घरेलू हिंसा एक ऐसी स्थिति जिसका शिकार महिलाओं को होना पड़ता है किन्तु जिसकी शिकायत करने के मामले में पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ एक सी ही हैं.अनपढ़ की तो समझ में आती है कि वह आज भी पुरानी रुढियों में जकड़ी है और अपने पति को देवता और भाग्यविधाता मान कर चलती है इसलिए वह यह कहती हुई[ कि हमार घरवाला हमें मारे पीटे,कूटे तोहे क्या मतबल] इतनी विचित्र नहीं लगती जितनी विचित्र एक पढ़ी लिखी नारी यह कहती [भाग्य ने हमें जो दिया सह रहे हैं,गुज़ार रहे हैं] लगती है.साथ ही यह भी है कि केवल आदमी ही औरत पर अत्याचार नहीं कर रहे औरतें भी हैं जो औरतों को मारती पीटती हैं और तब भी औरतें अपनी सहनशक्ति का परिचय देती हुई हंसती मुस्कुराती कार्य करती हैं.अरे भाई औरतों में यदि सहन शक्ति है तो अत्याचार से निबटने की भी शक्ति है.मैं नहीं कहती कि आप हर झगडे पर थाने पहुँच जाओ या हर मार-पिटाई पर पीटने वाले को कोर्ट में घसीट लो क्योंकि मैं भी जानती हूँ कि कभी कभी गुस्से में हाथ उठने का मतलब पीटना नहीं होता वो तो कभी अपनी नाकामी की वजह से भी हो जाता है किन्तु जब ये रोज़ की बात बन जाये तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए और कानून द्वारा दी गयी सहायता का इस्तेमाल कर स्वयं की शक्ति प्रदर्शित कर स्वयं को भी बचाना चाहिए और अन्यों के समक्ष भी उदाहरण पेश करना चाहिए."अंशुमाला"जी के विशेष आग्रह पर मैं आज आपके समक्ष घरेलू हिंसा से संरक्षण विधेयक २००५ से सम्बंधित कुछ विशेष जानकारी लेकर प्रस्तुत हुई हूँ आशा करती हूँ कि आप इससे अवश्य लाभान्वित होंगी ;
इस विधेयक को १३ सितम्बर २००५ को अधिनियम एक्ट का रूप दिया गया है .यह एक्ट महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक ठोस व व्यावहारिक कदम है.यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ पत्नी ही घरेलू हिंसा की शिकार हो इसीलिए अधिनियम में पत्नी के अलावा बेटी बहन सास माँ भाभी दादी नानी नौकरानी आदि सभी को शामिल किया गया है .अब यदि आप यह सोच रही हैं कि आखिर यह घरेलू हिंसा क्या है तो अधिनियम कीधारा ३ कहती है "परिवार में किसी भी बालिका या महिला के साथ पुरुष वर्ग या महिला वर्ग द्वारा किया जाने वाला हर ऐसा कार्य पारिवारिक हिंसा माना जायेगा जिसमे महिला या बालिका का जीना मुश्किल हो जाये या उसे मानसिक शारीरिक कष्ट हो ,उसके साथ अमानवीय व अनैतिक आचरण या क्रूरता करना भी हिंसा माना जाता है ".
इसकी धारा ४ के अनुसार ,"कोई भी व्यक्ति जिसे घरेलू हिंसा की जानकारी मिले वह सम्बंधित संरक्षण अधिकारी को सादे कागज पर शिकायत दे सकता है ".
अधिनियम की धारा २० के अनुसार मजिस्ट्रेट प्रताडिता को मुआवजा दिला सकता है व अंतरिम आदेश जारी कर संरक्षण अधिकारी को अनुपालन करने के आदेश दे सकता है .संरक्षण अधिकारी को महिला की चिकत्सीय जाँच करने ,महिलाओं को कानूनी मदद और सुरक्षित आवास दिलाने की जिम्मेदारी सोंपी गयी है .
