9. पढ़ें - बाबा को पुष्पांजलि ... बाबा का ध्यान करे ..सब ठीक हो जायेगा !

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  10. धर्म कोई भी हो महिलाओं को दबाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता...पर दूसरे धर्मों की बनिस्पत इस्लाम में व्यवहारिकता में महिलाओं पर प्रतिबंध ज्यादा है और अधिकार किताबों तक सीमित हैं...

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  11. ये लोग सुविधा की बात करते हैं.. जिसमें इनकी सुविधा हो वो ठीक है.. तर्क की जगह कुतर्क देते हैं और ऊपर से... वाह जनाब वाह... अभी अनवर साहब आने ही वाले होंगे तर्कों के नये तीर लेकर..

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  12. इस्लाम मे तो नारियो का ये हाल है कि उनको अपने ऊपर हुये अत्याचार को जाहिर तक नही करने देते.
    अंदर ही अंदर दबा देते है
    इनके यहाँ नारियो को इनके रिश्तेदार ही कलंकित कर देते है.
    इनके यहाँ रिश्तो की कोई मर्यादा नही है
    वो तो कुछ नारिया बहादुरी दिखा देती है और बात मीडिया मे आ जाती है
    चाहे वो इमराना हो, या तस्लीमा नसरीन हो.
    वरना बाकि सब तो सहती भी रहती है और कुछ बोल भी नही पाती
    मुल्ले सब कुछ दबा देते है

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  13. मुझे ऐसा लगता है कि हिन्दू धर्म भी यही कहता है कि पराया धन और परायी नार पर नज़र मत डालो. मैं कहीं गलत तो नहीं. अगर मैं गलत नहीं तो क्या हम लोग भी महिलाओं द्वारा संचालित ब्लोग्स पर जाना बंद कर दें.



    मुझे ऐसा लगता है कि धर्म ग्रंथों में परायी स्त्रियों पर नज़र न डालने का अर्थ ये नहीं कि उनकी तरफ देखो ही नहीं या उनसे बात ही ना करो बल्कि इसका अर्थ ये है कि उनकी कामना न करो. मैं समझता हूँ कि इस बात को सभी को समझना चाहिए वो चाहे हिन्दू हो या फिर मुस्लिम.

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  14. दीप
    ये पोस्ट जो प्रसंग जानते हैं वो समझ रहे हैं .

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  15. यह पोस्ट प्रसंग जानने वाले समझ रहे हैं मुझे नहीं मालुम वाकया क्या है? लेकिन जो बातें आपने लिखी हैं उससे थोड़ी बहुत कहानी समझ में आ रही है|
    इसमें कोई संदेह नहीं है कि समाज में ऐसे लोग हैं जो धर्मांध हैं, दूसरे की बुराई उनका काम है, उनकी अपनी हैसियत कुछ नहीं है लेकिन शेखी बघारने में पीछे नहीं रहते हैं| मेरा मानना इस सिलसिले में यह है कि हमें ऐसे लोगों को नज़रंदाज़ करना चाहिए| क्योंकि अगर हम इनको तवज्जो देने लगे तो हमारा मूल मकसद पीछे छुट जायेगा| समाज में नारियों की स्थिति पर बहस करने और सेमीनारों में लंबे चौड़े व्याख्यान देने वाले बहुत लोग हैं लेकिन हकीकत में प्रयास करने वालों की संख्या बहुत कम है| और इनके ऊपर पोस्ट लिखकर इनके कृत्यों को जाने अनजाने शायद हम बढ़ावा दे रहे हैं| हालाँकि यह मेरी व्यक्तिगत सोच है आप शायद सहमत ना हों|
    हाँ , सवाल यह भी उठता है कि क्या हम चुप रहें? कदापि नहीं| अपनी बात समाज तक पहुंचाईए लेकिन ध्यान यह रखा जाना चाहिए कि इसे बढ़ावा ना मिले| धन्यवाद

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  16. om shanti! achha prayas hai. hardik shubhkamnayen.laxmi Kant.
    ''naari jeevan ka chitra yahi,
    kya vikal rang bhar deti ho!
    asfut rekha ki seema men-
    aakar kala ko deti ho!...'' kamayani-lajja sarg-prasad.

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