आस्था और पाखण्ड मे अंतर समझना जरुरी हैं । आस्था हमारी शक्ति हैं और पाखण्ड हमारी कमजोरी । आत्मा , ईश्वर हैं या नहीं इस से क्या फरक पड़ेगा ?? फरक इससे पड़ेगा कि आप आत्मा और ईश्वर को आस्था मानते हैं या पाखण्ड ।
ब्लॉग पर पिछले कुछ दिनों से soul / आत्मा को ले कर कई पोस्ट आई हैं और हर पोस्ट पर अपने तर्क हैं पोस्ट मे भी और कमेन्ट मे भी क्युकी "शिक्षा" ने मजबूर किया हैं कुछ को अपनी "आस्था" को डिस्कस करने के लिए और कुछ को उनकी " शिक्षा " ने मजबूर किये हैं लोगो के " पाखण्ड " को डिस्कस करने के लिये ।
यानी शिक्षा वो लकीर हैं जो आस्था को पाखण्ड से अलग करती हैं ।
"राम" हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं इस लिये "राम" शब्द से शक्ति मिलती हैं और नश्वर शरीर को लेजाते समय " राम नाम सत्य का उच्चारण " होता हैं ।
वही अगर हर पुरुष "राम" बन कर "सीता " का त्याग करे तो वो हिन्दू धर्म का पाखण्ड हैं आस्था नहीं ।
"वर्जिन मेरी " एक आस्था हैं क्युकी ईसा मसी की माँ का कांसेप्ट उनसे जुडा हैं । लेकिन क्या एक वर्जिन माँ बन सकती हैं ?? हां आज के परिवेश मे ये संभव हैं क्युकी आज बिना पुरुष के सहवास के भी माँ बनना संभव हैं अब अगर कोई भी साइंटिस्ट इस बात को नकार सकता हैं तो कहे । हो सकता हैं उस समय भी वो साइंस का ही चमत्कार हो लेकिन उसको आस्था से जोड़ दिया गया । पर अगर हर वर्जिन ये सोचे की वो " ईसा मसी " पैदा कर रही हैं / सकती हैं तो पाखण्ड का बोल बाला होगा ।
बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी फैथ / आस्था रखता हैं । कभी भी जब नासा का लौंच होता हैं तो आप को सीधे प्रसारण मे लोग किसी दैविक शक्ति को याद करते दिखते हैं । साइंस अपने आप मे एक फैथ हैं की हम को विश्वास हैं की हम ये खोज कर रहेगे । हर वैज्ञानिक QED कह कर अपने विश्वास को पूर्ण करता हैं ।
एक किताब मे पढ़ा था की आत्मा दो हिस्सों मे होती हैं और जिस दिन दोनों हिस्से मिल जाते हैं उस दिन आप को आप का सोलमेट मिल जाता हैं । सोलमेट यानी आप की अपनी छाया । उसी किताब मे लिखा हैं की दो लोग जब विवाह मे बंधते हैं तो वो दो लोग बंधते हैं जिन्होने पिछले जनम मे एक दूसरे का बहुत नुक्सान किया था और उनमे आपस मे बहुत नफरत थी । इस जनम मे विवाह मे बांध कर वो उस नफरत को ख़तम करते हैं ।
दूसरी किताब मे पढ़ा था की आत्मा अपने लिए खुद शरीर का चुनाव करती हैं । वो ऐसी कोख चुनती हैं जहां वो सुरक्षित रहे यानी आपके बच्चे आप को चुनते हैं {वैसे ज्यादा देखा गया हैं बच्चे कहते हैं हमे क्यूँ पैदा किया }
नारी आधारित विषयों पर अच्छे अच्छे वैज्ञानिक जब हिंदी मे ब्लॉग पर लिखते हैं तो यही कहते हैं नारी को बनाया ही प्रजनन के लिये हैं मुझे इस से बड़ा पाखंड कुछ नहीं लगता ।
वही जब हिन्दुत्वादी होने की बात होती हैं तो एक दो ब्लॉगर का नाम लिया जाता हैं जबकि शायद ही कोई ऐसा ब्लॉगर होगा जो अगर हिन्दू हो कर अपनी पुत्र आया पुत्री के विवाह के लिये मुस्लिम वर आया वधु खोजे । या ये कह कर जाए की मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं ।
वैसे आप कुछ भी कह कर जाए मरने के बाद आप के शरीर का क्या होगा ये जिनके हाथ वो पड़ेगा वही उसकी गति करेगे ।
आस्था - पाखण्ड
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार ---- आस्था
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड
ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड
आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड
पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड
पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड
साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड
व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड
बहुत से लोग ये मानते हैं कि हिन्दू धर्मं मे पाखण्ड हैं और वो निरतर हिन्दू धर्मं के विरोध मे प्रचार करते हैं जबकि हर धर्म मे पाखण्ड हैं क्युकी धर्म के नाम पर रोटी सकने वाले अगर पाखंड का प्रचार नहीं करेगे तो रोटी कहा से खायेगे । वही आस्था के विरुद्ध अगर वैज्ञानिक लिखते हैं जबकि लिखना ढोंग और पाखण्ड के विरुद्ध चाहिये ।
किसी भी मान्यता को इस लिये ढोते रहना क्युकी हम से पहले सब कर रहे थे तो मात्र लकीर पीटना होता हैं अगर आप का विश्वास हैं तो वो मान्यता आपकी आस्था हैं और अगर नहीं हैं तो आप एक पाखंड को निभा रहे हैं ताकि दुनिया मे आप कि जो छवि हैं वो अच्छी रहे
इसके अलावा जो लोग ये मानते हैं कि नारी ज्यादा पाखंड मे विश्वास रखती है वो समाज कि रुढिवादिता को दोष दे तो बेहतर होगा ।
पुनर्जन्म मेरे भाई का हो चुका है, इसलिये मैं इसे पाखण्ड नहीं मानता. दौड़कर न जाते तो पता भी नहीं चलता..
