- आज करवा चौथ हैं । हर सुहागन आज के दिन व्रत रखती हैं और कहा जाता हैं की ये व्रत वो पति की लम्बी आयू केलिये रखती हैं लेकिन क्या ये सच हैं । शायद नहीं सच तो ये हैं की क्युकी नारियों से सजने और सवारने का अधिकार , रंग बिरंगे कपडे पहने का अधिकार पति की मृत्यु के उपरान्त छीन लिया जाता हैं इस लिये वो पति की लम्बी आयू की कामना करती हैं । अगर आप ध्यान से देखेगे तो जिन प्रदेशो मे नारियां साधरण पोशाको मे रहती हैं जैसे पहाड़ीइलाके वहाँ करवा चौथ का प्रचलन नहीं हैं वही पंजाब और उत्तर प्रदेश मे नारियों को गहनों और तमाम ताम झाम सेलदे फंदे देखा जाता हैं ।कहीं ना कहीं अपने को"sellfish intrest "के तहत नारियां ऐसा करती हैं ताकि सजने सवारने का अधिकार बना रहे .
- वो नारियां जो पढ़ी लिखी होने के बावजूद नौकरी नहीं कर पाती हैं वो बार बार समाज को याद दिलाती हैं की उन्होने कितनी बड़ी "कुर्बानी " दी हैं जबकि ये कोई क़ुरबानी हैं ही नहीं । वो खुद कमजोर होती हैं और शादी और नौकरी मे से एक ही काम कर सकती हैं , इसके अलावा वो सबकी अच्छी बनी रहना चाहती हैं । अपने पति को वो बार बार याद दिला देती हैं की वो उसकी वजह से नौकरी नहीं कर पायी । इस की वजह से वो जो कुछ भी करती हैं पति को सर झुका कर मान लेना चाहिये और उनके आगे नत मस्तक भी रहना चाहिये क्युकी "क़ुरबानी " देने की वजह से वो माननिये और स्तुत्य हो गयी हैं यानीएक देवी ।कहीं ना कहीं अपने को"sellfish intrest "के तहत नारियां ऐसा करती हैं ताकि वो पूजी जाये
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
मैं आप की बातों से सहमत नहीं हूँ।
ReplyDeleteजहाँ करवा चौथ की परंपरा नहीं है वहाँ कोई बात नहीं। पर जहाँ है वहाँ यदि कोई विवाहित और सधवा स्त्री यह व्रत न करे तो पुरुषों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पर खुद स्त्रियों के समाज में उस का मान दो कौड़ी का न रह जाएगा। इसी भय से यह सब प्रचलन में है, स्वैच्छिक बिलकुल नहीं।
वस्तुतः जिस व्यवस्था ने स्त्री को दूसरे दर्जे की नागरिक बनाया है उसी ने यह सब बाध्यकारी व्रत उपवास प्रचलित किए हैं। जब तक समाज में विशेष रूप से स्त्रियों में चेतना का स्तर न बढ़ेगा यह सब चलता रहेगा।
To Moderator of the blog:
ReplyDeletePlease change the setting such that the music (Song) doesn't automatically play while opening this blog. It is a distraction.
Regards,
Neeraj
सुमन जी,
ReplyDeleteभारतीय समाज में तमाम व्रत,पर्व और त्यौहार व्यवहारिक रूप में आज जिस प्रकार अपने मूल उद्देश्य से भटक कर ताम झाम बनकर रह गए हैं, उस परिपेक्ष्य में आपकी बातें काफी हद तक सही हैं और इसका मुखर विरोध भी होना चाहिए..
परन्तु जैसे यदि नदी गंगा मनुष्यों द्वारा प्रदूषित कर दी गयी है या की जा रही है,तो इस आधार पर गंगा को महत्वहीन ठहराना उचित नहीं,वैसे ही इन व्रत उपवासों को भी अप्रासंगिक ठहराना सही नहीं होगा..
आज पश्चिमी देशों में लगभग प्रत्येक सम्बन्ध या बात के लिए कोई न कोई दिन तय कर कभी फादर्स डे,कभी मदर्स डे, वेलेंटाइन डे या असंख्य ऐसे ही डे मनाये जाते हैं और हमारा भारतीय समाज अपने संस्कृति के पर्व त्योहारों के साथ इन सभी डेज को भी मना लेता है...