धारा ३१ के अनुसार संरक्षण अधिकारी के कानूनी व अंतरिम आदेश का अनुपालन न होने पर आरोपी को एक साल की सजा या २०००० रूपये का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है .
इस प्रकार महिलाओं की स्थिति कानून द्वारा सुदृढ़ की जा रही है किन्तु ये होगी तब जब महिलाएँ खुद अपनी स्थिति सुदृढ़ करेंगी .क्योंकि ये तो सभी जानती होंगी कि "god helps those who helps themselves ".अर्थार्त भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद आप करता है. महिलाओं के अधिकारों के लिए
अच्छी जानकारी है ....सही मायनों में जागरूकता का उजाला फैलाती पोस्ट के लिए आभार
ReplyDeleteशालनी जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इस जानकारी के लिए | मुझे लगता है की हर महिला को कम से कम महिलाओ से जुड़े कानून की थोड़ी बहुत जानकारी तो होनी ही चाहिए भले ही वो उनके निजी प्रयोग में कभी ना आये |
अभी तक देखने में आया था की महिलाओ के साथ घर में होने वाले हिंसा का अर्थ सिर्फ पति के मारपीट से लगाया जाता था किन्तु ऐसी लड़कियों और महिलाओ की भी कमी नहीं है जो पिता भाई आदि द्वारा भी इस तरह की मानसिक और शारीरिक हिंसा की शिकार होती है | कुछ साल पहले सभी ने टीवी पर देखा था कैसे एक सामूहिक विवाह के दौरान एक पिता दुलहन को मंडप में ही टीवी कैमरों के सामने ही खूब पीटा और उसकी जबरदस्ती शादी की , अभी कुछ समय पहले ही मुंबई में एक महिला ने अपने भाई के खिलाफ घरेलु हिंसा के तहत मामला दर्ज कराया है | मामला माँ बाप की संपत्ति से जुड़ा था | भारत में ये बहुत आम बात है की पिता की संपत्ति में बहनों को कोई हिस्सा नहीं दिया जाता है यदि बहन शादीशुदा है तो इस बारे में सोचा भी नहीं जाता है किन्तु बहन अविवाहित हो विधवा या तलाकशुदा हो और पिता की संपत्ति में अपना हक़ मांगे या पिता खुद अपनी मर्जी से भी बेटियों को कुछ देना चाहे तो की भाइयो को ये हजम नहीं होता है | इस कानून के बाद अब उम्मीद है की परिवार के हर पुरुष को महिलाओ को किसी तरह प्रताड़ना देने से पहले सोचना पड़ेगा | शालनी जी आशा है इसी तरह आप और भी महिलाओ से जुड़े कानूनों की जानकारी हमें देंगी | धन्यवाद
अधिनियम की धारा २० के अनुसार मजिस्ट्रेट प्रताडिता को मुआवजा दिला सकता है व अंतरिम आदेश जारी कर संरक्षण अधिकारी को अनुपालन करने के आदेश दे सकता है .संरक्षण अधिकारी को महिला की चिकत्सीय जाँच करने ,महिलाओं को कानूनी मदद और सुरक्षित आवास दिलाने की जिम्मेदारी सोंपी गयी है .
ReplyDeleteधारा ३१ के अनुसार संरक्षण अधिकारी के कानूनी व अंतरिम आदेश का अनुपालन न होने पर आरोपी को एक साल की सजा या २०००० रूपये का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है .
aap ka kanoon to mardo ke saath ho gaya bas ek saak ki saja aur 20,000/=00 jurmana,
jabtak hum aur aap mansikata nahi badalege tab tak kanoon ka makhool hi udta rahega.
शालिनी जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस उपयोगी और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए \
अन्शुमलाजी की बात से सहमत |
bahut upyogi jankari.aabhar.