ReplyDeleteaapne aastha our andhviswaas ke beech kee rekha ko badhiya dhang se spast kiya hai...aabhaar.
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteक्या आस्तिक क्या नास्तिक क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी आपकी इन बातों को समझ जाए तो शायद कहीं कोई समस्या ही ना रहे.परन्तु एक बात और बताना चाहता हूँ की आमतौर पर नास्तिक दूसरों की भावनाओं का ख़याल ज्यादा रखते है.आपके ही ब्लॉग पर नवरात्रों के समय एक पोस्ट दुर्गा को लेकर आई थी वहां मैं कहना चाहता था की हम बार बार स्त्री शक्ति के संधर्भ में दुर्गा का नाम लेकर कही उसी देवत्व को महिमामंडित तो नहीं कर रहे जिसकी परिणीती स्त्री को सिर्फ पूज्य बनाने में होती है.और वह अपनी वास्तविक शक्तियों को नहीं पहचान पाती.परन्तु मुझे लगा की मेरी बात से लेखिका की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है इसलिए आधी ही बात कह पाया.अब भी ये सब यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है की लोगों में नास्तिकों के बारे में ये भ्रान्ति है की वे दूसरों की भावनाओं का ख़याल नहीं रखते.माफ़ कीजियेगा टिपण्णी थोड़ी लम्बी हो गई है परन्तु ये जरुरी लगा.
व्यक्ति आस्था और पाखंड में भेद कर ले तब तो कोई समस्या ही न बचे..परन्तु यह इतना भी सहज और सरल नहीं होता.इसलिए परेशानी बनी रहती है...
ReplyDeleteआपने जो भेद किये शत प्रतिशत सहमत नहीं हुआ जा सकता सबसे...लेकिन यह भी सत्य है कि किसी भी रीती रिवाजों के सभी पक्षों को देखकर,उसमे से कल्याणकारी बातों को छांटकर लोगों को ग्रहण करना चाहिए और आडम्बर से यत्न करके दूर रहना चाहिए....
मुझे किसी धर्म में कोई आस्था नहीं है. जन्म से हिन्दू हूँ तो हूँ. पर ये मानती हूँ कि और लोगों की आस्था होती है किसी धर्म में तो होने दिया जाए और उनका सम्मान किया जाय. मेरे ख्याल से धर्म और आस्था किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला होता है, उसके विषय में बहस नहीं की जा सकती. पर आपने यहाँ बड़े सीधे-सादे ढंग से आस्था और पाखण्ड में अंतर समझाने की कोशिश की है. अच्छा लगा.
ReplyDeletesahi kaha aapne
ReplyDeleteAchhi prastuti ke liye dhanyavaad
ReplyDeleteहम जिस रास्ते को चलने के लिए चुनते हैं ,तो लाजमी है किउन सभी चीजों से रू-ब-रू होना पड़ेगा जो उस रास्ते पर विद्यमान हैं | अब कौन खरा है ,कौन खोटा है ;इसका फैसला तो
ReplyDeleteवे पैमाने या मानक करते हैं ,जो इसकी पहिचान के लिए बनाये गए हैं |एक गुरू के जागरूक शिष्यों ने सवाल किया कि "भगवन आपके रहते तो हमें सत-असत का पता चल रहा है ,पर जब आप नहीं होंगे तो हम कैसे पहिचानेंगे ?" गुरू ने कहा " यही वो सोच है जो हमें भीड़ से अलग करती है ,हम तुम्हें एक सम्यक-द्रष्टि देने कि कोशिश कर रहे हैं जो सत-असत को पहिचानेगी |" सम्यक-दृष्टि विवेक के जागृत होने के बाद आती है |विवेक चिंतन-मनन के जागता है | चिंतन ,जिजीविषा यानि जिज्ञाषा के वशीभूत है और जिज्ञाषा मनुष्य के पैदा होते ही घेर लेती है | खैर!
आस्था को भय और लाचारी जैसे मानसिक-रोगों का पर्याय होना चाहिए था ,लेकिन दुर्भाग्य आस्था की पहिचान इन रोगों की दावा के रूप में होती है | आस्था अपने-आप में अधूरा शब्द है ,इसके पूरक स्वार्थ और अंधापन है | 'आस्था' भय और अनिष्ट-की-आशंका के गर्भ-नाल से पैदा होती है | विवेक को इसका अंधापन देख नहीं पाता है | पाखण्ड की जड़ें आस्था में होतीं हैं , खाद-पानी इसे आस्था से मिलाता है |आस्था और पाखण्ड का वर्गीकरण किया जा सकता है ,लेकिन दोनों जुड़वाँ ही जिन्दा रहतीं हैं | कमल कीचड़ से पैदा होता है ,यदि विवेक है तो पहिचान सकते हैं कि यहाँ तक कमल है और यहाँ से कीचड़;पर इनको अलग करना कमल के अस्तित्व को खतरे में डालने से कम नहीं | भगवान का रूप आदमी जैसा हो ये आदमी के भय और अनिष्ट कि आशंका ने गढ़ा| क्यों कि उनसे वरदान जो लेना है ,उनसे अपनी रक्षा जो करवानी है |यदि भगवान गधा के रूप में होते तो धेंचूं -धेंचूं में पता ही न चलता कि वरदान दे रहे हैं या गन्दी-गन्दी गालियाँ |हमारी रक्षा क्या करते जब अपनी रक्षा करने में अक्षम |
नरेश 'गौतम'
शब्द था 'इन रोगों की दवा' लेकिन दावा छप गया है | नरेश
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