भारतीय और पाशात्य सभ्यताओं में इन डेज को मानाने में थोडा सा अंतर है...उनकी संस्कृति में इन दिवसों को खा पीकर मौज मस्ती के साथ सेलेब्रेट किया जाता है तो हमारे यहाँ , पति पुत्र भाई इत्यादि इत्यादि संबंधों को गरिमा और सुदृढ़ता देने के लिए इन दिवसों को व्रत उपवास पूजा प्रार्थना के साथ मनाया जाता है..अपने प्रिय जनों के लिए शुभ की कामना करना ,उनकी कुशलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना,मुझे नहीं लगता की किसी भी भांति अप्रासंगिक है..
आज तो विज्ञान भी मानने लगा है कि सकारात्मक सोच/शुभकामना (पोजिटिव वाइव्स) में कितनी शक्ति है..तो यदि सच्चे मन से ईश्वर को साक्षी मान अपने अपनों के मंगल कामना की जायेगी तो शंशय नहीं रखना चाहिए कि ये फलदायी नहीं होंगी...
व्रत उपवास से तो यूँ भी शरीर की सुद्धि ही होती है..और अपने यहाँ स्त्रियों के लिए यह इसलिए भी यह नियम बना दिया गया है कि साधारण जीवन में जितनी जिम्मेदारियां स्त्रियों को निभानी पड़ती हैं और उसके लिए जितने धैर्य और मानसिक संबल की आवश्यकता होती है,वह स्त्री अपने को साधकर ही पा सकती है..
यह आक्षेप लगाया जा सकता है कि यह सब स्त्रियों के लिए ही क्यों है...तो बात यह है कि जब इन परम्पराओं का प्रचलन हुआ पुरुष घर के बहार अर्थोपार्जन में लिप्त रहते थे,जिसमे उनके लिए ये नियम निबाहना सरल न था..वैसे ऐसी बात नहीं है कि परिवार की मंगल कामना के लिए पुरुष कोई व्रत करते ही नहीं..आज भी कई कठिन व्रत हैं,जिसे पुरुष भी उतनी ही संख्या में करते हैं जितनी स्त्रियाँ..
suman jee main aapki dono hi soch se sahmah nahi hoon.karvachauth ka vrat pati patni ke aapsi prem ko darshata hai ,virasat me mile sanskaron ko darshata hai n ki sajne-savarne ke shok ko pura karne ke karan.doosre yeh kahna ki naukri n kar pane ka ahsan ve pati par ladti hai aur isiliye ve yah vrat karti hain to yah kahna bhi galat hai kyonki bahut si nariyon ne apne parivar ke hit ko dekhte hue swayam nokri chhodi aur parivar ke hiton ko dekha.
ReplyDeletekarvachauth ke is pavitra vrat ko swarthipan se jodna aisee soch ka hi natiza hai jise virasat me pyar aur sanskar nahi mile.
सुमन जी, आप इस परम्परा को तोड़ने का प्रयत्न करें. आप अपने मन की करें, किसी के कहे के अनुसार न चलें..
ReplyDeleteसुमन जी
ReplyDelete१- थोडा असहमत हु | महिलाए सिर्फ सजने सवरने के लिए ये व्रत नहीं रखती है उसके लिए सात वार और नौ त्यौहार वाला हमारे देश के बाकि त्यौहार ही काफी है | ये समाज द्वारा बनाई गई ऐसी परंपरा है जो हर पत्नी को रखना जरुरी है( तीज ,करवाचौथ किसी भी रूप में ) ताकि वो पति की तरफ अपनी वफादारी साबित करे जो नहीं रखता तो कहेंगे देखो पति से प्यार नहीं है उसकी चिंता नहीं है खुद पति को भी लगता है की ये मेरे लिए एक दिन भूखा नहीं रह सकती है तो और क्या कर सकती है जबकि वो भी जनता है की ऐसा करने से उसकी आयु लम्बी नहीं होने वाली है | कुछ श्रद्धा आस्था से रहती है कुछ परम्परा है इसलिए रह रही है और कुछ के लिए मजबूरी है और मैं ये परंपरा नहीं निभाती हुं |
२- नो कमेन्ट :-)
Nari tu sada mahan hai ...