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी...... ज़रुरत है इसे आम महिला तक पहुँचाने की..... आभार
ReplyDeleteये कुछ स्च्चाई है –
ReplyDelete प्रत्येक 55 मिनट में दहेज के लिए एक औरत की हत्या की जाती है ।
प्रत्येक 168 मिनट पर दहेज के कारण एक स्त्री आत्महत्या करने को विवश है ।
प्रत्येक 7 मिनट में एक स्त्री को अपने पति अथवा उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है ।
प्रत्येक 25 मिनट पर एक महिला बलात्कार का शिकार होती है ।
बलात्कार के 92.5 मामलों में पीड़िता के परिचित होते हैं ।
प्रत्येक 10.5 मिनट पर महिला को यौन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है ।
प्रत्येक 26 मिनट पर एक स्त्री अथवा नाबालिग बच्ची का अपहरण होता है ।
प्रतिदिन 25 औरतें दहेज के कारण हिंसा से पीड़ित होती है ।
प्रतिदिन 8 औरतें दहेज के कारण आत्महत्या करने पर विवश होती है ।
? क्या घरेलू हिंसा मारपीट या गाली गलौज भर है ? शिक्षा के वंचित कर देना, इच्छा के विरूद्ध किसी के साथ विवाह कर देना, नौकरी से त्यागपत्र दिलवा देना, उसकी आय को हथिया लेना, मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना – क्या घरेलू हिंसा नहीं है ? किसी भी परिस्थिति में स्त्री के आत्मसम्मान तथा अभिव्यक्ति का गलाघोंटना तथा उसके व्यक्तित्व विकास में बाधा पहुंचाना भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।
ReplyDeleteघरेलू हिंसा से निपटने के लिए जो अधिनियम है उसका दुरूपयोग भी हो रहा है, इसके अलावा ऐसे पुरुष भी हैं जिनकी मानसिकता में अभी भी बदलाव नहीं आया है उनके लिए कोई भी कानून प्रभावी नहीं रह गया है.
ReplyDeleteकल समाचारों में देखा, देहरादून के एक पति ने अपनी पत्नी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, हत्या करने के २ माह बाद तक वो ऐसा करता रहा....वीभत्स है ...........
कम से कम अब किताबों में लेखे इस तरह के कानूनों और बे वजह की बहसों से निकल ऐसे पुरुषों की मानसिकता बदलने और महिलाओं को इस तरह की मसिकता के लोगों से लड़ने की शिक्षा दी जाये.
शेह्स तो कानून का कौन कैसे कब प्रयोग कर रहा है सब जानते हैं...................
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सम्मान से जीने का हक तो हमें संविधान से मिले है। अगर इस पर अतिक्रमण हो तो इसका विरोध किया जाना चाहिए। घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए सन् 2005 में “द प्रेटेक्शन ऑफ वुमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस” अधिनियम पारित हुआ था। यह कानून लड़की, मां, बहन, पत्नी, बेटी बहू यहां तक कि लिव इन रिलेशन यानी बगैर शादी के साथ रह रही महिलाओं को भी शारीरिक व मानिसिक प्रताड़ना से सुरक्षा प्रदान करता है।
ReplyDeleteइस अधिनियम के तहत हर जिले में दंडाधिकारी के समकक्ष प्रोटेक्शन ऑफिसर की व्यवस्था की गई है। इस कानून में सजा का भी प्रावधान है।
सवाल है कि कितनी महिलाओं को इसके प्रावधानों की जानकारी है ? है,तो क्या वे प्रोटेक्शन ऑफिसर तक शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत जूटा पाती है ? अगर जुटा पाती होती तो हर सातवें मिनट में कोई न कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होती।
आशा है कि अधिक से अधिक लोगों तक यह आलेख और आपकी बात पहुंचे।
शालिनी जी इस पोस्ट के लिऐ आभार.इन कानूनों की जानकारी महिला व पुरूष सभी के लिए जरूरी हैं.