ReplyDeleteNari tu sada mahan hai ...
ReplyDeleteBAHUT HEE VICHARNEEY PRASHN...
ReplyDelete.
ReplyDeleteरचना जी,
@--पता नहीं ये क्यूँ लिखा हैं ? पर लिखा हैं क्यूंकि मन मे था....
आपके मन में जो आया , वो आपने लिखा । बहुत अच्छा किया। ऐसे ही शायद हर कोई अपने मन में आने वाले विचारों को अपने ब्लॉग पर लिखता होगा। इसीलिए बहुत अच्छा लगता है मुझे लोगों के इंस्टंट विचारों को पढना। एक जैसा विचार तो शायद ही कभी किसी के मन में रहता होगा।
या ब्लॉग एक ऐसा सशक्त माध्यम है , जहां एक स्त्री और पुरुष अपने मन में आने वाले विचारों को बिना हिचक अपने जैसे आम इंसानों के साथ बाँट सकते हैं। जरूरी नहीं पति, भाई-बहन और पडोसी के साथ ही साझा किया जाए। यहाँ हम सभी परस्पर मित्र भी हैं और एक दुसरे से अनजान भी हैं। ऐसी स्थिति में विचारों के आदान प्रदान में सुविधा होती है । जिसे बुरा लगता है वो कमेन्ट नहीं करता। जिसे ठीक लगता है वो समर्थन करता है। किसी पर किसी भी तरह की बंदिश या जोर जबरदस्ती नहीं होती। न पढने की , न कमेन्ट करने की।
इसलिए मुझे लगता है , लेखक को अपने विचार अपने ब्लॉग पर लिखने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। इससे विचारों का आदान प्रदान भी होता है और विविधता भी बनी रहती है।
----------------------------
Regarding Karwachauth --
कोई भी तीज-त्यौहार मन को तथा माहौल को खुशहाल बना देते हैं। आपसी प्यार को बढाते को हैं और एक दुसरे के करीब लाते हैं। इसी बहाने पड़ोसियों से भी कुछ गप शप हो जाती है । हम सामाजिक प्राणी हैं, समाज में इन तीज त्योहारों से ही रौनक और मुस्कुराहटें रहती हैं।
----------
Regarding---वो नारियां जो पढ़ी लिखी....
पढ़ी लिखी हों या गंवार, हम सभी आखिर इंसान ही हैं । कभी न कभी हम सभी हताश होते ही हैं। यदि अपने कैरियर से न्याय न कर पाने के लिए उसका मन कभी उदास होगा तो वह व्यक्ति अपने मन की व्यथा लिख सकता है या कह सकता है अपनों से। गैर तो वैसे भी उसका मखौल ही बनायेंगे।
इसलिए ये सोचना उचित नहीं लगता की पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने बलिदान की दुहाई देती हैं। क्या उदास होकर मन की बात कहना /लिखना भी गुनाह है ?
Good questions !...Such questions enables us in knowing a person.
.
.
.
ReplyDelete@ zeal
ReplyDeleteThe author of this post is suman and not Rachna
आपके मन मे जो आया वो आपने लिखा ......पर मुझे लगता है आज की व्यस्त जिंदगी मे इसी बहाने कुछ लम्हे अपने लिए मिल जाते है .
ReplyDelete.
ReplyDeleteRachna ji,
Thanks for pointing out the mistake. My comment is addressed to Suman ji.
.
Prashn achchha hai....
ReplyDeletekarva chauth ka vrat chahe parampara nibhane ke liye rakhe chahe samarpan jatane ke liye, yah karta to purush aham ko hi poshit hai aur samaj ki balikaon ke mann me bhi jane anjane yahi upjata hai ki purush ke liye balidan dete rahne me hi unki hasti hai. iske vipreet balkon ke mann ki conditioning ye ho jati hai ki purush hona badi aham baat hai.
nari swayam jab tak in paramparaon ko challenge nahi karti nari ke daman ke kuchakra ko toda nahin ja sakta......
koi vyavastha kyon bani thi yah mahatvapoorn nahin, mahtvapurna baat yah hai ki uska prabhav kya pad raha hai
samaj me stri-purush samanta ko badhava diya jana chahiye