ReplyDeletesarthk prastuti.....aur oospar bhaiji
ReplyDeletemanoj mishra ke comment...post ko...
poornta pradan karti hue......
pranam.
बहुत उपयोगी जानकारी। केवल कानून नही समाज और खास कर महिलाओं मे जाग्रिती लाने की जरूरत है। देखा है कि कई बार पढी लिखी औरत भी कई कारणो मे चलते बेबस होती है। जैसे मेरी एक सहेली की बेटी। बाप मर गया भाई बहन नही है। पति के जगह जगह तबादलों से कहीं नौकरी नही कर पाई। माँ बीमार रहती है कहे किस से? बस उसके साथ हिंसा होती है लेकिन कुछ कर नही पाती। नौकरी की तलाश है मुइलती नही। न ही उसे अधिक कहीं आने जाने की इज़ाज़त है। वो जानती है आज के हालात मे दुनियाँ भी उसके साथ क्या करेगी। इस लिये महज कानून इसका हल नही है। सामाजि सुऱअ इससे अधिक जरूरी है। ऐसी लडकियों को रोज़गार की सहूलियत हो तो शायद इस कानून का फायदा हो सके। धन्यवाद।
ReplyDeleteमैं आप सभी की आभारी हूँ कि आपने यहाँ टिपण्णी कर मेरा उत्साह वर्धन किया .जैसा की पूर्वीय जी ने कहा की कानून पुरषों के साथ हो गया तो ऐसा नहीं है कानून अपराधियों के साथ नहीं है यदि कानून पुरुष अपराधियों को सहूलियत दे रहा है तो वह महिला अपराधियों के साथ भी नरमी से पेश आता है फिर जैसा कि निर्मला कपिला जी ने कहा की सामाजिक सुरक्षा ज़रूरी है तो ये सही बात है क्योंकि अपराधी का सामाजिक बहिष्कार ही उसे सही कर सकता है कानूनी सजा नहीं.आप खुद देखिये कि दहेज़ के लिए एक दुल्हन को मारने वाले दुल्हे को दूसरी दुल्हन कितनी जल्दी मिल जाती है अतः समाज अगर चाहे तो कानून की आगे बढ़कर सहायता कर सकता है फिर सजा चाहे एक दिन की हो या उम्र भर की सजा का नाम ही काफी है.मनोज जी की मैं बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने अच्छे आंकड़े दे कर मेरा ज्ञान वर्धन किया है .साथ ही मैं भी मानती हूँ कि हिंसा कई तरह की होती है किन्तु उनके सबूत मिलने मुश्किल होते है एक मार पिटाई ही है जिसका सबूत मिल सकता है.कुमारेन्द्र जी ने जिस किस्से का बताया है वह वास्तव में बहुत दुखद है और ज्यादा इसलिए भी क्योंकि ये प्रेम विवाह था.
ReplyDeleteआप सभी का एक बार फिर धन्यवाद .
घरेलू हिंसा जैसी बुराई के पनपने का सबसे बडा कारण स्त्रियों का आर्थिक मामलों में स्वतंत्र न होना है .. इसके अलावे महिलाओं को जागरूक होने की आवश्यकता है !!
ReplyDeleteअति सुन्दर|
ReplyDeleteमहिलाओं की स्थिति कानून द्वारा सुदृढ़ की जा रही है किन्तु ये होगी तब जब महिलाएँ खुद अपनी स्थिति सुदृढ़ करेंगी .क्योंकि ये तो सभी जानती होंगी कि "god helps those who helps themselves ".अर्थार्त भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद आप करता है. .....
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने ....हर समय दुसरे के सहारे नहीं बैठा जा सकता, कानून तो बाद की बात है पहली लडाई हमें खुद लड़नी होगी, तभी सभी साथ देंगें/होंगें ...
सार्थक उपयोगी जानकारी के लिए आभार